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इंडिया टीबी रिपोर्ट में खुलासा, देश में लगातार बढ़ रहे हैं टीबी के मरीज

भारत सरकार ने 2025 तक देश से टीबी को खत्म करने का संकल्प लिया है. इंडिया टीबी रिपोर्ट 2021 में कहा गया है कि 2020 की तुलना में भारत में टीबी के मरीजों की संख्या में 19 प्रतिशत का इजाफा हुआ है. 2025 में अब साढ़े तीन साल से भी कम वक्त बचा है. इतने कम समय में टीबी का उन्मूलन सरकारों के लिए चैलेंज बन बन गया है.

india tb report 2021
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Published : Mar 24, 2022, 5:02 PM IST

नई दिल्ली : कोरोना काल के दौरान भारत में टीबी के मरीजों की संख्या बढ़ गई थी. इंडिया टीबी रिपोर्ट 2021 (India TB Report 2021) के अनुसार, वर्ष 2020 के मुकाबले 2021 में टीबी के मरीजों की संख्या में भारी बढ़ोतरी हुई है. रिपोर्ट के मुताबिक, 2020 में टीबी के मरीजों की कुल संख्या 16,28,161 थी, जो 2021 में बढ़कर 19,33,381 हो गई. इंडिया टीबी रिपोर्ट 2021 के अनुसार, 18 राज्यों ने टीबी को 2025 तक खत्म करने के लिए जिले के हिसाब से स्ट्रैटजिक प्लान बनाया है. इसके तहत डिस्ट्रिक्ट और सब डिस्ट्रिक्ट स्तर पर प्रोग्राम मैनेजर और स्टाफ नियुक्त किए जाएंगे.

रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि, वर्ष 2020 में एक लाख लोगों में 188 किसी न किसी रूप में टीबी के मरीज थे.( यह संख्या प्रति एक लाख में 129-257 थी). वर्तमान में राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों की ओर से पांच कैटिगरी में टीबी की दवा दी जा रही है. ये पांच कैटिगरी है, आइसोनियाज़िड (INH) प्रतिरोधी टीबी, आरआर-टीबी और एमडीआर-टीबी (RR and INH resistant), साथ ही ड्रग प्रतिरोधी टीबी (pre-XDR-TB) -टीबी) और एक्सडीआर-टीबी. ग्लोबल टीबी रिपोर्ट 2021 के अनुसार एमडीआर के मामलों में 100000 की आबादी पर 4 लोगों और एक्सडीआर-टीबी मामलों में प्रति 100,000 जनसंख्या पर एक को इलाज मिला.

ग्लोबल टीबी रिपोर्ट 2021 के अनुसार, 2020 में टीबी के सभी रूपों में अनुमानित मृत्यु दर 37 प्रति 100,000 जनसंख्या (34-40 प्रति 100,000 जनसंख्या) थी.
देश में 2019 से 2020 के बीच टीबी के सभी रूपों से मृत्यु दर में 11 प्रतिशत की मामूली वृद्धि हुई है. 2020 में एचआईवी को छोड़कर टीबी के सभी रूपों से अनुमानित मौतों की कुल संख्या, 4.93 लाख (4.53 से 5.36 लाख) थी, जो कि वर्ष 2019 के अनुमान से 13 प्रतिशत अधिक है.

रिपोर्ट के अनुसार, गरीबी के कारण टीबी के मरीज बढ़ रहे हैं. यह बीमारी कम सामाजिक-आर्थिक स्थिति वाले परिवारों को प्रभावित करती है, जिससे उन पर वित्तीय बोझ पड़ता है. खर्च के कारण देखभाल में देरी और डिफ़ॉल्ट दरों में वृद्धि होती है. समय से उपचार नहीं मिलने नुकसानदेह परिणाम सामने आते हैं. सही से इलाज नहीं कराने के कारण इसे छुटकारा पाने की उम्मीद भी कम हो जाती है. भारत की करीब 18 फीसदी आबादी इस बीमारी के इलाज पर खर्च करती है.


पढ़ें : खून बढ़ाता है और वजन कम करता है करी पत्ता

नई दिल्ली : कोरोना काल के दौरान भारत में टीबी के मरीजों की संख्या बढ़ गई थी. इंडिया टीबी रिपोर्ट 2021 (India TB Report 2021) के अनुसार, वर्ष 2020 के मुकाबले 2021 में टीबी के मरीजों की संख्या में भारी बढ़ोतरी हुई है. रिपोर्ट के मुताबिक, 2020 में टीबी के मरीजों की कुल संख्या 16,28,161 थी, जो 2021 में बढ़कर 19,33,381 हो गई. इंडिया टीबी रिपोर्ट 2021 के अनुसार, 18 राज्यों ने टीबी को 2025 तक खत्म करने के लिए जिले के हिसाब से स्ट्रैटजिक प्लान बनाया है. इसके तहत डिस्ट्रिक्ट और सब डिस्ट्रिक्ट स्तर पर प्रोग्राम मैनेजर और स्टाफ नियुक्त किए जाएंगे.

रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि, वर्ष 2020 में एक लाख लोगों में 188 किसी न किसी रूप में टीबी के मरीज थे.( यह संख्या प्रति एक लाख में 129-257 थी). वर्तमान में राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों की ओर से पांच कैटिगरी में टीबी की दवा दी जा रही है. ये पांच कैटिगरी है, आइसोनियाज़िड (INH) प्रतिरोधी टीबी, आरआर-टीबी और एमडीआर-टीबी (RR and INH resistant), साथ ही ड्रग प्रतिरोधी टीबी (pre-XDR-TB) -टीबी) और एक्सडीआर-टीबी. ग्लोबल टीबी रिपोर्ट 2021 के अनुसार एमडीआर के मामलों में 100000 की आबादी पर 4 लोगों और एक्सडीआर-टीबी मामलों में प्रति 100,000 जनसंख्या पर एक को इलाज मिला.

ग्लोबल टीबी रिपोर्ट 2021 के अनुसार, 2020 में टीबी के सभी रूपों में अनुमानित मृत्यु दर 37 प्रति 100,000 जनसंख्या (34-40 प्रति 100,000 जनसंख्या) थी.
देश में 2019 से 2020 के बीच टीबी के सभी रूपों से मृत्यु दर में 11 प्रतिशत की मामूली वृद्धि हुई है. 2020 में एचआईवी को छोड़कर टीबी के सभी रूपों से अनुमानित मौतों की कुल संख्या, 4.93 लाख (4.53 से 5.36 लाख) थी, जो कि वर्ष 2019 के अनुमान से 13 प्रतिशत अधिक है.

रिपोर्ट के अनुसार, गरीबी के कारण टीबी के मरीज बढ़ रहे हैं. यह बीमारी कम सामाजिक-आर्थिक स्थिति वाले परिवारों को प्रभावित करती है, जिससे उन पर वित्तीय बोझ पड़ता है. खर्च के कारण देखभाल में देरी और डिफ़ॉल्ट दरों में वृद्धि होती है. समय से उपचार नहीं मिलने नुकसानदेह परिणाम सामने आते हैं. सही से इलाज नहीं कराने के कारण इसे छुटकारा पाने की उम्मीद भी कम हो जाती है. भारत की करीब 18 फीसदी आबादी इस बीमारी के इलाज पर खर्च करती है.


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