हैदराबाद : भारतीय महिला हॉकी ओलंपिक स्क्वॉड में हरियाणा से सर्वाधिक 9 खिलाड़ी शामिल हैं. टीम की कैप्टन रानी रामपाल हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले की रहने वाली हैं. ओलंपिक टीम हिसार जिले की 3, कुरुक्षेत्र की 3 और सोनीपत की 3 खिलाड़ी धमाल मचा रही हैं. इसके अलावा झारखंड की दो, उड़ीसा की दो, पंजाब की एक, मणिपुर की एक और मिजोरम की एक खिलाड़ी टोक्यो ओलंपिक की विमिन हॉकी टीम की मेंबर हैं. उड़ीसा की दीप ग्रेस एक्का टीम की उपकप्तान हैं.
दादाजी ने सविता को थमाई थी स्टिक, अब वह गोलपोस्ट पर दीवार बन जाती है
सोमवार को हुए क्वॉर्टरफाइनल मैच की हीरो 30 साल की गोलकीपर सविता पूनिया रहीं.12 सालों में भारत के लिए 100 से ज़्यादा मैच खेलने वाली सविता ने अपने अनुभव का बखूबी इस्तेमाल किया. वह ऑस्ट्रेलिया की टीम के सामने दीवार बन गईं. मैच में सात पेनल्टी कॉर्नर के बावजूद कोई गोल नहीं होने दिया. हरियाणा के हिसार की रहने वाली सविता को 2018 में अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है. हॉकी इंडिया के अनुसार, इस खेल के लिए उनके दादाजी ने प्रेरित किया.
रानी रामपाल : कभी हॉकी स्टिक के लिए नहीं थे पैसे, ओलंपिक में भारत की कप्तान है
रानी रामपाल ओलंपिक में भारतीय वीमेन हॉकी की कप्तानी कर रहीं हैं. रानी ने एक इंटरव्यू में बताया था कि एक समय उनके पास हॉकी स्टिक खरीदने के लिए पैसे नहीं थे. हरियाणा में शाहाबाद कस्बे में रानी के पिता तांगा चलाया करते थे. उन्होंने महिला हॉकी खिलाड़ियों को देखकर रानी को भी हॉकी प्लेयर बनाने की ठानी. वह 6 वर्षीय बेटी को एसजीएनपी स्कूल के हॉकी मैदान में कोच बलदेव सिंह के पास ले गए. वह 15 साल की उम्र में 2010 विश्व कप में खेलने वाली सबसे कम उम्र की खिलाड़ी बनी थीं. 2020 में वह प्रतिष्ठित 'वर्ल्ड गेम्स एथलीट ऑफ द ईयर' पुरस्कार हासिल करने वाली पहली हाकी खिलाड़ी बनीं. भारत सरकार ने उन्हें पद्म श्री से भी सम्मानित किया है.
दीप ग्रेस एक्का : गोलकीपर बनने का था जुनून, मगर डिफेंडर बन गई
ओडिशा में जन्मीं 27 साल की दीप ग्रेस एक्का की कहानी दिलचस्प है. शुरुआती दौर में उनका चयन हॉकी के कारण नहीं बल्कि कद-काठी के कारण हुआ था. उनके पिता, चाचा और बड़े भाई हॉकी के स्थानीय खिलाड़ी हैं. परिवारवाले बताते हैं कि वह पहले गोलकीपर बनना चाहती थीं. इस दौरान उन्हें बॉल से चोट लग जाती थी, लेकिन वह अपना दर्द छुपा लेती थीं. जब घर वालों को पता चला तो उन्होंने डिफेंडर के तौर पर खेलने के लए प्रेरित किया. वह 2013 में महिला जूनियर हॉकी विश्वकप जीतने वाली टीम में शामिल थीं. दीप ग्रेस एक्का भारत के लिए 200 से ज़्यादा मैच खेल चुकी हैं. कोर (एक्सरसाइज) और रनिंग उनका पसंदीदा वर्कआउट है.
