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पेगासस विवाद : अमेरिकी 'वाटरगेट संकट' से हो रही तुलना, फंस सकती है मोदी सरकार

पेगासस स्पाईवेयर विवाद भारत सहित दुनियाभर में चर्चा का विषय बन चुका है. इसके जरिए कथित तौर पर कई पत्रकारों, ऐक्टिविस्टों, कॉर्पोरेट जगत के दिग्गजों और कुछ विपक्षी नेताओं की जासूसी के खुलासे के बाद विपक्ष सरकार पर हमलावर है. इसकी तुलना वाटरगेट संकट से की जा रही है. इस पर पढ़ें वरिष्ठ संवाददात संजीब कुमार बरुआ की रिपोर्ट...

पेगासस
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Published : Jul 23, 2021, 4:39 PM IST

Updated : Jul 23, 2021, 4:47 PM IST

नई दिल्ली : पेगासस विवाद इस समय भारत सहित दुनियाभर में सुर्खियों में है. इस विवाद को भारत का 'वाटरगेट संकट' कहा जा रहा है. पेगासस स्पाईवेयर के जरिए कथित तौर पर कई पत्रकारों, ऐक्टिविस्टों, कॉर्पोरेट जगत के दिग्गजों और कुछ विपक्षी नेताओं की जासूसी खुलासे के बाद विपक्ष हमलावर है. भारत के लिए इससे बुरे क्षण नहीं आ सकते हैं. लेकिन यह विवाद किस तरफ जाता है. इसका किसी को अनुमान नहीं है.

अमेरिका में 70 के दशक में सामने आए इस जासूसी कांड से सियासी भूचाल आ गया था. यहां तक कि तत्कालीन अमरेकी राष्ट्रपति निक्सन को इस्तीफा देना पड़ा गया था. डेमोक्रेटिक पार्टी की जासूसी कराने से जुड़ा था. दरअसल, निक्सन ने 1972-1974 तक बगिंग डिवाइस लगातार विपक्षी दलों की जासूसी कराई थी. ताकि उन्हें पता चल सके कि डेमोक्रेटिक पार्टी की चुनाव रणनीति और तैयारियां क्या हैं.

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर क्या पड़ सकता है प्रभाव

नवीनतम खुलासे कि बोइंग, डसॉल्ट और साब जैसे रक्षा प्रमुखों के कॉर्पोरेट मालिकों के भी फोन टैप किए गए हैं.इसके बहुत सारे प्रभाव हैं, क्योंकि यह संबंधित देशों के कॉर्पोरेट हितों के खिलाफ जाता है, जो भारत सहित प्रमुख सैन्य प्लेटफार्मों, उत्पादों और हथियार प्रणालियों की आपूर्ति करते हैं. इनमें चिनूक और अपाचे हेलीकॉप्टर, सी-17 ग्लोबमास्टर, पोसीडॉन-8, राफेल लड़ाकू विमान शामिल हैं.

यह विवाद ऐसे समय उभरा है, जब 'क्वाड' पहल लड़खड़ा रही है, क्योंकि राष्ट्रपति जो बाइडेन शासन पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा शुरू की गई पहल 'क्वाड' को चीन से मुकाबला करने के लिए पीछे धकेलने की कोशिश कर रहा है, जिससे भारत की प्रधानता कम हो रही है.

भारत के यूरोपीय संघ के साथ घनिष्ठ संबंध और अमेरिका के साथ एक नए द्विपक्षीय संबंध के साथ पेगासस मामले को हल्के में नहीं लिया जा सकता है. जैसा कि भारत के 'democracy quotient' पर विशेष रूप से विवादास्पद नागरिकता कानून (सीएए), धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार, साइबर कानूनों आदि की पृष्ठभूमि में सवाल उठाए जा सकते हैं.

इजरायली सरकार से ज्यादा मदद की उम्मीद नहीं की जा सकती, क्योंकि इजराइल की नफ्ताली बेनेट सरकार के पास पूर्ववर्ती पीएम बेंजामिन नेतन्याहू शासन के प्रति ज्यादा झुकाव नहीं है. पेगासस जासूसी सॉफ्टवेयर के मालिक एनएसओ के खिलाफ पहले ही एक जांच शुरू की जा चुकी है. पहले से ही ऐसी खबरें हैं कि बेंजामिन नेतन्याहू ने उन देशों में एनएसओ निगरानी और जासूसी उपकरणों को आगे बढ़ाने की कोशिश की, जिन्हें वह सहयोगी मानते थे.

घरेलू स्तर पर क्या पड़ेगा प्रभाव

घरेलू स्तर पर, पेगासस मुद्दा एक मुख्य मुद्दे के रूप में उभर सकता है, जहां विपक्षी दल एक साथ आ सकते हैं. इसमें पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली क्षेत्रीय ताकतें शामिल हैं. उत्तर प्रदेश में आगामी चुनाव भाजपा के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है. ऐसे मे अगर विपक्षी पार्टियों एक जुट होकर यहां पर लड़ती हैं तो भाजपा के लिए नुकसान दायक साबित हो सकता है.

पहले ही विवादास्पद कृषि कानूनों को लेकर भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार बैकफुट पर है, जाहिर है पेगासस का पर्दाफाश कुछ ऐसा नतीजा है, जिसे भाजपा ने अब तक नहीं देखा है.

