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जी7 में भारत की मौजूदगी पर जानिए क्या कहते हैं एक्सपर्ट

ग्रुप ऑफ सेवन (जी7) के नेताओं ने दक्षिण जर्मनी के बवेरियन आल्प्स के श्लॉस एल्मौ में अपने तीन दिवसीय वार्षिक शिखर सम्मेलन की शुरुआत की. शिखर सम्मेलन के एक सत्र में पीएम मोदी भी शामिल हुए. पूर्व राजनयिक अनिल त्रिगुणायत ने जी-7 की महत्ता पर प्रकाश डाला. ईटीवी भारत से बात करते हुए त्रिगुणायत ने बताया कि भारत को G7 में G8 बनाने के लिए जोड़ना क्यों महत्वपूर्ण है. चंद्रकला चौधरी की रिपोर्ट.

Anil Trigunayat
पूर्व राजनयिक अनिल त्रिगुणायत
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Published : Jun 27, 2022, 9:58 PM IST

नई दिल्ली : ग्रुप ऑफ सेवन (जी7) के नेताओं ने दक्षिण जर्मनी के बवेरियन आल्प्स के श्लॉस एल्मौ में अपने तीन दिवसीय वार्षिक शिखर सम्मेलन की शुरुआत की. सात आर्थिक शक्तियों (जी 7) के समूह के नेता यूक्रेन संकट सहित वैश्विक मुद्दों पर चर्चा करने के लिए जमा हुए हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने जी-7 के शिखर सम्मेलन के एक सत्र में सोमवार को हरित विकास, स्वच्छ ऊर्जा, सतत जीवनशैली और वैश्विक कल्याण के लिए भारत के प्रयासों को रेखांकित किया. G7 के मौके पर पीएम मोदी ने दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा से मुलाकात की और भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच व्यापार और लोगों से लोगों के बीच संबंधों को बढ़ावा देने के तरीकों सहित दोस्ती की पूरी श्रृंखला पर चर्चा की. उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन, फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल मैक्रों और कनाडा के प्रधानमंत्री ट्रूडो से भी मुलाकात की.

सुनिए क्या कहा

पूर्व राजनयिक अनिल त्रिगुणायत का कहना है कि 'भारत को वस्तुतः जी 8 के रूप में देखा जाता है क्योंकि यह पहले लगातार आउटरीच में भागीदारी कर रहा है. पिछले तीन वर्षों से पीएम मोदी इन शिखर सम्मेलनों में भाग ले रहे हैं. भारत को इसमें स्थान पाने का गौरव प्राप्त है. दूसरा मेरा मानना ​​है कि ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के तुरंत बाद सभी 4-5 देश जिन्हें भारत +4 आमंत्रित किया गया है, वे भी ब्रिक्स का हिस्सा हैं और उनमें से कुछ ब्रिक्स का हिस्सा बनने का लक्ष्य बना रहे हैं. इसलिए हम एक बहुत ही अलग तरह के वैश्विक वातावरण को देख रहे हैं.'

उन्होंने कहा कि भारत की स्थिति 'रणनीतिक स्वायत्तता' या 'स्वतंत्र स्थिति' की है, जिसे रूस-यूक्रेन युद्ध या रूस से ईंधन की निरंतर खरीद के दौरान देखा गया है. ये ऐसे मुद्दे हैं जो पश्चिमी देशों को पसंद नहीं हैं लेकिन उन्होंने इसे स्वीकार करना सीख लिया है. और अंत में वे व्यापारिक राष्ट्र हैं, वे उस क्षमता को भी देखते हैं जो सबसे बड़ा लोकतंत्र और सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है.' भारत के अलावा, अर्जेंटीना, इंडोनेशिया, सेनेगल और दक्षिण अफ्रीका ने इस वर्ष के शिखर सम्मेलन में अतिथि के रूप में भाग लिया. G7 वैश्विक दक्षिण के लोकतंत्रों को अपने भागीदारों के रूप में मान्यता देने का प्रयास करता है.

पूर्व भारतीय दूत ने 'ईटीवी भारत' को बताया वर्ष 2000 के बाद से भारत जी 7 कार्यक्रमों की पहुंच में रहा है और विभिन्न मंचों में भाग लिया है.भारत के विभिन्न देशों के साथ द्विपक्षीय संबंध और रणनीतिक साझेदारी भी रही है. भारत यूरोपीय संघ, अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा के साथ एफटीए (मुक्त व्यापार समझौता) पर चर्चा कर रहा है. हाल ही में ऑस्ट्रेलिया के साथ हस्ताक्षर किए हैं इसलिए, भारत बाजार के दृष्टिकोण से एक अत्यंत महत्वपूर्ण देश है.'