सुशीला चानू : कैप्टन रह चुकी है टीम की यह अनुभवी प्लेयर
पी सुशीला चानू भारतीय टीम की अनुभवी खिलाड़ियों में शुमार हैं. वह देश के लिए टोक्यो ओलंपिक से पहले 180 अंतर्राष्ट्रीय मैच खेल चुकी हैं. भारतीय टीम ने जब 2016 में रियो ओलंपिक खेलों के लिए क्वालिफ़ाई किया, तब सुशीला चानू भारतीय टीम की कप्तान थीं. वह भारतीय रेलवे में जूनियर टिकट चेकर रह चुकी हैं. मणिपुर की रहने वाली सुशीला टीम की सबसे अनुभवी मिडफ़ील्डर हैं. वह 2014 के एशियाई खेल और 2017 के एशिया कप में गोल्ड मेडल जीतने वाली टीम का भी हिस्सा रही हैं. उनके दादा मणिपुर पुखराम अगन्चा के मशहूर पोलो प्लेयर थे. पिता पुखराम श्यामसुंदर पेशे से ड्राइवर हैं और मां ओन्गवी लता हाउस वाइफ है. 2008 के एशिया कप से सुशीला ने इंटरनैशनल हॉकी में डेब्यू किया था.
निक्की प्रधान : ओलंपिक खेलना था, इसलिए टाल दी अपनी शादी
झारखंड की निक्की प्रधान दूसरी बार ओलंपिक में खेल रही हैं. उनके पिता पुलिस की सर्विस से रिटायर हो चुके हैं. उनकी सभी बहनें हॉकी प्लेयर रहीं हैं. उनकी बहन शशि प्रधान और कांति प्रधान राष्ट्रीय स्तर की हॉकी खिलाड़ी है. दोनों बहने रेलवे में कार्यरत हैं. 27 साल की निक्की का सफर अपने गांव से शुरू हुआ. टोक्यो ओलंपिक से पहले तक वह भारत के लिए 100 से भी ज्यादा मैच खेल चुकी हैं. ओलंपिक क्वालिफ़ायर में अमेरिका के ख़िलाफ़ उनका प्रदर्शन शानदार रहा है. उनके पिता ने बताया कि निक्की ने ओलंपिक के लिए अपनी शादी टाल दी.
गुरजीत कौर : महिला हॉकी के सर्वश्रेष्ठ ड्रैग फ्लिकर, स्कूल में थामी थी हॉकी स्टिक
क्वॉर्टर फाइनल में भारत की ओर से गुरजीत कौर ने 22वें मिनट में गोल किया. इसी एक गोल की बदौलत भारत की महिला हॉकी टीम सेमीफाइनल में पहुंच गई. संदीप सिंह को अपना आदर्श मानने वाली गुरजीत की गिनती महिला हॉकी के सर्वश्रेष्ठ ड्रैग फ़्लिकरों में होती है. 2019 के एफ़आईएच वीमेंस सिरीज़ में गुरजीत ने सबसे ज्यादा गोल किए थे. अमृतसर (पंजाब) की मियादा कलां गांव में जन्मीं गुरजीत कौर ने स्कूलिंग के दौरान ही हॉकी खेलना शुरू कर दिया था. जालंधर में कॉलेज की पढ़ाई के दौरान भी वह हॉकी खेलती रहीं. गुरजीत कौर को देश के लिए खेलने का पहला मौका 2014 में सीनियर नेशनल कैंप में मिला था.
नवजोत कौर : संगीत और पेंटिंग का शौक रखती है कुरुक्षेत्र की खिलाड़ी
26 साल की मिडफील्डर नवजोत कौर फील्ड में लंबे समय तक गेंद होल्ड करने में माहिर हैं. उनका जन्म हरियाणा के कुरूक्षेत्र में हुआ था. संगीत और पेंटिंग की शौक रखने वाली नवजोत दुनिया की सर्वश्रेष्ठ फिनिशर बनना चाहती हैं. उन्होंने अंडर-19 जूनियर एशिया कप में शानदार प्रदर्शन के बूते 2012 में अपना डेब्यू किया था. नवजोत का यह दूसरा ओलंपिक है. उन्होंने 17वें एशियाई खेलों, 2016 रियो ओलंपिक, चौथे महिला एशियन चैपियंस ट्रॉफी में भी देश का प्रतिनिधित्व किया है.
