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इलेक्ट्रिक वाहनों पर भारत की नीतियां व कार्यक्रम 'छूटे हुए अवसरों का मामला' : सीएसई - कार्यकारी निदेशक अनुमिता रॉय चौधरी

स्वच्छ हवा और जलवायु सुरक्षा के लिए आवश्यक शून्य कार्बन उत्सर्जन जनादेश नीति आज की आवश्यकता है. हालांकि 2030 तक नए वाहनों के 30 प्रतिशत विद्युतीकरण के नीतिगत इरादे के बावजूद अभी तक कोई नियामक आदेश नहीं है. यही कारण है कि इलेक्ट्रिक वाहनों की बाजार हिस्सेदारी 1 प्रतिशत से कम है. पेश है एक विशेष रिपोर्ट.

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Published : Sep 12, 2021, 5:50 PM IST

हैदराबाद : विशेषज्ञों का सुझाव है कि न्यूनतम नीति लक्ष्य को पूरा करने के लिए इलेक्ट्रिक वाहन (EV) बाजार अगले नौ वर्षों में 46 प्रतिशत सीएजीआर से बढ़ना चाहिए. देश में कई नीतियां मौजूद हैं लेकिन बड़े पैमाने पर इसे न तो कुशलतापूर्वक डिजाइन किया गया और न ही लागू किया गया है.

जब वैश्विक बाजार शून्य प्रदूषण और शुद्ध स्वच्छ वायु लक्ष्यों को पूरा करने के लिए तेजी से बदल रहा है, तो भारतीय ऑटो बाजार पीछे नहीं रह सकता है. हालांकि वाहनों के बेड़े के विद्युतीकरण में भारत की प्रगति बेहद धीमी बनी हुई है.

एक नीतिगत मंशा के बावजूद जो कि वर्ष 2030 तक सभी नए वाहनों में से 30 प्रतिशत के इलेक्ट्रिक होने की बात करता है. भारत में इलेक्ट्रिक वाहन देश के वाहन स्टॉक का 1 प्रतिशत से भी कम हैं.

सीएसई की कार्यकारी निदेशक अनुमिता रॉय चौधरी कहती हैं कि ऐसे समय में जब सड़क परिवहन में ऊर्जा की मांग दो दशकों में दोगुनी हो गई है और जलवायु शमन के प्रयासों को बढ़ाया जाना है, भारत विद्युतीकरण पर धीमी गति से आगे बढ़ने का जोखिम नहीं उठा सकता है.

विश्व इलेक्ट्रिक वाहन दिवस पर आज हम यही संदेश देना चाहते हैं. दो प्रकाशनों में सीएसई ने वर्तमान चुनौतियों, बाधाओं और अंतरालों की पहचान की है और तेजी से परिवर्तन के लिए नीतियों की सिफारिश की है. सीएसई की ये रिपोर्टें बताती हैं कि भारतीय मोटर वाहन बाजार पीछे नहीं रह सकता है जबकि लगभग 126 देशों, जो वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का आधा हिस्सा हैं, ने 2050 तक शुद्ध शून्य और कार्बन तटस्थता हासिल करने का संकल्प लिया है.

20 देशों ने पहले ही 100 प्रतिशत शून्य-उत्सर्जन वाहनों और आंतरिक दहन इंजनों को 2040-50 तक चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने की योजना की घोषणा की है. रॉय चौधरी कहती हैं कि यह परेशान करने वाली बात है कि नीति आयोग द्वारा 30@30 के न्यूनतम लक्ष्य (2030 तक ईवीएस नए वाहन बिक्री का 30 प्रतिशत) के साथ-साथ 70@30 के उच्च लक्ष्य पर कई मंत्रिस्तरीय घोषणाएं की गई हैं.

हालांकि इन लक्ष्यों का समर्थन करने के लिए देश में अभी तक कोई नियामक आदेश जारी नहीं है. यहां तक ​​कि सोसाइटी फॉर इंडियन ऑटोमोटिव मैन्युफैक्चरर्स (सियाम) द्वारा घोषित 40@30 के स्वैच्छिक लक्ष्य को भी पूरा नहीं किया जा सका है.