उन्होंने कहा कि चूंकि जी7 का मूल उद्देश्य शुरू में अर्थव्यवस्था था, इसलिए दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र और वर्तमान में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था में दूसरा सबसे बड़ा बाजार को कोई नहीं छोड़ सकता. तो तर्क यह है और कई नेताओं द्वारा पहले ही इस बारे में बात की जा चुकी है कि भारत को G7+1 या G8 का औपचारिक नेता होना चाहिए- एक समय रूस था, जिसे 2014 से निलंबित कर दिया गया है. अनिल त्रिगुणायत ने कहा 'अब जब भारत G20 शिखर सम्मेलन की भी मेजबानी करने जा रहा है, जिसमें सभी G7 अन्य लोगों के साथ भाग लेंगे, इसलिए हमें यह देखना होगा कि भारत वैश्विक विवेक और वैश्विक स्वास्थ्य अर्थव्यवस्था की मानसिकता को कितनी मजबूती से आगे बढ़ाता है.'

पढ़ें- पीएम मोदी ने जी-7 के सत्र में हरित विकास, स्वच्छ ऊर्जा के लिए भारत के प्रयासों को रेखांकित किया

त्रिगुणायत ने कहा कि 'पहली बार हम देख रहे हैं कि यूरोपीय देश, साथ ही साथ अमेरिका, हाइपरफ्लिनेशन के साथ-साथ स्टैगफ्लेशन और मंदी से पीड़ित हैं. तो वे प्रमुख मुद्दे हैं जिनसे G7 राष्ट्र निपटना चाहते हैं, भले ही जर्मनी और ओलाफ स्कोल्ज़, एक न्यायसंगत दुनिया को पसंद करते या जलवायु परिवर्तन जैसे वैश्विक मुद्दों पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं. हमने यह भी देखा है कि वे किसी प्रकार के बीआरआई का मुकाबला करने के लिए विकासशील देशों के लिए 600 बिलियन डॉलर के निवेश की घोषणा कर रहे हैं. इसलिए हम देखते हैं कि चीन पर भले ही इस समय इतनी खुलकर बात न की जाए, क्योंकि आज रूस उनके लिए असली खलनायक है.'

गौरतलब है कि पिछले हफ्ते भारत के विदेश सचिव विनय मोहन क्वात्रा ने कहा था कि जी 7 शिखर सम्मेलन में भारत की नियमित भागीदारी दर्शाती है कि दुनिया के सामने बड़ी चुनौतियों का सामना करने के लिए पश्चिम को इसके समर्थन की आवश्यकता है.

नई दिल्ली : ग्रुप ऑफ सेवन (जी7) के नेताओं ने दक्षिण जर्मनी के बवेरियन आल्प्स के श्लॉस एल्मौ में अपने तीन दिवसीय वार्षिक शिखर सम्मेलन की शुरुआत की. सात आर्थिक शक्तियों (जी 7) के समूह के नेता यूक्रेन संकट सहित वैश्विक मुद्दों पर चर्चा करने के लिए जमा हुए हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने जी-7 के शिखर सम्मेलन के एक सत्र में सोमवार को हरित विकास, स्वच्छ ऊर्जा, सतत जीवनशैली और वैश्विक कल्याण के लिए भारत के प्रयासों को रेखांकित किया. G7 के मौके पर पीएम मोदी ने दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा से मुलाकात की और भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच व्यापार और लोगों से लोगों के बीच संबंधों को बढ़ावा देने के तरीकों सहित दोस्ती की पूरी श्रृंखला पर चर्चा की. उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन, फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल मैक्रों और कनाडा के प्रधानमंत्री ट्रूडो से भी मुलाकात की.

सुनिए क्या कहा

पूर्व राजनयिक अनिल त्रिगुणायत का कहना है कि 'भारत को वस्तुतः जी 8 के रूप में देखा जाता है क्योंकि यह पहले लगातार आउटरीच में भागीदारी कर रहा है. पिछले तीन वर्षों से पीएम मोदी इन शिखर सम्मेलनों में भाग ले रहे हैं. भारत को इसमें स्थान पाने का गौरव प्राप्त है. दूसरा मेरा मानना ​​है कि ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के तुरंत बाद सभी 4-5 देश जिन्हें भारत +4 आमंत्रित किया गया है, वे भी ब्रिक्स का हिस्सा हैं और उनमें से कुछ ब्रिक्स का हिस्सा बनने का लक्ष्य बना रहे हैं. इसलिए हम एक बहुत ही अलग तरह के वैश्विक वातावरण को देख रहे हैं.'

