हैदराबाद : यूनाइटेड नेशन के आंकड़ों के अनुसार नॉर्थ अमेरिका तथा यूरोप में 17,000 से लेकर 20,000 लोगों में से कम से कम एक व्यक्ति एल्बिनिज़्म रोग से पीड़ित है. यह संख्या अफ्रीका के उप सहारा क्षेत्र में ज्यादा विकट है. आंकड़ों की माने तो, तंजानिया में 1,400 लोगों में से 1 व्यक्ति तथा जिम्बाब्वे के कुछ क्षेत्रों में 1000 में से 1 व्यक्ति इस समस्या से पीड़ित है. दुनिया भर में लोगों को एल्बिनिज़्म रोग के बारे में जागरूक करने के उद्देश्य से हर वर्ष 13 जून को अंतरराष्ट्रीय एल्बिनिज़्म (रंगहीनता) जागरूकता दिवस मनाया जाता है.
अंतरराष्ट्रीय एल्बिनिज़्म (रंगहीनता) जागरूकता दिवस 2021
एल्बिनिज्म यानी रंगहीनता या सफेद दाग जैसी समस्या के शिकार लोगों को विश्व में होने वाले भेदभाव से मुक्त कराने के उद्देश्य के साथ वर्ष 2014 में 13 जून को इस विशेष दिवस को मनाया जाना नियत किया गया था, जिसकी घोषणा संयुक्त राष्ट्र महासभा ने सर्वप्रथम 18 दिसंबर 2014 को की थी.
इस वर्ष यह विशेष दिवस 'स्ट्रेंथ बियोंड ऑल ओड़' यानी सभी विषमताओं के बावजूद मजबूती या शक्ति थीम पर मनाया जा रहा है. यह थीम रखने का मुख्य उद्देश्य एल्बिनिज़्म समस्या के पीड़ितों की उपलब्धियों तथा उनकी क्षमताओं को दुनिया के सामने लाना, तथा कैसे इस रोग से पीड़ित लोग वैश्विक स्तर पर अपनी समस्याओं से ऊपर उठ कर खुशहाली के साथ अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं, इस बारे में लोगों को अवगत करना है. इस अवसर पर वैश्विक महामारी कोरोना को लेकर लोगों में साहस बढ़ाने के उद्देश्य से #बिल्डबैकबेटर मुहिम भी चलाई जाएगी.
इस विशेष दिवस पर यूनाइटेड नेशन के सेक्रेटरी जनरल एंटोनियो ग्यूटेर्स ने संगठन की ओर से जारी सूचना में इस रोग से पीड़ित लोगों की सराहना करते हुए कहा है कि एल्बिनिज़्म यानी रंगहीनता रोग के शिकार अधिकांश लोगों के दृढ़ निश्चय, उनकी लगन तथा मेहनत का नतीजा है कि वे तमाम बाधाओं से लड़कर सामान्य और खुशहाल जीवन जी रहे हैं. उन्होंने बताया कि संगठन भविष्य में भी इस रोग से पीड़ित लोगों के साथ खड़े रह कर हर संघर्ष में उनका साथ देगा.
क्या है ऐल्बिनिज़म
इस रोग को ऐक्रोमिया, ऐक्रोमेसिया, या ऐक्रोमेटोसिस (वर्णांधता या अवर्णता) के नाम से भी जाना जाता है. हमारी त्वचा में मेलेनिन के उत्पादन में शामिल एंजाइम के अभाव या दोष के कारण यह समस्या होती है, जिसमें त्वचा और बालों के कुछ हिस्सों का रंग शरीर और बाल के प्राकृतिक रंग से अलग हो जाता है. देखने में यह पैच की तरह नजर आता है. इस समस्या का असर आँखों पर भी गंभीर रूप में नजर आता है. सम्पूर्ण या आंशिक रूप में नजर आने वाला यह विकार आमतौर पर एक जन्मजात विकार होता है, जो कि वंशानुगत तरीके से रिसेसिव जीन एलील्स के कारण होता है. यह रोग सिर्फ इंसानों ही नहीं बल्कि जानवरों में भी नजर आ सकता है.
यह रोग होने पर लोगों को फोटोफोबिया यानी प्रकाश को सहन न कर पाना, ऐस्टिगमैटिज्म यानी साफ दिखाई न देना, धूप से ज्यादा प्रभावित होना और कई बार त्वचा कैंसर जैसे गंभीर रोग होने का खतरा रहता है.
क्या है उपचार
इस समस्या का कोई उपचार नहीं है, लेकिन कुछ उपायों और सावधानियों को बरत कर लोग अपनी स्थिति बेहतर रख सकते हैं. ये उपाय इस प्रकार हैं.
- आँखों को यूवी किरणों से बचाने के लिए धूप में निकालने पर धूप का चश्मा पहनें.
- घर से बाहर निकलते समय हमेशा सनस्क्रीन का उपयोग करें.
- आँखों से जुड़ी समस्या के लिए चिकित्सक से सलाह और उपचार लें.
- लंबे समय तक धूप में रहने से बचें.
- नियमित तौर पर नेत्र विशेषज्ञ तथा त्वचा विशेषज्ञों के संपर्क में रहें और जांच करवाते रहें.