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कभी दूसरों के घरों में करती थीं काम, आज दे रहीं लोगों को रोजगार

केरल की रहने वाली महिला अपने पति के साथ काम की तलाश में 37 साल पहले हरियाणा आई थी. पति की मृत्यु के बाद उन्होंने मजदूरी की और अपनी बेटियों को सरकारी अधिकारी बनाया. इस महिला के संघर्ष भरे जीवन की इस कहानी से हर किसी को प्रेरणा मिल रही है.

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Published : Nov 7, 2021, 8:38 AM IST

पानीपत : 'कौन कहता है आसमान में सुराग हो नहीं सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो', इस कहावत को सच कर दिखाया है केरल से हरियाणा में काम करने आई एक महिला ने, जिसने अपने पति की मौत के बाद मेहनत कर बच्चों की परवरिश की और उन्हें बुलंदियों तक पहुंचाया. मिसाल बन चुकी पानीपत की ये महिला आज भी 64 साल की उम्र में बेटे के साथ उसके बिजनेस में हाथ बंटा रही हैं.

हम बात कर रहे हैं, शोभना नामक महिला की, जो 1984 में केरल से अपने पति राजेश के साथ हरियाणा के हिसार स्थित हांसी हलके में आई थी. उनके पति हांसी में एक बिस्कुट फैक्ट्री में मशीन ऑपरेटर थे. 1988 में इस फैक्ट्री के मालिक के भाई ने जब पानीपत में नया प्लांट लगाया था, शोभना के पति राजेश को पानीपत प्लांट में मशीन ऑपरेटर रख लिया गया था. शोभना के पति की 1994 में किडनी डैमेज होने के कारण मौत हो गई. उसके बाद से शोभना के संघर्ष का सिलसिला जारी हो गया.

कभी बच्चों को पालने के लिए इस महिला ने दूसरों के घरों में किया था काम

शोभना ने अपने पति की मौत के बाद भी हिम्मत नहीं हारी. जब पति की मौत हुई, उनके पास एक बेटा और तीन बेटियां थीं. सास-ससुर, रिश्तेदार, मां-बाप उनका साथ देने वाला कोई भी नहीं था. सामाजिक संगठनों की सहायता से उन्हें एक पटवारी के पास मुंशी रखवा दिया गया. वह घर-घर जाकर वोटर लिस्ट का काम, बीपीएल सर्वे का काम करने लगी. वहीं, बच्चों को अनाथ आश्रम में छोड़कर घरों में बर्तन मांजना, घर की साफ-सफाई का काम भी शोभना ने किया. उसके बाद शोभना बताती हैं कि गाय का दूध बेचकर वह अपने बच्चों का पालन पोषण करने लगी.

पढ़ें : ग्वालियर विमान दुर्घटना : 'गंभीर लापरवाही' बरतने को लेकर पायलट निलंबित

शोभना की बड़ी बेटी जब पढ़-लिखकर आयुष मंत्रालय के रिसर्च सेंटर में सर्विस लगी तो शोभना को बाकी बच्चों का भविष्य भी उज्जवल दिखाई देने लगा. शोभना ने उसके बाद फिर दूध बेचने के कारोबार को और बड़ा कर दिया. दूसरी बेटी को बिजली विभाग में एलडीसी के पद पर लगवाया. तीसरी बेटी को पढ़ा-लिखाकर योगा टीचर बनाया और बेटे को टेक्सटाइल का कोर्स करवाने के बाद टेक्सटाइल फैक्ट्री लगा कर दी.

अब वह बेटे के साथ टेक्सटाइल फैक्ट्री में लगातार 16 से 18 घंटे काम करती हैं. टेक्सटाइल के इस उद्योग में टी-शर्ट, जैकेट बनाने का काम किया जाता है और उन्हें ऑनलाइन सेल किया जाता है. हर रोज सैकड़ों ऑर्डर शोभना की फैक्ट्री से निकलते हैं. शोभना के पास आज 30 से 35 लोग, जो 40 से 50 हजार प्रति महीना के वेतन पर काम करते हैं. शोभना का कहना हैं कि उनकी जिंदगी काफी संघर्ष भरी रही, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी.

उन्होंने कहा कि कभी भी मेहनत करना बंद नहीं किया. उसी का नतीजा है कि आज उनके सभी बच्चे सफल हो गए हैं. साथ ही वे कई लोगों भी रोजगार दे रही हैं. उन्हें रोजगार देते हुए बहुत खुशी महसूस होती है और उनका सपना है कि वह अपने बेटे के साथ मिलकर व्यापार को बड़ा करें. शोभना को कई बार सामाजिक संगठनों और हरियाणा महिला बाल विकास विभाग द्वारा सम्मानित भी किया जा चुका है.

