नई दिल्ली : विदेश सचिव हर्षवर्द्धन श्रृंगला ने एक बहुस्तरीय मंच को डिजिटल माध्यम से संबोधित करते हुए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में विकासशील देशों के अधिक प्रतिनिधित्व की वकालत की ताकि सम्पूर्ण विश्व को नेतृत्व प्रदान करने की उसकी क्षमता में भरोसा और विश्वास कायम किया जा सके.
महत्वपूर्ण भू राजनीतिक मुद्दों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि हिन्द प्रशांत को लेकर भारत की दृष्टि अंतरराष्ष्ट्रीय कानून पर आधारित स्वतंत्र, मुक्त और समावेशी क्षेत्र के रूप में है जो प्रगति एवं समृद्धि के साझे उद्देश्य को लेकर आगे बढ़े. श्रृंगला ने अपने संबोधन के दौरान आतंकवाद, कट्टरपंथ, मादक पदार्थो की तस्करी और संगठित अपराध को एशिया के समक्ष महत्वपूर्ण चुनौती बताया और इन मुद्दों से निपटने के लिए ‘ठोस कार्रवाई’ पर जोर दिया. विदेश सचिव एशिया में संवाद एवं विश्वास निर्माण के कदम पर सम्मेलन (सीआईसीए) बहुस्तरीय मंच को संबोधित कर रहे थे.
उन्होंने कहा कि इस दिशा में भारत ने एशिया में सीआईसीए सहित क्षेत्रीय संगठनों के साथ पारंपरिक रूप से करीबी एवं मित्रतापूर्ण सहयोग स्थापित किया है. श्रृंगला ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में विकासशील देशों का और अधिक प्रतिनिधित्व होना चाहिए ताकि सम्पूर्ण विश्व को नेतृत्व प्रदान करने की उसकी क्षमता में भरोसा और विश्वास कायम किया जा सके.
विदेश सचिव ने कहा कि भारत ऐसी बहुध्रुवीय अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को महत्व देता है जो अंतरराष्ट्रीय कानून एवं सभी देशों की सम्प्रभुता एवं क्षेत्रीय अखंडता के सम्मान पर आधारित हो तथा जहां शांतिपूर्ण वार्ता के जरिये अंतरराष्ट्रीय विवादों का निपटारा हो एवं सभी के लिए स्वतंत्र एवं मुक्त पहुंच सुलभ हो. विदेश सचिव का यह बयान ऐसे समय में आया है जब हिन्द प्रशांत एवं अन्य स्थानों पर चीन की बढ़ती सैन्य आक्रामकता के कारण वैश्विक चिंता बढ़ रही है.
उन्होंने कहा कि भारत का बहुस्तरीय सुधार के लिए आह्वान समसामयिक भू राजनीतिक वास्तविकताओं को प्रदर्शित करता है और इसकी जरूरत पहले से अधिक है. उन्होंने कहा कि बहुस्तरीय संस्थाओं को सदस्यता को लेकर अधिक जवाबदेह होना चाहिए. इन्हें खुला और विविधतापूर्ण विचारों का स्वागत करने वाला तथा नये स्वरों का संज्ञान लेने वाला होना चाहिए, खास तौर पर एशिया से. कोरोना वायरस महामारी का जिक्र करते हुए विदेश सचिव ने कहा कि इसके कारण अभूतपूर्व वैश्विक चुनौतियां पैदा हुई हैं.
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खतरे की स्थितियां सामने आई तथा एशिया एवं पूरे विश्व में एक दूसरे पर निर्भरता का महत्व सामने आया है. उन्होंने कहा कि एशिया में बड़ी आबादी, व्यापक बाजार और अंतर्निहित विविधता के साथ देशों के बीच आपसी समर्थन की भावना इस प्रतिकूल चिकित्सा, आर्थिक एवं सामाजिक प्रभावों से उबरने में मदद कर सकती है.
(पीटीआई-भाषा)