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200 साल पुरानी परंपरा पर प्रशासन का पहरा, दूसरे साल भी नहीं हुआ हिंगोट युद्ध - Administrative officers inspected Hingote battlefield

लगभग 200 साल पुरानी हिंगोट युद्ध की परंपरा इस साल भी नहीं हुई. कोरोना की तीसरी लहर की आशंका के कारण प्रशासन ने यह युद्ध नहीं होने दिया. पिछले साल भी कोरोना के चलते युद्ध रोका गया था. पुलिस ने सुबह से ही हिंगोट युद्ध मैदान को छावनी में तब्दील कर दिया था. हालांकि प्रशासन के पहरे के बाद भी कुछ लोगों ने अपने घरों से हिंगोट छोड़े, लेकिन पुलिस ने इस ओर ध्यान नहीं दिया.

हिंगोट युद्ध
हिंगोट युद्ध
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Published : Nov 6, 2021, 2:10 AM IST

इंदौर : दिवाली के दूसरे दिन इंदौर के गौतमपुरा में आयोजित होने वाला हिंगोट युद्ध आखिरकार दूसरे साल भी टल गया. हालांकि स्थानीय कांग्रेस विधायक ने इस परंपरा को जारी रखने के लिए लोगों से आह्वान किया था. जिसके चलते पुलिस प्रशासन को युद्ध रोकने के लिए गौतमपुरा में दिन भर डटे रहना पड़ा. शाम को हिंगोट की दोनों टीमें कहीं आमने-सामने ना उतर आए, इसलिए पूरे इलाके में पुलिस ने मार्च पास्ट भी किया. हालांकि कुछ लोगों ने घरों से हिंगोट छोड़े, लेकिन पुलिस ने इस ओर ध्यान नहीं दिया.

दरअसल इंदौर के गौतमपुरा में दिवाली के दूसरे दिन धोक पड़वा पर परंपरागत रूप से हिंगोट युद्ध बीते 200 साल से होता रहा है. गोटमार मेले की तरह ही इंदौर के प्रसिद्ध हिंगोट युद्ध में क्षेत्र के 2 गांव की दो टीमें मैदान में उतरती है, जो एक दूसरे पर जलते हुए हिंगोट से हमला करती है. इस आयोजन में रॉकेट की तरह हिंगोट जलता हुआ दूसरे टीम के सदस्यों पर गिरता है. जिससे कई लोगों की आंखें चोट लगने से खराब भी हो चुकी हैं. इसके अलावा हर साल कुछ लोग यहां हिंगोट के कारण घायल भी हो जाते थे.

vaपुलिस ने क्षेत्र में निकाला फ्लैग मार्च
पुलिस ने क्षेत्र में निकाला फ्लैग मार्च

युद्ध देखने के लिए आते थे हजारों लोग
प्रसिद्ध हिंगोट युद्ध को देखने के लिए इंदौर और आसपास से हजारों लोग दशकों से जुटते रहे हैं. पिछले साल कोरोना संक्रमण के कारण यह हिंगोट युद्ध टल गया था. हालांकि इस बार उम्मीद जताई जा रही थी कि प्रति वर्ष की तरह दिवाली के दूसरे दिन यह आयोजन होगा. लेकिन स्थानीय प्रशासन और पुलिस ने स्पष्ट कर दिया था कि कोरोना की तीसरी लहर की आशंका के चलते यह कार्यक्रम नहीं होगा.

इसके बावजूद विधायक के आह्वान के कारण गौतमपुरा के प्रशासन और पुलिस को आशंका थी कि शाम या रात तक कोई ना कोई हिंगोट लेकर हिंगोट मैदान में युद्ध के लिए पहुंच सकता है. इसलिए सुबह से ही प्रशासन ने पूरे मैदान को ही छावनी बना दिया था. यहां पर बड़ी संख्या में पुलिस प्रशासन ने डेरा डाला हुआ था. इसके बाद पुलिस फ्लैग मार्च भी निकाला. पुलिस की सक्रियता देखते हुए कोई भी इस मैदान में नहीं पहुंचा.