पानीपत : 'कौन कहता है आसमान में सुराग हो नहीं सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो', इस कहावत को सच कर दिखाया है केरल से हरियाणा में काम करने आई एक महिला ने, जिसने अपने पति की मौत के बाद मेहनत कर बच्चों की परवरिश की और उन्हें बुलंदियों तक पहुंचाया. मिसाल बन चुकी पानीपत की ये महिला आज भी 64 साल की उम्र में बेटे के साथ उसके बिजनेस में हाथ बंटा रही हैं.

हम बात कर रहे हैं, शोभना नामक महिला की, जो 1984 में केरल से अपने पति राजेश के साथ हरियाणा के हिसार स्थित हांसी हलके में आई थी. उनके पति हांसी में एक बिस्कुट फैक्ट्री में मशीन ऑपरेटर थे. 1988 में इस फैक्ट्री के मालिक के भाई ने जब पानीपत में नया प्लांट लगाया था, शोभना के पति राजेश को पानीपत प्लांट में मशीन ऑपरेटर रख लिया गया था. शोभना के पति की 1994 में किडनी डैमेज होने के कारण मौत हो गई. उसके बाद से शोभना के संघर्ष का सिलसिला जारी हो गया.

कभी बच्चों को पालने के लिए इस महिला ने दूसरों के घरों में किया था काम

शोभना ने अपने पति की मौत के बाद भी हिम्मत नहीं हारी. जब पति की मौत हुई, उनके पास एक बेटा और तीन बेटियां थीं. सास-ससुर, रिश्तेदार, मां-बाप उनका साथ देने वाला कोई भी नहीं था. सामाजिक संगठनों की सहायता से उन्हें एक पटवारी के पास मुंशी रखवा दिया गया. वह घर-घर जाकर वोटर लिस्ट का काम, बीपीएल सर्वे का काम करने लगी. वहीं, बच्चों को अनाथ आश्रम में छोड़कर घरों में बर्तन मांजना, घर की साफ-सफाई का काम भी शोभना ने किया. उसके बाद शोभना बताती हैं कि गाय का दूध बेचकर वह अपने बच्चों का पालन पोषण करने लगी.

पढ़ें : ग्वालियर विमान दुर्घटना : 'गंभीर लापरवाही' बरतने को लेकर पायलट निलंबित

शोभना की बड़ी बेटी जब पढ़-लिखकर आयुष मंत्रालय के रिसर्च सेंटर में सर्विस लगी तो शोभना को बाकी बच्चों का भविष्य भी उज्जवल दिखाई देने लगा. शोभना ने उसके बाद फिर दूध बेचने के कारोबार को और बड़ा कर दिया. दूसरी बेटी को बिजली विभाग में एलडीसी के पद पर लगवाया. तीसरी बेटी को पढ़ा-लिखाकर योगा टीचर बनाया और बेटे को टेक्सटाइल का कोर्स करवाने के बाद टेक्सटाइल फैक्ट्री लगा कर दी.

अब वह बेटे के साथ टेक्सटाइल फैक्ट्री में लगातार 16 से 18 घंटे काम करती हैं. टेक्सटाइल के इस उद्योग में टी-शर्ट, जैकेट बनाने का काम किया जाता है और उन्हें ऑनलाइन सेल किया जाता है. हर रोज सैकड़ों ऑर्डर शोभना की फैक्ट्री से निकलते हैं. शोभना के पास आज 30 से 35 लोग, जो 40 से 50 हजार प्रति महीना के वेतन पर काम करते हैं. शोभना का कहना हैं कि उनकी जिंदगी काफी संघर्ष भरी रही, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी.

उन्होंने कहा कि कभी भी मेहनत करना बंद नहीं किया. उसी का नतीजा है कि आज उनके सभी बच्चे सफल हो गए हैं. साथ ही वे कई लोगों भी रोजगार दे रही हैं. उन्हें रोजगार देते हुए बहुत खुशी महसूस होती है और उनका सपना है कि वह अपने बेटे के साथ मिलकर व्यापार को बड़ा करें. शोभना को कई बार सामाजिक संगठनों और हरियाणा महिला बाल विकास विभाग द्वारा सम्मानित भी किया जा चुका है.

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