मोनिका मलिक : पापा चाहते थे बेटी कुश्ती लड़े, मगर उसे तो हॉकी पसंद था
27 साल की यह मिडफ़ील्डर मोनिका मलिक का शुरुआती खेल जीवन संघर्ष में बीता. उन्होंने स्कूल में हॉकी खेली . मोनिका का जन्म सोनीपत को गोहाना में 5 नवंबर, 1993 को हुआ. बचपन से ही पिता तकदीर सिंह की इच्छा थी थी कि बेटी कुश्ती लड़े. लेकिन बेटी की इच्छा को देखते हुए उन्होंने मोनिका को हॉकी में ही आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया.मोनिका ने सेक्टर 18 में चंडीगढ़ हॉकी अकादमी में ट्रेनिंग ली. मोनिका ने स्कूल स्तरीय नेशनल टीम से लेकर जूनियर नेशनल टीम में रैंक हासिल की और आखिरकार 2013 में नेशनल टीम में जगह बनाई. वह 2016 में एशियाई चैम्पियंस ट्राफ़ी में स्वर्ण पदक जीतने वाली भारतीय टीम की सदस्य रहीं हैं. 2016 का रियो ओलंपिक में भी वह भारतीय टीम का हिस्सा थीं.
शर्मिला देवी : दादा थकने तक ग्राउंड में कराते थे प्रैक्टिस
शर्मिला देवी का हरियाणा के हिसार गांव में एक मध्यम परिवार में जन्म हुआ था. जब वह चौथी क्लास पढ़ रही थीं, तभी उनके दादा ने हॉकी स्टिक थमा दी. शर्मिला के दादा ही उन्हें ग्राउंड पर घंटों फिजिकल ट्रेनिंग और प्रैक्टिस कराते थे. शर्मिला ने 2009 से 2012 तक अपने गांव में ही हॉकी खेली. फिर चंडीगढ़ अकैडमी के लिए 2016 तक हॉकी खेली. 19 वर्षीय शर्मिला ने 2019 में सीनियर टीम के लिए अपना डेब्यू किया. नौ मैचों के बाद वह ओलंपिक खेल रही हैं.
नेहा गोयल : कोच ने कभी दिए थे जूते खरीदने के पैसे, छठी क्लास में थाम ली स्टिक
सोनीपत की नेहा गोयल के पिता एक दिहाड़ी मजदूर थे. 2017 में लंबी बीमारी के बाद उनका निधन हो गया. नेहा की मां ने उसके सपनों को जिंदा रखा. वह फैक्ट्री में नौकरी करती थीं. धीरे-धीरे नेहा ने नेशनल टीम में जगह बना ली और उन्हें 2015 में रेलवे में नौकरी मिल गई. इसके बाद उनके घर की बुनियादी जरूरत पूरी हुई. नेहा जब वह छठी कक्षा में थीं, तब उनकी एक सहेली ने उन्हें हॉकी स्टिक थमा दी थी. तब से उसका खेल का सफर शुरू हो गया. एक समय ऐसा भी था उनकी कोच प्रीतम रानी सिवाच ने उनकी आर्थिक मदद की. रानी सिवाच ने उन्हें जूते खरीदने के लिए पैसे दिए थे.
निशा : आज भी 25 गज के मकान में रहती है फैमिली
2019 में अपना डेब्यू करने वाली निशा कालूपुर गांव में उनका परिवार महज 25 गज के मकान में रहता है. ईटीवी भारत ने निशा के पिता सोहराभ अहमद से बात की तो उन्होंने निशा के संघर्ष और ओलंपिक तक के सफर के बारे में विस्तार से बताया. 2016 में निशा के पिता को पैरालाइज अटैक आया था जिसके बाद निशा पर और भी जिम्मेदारियां बढ़ गई थी लेकिन निशा हार नहीं मानी और उन्होंने तब रेलवे में नौकरी करते हुए पिता का इलाज भी करवाया और परिवार का पेट भी पाला.निशा रेलवे में बतौर कलर्क के पद पर तैनात हैं और रेलवे की तरफ से ही वो हॉकी खेलती हैं. वहीं 2017 में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स(Commonwealth Games) जैसे बड़े टूर्नामेंट में भारतीय हॉकी टीम का हिस्सा रह चुकी हैं. निशा रेलवे की टीम में मिड फील्डर और कवर के रूप में खेलती है और उन्हें अग्रेसिव खेल के लिए जाना जाता है.
