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Election 2022: उत्तराखंड में राजनीतिक पार्टियों की रैलियां, जनसभाओं का किसे मिलेगा फायदा

उत्तराखंड में बेसब्री से 10 मार्च को आने वाले चुनाव परिणामों का इंतजार हो रहा है. इन चुनावों के लिए 8 जनवरी को अधिसूचना जारी हुई थी. 12 फरवरी को चुनाव का प्रचार थम गया था. इस दौरान 35 दिनों के इस सियासी दंगल में सभी सियासी दलों ने वोटरों को रिझाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाया. आइए जानते हैं कि 35 दिनों के इस चुनावी समर में कौन से दल ने कितनी उत्तराखंड में चुनावी रैलियां की.

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Published : Mar 9, 2022, 1:58 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड में चुनावी बिगुल बजने के बाद देश का ऐसा कोई बड़ा नेता नहीं बचा जिसने देवभूमि की खाक नहीं छानी हो. देश के प्रधानमंत्री से लेकर गृहमंत्री तक देवभूमि के पहाड़ों पर लोगों के दरवाजे पर वोट मांगते दिखे. विपक्ष की बात करें तो विपक्ष ने भी अपना कोई नेता ऐसा नहीं छोड़ा जिसका इस्तेमाल इस दौरान उत्तराखंड में प्रचार के लिए ना किया हो.

ऐसे में प्रदेश में मौजूद दोनों बड़े दलों की बात करें तो सत्ता में मौजूद भाजपा और विपक्ष में बैठी मुख्य पार्टी कांग्रेस ने अपनी पूरी जान इन चुनावों में माहौल अपनी तरफ करने की कोशिश में झोंक दी थी. आइए हम आपको सिसलिलेवार बताते हैं कि किस पार्टी के किस नेता ने उत्तराखंड में कितना प्रचार किया और पार्टी की कुल कितनी रैलियां हुईं.

बीजेपी-कांग्रेस में प्रचार में कौन रहा आगे? : आंकड़ों की बात करें तो बीजेपी ने उत्तराखंड में वर्चुअल और फिजिकल दोनों मिलाकर कुल 695 चुनावी रैलियां कीं. इनमें भी हमेशा की तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सबसे आगे रहे. प्रधानमंत्री मोदी ने उत्तराखंड में कुल 151 चुनावी रैलियां कीं. इनमें कोरोना काल में 148 रैलियां वर्चुअल कीं. पाबंदी हटने के बात प्रधानमंत्री ने उत्तराखंड में 3 फिजिकल रैलियों से जनता को आमने-सामने संबोधित किया.

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पीएम मोदी की रैली.

बीजेपी के केंद्रीय नेताओं की रैलियों की बात करें तो विभिन्न नेताओं ने कुल 367 रैलियां कीं. इनमें 87 रैलियां वर्चुअल की गईं. 280 फिजिकल रैलियां थीं. इन रैलियों में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से लेकर अनुराग ठाकुर, अजय भट्ट, जेपी नड्डा और प्रह्लाद जोशी शामिल रहे.

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राहुल गांधी की रैली.

कांग्रेस के चुनाव प्रचार के आंकड़े: कांग्रेस की बात करें तो उन्होंने 30 स्टार प्रचारकों को उत्तराखंड के चुनावी मैदान में उतारा था. इनमें से 21 स्टार प्रचारकों ने उत्तराखंड में रैलियां कीं. इन स्टार प्रचारकों की रैलियों की संख्या 200 से ज्यादा रही. अकेले हरीश रावत ने पूरे 70 विधानसभा क्षेत्रों में वर्चुअल रैलियां कीं. राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने भी उत्तराखंड में वर्चुअल और फिजिकल रैलियां कीं.

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प्रियंका गांधी की रैली.