हिंगोट युद्ध मैदान पर प्रशासनिक अधिकारियों ने किया निरीक्षण
हिंगोट युद्ध मैदान पर प्रशासनिक अधिकारियों ने किया निरीक्षण

सालों पुरानी परंपरा हिंगोट युद्ध
पूरे देश में सिर्फ इंदौर के गौतमपुरा में दीपावली के अगले दिन धोक पढ़वा पर प्रसिद्ध हिंगोट युद्ध की परंपरा रही है. गौतमपुरा में परंपरानुसार हर साल दीपावली के अगले दिन पड़वा पर शाम को हिंगोट युद्ध खेला जाता है. इसमें तुर्रा (गौतमपुरा) व कलगी (रूणजी) के दल आमने-सामने एक-दूसरे पर हिंगोट (अग्निबाण) फेंकते हैं. यह अग्निबाण हिंगोरिया के पेड़ों पर लगने वाले हिंगोट फल से बनाया जाता है.

फल को खोखला कर उसमें बारूद भरकर बत्ती लगाई जाती है और फिर दोनों दल इसे एक-दूसरे पर फेंकते हैं. इस बार क्षेत्र के जंगल में हिंगोरिया के पेड़ कम होने से योद्धाओं को हिंगोट फल नहीं मिला तो जुनूनी योद्धा यह फल लेने उज्जैन, खाचरौद, नागदा और भाटपचलाना के जंगल तक गए. योद्धाओं ने घर में हिंगोट तैयार करना शुरू कर दिया है

हिंगोट युद्ध मैदान पर रहा प्रशासन का पहरा
हिंगोट युद्ध मैदान पर रहा प्रशासन का पहरा

न किसी की हार-न किसी की जीत
इस हिंगोट युद्ध के खेल में न किसी की हार होती है और न किसी की जीत. ये युद्ध भाईचारे वाला होता है, जहां तुर्रा (गौतमपुरा) और कलगी (रूणजी) नाम के दो दल अपने पूर्वजों की परंपरा को जिंदा रखे हुए हैं. इसके लिए योद्धा एक महीने पहले नवरात्रि से ही हिंगोट बनाना शुरू कर देते हैं.

पढ़ें - दुबई में भी दिखा दीपावाली का जोरदार जश्न, देखकर आपको भी नहीं होगा यकीन

कैसे बनाते हैं हिंगोट
जंगल से हिंगोरिया नामक पेड़ के फल हिंगोट को तोड़कर लाते हैं. नींबू के आकार वाला ये फल ऊपर से नारियल की तरह कठोर और अंदर से गुदेदार होता है. इसके के एक छोर पर बारिक व दूसरे छोर पर बड़ा छेद किया जाता है. इसे दो दिन धूप में सुखाया जाता है. फिर इसका गुदा निकालकर इसमें बारूद भरी जाती है, और फिर बड़े छेद को पीली मिट्टी से बंद कर दिया जाता है.

दूसरी बारिक छेद पर बारूद की टीपकी लगाकर निशाना सीधा लगे इसलिए हिंगोट के ऊपर आठ इंची बांस की कीमची बांधी जाती है. हर साल दोनों दल के मिलाकर 100 से ज्यादा योद्धा मैदान में उतरते हैं. दस साल पहले एक हिंगोट बनाने में 4 से 5 रुपए का खर्च आता था, अब एक हिंगोट बनाने में 20-22 रुपए लगते हैं.

युद्ध रोकने के लिए बनाई अस्थायी पुलिस चौकी
दीपावली के दूसरे दिन धोक पड़वा पर हिंगोट युद्ध की परंपरा को रोकने के लिए पुलिस को इस बार मैदान में अस्थायी चौकी बनानी पड़ी. दोपहर बाद से ही पुलिस ने हिंगोट मैदान के आसपास किसी को जाने भी नहीं दिया. जिससे नाराज लोगों ने परंपरा बनाए रखने के लिए अपने घरों से ही हिंगोट छोड़े, हालांकि प्रशासन और पुलिस ने इस पर किसी तरह का ध्यान नहीं दिया.

पिछले साल नहीं माने थे योद्धा
पिछले साल भी प्रशासन ने इसी तरह मैदान में अस्थायी चौकी बनाकर युद्ध रोकने का प्रयास किया था, लेकिन योद्धा माने नहीं और युद्ध शुरू कर दिया. युद्ध रोकने के दौरान पुलिस जवान रमेश गुर्जर की वर्दी जलने के साथ उन्हें मामूली चोट भी आई थी. इसके बाद तुर्रा ओर कलंगी दल के योद्धाओं ने मैदान पर न जाते हुए नगर के विभिन्न स्थानों पर जाकर एक साथ हिंगोट फेंकना शुरू कर दिया था. पुलिस योद्धाओं को एक जगह रोकने जाती थी दूसरी तरफ दूसरे योद्धा हिंगोट फेंकना शुरू कर देते थे. आखरी में तो एक योद्धा ने बीच मैदान में जाकर हिंगोट फेंक दिया और परंपरा को कायम रखने की बात कही.

