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सीमा विवाद : चालाक ड्रैगन से पाना है पार तो भारत को देना होगा रणनीति को धार

लगभग दस साल पहले चीन के तत्कालीन प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ ने चीन-भारत संबंधों पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि पिछले 2200 वर्षों के दौरान 99.9 प्रतिशत समय हमने दोनों देशों के बीच मैत्रीपूर्ण सहयोग के लिए समर्पित किया है. लेकिन पंचशील समझौते की भावना का उल्लंघन करते हुए चीन द्वारा भारत के खिलाफ 1962 में जब युद्ध छेड़ दिया गया. वह 0.1 प्रतिशत था.

Sharpen
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Published : Feb 13, 2021, 4:42 PM IST

हैदराबाद : वुहान और महाबलिपुरम शिखर सम्मेलन में दोनों देशों के नेताओं के बीच सामंजस्य का प्रदर्शन हुआ तो बीजिंग ने सेना की भारी तैनाती की, जिससे सीमाओं के पास युद्ध के घने बादल छा गए. यह एक स्वागत योग्य कदम है कि पिछले कई महीनों से किए गए निर्णायक प्रयासों के परिणामस्वरूप विनाशकारी टकराव रोका गया.

बीजिंग के जुझारूपन का भारतीय सेना ने विरोध किया और भारत के क्षेत्रों को छीनने की अपनी रणनीतिक के लिए तुरंत कदम उठाए. भारतीय सेना ने पहाड़ी इलाकों को अपने कब्जे में ले लिया ताकि वह चीनी सेना का मुकाबला कर सके. केंद्र ने संसद को सूचित किया है कि दोनों देश आपसी समन्वय के साथ चरणबद्ध तरीके से अपनी सेना को हटा लेंगे.

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने दावा किया कि नवीनतम समझौता के तहत सीमा पर मई के पहले सप्ताह की स्थिति को बहाल किया जाएगा. उन्होंने कहा कि चीन को एक इंच भी जमीन नहीं दी जाएगी. रक्षा मंत्री यह भी कह रहे हैं कि जब तक पैंगोंग झील के उत्तर और दक्षिण तट पर दोनों पक्षों की स्थिति तय नहीं हो जाती, तब तक दोनों देशों द्वारा गश्त को रोक दिया जाएगा.

विशेषज्ञ दे रहे हैं चेतावनी
हालांकि चीन-भारत मामलों के विशेषज्ञों को डर है कि पैंगोंग त्सो क्षेत्र में गश्त को रोकने के लिए भारत को सामरिक रूप से रणनीतिक स्थानों के नुकसान का जोखिम होगा. चीन 18 पड़ोसी देशों के साथ सीमा संघर्ष में लगा जुझारू देश है. चीन की विस्तारवादी रणनीतियों के बारे में पूरी जानकारी रखने वाले विशेषज्ञ भारत को इसकी धोखे की रणनीतियों से बचने की चेतावनी दे रहे हैं. इस तरह की चेतावनी को हल्के में नहीं लिया जा सकता है.

हो चुके हैं कई समझौते
मार्च 2013 में जब शी जिनपिंग को चीनी राष्ट्रपति के रूप में चुना गया तो उन्होंने भारत के साथ संबंध मजबूत करने के लिए एक नया पंचशील प्रस्तावित किया था. उस सिद्धांत का पहला बिंदु द्विपक्षीय संबंधों को उचित मार्ग पर रखने के लिए रणनीतिक चर्चा जारी रखना था. 1962 और 2020 के दौरान यह चीन था, जिसने झगड़े को बढ़ाया. लेकिन दोनों मौकों पर संघर्ष के घने कोहरे को दूर करने के लिए विचार-विमर्श भारत द्वारा ही शुरू किया गया था.

1988 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के चीन दौरे ने सीमा संघर्षों के समाधान के लिए एक संयुक्त कार्रवाई दल बनाने में मदद की थी. पीवी नरसिम्हा राव के कार्यकाल में दोनों देशों के बीच शांति और सद्भावना को बढ़ावा देने के प्रयासों को और मजबूत किया गया. अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा देने, सीमा विवादों के बावजूद एक टीम के निर्माण का समझौता हुआ.

चीन की विस्तारवादी नीति
हर साल समिट के दौरान बताए गए नियमों के बावजूद चीन अरुणाचल प्रदेश के लिए अपने दावों पर कभी अफसोस नहीं करता है. म्यांमार, बांग्लादेश, श्रीलंका, मालदीव और पाकिस्तान में अपने नौसैनिक ठिकानों के साथ चीन भारत के चारों ओर अपना शिकंजा कसता जा रहा है.

यह भी पढ़ें-बढ़ती तकरार : शिवसेना ने केंद्र से महाराष्ट्र के राज्यपाल को वापस बुलाने की अपील की

भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया इंडो पैसिफिक महासागर क्षेत्र में चीन की वर्चस्ववादी प्रवृत्तियों का विरोध करने के लिए एक साथ आए हैं. इससे जाहिर तौर पर चीन चिढ़ गया है. चीन को अपनी सीमा में रखने वाले विचार-विमर्श को जारी रखते हुए भारत को एक व्यावहारिक कूटनीतिक रणनीति अपनानी चाहिए जो द्विपक्षीय व्यापार को जारी रखे.