राहुल गांधी और प्रियंका ने की चार-चार रैलियां: कांग्रेस के सबसे बड़े प्रचारक राहुल गांधी की बात करें तो वो दो बार उत्तराखंड दौरे पर आए. इस दौरान उन्होंने किच्छा, हरिद्वार, मंगलौर और जागेश्वर में 4 जनसभाओं को संबोधित किया. राहुल गांधी की इन जनसभाओं को सभी 70 विधानसभा सीटों में वर्चुअली प्रसारित किया गया था. प्रियंका गांधी भी दो बार उत्तराखंड के दौरे पर आयीं. प्रियंका ने 4 जनसभाएं कीं. इसमें देहरादून, खटीमा, हल्द्वानी और श्रीनगर शामिल हैं. कांग्रेस ने इन सभी 4 रैलियों को वर्चुअल माध्यम से प्रदेश की सभी 70 सीटों पर प्रसारित किया था.

क्या था बड़े नेताओं की रैलियों का समीकरण ?: उत्तराखंड में चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा ने अपने ब्रह्मास्त्र के रूप में आखिरी चरण में पीएम मोदी, अमित शाह और योगी आदित्यनाथ को मैदान में उतारा. वहीं कांग्रेस की तरफ से राहुल गांधी और प्रियंका ने मोर्चा संभाला. पीएम मोदी की रैलियों पर नजर डालें तो प्रचार के आखिरी तीन दिन उन्होंने 10 फरवरी को टिहरी और पौड़ी को जोड़ने वाले श्रीनगर में रैली की. श्रीनगर जहां एक तरफ गढ़वाल की पुरानी राजधानी मानी जाती है तो वहीं दूसरी तरफ श्रीनगर से भाजपा के बड़े नेता धन सिंह रावत चुनाव लड़े हैं.

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राजनाथ सिंह की रैली.

धन सिंह रावत के हालात शुरू से ही चिंतानजक बताए जा रहे थे. पार्टी की मंशा थी की पीएम मोदी की श्रीनगर में रैली कर एक साथ कई निशाने लगाये जाएं. वहीं 11 फरवरी को पीएम मोदी ने कुमाऊं की सांस्कृतिक राजधानी अल्मोड़ा में रैली की. अल्मोड़ा कुमाऊं के लिहाज से एक बेहद महत्वपूर्ण जगह है. यहां से पीएम मोदी ने पूरे कुमाऊं को एक मैसेज देने का काम किया. वहीं चुनाव प्रचार के आखिरी दिन यानी 12 फरवरी को पीएम मोदी ने तराई में मौजूद उधमसिंह नगर के जिला मुख्यालय रुद्रपुर में रैली की. रुद्रपुर की रैली के माध्यम से पीएम मोदी ने तराई में मौजूद उधमसिंह नगर की सभी 9 विधानसभा सीटों को साधने का प्रयास किया.

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जेपी नड्डा की रैली.

प्रचार में दूसरे नंबर पर रहे अमित शाह: भाजपा के दूसरे नंबर पर मौजूद प्रभावशाली नेताओं की बात करें तो अमित शाह पहले ही रुद्रप्रयाग में एक बम्पर डोर टू डोर कैंपेन 28 जनवरी को कर चुके थे. प्रचार के आखिरी दिन 12 फरवरी को उन्होंने धनौल्टी, सहसपुर और रायपुर का दौरा किया. यहां पर पार्टी को मजबूत करने का काम किया. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी प्रचार के आखिरी दिन 12 फरवरी को टिहरी और कोटद्वार में ताबड़तोड़ रैलियां कीं. दिलचस्प बात ये रही कि उत्तराखंड योगी आदित्यनाथ की जन्मस्थली है. कोटद्वार का पौड़ी जिला उनका गृह जिला है.

कांग्रेस ने भी झोंकी थी पूरी ताकत: कांग्रेस की बात करें तो कांग्रेस के दोनों फायरब्रांड नेता राहुल गांधी और प्रियंका ने भी उत्तराखंड में अपनी पूरी ताकत झोंकी. राहुल गांधी चुनावों की अधिसूचना लगने से पहले ही 16 दिसंबर को देहरादून के परेड ग्राउंड में एक विशाल रैली करके जा चुके थे.