इंदौर : दिवाली के दूसरे दिन इंदौर के गौतमपुरा में आयोजित होने वाला हिंगोट युद्ध आखिरकार दूसरे साल भी टल गया. हालांकि स्थानीय कांग्रेस विधायक ने इस परंपरा को जारी रखने के लिए लोगों से आह्वान किया था. जिसके चलते पुलिस प्रशासन को युद्ध रोकने के लिए गौतमपुरा में दिन भर डटे रहना पड़ा. शाम को हिंगोट की दोनों टीमें कहीं आमने-सामने ना उतर आए, इसलिए पूरे इलाके में पुलिस ने मार्च पास्ट भी किया. हालांकि कुछ लोगों ने घरों से हिंगोट छोड़े, लेकिन पुलिस ने इस ओर ध्यान नहीं दिया.

दरअसल इंदौर के गौतमपुरा में दिवाली के दूसरे दिन धोक पड़वा पर परंपरागत रूप से हिंगोट युद्ध बीते 200 साल से होता रहा है. गोटमार मेले की तरह ही इंदौर के प्रसिद्ध हिंगोट युद्ध में क्षेत्र के 2 गांव की दो टीमें मैदान में उतरती है, जो एक दूसरे पर जलते हुए हिंगोट से हमला करती है. इस आयोजन में रॉकेट की तरह हिंगोट जलता हुआ दूसरे टीम के सदस्यों पर गिरता है. जिससे कई लोगों की आंखें चोट लगने से खराब भी हो चुकी हैं. इसके अलावा हर साल कुछ लोग यहां हिंगोट के कारण घायल भी हो जाते थे.

vaपुलिस ने क्षेत्र में निकाला फ्लैग मार्च
पुलिस ने क्षेत्र में निकाला फ्लैग मार्च

युद्ध देखने के लिए आते थे हजारों लोग
प्रसिद्ध हिंगोट युद्ध को देखने के लिए इंदौर और आसपास से हजारों लोग दशकों से जुटते रहे हैं. पिछले साल कोरोना संक्रमण के कारण यह हिंगोट युद्ध टल गया था. हालांकि इस बार उम्मीद जताई जा रही थी कि प्रति वर्ष की तरह दिवाली के दूसरे दिन यह आयोजन होगा. लेकिन स्थानीय प्रशासन और पुलिस ने स्पष्ट कर दिया था कि कोरोना की तीसरी लहर की आशंका के चलते यह कार्यक्रम नहीं होगा.

इसके बावजूद विधायक के आह्वान के कारण गौतमपुरा के प्रशासन और पुलिस को आशंका थी कि शाम या रात तक कोई ना कोई हिंगोट लेकर हिंगोट मैदान में युद्ध के लिए पहुंच सकता है. इसलिए सुबह से ही प्रशासन ने पूरे मैदान को ही छावनी बना दिया था. यहां पर बड़ी संख्या में पुलिस प्रशासन ने डेरा डाला हुआ था. इसके बाद पुलिस फ्लैग मार्च भी निकाला. पुलिस की सक्रियता देखते हुए कोई भी इस मैदान में नहीं पहुंचा.

हिंगोट युद्ध मैदान पर प्रशासनिक अधिकारियों ने किया निरीक्षण
हिंगोट युद्ध मैदान पर प्रशासनिक अधिकारियों ने किया निरीक्षण

सालों पुरानी परंपरा हिंगोट युद्ध
पूरे देश में सिर्फ इंदौर के गौतमपुरा में दीपावली के अगले दिन धोक पढ़वा पर प्रसिद्ध हिंगोट युद्ध की परंपरा रही है. गौतमपुरा में परंपरानुसार हर साल दीपावली के अगले दिन पड़वा पर शाम को हिंगोट युद्ध खेला जाता है. इसमें तुर्रा (गौतमपुरा) व कलगी (रूणजी) के दल आमने-सामने एक-दूसरे पर हिंगोट (अग्निबाण) फेंकते हैं. यह अग्निबाण हिंगोरिया के पेड़ों पर लगने वाले हिंगोट फल से बनाया जाता है.