निशा और साथी खिलाड़ी नेहा दोनों की मां एक ही फैक्ट्री में काम करती थीं और दोनों एक साथ ही अभ्यास किया करती थीं.
वंदना कटारिया : गांव वाले लड़की का खेलना पसंद नहीं करते थे, मगर वह खेली
भारतीय टीम की फारवर्ड वंदना कटारिया की लाइफ में एक वक्त ऐसा भी था, जब वह हाकी स्टिक और जूते नहीं खरीद पाती थी. छुट्टी होने पर वह अकेले ही हास्टल में रहती थीं. वंदना की मां ने बताया कि वंदना ने टोक्यो जाने के दौरान कहा था कि मैं जीत कर आऊंगी. अब लग रहा है कि वह सच होने जा रहा है. उनके भाई पंकज ने बताया कि गांव में वंदना का खेलना कई लोगों को नागवार लगता था. उत्तराखंड के हरिद्वार में एक साधारण से परिवार में जन्मीं वंदना कटारिया के पिता नाहर सिंह ने उन्हें हॉकी खेलने के लिए प्रेरित किया था.वर्ल्ड कप से पहले वंदना 200 मैच खेल चुकी हैं. वह 2013 के जूनियर महिला विश्व कप में भारत की ओर से सबसे ज़्यादा गोल करने वाली खिलाड़ी रहीं. इस ओलंपिक एक मैच में भी साउथ अफ्रीका के खिलाफ उन्होंने तीन गोल किए. वंदना उस टीम का भी हिस्सा थीं, जिसने 2016 एशियाई चैम्पियंस ट्राफ़ी में स्वर्ण पदक जीता था .
उदिता : तीन दिन हैंडबॉल के कोच नहीं आए तो हॉकी प्लेयर बन गई
टीम की डिफेंडर उदिता भारत के लिए कुल 32 मैच खेल चुकी हैं. हॉकी से पहले वह हैंडबॉल की प्लेयर थी. एक बार ऐसा हुआ कि उसके कोच तीन दिनों तक नहीं आए, फिर उसने हॉकी स्टिक थाम ली. 23 साल की इस खिलाड़ी का जीवन हॉकी ने पूरी तरह बदल दिया. हरियाणा में जन्मीं उदिता ने 2017 में सीनियर टीम में डेब्यू किया. उनके पिता हरियाणा पुलिस में एएसआई थे. 2015 में उनका निधन हो गया. मां गीता देवी ने उदिता के मन मे हॉकी खेलने की ललक बनाए रखी. वह वंदना कटारिया और रानी रामपाल को अपना आदर्श मानती हैं. उदिता का मानना है कि दोनों खिलाड़ियों के साथ प्रैक्टिस के कारण उनके खेल में निखार आया.
लालरेमसियामी : पिता की मौत के बाद भी मैदान में डटी रही
फारवॉर्ड लालरेम सियामी ओलंपिक खेलों में हिस्सा लेने वाली मिज़ोरम की पहली महिला हॉकी खिलाड़ी हैं. सियामी निकनेक से नाम से मशहूर खिलाड़ी ने एक इंटरव्यू में बताया कि आईएफएच सीरीज के दौरान उनके पिता की मौत हो गई थी, मगर वह टूर्नामेंट में खेलती रही. इस टूर्नामेंट में भारत ने अमेरिका को हराकर ओलंपिक के लिए क्वॉलिफाई किया था. 21 साल की लालरेम सियामी को 2019 की एफआईएच की सर्वश्रेष्ठ उदीयमान महिला खिलाड़ी चुना गया और 'वीमेन राइजिंग स्टार ऑफ़ द ईयर' अवार्ड से सम्मानित किया गया. लालरेम सियामी के गांव में गिने चुने लोग ही हॉकी खेलते हैं. वहां कोई सुविधा भी नहीं थी. इसके बाद लालरेम सियामी ने थेंजाल जाने का फैसला किया, जो उनके गांव से काफी दूर था. इस कारण काफी वक्त तक हॉस्टल में रहना पड़ा. भारत की तरफ से 64 मैच खेलने वाली लालरेमसियामी को जर्मनी दौरे से उन्हें अपनी कमजोरियों का पता चला,जिसे उन्होंने दूर कर लिया.