सीएसई में क्लीन एयर एंड सस्टेनेबल मोबिलिटी प्रोग्राम की सीनियर प्रोग्राम मैनेजर मौसमी मोहंती कहती हैं कि इसलिए फ्लीट इलेक्ट्रिफिकेशन के पैमाने में तेजी के लिए रोडमैप की पहचान करना आवश्यक हो गया है. भारतीय ईवी बाजार को 30 फीसदी के न्यूनतम लक्ष्य को हासिल करने के लिए अगले नौ वर्षों तक कम से कम 46 फीसदी चक्रवृद्धि वार्षिक दर (सीएजीआर) बनाए रखना होगा.

इलेक्ट्रिक बस कार्यक्रम की सीएसई की विशेष समीक्षा, जो विद्युतीकरण को जन गतिशीलता के साथ जोड़ने के लिए भारतीय रणनीति का एक अनूठा दृष्टिकोण है, यह दर्शाता है कि FAME II कार्यक्रम के तहत 7000 ई-बसों के मूल लक्ष्य के विपरीत अब तक केवल 2450 बसों का टेंडर किया जा सका है.

क्लीन एयर एंड सस्टेनेबल मोबिलिटी प्रोग्राम CSE के डिप्टी प्रोग्राम मैनेजर सयान रॉय कहते हैं कि भारत को सार्वजनिक परिवहन में समग्र सुधार के साथ ई-बस रणनीति को जोड़ने के लिए दीर्घकालिक नीति दृष्टिकोण की आवश्यकता है.

वास्तव में 7000 ई-बसों के लिए FAME II समर्थन भारत में बसों की कुल वार्षिक मांग का मात्र 3 प्रतिशत है. बस बेड़े का विस्तार एक महत्वपूर्ण अवसर हो सकता है. भारी उद्योग विभाग का अनुमान है कि भारत 2030 तक दूसरा सबसे बड़ा ई-बस बाजार बन सकता है, यदि बेची गई 10 में से चार बसें इलेक्ट्रिक हों.

रॉयचौधरी कहती हैं कि हमारी नीति समीक्षा से पता चलता है कि जहां कई नीतियां और योजनाएं आकार ले रही हैं, प्रगति धीमी है. फ्लैगशिप FAME II प्रोत्साहन कार्यक्रम के तहत जुलाई 2021 तक नियोजित बेड़े का केवल 6 प्रतिशत ही पंजीकृत किया जा सका. फंड का एक महत्वपूर्ण हिस्सा कम उपयोग किया गया है.

भले ही ईवी बैटरी निर्माण के लिए उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहनों की घोषणा की गई हो लेकिन मांग में वृद्धि को प्रोत्साहित करने के लिए 2024 से आगे कोई नीति रोडमैप नहीं है. यहां तक ​​कि 20000 बसों के बजटीय आवंटन को भी विद्युतीकरण से नहीं जोड़ा गया है. उसी समय ईंधन दक्षता नियम इतने कमजोर हैं कि बेड़े के तेजी से विद्युतीकरण की आवश्यकता नहीं है. यह छूटे हुए अवसरों का मामला है.

भारत कैसे आगे बढ़े

यह स्पष्ट है कि भारत को विश्वास पैदा करने और उद्योग में बदलाव करने व प्रेरित करने के लिए लंबी अवधि की नीतियों और नियामक अधिदेशों की आवश्यकता है. यह ध्यान दिया जा सकता है कि कड़े CO2/ईंधन दक्षता लक्ष्य और BSVI उत्सर्जन मानकों के बाद EV प्रौद्योगिकियां आंतरिक दहन इंजन की तुलना में अधिक लागत प्रभावी हो जाएंगी.

सीएसई की सिफारिशें

वाहनों के नए बेड़े के समयबद्ध विद्युतीकरण और निवेश में अधिक निश्चितता लाने के लिए लंबी अवधि के रोडमैप को अपनाना होगा. साथ ही नियामक लक्ष्य निर्धारित करना होगा. प्रत्येक वाहन खंड के चार्जिंग सुविधाओं को बढ़ाने के लिए भी लक्ष्य निर्धारित करना होगा.

यह भी पढ़े-राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानक में होगा संशोधन, आईआईटी-कानपुर तैयार करेगा रूपरेखा

शून्य उत्सर्जन वाहनों और विनियमों को अपनाने के लिए उत्पादन-आधारित ZEV क्रेडिट नियमों पर विचार करना आवश्यक है. यह उद्योग को लक्ष्य हासिल करने, योजनाओं को विकसित करने, मजबूत आपूर्ति और बड़ी मॉडल उपलब्धता सुनिश्चित करने में मदद करेगा.