फल को खोखला कर उसमें बारूद भरकर बत्ती लगाई जाती है और फिर दोनों दल इसे एक-दूसरे पर फेंकते हैं. इस बार क्षेत्र के जंगल में हिंगोरिया के पेड़ कम होने से योद्धाओं को हिंगोट फल नहीं मिला तो जुनूनी योद्धा यह फल लेने उज्जैन, खाचरौद, नागदा और भाटपचलाना के जंगल तक गए. योद्धाओं ने घर में हिंगोट तैयार करना शुरू कर दिया है

हिंगोट युद्ध मैदान पर रहा प्रशासन का पहरा
हिंगोट युद्ध मैदान पर रहा प्रशासन का पहरा

न किसी की हार-न किसी की जीत
इस हिंगोट युद्ध के खेल में न किसी की हार होती है और न किसी की जीत. ये युद्ध भाईचारे वाला होता है, जहां तुर्रा (गौतमपुरा) और कलगी (रूणजी) नाम के दो दल अपने पूर्वजों की परंपरा को जिंदा रखे हुए हैं. इसके लिए योद्धा एक महीने पहले नवरात्रि से ही हिंगोट बनाना शुरू कर देते हैं.

पढ़ें - दुबई में भी दिखा दीपावाली का जोरदार जश्न, देखकर आपको भी नहीं होगा यकीन

कैसे बनाते हैं हिंगोट
जंगल से हिंगोरिया नामक पेड़ के फल हिंगोट को तोड़कर लाते हैं. नींबू के आकार वाला ये फल ऊपर से नारियल की तरह कठोर और अंदर से गुदेदार होता है. इसके के एक छोर पर बारिक व दूसरे छोर पर बड़ा छेद किया जाता है. इसे दो दिन धूप में सुखाया जाता है. फिर इसका गुदा निकालकर इसमें बारूद भरी जाती है, और फिर बड़े छेद को पीली मिट्टी से बंद कर दिया जाता है.

दूसरी बारिक छेद पर बारूद की टीपकी लगाकर निशाना सीधा लगे इसलिए हिंगोट के ऊपर आठ इंची बांस की कीमची बांधी जाती है. हर साल दोनों दल के मिलाकर 100 से ज्यादा योद्धा मैदान में उतरते हैं. दस साल पहले एक हिंगोट बनाने में 4 से 5 रुपए का खर्च आता था, अब एक हिंगोट बनाने में 20-22 रुपए लगते हैं.

युद्ध रोकने के लिए बनाई अस्थायी पुलिस चौकी
दीपावली के दूसरे दिन धोक पड़वा पर हिंगोट युद्ध की परंपरा को रोकने के लिए पुलिस को इस बार मैदान में अस्थायी चौकी बनानी पड़ी. दोपहर बाद से ही पुलिस ने हिंगोट मैदान के आसपास किसी को जाने भी नहीं दिया. जिससे नाराज लोगों ने परंपरा बनाए रखने के लिए अपने घरों से ही हिंगोट छोड़े, हालांकि प्रशासन और पुलिस ने इस पर किसी तरह का ध्यान नहीं दिया.

पिछले साल नहीं माने थे योद्धा
पिछले साल भी प्रशासन ने इसी तरह मैदान में अस्थायी चौकी बनाकर युद्ध रोकने का प्रयास किया था, लेकिन योद्धा माने नहीं और युद्ध शुरू कर दिया. युद्ध रोकने के दौरान पुलिस जवान रमेश गुर्जर की वर्दी जलने के साथ उन्हें मामूली चोट भी आई थी. इसके बाद तुर्रा ओर कलंगी दल के योद्धाओं ने मैदान पर न जाते हुए नगर के विभिन्न स्थानों पर जाकर एक साथ हिंगोट फेंकना शुरू कर दिया था. पुलिस योद्धाओं को एक जगह रोकने जाती थी दूसरी तरफ दूसरे योद्धा हिंगोट फेंकना शुरू कर देते थे. आखरी में तो एक योद्धा ने बीच मैदान में जाकर हिंगोट फेंक दिया और परंपरा को कायम रखने की बात कही.

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