नई दिल्ली : अफगानिस्तान में तालिबान का शासन होने के बाद सवाल उठने लगा है कि भारतीय सैन्य संस्थानों में सैन्य युद्ध, रणनीति और शिक्षाविदों में प्रशिक्षित होने वाले अफगान नेशनल आर्मी (ANA) के अधिकारियों की लंबी विरासत की निरंतरता क्या हो सकती है. यानी क्या उन्हें आगे भी ट्रेनिंग मिलती रहेगी. कई महत्वपूर्ण सवाल हैं. क्या इस्लामिक अमीरात ऑफ अफगानिस्तान (IEA) के सैनिकों के लिए मार्ग प्रशस्त किया जा रहा है. क्या तालिबानी शासन में काम करने वाले सैनिकों को प्रशिक्षण मिलता रहेगा.
बता दें कि 2021 में तालिबान के अधिग्रहण तक, भारतीय सैन्य अकादमी (IMA), अधिकारी प्रशिक्षण अकादमी (OTA) या राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA) जैसे भारतीय सैन्य संस्थानों में हर साल अफगान नेशनल आर्मी के पुरुष और महिला दोनों अधिकारियों को प्रशिक्षित किया जाता था. इन्हें आर्टिलरी स्कूल (देवलाली), मैकेनाइज्ड इन्फैंट्री रेजिमेंटल सेंटर (अहमदनगर) और इन्फैंट्री स्कूल (महू) में विशेष प्रशिक्षण प्रदान किया जाता था. एक साल से भी कम समय पहले जब तालिबान मिलिशिया ने काबुल पर कब्जा कर लिया था, उस समय अमेरिकी सैनिकों ने अफगानिस्तान को उसी के हाल के पर छोड़ दिया था.
इस्लामिक अमीरात (अफगानिस्तान) के रक्षा मंत्री और तालिबान के संस्थापक मुल्ला मोहम्मद उमर के बेटे मुल्ला याकूब ने 31 मई को एक भारतीय टीवी चैनल को दिए साक्षात्कार में भारत में सैन्य अकादमियों में इस्लामिक अमीरात ऑफ अफगानिस्तान सैनिकों के प्रशिक्षित करने की अपनी इच्छा का संकेत दिया. उमर ने एक सवाल के जवाब में कहा, हां, हमें इसमें कोई समस्या नजर नहीं आती. अफगान-भारत संबंध मजबूत हैं और इसके लिए जमीन तैयार करते है, इसमें कोई दिक्कत नहीं होगी.
वहीं पिछले साल के घटनाक्रम के परिणामस्वरूप भारतीय सैन्य अकादमी में लगभग 40 अफगान कैडेटों को अफगान नेशनल आर्मी (एएनए) के भंग होने के कारण बीच में ही छोड़ दिया गया. भारत में प्रशिक्षित कैडेटों ने लौटने से इनकार कर दिया और इसके बजाय भारत सरकार की मदद से व्यावसायिक प्रशिक्षण प्राप्त करने और भारत और अमेरिका सहित अन्य देशों में शरण मांगने सहित विकल्प मांगे थे. इसी तरह, इस साल शनिवार (11 जून) को आईएमए से पास आउट होने वाले 43 अफगान कैडेटों के लिए भी भाग्य अनिश्चित है.
समाज में महिलाओं की स्थिति सहित अपने कट्टरपंथी धार्मिक विचारों के लिए लंबे समय से माने जाने वाले तालिबान का भारत के साथ कभी भी मधुर संबंध नहीं था. गौरतलब है कि इंडियन एयरलाइंस 814 की फ्लाइट को 24 दिसंबर 1999 को अपहरण करके अफगानिस्तान के कंधार ले जाया गया था, उस समय भी तालिबान की वहां सत्ता थी. उस दौरान तीन आतंकवादियों मौलाना मसूद अजहर, उमर शेख और मुश्ताक अहमद जरगर को रिहा कर दिया गया था.
मुल्ला याकूब के इस बयान के बाद ही भारतीय विदेश मंत्रालय में संयुक्त सचिव जेपी सिंह के नेतृत्व में एक भारतीय विदेश मंत्रालय का प्रतिनिधिमंडल काबुल पहुंचा था. इसने अफगानिस्तान से संबंधित मुद्दों पर विचार-विमर्श किया. वहीं 3 जून को सिंह ने अफगानिस्तान के अंतरिम विदेश मंत्री मावलवी अमीर खान मुत्ताकी और उप विदेश मंत्री शेर मोहम्मद अब्बास स्तानिकजई से मुलाकात की थी, इन्होंने अफगान नेशनल आर्मी (एएनए) के एक युवा लेफ्टिनेंट के रूप में 1982-83 में आईएमए से 71वें बैच के रूप में परीक्षा उत्तीर्ण की थी.
आईईए मंत्रियों के साथ बैठकों के बाद, सिंह ने भारत-अफगानिस्तान संबंधों को ऐतिहासिक करार देते हुए अफगानिस्तान में बुनियादी ढांचे और छोटी परियोजनाओं, क्षमता निर्माण, शैक्षिक छात्रवृत्ति और मानवीय सहायता में मदद करने के लिए भारत की उत्सुकता जताई. वहीं इस्लामिक अमीरात ऑफ अफगानिस्तान (IEA) ने बैठक के दोनों देशों के बीट संबंधों में एक अच्ची शुरुआत बताते कहा कि भारत द्वारा परियोजनाओं को फिर से शुरू करने, अफगानिस्तान में उनकी राजनयिक उपस्थिति और अफगानों को कौंसल सेवाओं के प्रावधान पर जोर दिया.
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सामने आई रिपोर्टों में कहा गया है कि नई दिल्ली काबुल में भारतीय दूतावास को सीमित संख्या में राजनयिक अधिकारियों के साथ शुरू करने के लिए उत्सुक है. इसके अलावा कौंसल मामलों के साथ-साथ भारत के द्वारा अफगानिस्तान को मानवीय सहायता की सुविधा भी दी जा रही है. इतना ही नही भारत में आने के इच्छुक किसी भी अफगान नागरिक को अब काबुल स्थित भारतीय दूतावास द्वारा जारी वीजा की जरूरत होगी. हालांकि यह तब तक संभव नहीं होगा जब तक भारतीय दूतावास अपनी कौंसल गतिविधियों को शुरू नहीं करता जिसमें वीजा जारी करना शामिल है.
इतना ही नही भारत में आने के इच्छुक किसी भी अफगान नागरिक को अब काबुल स्थित भारतीय दूतावास द्वारा जारी वीजा की जरूरत होगी. हालांकि यह तब तक संभव नहीं होगा जब तक भारतीय दूतावास अपनी कौंसल गतिविधियों को शुरू नहीं करता जिसमें वीजा जारी करना शामिल है.विशेष रूप से, काबुल में तालिबान के अधिग्रहण के बाद जहां पाकिस्तान के साथ अफगानिस्तान की तत्कालीन सरकार के संबंधों में गिरावट आई है वहीं दूसरी तरफ भारत के साथ संबंधों में तेजी आई है. अब सवाल यह उठता है कि क्या तालिबान सैन्य कर्मियों को भारत में सैन्य प्रशिक्षण के लिए तैयार किया जा रहै है?