इंदौर : देश में स्वच्छता सर्वेक्षण शुरू होने के साथ ही इंदौर स्वच्छ भारत अभियान (Swachh Bharat Abhiyan) में चार सालों से स्वच्छता के साथ अपशिष्ट प्रबंधन और ऊर्जा के साथ पर्यावरण संरक्षण में लगातार कीर्तिमान बना रहा है. इंदौर जल्द ही देश का पहला वाटर प्लस रैंकिंग (Water Plus Ranking) वाला शहर घोषित होने की तैयारी में है.
इतना ही नहीं स्वच्छता के लिहाज से सबसे मुश्किल बताई जाने वाली शहरी विकास मंत्रालय की सेवन स्टार रैंकिंग के लिए इंदौर का कड़ा मुकाबला सूरत, अहमदाबाद और मुंबई से है. हाल ही में यहां स्वच्छता के कठिन मापदंडों के आकलन के लिए सर्वेक्षण दल इंदौर पहुंचा है. जिसकी रिपोर्ट के आधार पर इंदौर देशभर में स्वच्छता के नए कीर्तिमान स्थापित कर सकता है.
इंदौर नगर निगम तीन साल से कर रहा तैयारी
दरअसल, शहरी विकास मंत्रालय ने स्वच्छता के साथ अपशिष्ट प्रबंधन और जल निस्तारण की जो सबसे कठिन Seven Star Ranking तय की है, यह रैंकिंग पाने के लिए इंदौर में बीते तीन साल से तैयारियां चल रही थीं. यही वजह है कि नगर निगम ने तीन सालों में 300 करोड़ रुपये से अधिक खर्च कर शहर की प्रमुख नदियों में अवशिष्ट जल प्रभाव को रोका.
इसके लिए बड़े पैमाने पर शहर के नालों के नदियों में होने वाले आउटफॉल को बंद किया. शहर की कान्ह और सरस्वती नदी इन दिनों मूल स्वरूप में बह रही हैं.
नालों के पानी से कर रहे पौधरोपण
नगर निगम नदियों के अलावा शहर के 27 नालों में बहने वाले सीवर युक्त पानी को फिल्टर करके उसका उपयोग शहर के तमाम बगीचों और पार्कों में पौधरोपण के लिए उपयोग कर रहा है. शहर के तमाम नालों और नदियों के किनारे जो परिवार अब तक सीवर और ड्रेनेज का प्रवाह नालों, नदियों में करते थे, उनके घरों से निकलने वाले पानी को भी 20 करोड़ रुपये खर्च करने के बाद एक लाइन से जोड़ा गया है.
अन्य शहरों की तुलना में इंदौर मजबूत
सेवन स्टार रैंकिंग के लिए जो शर्तें हैं, उन्हें इंदौर नगर निगम ने पहले से ही पूरी कर रखी है. इसके अलावा सीवरेज वाटर का ट्रीटमेंट करके उसके पानी को गार्डन सहित अन्य जरूरतों में उपयोग इंदौर में पहले से ही हो रहा है. इतना ही नहीं चेंबर और मेनहोल में आने वाली समस्याओं का निराकरण इंदौर नगर निगम के एप (इंदौर 311) पर ही हो जाता है. इस तरह की व्यवस्था सिर्फ इंदौर में है. यही वजह है कि इंदौर का दावा देश के अन्य शहरों की तुलना में ज्यादा पुख्ता नजर आ रहा है.
वाटर प्लस के प्रोटोकॉल
स्वच्छ भारत मिशन के तहत अब उन शहरों के बीच स्वच्छता के साथ अपशिष्ट जल प्रबंधन को लेकर भी कड़ी प्रतिस्पर्धा हो रही है, जो वाटर प्लस श्रेणी प्राप्त करने की दौड़ में है. दरअसल वाटर प्लस प्रोटोकॉल के तहत शहर के आवासीय घरों और व्यवसायिक प्रतिष्ठानों से निकलने वाले अपशिष्ट जल को जल स्रोतों में छोड़ने से पहले उसे उपचारित करने के मापदंड शहरी विकास मंत्रालय ने तय किए हैं. जिनमें विभिन्न मापदंडों को पूरा करने के अलग-अलग अंक निर्धारित हैं.
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यह अंक संबंधित क्षेत्रों को उनके जल प्रबंधन प्रयासों और प्रयोगों को ध्यान में रखते हुए दिए जाने हैं. दरअसल वाटर प्लस सर्टिफिकेशन के कुल 1800 अंकों में से सेवन स्टार रैंकिंग के लिए 1100 नंबर और वाटर प्लस के लिए 700 अंक निर्धारित हैं.
शहर के तमाम टॉयलेट पर अधिकारियों की तैनाती
स्वच्छता सर्वेक्षण की टीम का ध्यान इस बार नगर निगम द्वारा बनाए गए पब्लिक टॉयलेट और कम्युनिटी टॉयलेट रहेगा. यही वजह है कि सारे टॉयलेट को चकाचक किया गया है. स्वच्छता सर्वेक्षण और सेवन स्टार रैंकिंग के लिए टॉयलेट को लेकर जो मापदंड तय किए गए हैं, उनकी भी व्यवस्था यहां पहले से हैं. जहां किसी भी तरह की कमी की आशंका है, उसकी पूर्ति के लिए शहर के सभी 19 जोन कार्यालय के अधीन सभी टॉयलेट पर अधिकारियों की तैनाती की गई है.