यह भी जरूरी है कि अन्य चीजों के साथ विषम लागतों को संबोधित करने के लिए लचीलापन प्रदान किया जाए. साथ ही समयबद्ध, मापने योग्य और सत्यापन योग्य कार्यान्वयन की प्रत्येक रणनीति के लिए केंद्र और राज्य स्तर समन्वय होना चाहिए.

हैदराबाद : विशेषज्ञों का सुझाव है कि न्यूनतम नीति लक्ष्य को पूरा करने के लिए इलेक्ट्रिक वाहन (EV) बाजार अगले नौ वर्षों में 46 प्रतिशत सीएजीआर से बढ़ना चाहिए. देश में कई नीतियां मौजूद हैं लेकिन बड़े पैमाने पर इसे न तो कुशलतापूर्वक डिजाइन किया गया और न ही लागू किया गया है.

जब वैश्विक बाजार शून्य प्रदूषण और शुद्ध स्वच्छ वायु लक्ष्यों को पूरा करने के लिए तेजी से बदल रहा है, तो भारतीय ऑटो बाजार पीछे नहीं रह सकता है. हालांकि वाहनों के बेड़े के विद्युतीकरण में भारत की प्रगति बेहद धीमी बनी हुई है.

एक नीतिगत मंशा के बावजूद जो कि वर्ष 2030 तक सभी नए वाहनों में से 30 प्रतिशत के इलेक्ट्रिक होने की बात करता है. भारत में इलेक्ट्रिक वाहन देश के वाहन स्टॉक का 1 प्रतिशत से भी कम हैं.

सीएसई की कार्यकारी निदेशक अनुमिता रॉय चौधरी कहती हैं कि ऐसे समय में जब सड़क परिवहन में ऊर्जा की मांग दो दशकों में दोगुनी हो गई है और जलवायु शमन के प्रयासों को बढ़ाया जाना है, भारत विद्युतीकरण पर धीमी गति से आगे बढ़ने का जोखिम नहीं उठा सकता है.

विश्व इलेक्ट्रिक वाहन दिवस पर आज हम यही संदेश देना चाहते हैं. दो प्रकाशनों में सीएसई ने वर्तमान चुनौतियों, बाधाओं और अंतरालों की पहचान की है और तेजी से परिवर्तन के लिए नीतियों की सिफारिश की है. सीएसई की ये रिपोर्टें बताती हैं कि भारतीय मोटर वाहन बाजार पीछे नहीं रह सकता है जबकि लगभग 126 देशों, जो वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का आधा हिस्सा हैं, ने 2050 तक शुद्ध शून्य और कार्बन तटस्थता हासिल करने का संकल्प लिया है.

20 देशों ने पहले ही 100 प्रतिशत शून्य-उत्सर्जन वाहनों और आंतरिक दहन इंजनों को 2040-50 तक चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने की योजना की घोषणा की है. रॉय चौधरी कहती हैं कि यह परेशान करने वाली बात है कि नीति आयोग द्वारा 30@30 के न्यूनतम लक्ष्य (2030 तक ईवीएस नए वाहन बिक्री का 30 प्रतिशत) के साथ-साथ 70@30 के उच्च लक्ष्य पर कई मंत्रिस्तरीय घोषणाएं की गई हैं.

हालांकि इन लक्ष्यों का समर्थन करने के लिए देश में अभी तक कोई नियामक आदेश जारी नहीं है. यहां तक ​​कि सोसाइटी फॉर इंडियन ऑटोमोटिव मैन्युफैक्चरर्स (सियाम) द्वारा घोषित 40@30 के स्वैच्छिक लक्ष्य को भी पूरा नहीं किया जा सका है.

सीएसई में क्लीन एयर एंड सस्टेनेबल मोबिलिटी प्रोग्राम की सीनियर प्रोग्राम मैनेजर मौसमी मोहंती कहती हैं कि इसलिए फ्लीट इलेक्ट्रिफिकेशन के पैमाने में तेजी के लिए रोडमैप की पहचान करना आवश्यक हो गया है. भारतीय ईवी बाजार को 30 फीसदी के न्यूनतम लक्ष्य को हासिल करने के लिए अगले नौ वर्षों तक कम से कम 46 फीसदी चक्रवृद्धि वार्षिक दर (सीएजीआर) बनाए रखना होगा.