नवनीत कौर : आखिरी सिटी बजने तक खेल में संघर्ष करती है यह फॉरवर्ड प्लेयर
भारतीय हॉकी टीम के बारे में मशहूर था कि वह आखिरी मिनटों में हार जाती है. कप्तान रानी रामपाल का मानना है कि फॉरवर्ड नवनीत कौर ने इस धारणा को बदल दिया और वह मैंच के अंतिम क्षण तक संघर्ष करती है. 25 साल की नवनीत कौर ने टोक्यो ओलंपिक से पहले ही भारत के लिए 79 मैच खेले हैं. वह हरियाणा के शाहाबाद मारकंडा की रहने वाली है. यह कस्बाई शहर हॉकी के लिए मशहूर है. नवनीत कौर 2013 में जर्मनी में आयोजित जूनियर वीमेंस हॉकी वर्ल्ड कप में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं. वह 2019 में एफ़आईएच सीरीज़ में जीत हासिल करने वाली टीम में भी शामिल रहीं. 26 साल की नवजोत कौर का जन्म 7 मार्च 1995 को उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में हुआ था. उनके पिता पेशे से मैकेनिक हैं और मां हाउस वाइफ हैं. नवनीत भारत के लिए 100 मैच खेल चुकी हैं.
सलीमा टेटे : मम्मी-पापा नहीं देख पाए बेटी का कमाल, क्योंकि घर में टीवी नहीं है
झारखंड की सलीमा टेटे ओलंपिक में कमाल कर रही हैं, मगर उनके घर की हालत यह है कि उनके परिवार वाले बेटी का खेल नहीं देख पाए. कारण यह है कि आज भी उनके घर में टेलिविजन नहीं है. 19 साल की की सलीमा निक्की प्रधान के बाद वह महिला ओलंपिक में हिस्सा लेने वाली झारखंड की दूसरी खिलाड़ी हैं. 2016 नवंबर में ही एक प्रतियोगिता के लिए सलीमा का चयन सीनियर महिला टीम के लिए हुआ था और वह आस्ट्रेलिया दौरे पर गयी थी. 2019 यूथ ओलंपिक में उन्हें जूनियर भारतीय महिला हॉकी टीम का कप्तान बनाया गया. उनका इलाका नक्सल प्रभावित है, इस कारण सलीमा के लिए रोजमर्रा की जिंदगी भी आसान नहीं रही. उनके पिता सुलक्षण टेटे की ख्वाहिश थी बेटी हॉकी में नाम रोशन करे. सलीमा ने उबड़-खाबड़ खेत में हॉकी की प्रैक्टिस करती थी. पिता सुलक्षण और मां सुभानी टेटे आज भी खेती-किसानी से गुजारा करते हैं.
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अब जानें इनके कोच सोर्ड मारजेन के बारे में . अगर आपने चक दे मूवी देखी है तो बता दें इन विनिंग टी के कबीर खान कोच सोर्ड मारजेन हैं. चार साल पहले जब सोर्ड मारजेन ने भारतीय महिला हॉकी टीम की कमान संभाली थी, तब ऐसी स्थिति नहीं थी. वह एक अच्छे मोटिवेशनल स्पीकर हैं और टीम को एकजुट करना बखूबी जानते हैं. जब इंडियन विमिन टीम ओलंपिक के सेमीफाइनल में पहुंची तो इनका रिएक्शन देखने लायक था. भावुक और आह्लादित.