तिरुवनंतपुरम : रूस-यक्रेन युद्ध के कारण पढ़ाई बीच में छोड़कर भागे भारतीय विद्यार्थियों को रूसी विश्वविद्यालय दाखिला देने की पेशकश करेंगे और इन छात्रों को पूर्व शैक्षणिक सत्रों के दौरान की गई पढ़ाई के नुकसान का सामना नहीं करना पड़ेगा. नई दिल्ली स्थित रूसी दूतावास में मिशन के उप प्रमुख रोमन बाबुश्किन (Roman Babushkin) ने रविवार को यह बात कही.
बाबुश्किन ने कहा कि छात्रों को रूसी विश्वविद्यालयों में प्रवेश दिया जाएगा, जहां वे अपने संबंधित पाठ्यक्रमों को जारी रख सकते हैं. उन्होंने कहा कि इन विद्यार्थियों को पिछले वर्षों के किए गए अध्ययन के नुकसान का सामना नहीं करना पड़ेगा. इस साल फरवरी में रूस द्वारा यूक्रेन पर हमले के बाद यूक्रेन से भागे 20,000 से अधिक भारतीय छात्रों के भविष्य से जुड़े पत्रकारों के सवालों पर उन्होंने यह बयान दिया.
रूसी संघ के मानद राजदूत और तिरुवनंतपुरम में रूसी सदन के निदेशक रथीश सी. नायर ने कहा कि जिन मामलों में छात्रों के पास छात्रवृत्ति है, यह संभव है कि रूसी विश्वविद्यालयों में इसे स्वीकार किया जाएगा. हालांकि, उन्होंने संकेत दिया कि यूक्रेन में भुगतान की जा रही फीस रूस में पढ़ाई के लिहाज से पर्याप्त नहीं हो सकती है. नायर ने कहा कि केरल में विद्यार्थी अपने अंकपत्र और अन्य अकादमिक रिकॉर्ड के साथ यहां रूसी सदन से संपर्क कर सकते हैं. यहां से विद्यार्थियों के रिकॉर्ड को रूसी विश्वविद्यालयों के पास भेजा जाएगा, जो छात्रों और उनके माता-पिता से संपर्क करेंगे.
यूक्रेन में संघर्ष पर बाबुश्किन ने आरोप लगाया कि वहां का शासन नव-नाजियों की रक्षा कर रहा था. उन्होंने यह भी कहा कि युद्ध रूस की 'लक्ष्मण रेखा' को पार करने का नतीजा था, जिसे पश्चिम ने लांघा था. बाबुश्किन ने आरोप लगाया कि अमेरिका जैसे पश्चिमी देश नहीं चाहते कि यूक्रेन में युद्ध समाप्त हो, क्योंकि वहां की रक्षा कंपनियां यूक्रेन को हथियारों की आपूर्ति करके लाभ उठा रही हैं.
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उन्होंने दावा किया कि दुनिया में खाद्य संकट के लिए न तो रूस और न ही यूक्रेन के साथ उसके युद्ध को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, क्योंकि वैश्विक गेहूं बाजार में रूस का योगदान मुश्किल से एक प्रतिशत था.