जैसा कि शिथिलता में शामिल जोखिम बार-बार साबित हुए हैं. भारत को ड्रैगन का सामना करने के लिए अपनी रणनीतियों को तेज करना चाहिए.

हैदराबाद : वुहान और महाबलिपुरम शिखर सम्मेलन में दोनों देशों के नेताओं के बीच सामंजस्य का प्रदर्शन हुआ तो बीजिंग ने सेना की भारी तैनाती की, जिससे सीमाओं के पास युद्ध के घने बादल छा गए. यह एक स्वागत योग्य कदम है कि पिछले कई महीनों से किए गए निर्णायक प्रयासों के परिणामस्वरूप विनाशकारी टकराव रोका गया.

बीजिंग के जुझारूपन का भारतीय सेना ने विरोध किया और भारत के क्षेत्रों को छीनने की अपनी रणनीतिक के लिए तुरंत कदम उठाए. भारतीय सेना ने पहाड़ी इलाकों को अपने कब्जे में ले लिया ताकि वह चीनी सेना का मुकाबला कर सके. केंद्र ने संसद को सूचित किया है कि दोनों देश आपसी समन्वय के साथ चरणबद्ध तरीके से अपनी सेना को हटा लेंगे.

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने दावा किया कि नवीनतम समझौता के तहत सीमा पर मई के पहले सप्ताह की स्थिति को बहाल किया जाएगा. उन्होंने कहा कि चीन को एक इंच भी जमीन नहीं दी जाएगी. रक्षा मंत्री यह भी कह रहे हैं कि जब तक पैंगोंग झील के उत्तर और दक्षिण तट पर दोनों पक्षों की स्थिति तय नहीं हो जाती, तब तक दोनों देशों द्वारा गश्त को रोक दिया जाएगा.

विशेषज्ञ दे रहे हैं चेतावनी
हालांकि चीन-भारत मामलों के विशेषज्ञों को डर है कि पैंगोंग त्सो क्षेत्र में गश्त को रोकने के लिए भारत को सामरिक रूप से रणनीतिक स्थानों के नुकसान का जोखिम होगा. चीन 18 पड़ोसी देशों के साथ सीमा संघर्ष में लगा जुझारू देश है. चीन की विस्तारवादी रणनीतियों के बारे में पूरी जानकारी रखने वाले विशेषज्ञ भारत को इसकी धोखे की रणनीतियों से बचने की चेतावनी दे रहे हैं. इस तरह की चेतावनी को हल्के में नहीं लिया जा सकता है.

हो चुके हैं कई समझौते
मार्च 2013 में जब शी जिनपिंग को चीनी राष्ट्रपति के रूप में चुना गया तो उन्होंने भारत के साथ संबंध मजबूत करने के लिए एक नया पंचशील प्रस्तावित किया था. उस सिद्धांत का पहला बिंदु द्विपक्षीय संबंधों को उचित मार्ग पर रखने के लिए रणनीतिक चर्चा जारी रखना था. 1962 और 2020 के दौरान यह चीन था, जिसने झगड़े को बढ़ाया. लेकिन दोनों मौकों पर संघर्ष के घने कोहरे को दूर करने के लिए विचार-विमर्श भारत द्वारा ही शुरू किया गया था.

1988 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के चीन दौरे ने सीमा संघर्षों के समाधान के लिए एक संयुक्त कार्रवाई दल बनाने में मदद की थी. पीवी नरसिम्हा राव के कार्यकाल में दोनों देशों के बीच शांति और सद्भावना को बढ़ावा देने के प्रयासों को और मजबूत किया गया. अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा देने, सीमा विवादों के बावजूद एक टीम के निर्माण का समझौता हुआ.

चीन की विस्तारवादी नीति
हर साल समिट के दौरान बताए गए नियमों के बावजूद चीन अरुणाचल प्रदेश के लिए अपने दावों पर कभी अफसोस नहीं करता है. म्यांमार, बांग्लादेश, श्रीलंका, मालदीव और पाकिस्तान में अपने नौसैनिक ठिकानों के साथ चीन भारत के चारों ओर अपना शिकंजा कसता जा रहा है.

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भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया इंडो पैसिफिक महासागर क्षेत्र में चीन की वर्चस्ववादी प्रवृत्तियों का विरोध करने के लिए एक साथ आए हैं. इससे जाहिर तौर पर चीन चिढ़ गया है. चीन को अपनी सीमा में रखने वाले विचार-विमर्श को जारी रखते हुए भारत को एक व्यावहारिक कूटनीतिक रणनीति अपनानी चाहिए जो द्विपक्षीय व्यापार को जारी रखे.

जैसा कि शिथिलता में शामिल जोखिम बार-बार साबित हुए हैं. भारत को ड्रैगन का सामना करने के लिए अपनी रणनीतियों को तेज करना चाहिए.

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