कुमार संजय सिंह (एसोसिएट प्रोफेसर,इतिहास विभाग दिल्ली विश्वविद्यालय)कहते हैं कि यह एंटी इमरजेंसी paranoia को बढ़ाता है और विपक्ष को एक प्रासंगिक राजनीतिक उपकरण देता है. यह समझना होगा कि उत्तर प्रदेश, बिहार मध्य प्रदेश और गुजरात आपातकाल विरोधी आंदोलन के मुख्य केंद्र थे. यह क्षेत्रीय दलों और उनके संभावित गठबंधनों को एक बड़ा प्रोत्साहन देने जा रहा है.

नई दिल्ली : पेगासस विवाद इस समय भारत सहित दुनियाभर में सुर्खियों में है. इस विवाद को भारत का 'वाटरगेट संकट' कहा जा रहा है. पेगासस स्पाईवेयर के जरिए कथित तौर पर कई पत्रकारों, ऐक्टिविस्टों, कॉर्पोरेट जगत के दिग्गजों और कुछ विपक्षी नेताओं की जासूसी खुलासे के बाद विपक्ष हमलावर है. भारत के लिए इससे बुरे क्षण नहीं आ सकते हैं. लेकिन यह विवाद किस तरफ जाता है. इसका किसी को अनुमान नहीं है.

अमेरिका में 70 के दशक में सामने आए इस जासूसी कांड से सियासी भूचाल आ गया था. यहां तक कि तत्कालीन अमरेकी राष्ट्रपति निक्सन को इस्तीफा देना पड़ा गया था. डेमोक्रेटिक पार्टी की जासूसी कराने से जुड़ा था. दरअसल, निक्सन ने 1972-1974 तक बगिंग डिवाइस लगातार विपक्षी दलों की जासूसी कराई थी. ताकि उन्हें पता चल सके कि डेमोक्रेटिक पार्टी की चुनाव रणनीति और तैयारियां क्या हैं.

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर क्या पड़ सकता है प्रभाव

नवीनतम खुलासे कि बोइंग, डसॉल्ट और साब जैसे रक्षा प्रमुखों के कॉर्पोरेट मालिकों के भी फोन टैप किए गए हैं.इसके बहुत सारे प्रभाव हैं, क्योंकि यह संबंधित देशों के कॉर्पोरेट हितों के खिलाफ जाता है, जो भारत सहित प्रमुख सैन्य प्लेटफार्मों, उत्पादों और हथियार प्रणालियों की आपूर्ति करते हैं. इनमें चिनूक और अपाचे हेलीकॉप्टर, सी-17 ग्लोबमास्टर, पोसीडॉन-8, राफेल लड़ाकू विमान शामिल हैं.

यह विवाद ऐसे समय उभरा है, जब 'क्वाड' पहल लड़खड़ा रही है, क्योंकि राष्ट्रपति जो बाइडेन शासन पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा शुरू की गई पहल 'क्वाड' को चीन से मुकाबला करने के लिए पीछे धकेलने की कोशिश कर रहा है, जिससे भारत की प्रधानता कम हो रही है.

भारत के यूरोपीय संघ के साथ घनिष्ठ संबंध और अमेरिका के साथ एक नए द्विपक्षीय संबंध के साथ पेगासस मामले को हल्के में नहीं लिया जा सकता है. जैसा कि भारत के 'democracy quotient' पर विशेष रूप से विवादास्पद नागरिकता कानून (सीएए), धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार, साइबर कानूनों आदि की पृष्ठभूमि में सवाल उठाए जा सकते हैं.

इजरायली सरकार से ज्यादा मदद की उम्मीद नहीं की जा सकती, क्योंकि इजराइल की नफ्ताली बेनेट सरकार के पास पूर्ववर्ती पीएम बेंजामिन नेतन्याहू शासन के प्रति ज्यादा झुकाव नहीं है. पेगासस जासूसी सॉफ्टवेयर के मालिक एनएसओ के खिलाफ पहले ही एक जांच शुरू की जा चुकी है. पहले से ही ऐसी खबरें हैं कि बेंजामिन नेतन्याहू ने उन देशों में एनएसओ निगरानी और जासूसी उपकरणों को आगे बढ़ाने की कोशिश की, जिन्हें वह सहयोगी मानते थे.

घरेलू स्तर पर क्या पड़ेगा प्रभाव

घरेलू स्तर पर, पेगासस मुद्दा एक मुख्य मुद्दे के रूप में उभर सकता है, जहां विपक्षी दल एक साथ आ सकते हैं. इसमें पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली क्षेत्रीय ताकतें शामिल हैं. उत्तर प्रदेश में आगामी चुनाव भाजपा के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है. ऐसे मे अगर विपक्षी पार्टियों एक जुट होकर यहां पर लड़ती हैं तो भाजपा के लिए नुकसान दायक साबित हो सकता है.

पहले ही विवादास्पद कृषि कानूनों को लेकर भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार बैकफुट पर है, जाहिर है पेगासस का पर्दाफाश कुछ ऐसा नतीजा है, जिसे भाजपा ने अब तक नहीं देखा है.

कुमार संजय सिंह (एसोसिएट प्रोफेसर,इतिहास विभाग दिल्ली विश्वविद्यालय)कहते हैं कि यह एंटी इमरजेंसी paranoia को बढ़ाता है और विपक्ष को एक प्रासंगिक राजनीतिक उपकरण देता है. यह समझना होगा कि उत्तर प्रदेश, बिहार मध्य प्रदेश और गुजरात आपातकाल विरोधी आंदोलन के मुख्य केंद्र थे. यह क्षेत्रीय दलों और उनके संभावित गठबंधनों को एक बड़ा प्रोत्साहन देने जा रहा है.

Last Updated : Jul 23, 2021, 4:47 PM IST
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