नई दिल्ली: केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने कहा कि सिंधु नदी जल संधि दुनिया के सबसे पवित्र समझौतों में से एक है, लेकिन पाकिस्तान द्वारा आधारहीन और तथ्यहीन बातों को लेकर इसकी परियोजनाओं में व्यवधान पैदा किया जा रहा है. जबकि पाकिस्तान द्वारा तीन युद्ध प्रत्यक्ष रूप से थोपे जाने के बावजूद भारत ने हमेशा इस संधि का सम्मान किया है.
शेखावत ने 'पीटीआई-भाषा' के साथ एक साक्षात्कार में यह बात कही. मंत्री ने कहा 'सिंधु नदी जल संधि में भारत के अधिकार क्षेत्र के कई विषय हैं, जिनमें पनबिजली तैयार करने के लिए परियोजनाएं बनाना शामिल है और भारत संधि के अनुरूप काम कर रहा है.' उन्होंने कहा, 'ऐसी परियोजनाओं को लेकर भारत जो काम कर रहा था, उसमें व्यवधान पैदा करने के लिए पाकिस्तान ने आधारहीन और तथ्यहीन बातों को लेकर विश्व बैंक के समक्ष कुछ वाद दायर किया.' उन्होंने कहा कि साथ ही पाकिस्तान ने अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) में भी इस तरह के वाद दायर किये.
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि भारत सरकार की तरफ से इस पर आपत्ति प्रस्तुत की गई कि दो समानांतर प्रक्रियाएं, दो अलग-अलग जगहों पर नहीं चल सकती और भारत की यह आपत्ति संधि के अनुरूप है.
शेखावत ने कहा कि अगर दो समानांतर प्रक्रिया चल रही है तब पहले इस बात पर स्थिति स्पष्ट होनी चाहिए और रूख सामने आना चाहिए और इसके बाद ही अन्य बातों पर विचार हो.
जल शक्ति मंत्री ने कहा, 'सिंधु नदी जल संधि दुनिया के सबसे पवित्र समझौतों में से एक है और पाकिस्तान द्वारा तीन युद्ध प्रत्यक्ष रूप से थोपे जाने के बावजूद भारत ने हमेशा इस संधि का सम्मान किया है.' ज्ञात हो कि भारत और पाकिस्तान ने नौ वर्षों की वार्ता के बाद 1960 में संधि पर हस्ताक्षर किये थे. विश्व बैंक भी इस संधि के हस्ताक्षरकर्ताओं में शामिल था. भारत ने सितंबर 1960 की सिंधु जल संधि में संशोधन के लिए 25 जनवरी, 2023 को पाकिस्तान को नोटिस भेजा था.
इस संधि के मुताबिक कुछ अपवादों को छोड़कर भारत पूर्वी नदियों का पानी बिना रोकटोक के इस्तेमाल कर सकता है. भारत से जुड़े प्रावधानों के तहत रावी, सतलुज और ब्यास नदियों के पानी का इस्तेमाल परिवहन, बिजली और कृषि के लिए करने का उसे (भारत को) अधिकार दिया गया. समझा जाता है कि भारत द्वारा पाकिस्तान को यह नोटिस किशनगंगा और रातले पनबिजली परियोजनाओं से जुड़े मुद्दे पर मतभेद के समाधान को लेकर पड़ोसी देश के अपने रुख पर अड़े रहने के मद्देनजर भेजा गया है.
यह नोटिस सिंधु जल संधि के अनुच्छेद 12 (3) के प्रावधानों के तहत भेजा गया है. वर्ष 2015 में पाकिस्तान ने भारतीय किशनगंगा और रातले पनबिजली परियोजनाओं पर तकनीकी आपत्तियों की जांच के लिये तटस्थ विशेषज्ञ की नियुक्ति करने का आग्रह किया था. वर्ष 2016 में पाकिस्तान इस आग्रह से एकतरफा ढंग से पीछे हट गया और इन आपत्तियों को मध्यस्थता अदालत में ले जाने का प्रस्ताव किया. भारत ने इस मामले को लेकर तटस्थ विशेषज्ञ को भेजने का अलग से आग्रह किया था. भारत का मानना है कि एक ही प्रश्न पर दो प्रक्रियाएं साथ शुरू करने और इसके असंगत या विरोधाभासी परिणाम आने की संभावना एक अभूतपूर्व और कानूनी रूप से अस्थिर स्थिति पैदा करेगी, जिससे सिंधु जल संधि खतरे में पड़ सकती है.
भारत ने सिंधु जल संधि में संशोधन के लिए इस वर्ष 25 जनवरी को पाकिस्तान को नोटिस भेजा जोकि इस संधि को लागू करने से जुड़े विवाद निपटारा तंत्र के अनुपालन को लेकर पड़ोसी देश के अपने रुख पर अड़े रहने के कारण भेजा गया था. पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने इसके जवाब में तीन अप्रैल को एक पत्र भेजा था.
वहीं, सिंधु जल संधि (आईडब्ल्यूटी) की संचालन समिति की हाल ही में बैठक हुई जिसमें संधि को लेकर जारी संशोधन प्रक्रिया का जायजा लिया गया. संचालन समिति की बैठक की अध्यक्षता जल संसाधन विभाग के सचिव ने की थी और इसमें विदेश सचिव विनय क्वात्रा एवं दोनों मंत्रालयों के अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने हिस्सा लिया था.
पीटीआई-भाषा