उन्होंने कहा कि भारत की स्थिति 'रणनीतिक स्वायत्तता' या 'स्वतंत्र स्थिति' की है, जिसे रूस-यूक्रेन युद्ध या रूस से ईंधन की निरंतर खरीद के दौरान देखा गया है. ये ऐसे मुद्दे हैं जो पश्चिमी देशों को पसंद नहीं हैं लेकिन उन्होंने इसे स्वीकार करना सीख लिया है. और अंत में वे व्यापारिक राष्ट्र हैं, वे उस क्षमता को भी देखते हैं जो सबसे बड़ा लोकतंत्र और सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है.' भारत के अलावा, अर्जेंटीना, इंडोनेशिया, सेनेगल और दक्षिण अफ्रीका ने इस वर्ष के शिखर सम्मेलन में अतिथि के रूप में भाग लिया. G7 वैश्विक दक्षिण के लोकतंत्रों को अपने भागीदारों के रूप में मान्यता देने का प्रयास करता है.

पूर्व भारतीय दूत ने 'ईटीवी भारत' को बताया वर्ष 2000 के बाद से भारत जी 7 कार्यक्रमों की पहुंच में रहा है और विभिन्न मंचों में भाग लिया है.भारत के विभिन्न देशों के साथ द्विपक्षीय संबंध और रणनीतिक साझेदारी भी रही है. भारत यूरोपीय संघ, अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा के साथ एफटीए (मुक्त व्यापार समझौता) पर चर्चा कर रहा है. हाल ही में ऑस्ट्रेलिया के साथ हस्ताक्षर किए हैं इसलिए, भारत बाजार के दृष्टिकोण से एक अत्यंत महत्वपूर्ण देश है.'

उन्होंने कहा कि चूंकि जी7 का मूल उद्देश्य शुरू में अर्थव्यवस्था था, इसलिए दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र और वर्तमान में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था में दूसरा सबसे बड़ा बाजार को कोई नहीं छोड़ सकता. तो तर्क यह है और कई नेताओं द्वारा पहले ही इस बारे में बात की जा चुकी है कि भारत को G7+1 या G8 का औपचारिक नेता होना चाहिए- एक समय रूस था, जिसे 2014 से निलंबित कर दिया गया है. अनिल त्रिगुणायत ने कहा 'अब जब भारत G20 शिखर सम्मेलन की भी मेजबानी करने जा रहा है, जिसमें सभी G7 अन्य लोगों के साथ भाग लेंगे, इसलिए हमें यह देखना होगा कि भारत वैश्विक विवेक और वैश्विक स्वास्थ्य अर्थव्यवस्था की मानसिकता को कितनी मजबूती से आगे बढ़ाता है.'

पढ़ें- पीएम मोदी ने जी-7 के सत्र में हरित विकास, स्वच्छ ऊर्जा के लिए भारत के प्रयासों को रेखांकित किया

त्रिगुणायत ने कहा कि 'पहली बार हम देख रहे हैं कि यूरोपीय देश, साथ ही साथ अमेरिका, हाइपरफ्लिनेशन के साथ-साथ स्टैगफ्लेशन और मंदी से पीड़ित हैं. तो वे प्रमुख मुद्दे हैं जिनसे G7 राष्ट्र निपटना चाहते हैं, भले ही जर्मनी और ओलाफ स्कोल्ज़, एक न्यायसंगत दुनिया को पसंद करते या जलवायु परिवर्तन जैसे वैश्विक मुद्दों पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं. हमने यह भी देखा है कि वे किसी प्रकार के बीआरआई का मुकाबला करने के लिए विकासशील देशों के लिए 600 बिलियन डॉलर के निवेश की घोषणा कर रहे हैं. इसलिए हम देखते हैं कि चीन पर भले ही इस समय इतनी खुलकर बात न की जाए, क्योंकि आज रूस उनके लिए असली खलनायक है.'

गौरतलब है कि पिछले हफ्ते भारत के विदेश सचिव विनय मोहन क्वात्रा ने कहा था कि जी 7 शिखर सम्मेलन में भारत की नियमित भागीदारी दर्शाती है कि दुनिया के सामने बड़ी चुनौतियों का सामना करने के लिए पश्चिम को इसके समर्थन की आवश्यकता है.

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