इलेक्ट्रिक बस कार्यक्रम की सीएसई की विशेष समीक्षा, जो विद्युतीकरण को जन गतिशीलता के साथ जोड़ने के लिए भारतीय रणनीति का एक अनूठा दृष्टिकोण है, यह दर्शाता है कि FAME II कार्यक्रम के तहत 7000 ई-बसों के मूल लक्ष्य के विपरीत अब तक केवल 2450 बसों का टेंडर किया जा सका है.

क्लीन एयर एंड सस्टेनेबल मोबिलिटी प्रोग्राम CSE के डिप्टी प्रोग्राम मैनेजर सयान रॉय कहते हैं कि भारत को सार्वजनिक परिवहन में समग्र सुधार के साथ ई-बस रणनीति को जोड़ने के लिए दीर्घकालिक नीति दृष्टिकोण की आवश्यकता है.

वास्तव में 7000 ई-बसों के लिए FAME II समर्थन भारत में बसों की कुल वार्षिक मांग का मात्र 3 प्रतिशत है. बस बेड़े का विस्तार एक महत्वपूर्ण अवसर हो सकता है. भारी उद्योग विभाग का अनुमान है कि भारत 2030 तक दूसरा सबसे बड़ा ई-बस बाजार बन सकता है, यदि बेची गई 10 में से चार बसें इलेक्ट्रिक हों.

रॉयचौधरी कहती हैं कि हमारी नीति समीक्षा से पता चलता है कि जहां कई नीतियां और योजनाएं आकार ले रही हैं, प्रगति धीमी है. फ्लैगशिप FAME II प्रोत्साहन कार्यक्रम के तहत जुलाई 2021 तक नियोजित बेड़े का केवल 6 प्रतिशत ही पंजीकृत किया जा सका. फंड का एक महत्वपूर्ण हिस्सा कम उपयोग किया गया है.

भले ही ईवी बैटरी निर्माण के लिए उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहनों की घोषणा की गई हो लेकिन मांग में वृद्धि को प्रोत्साहित करने के लिए 2024 से आगे कोई नीति रोडमैप नहीं है. यहां तक ​​कि 20000 बसों के बजटीय आवंटन को भी विद्युतीकरण से नहीं जोड़ा गया है. उसी समय ईंधन दक्षता नियम इतने कमजोर हैं कि बेड़े के तेजी से विद्युतीकरण की आवश्यकता नहीं है. यह छूटे हुए अवसरों का मामला है.

भारत कैसे आगे बढ़े

यह स्पष्ट है कि भारत को विश्वास पैदा करने और उद्योग में बदलाव करने व प्रेरित करने के लिए लंबी अवधि की नीतियों और नियामक अधिदेशों की आवश्यकता है. यह ध्यान दिया जा सकता है कि कड़े CO2/ईंधन दक्षता लक्ष्य और BSVI उत्सर्जन मानकों के बाद EV प्रौद्योगिकियां आंतरिक दहन इंजन की तुलना में अधिक लागत प्रभावी हो जाएंगी.

सीएसई की सिफारिशें

वाहनों के नए बेड़े के समयबद्ध विद्युतीकरण और निवेश में अधिक निश्चितता लाने के लिए लंबी अवधि के रोडमैप को अपनाना होगा. साथ ही नियामक लक्ष्य निर्धारित करना होगा. प्रत्येक वाहन खंड के चार्जिंग सुविधाओं को बढ़ाने के लिए भी लक्ष्य निर्धारित करना होगा.

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शून्य उत्सर्जन वाहनों और विनियमों को अपनाने के लिए उत्पादन-आधारित ZEV क्रेडिट नियमों पर विचार करना आवश्यक है. यह उद्योग को लक्ष्य हासिल करने, योजनाओं को विकसित करने, मजबूत आपूर्ति और बड़ी मॉडल उपलब्धता सुनिश्चित करने में मदद करेगा.

यह भी जरूरी है कि अन्य चीजों के साथ विषम लागतों को संबोधित करने के लिए लचीलापन प्रदान किया जाए. साथ ही समयबद्ध, मापने योग्य और सत्यापन योग्य कार्यान्वयन की प्रत्येक रणनीति के लिए केंद्र और राज्य स्तर समन्वय होना चाहिए.

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