वहीं प्रचार के आखिरी समय में उन्होंने 10 फरवरी को किच्छा और हरिद्वार जिले में रैली की. प्रियंका गांधी वाड्रा की बात करें तो प्रियंका ने पहले 4 फरवरी को देहरादून में कांग्रेस के मुख्य कैंपेन 'चार धाम चार काम' के तहत घोषणा पत्र जारी किया. वहीं प्रचार के आखिरी दिन 12 फरवरी को उन्होंने सुबह 11 बजे खटीमा और उसके बाद दोपहर 1 बजे हल्द्वानी और 3 बजे श्रीनगर में ताबड़तोड़ रैलियां कीं.

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रैलियों में बीजेपी ने मारी बाजी.

इस चुनाव में किसका कैसा था मैनेजमेंट ? : भाजपा के मुख्यालय में था रिमोट कंट्रोल: भाजपा चुनाव प्रबंधन समिति के सहसंयोजक ज्योति प्रसाद गैरोला ने बताया कि प्रदेश में केवल चुनावी रैलियां ही नहीं बल्कि इसके अलावा 43 ऑडियो ब्रिज जनसभाएं और 70 विधानसभा सीटों में 109 स्थानों पर चुनाव अभियान की एक साथ शुरुआत की गई. सामाजिक संवाद मोर्चों द्वारा 131 सभाएं प्रदेश में अलग अलग मोर्चों द्वारा प्लेकार्ड कैंपेन चलाए गये.

पहली बार कोविड की बदली हुई परिस्थितियों के चलते ऐतिहासिक 81,578 कमरा बैठकें की गईं तो वहीं कोविड की बंदिशों के चलते डोर टू डोर कैंपेन पर ज्यादा फोकस करते हुए इस बार 14,245 डोर टू डोर कैंपेन चलाये गये. इसमें खुद देश के गृहमंत्री अमित शाह ने भी रुद्रप्रयाग में डोर टू डोर कैंपेन में भाग लिया था. इसके अलावा 4,480 नुक्कड़ सभाएं और 8 हजार से ज्यादा एलईडी प्रचार रथ के जरिए सभाएं की गईं.

भाजपा की रणनीतिकार समिति में अहम भूमिका निभाने वाले ज्योति प्रसाद गैरोला का कहना है कि भले ही चुनाव लड़ा पूरे प्रदेश में जा रहा था, लेकिन मैनेजमेंट प्रदेश कार्यालय से किया जा रहा था. कौन कहां आएगा कौन मंच पर बैठेगा और कौन सा नेता कितने मिनट और कितने सेकंड तक मंच पर बोलेगा, इस सब पर प्रदेश कार्यालय से ऑनलाइन लाइव स्ट्रीमिंग के जरिए कंट्रोल किया जा रहा था.

वहीं इसी टीम के एक अन्य सदस्य पुनीत मित्तल जिन्हें खास तौर से मॉनिटरिंग की जिम्मेदारी दी गई थी उनका कहना है कि चुनाव के दौरान उनके दिन-रात सभी एक जैसे थे. हर दिन रात 1 बजे के बाद तक अलग-अलग विभागों की बैठक होती थी. प्रोग्रेस रिपोर्ट पर बात होती थी और अगले दिन की रणनीति तैयार होती थी. भाजपा की इस कोर टीम में पार्टी के संगठन महामंत्री अजय, महामंत्री कुलदीप कुमार और राजू भंडारी, उपाध्यक्ष ज्योति गैरोला, कोषाध्यक्ष पुनीत मित्तल और कार्यालय प्रमुख कौस्तुभानंद जोशी की अहम भूमिका थी.

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कांग्रेस की रैलियों का आंकड़ा.

कांग्रेस में प्रभारी देवेंद्र यादव और गौरव वल्लभ ने भरी जान: कांग्रेस के चुनाव मैनेजमेंट की बात करें तो कांग्रेस में मैनेजमेंट की पूरी कमान प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव के हाथों में थी. जो कांग्रेस पिछले लंबे समय से प्रचार में पिछड़ रही थी, प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव के आने के बाद कांग्रेस के मैनेजमेंट में जान आ गई. वहीं राष्ट्रीय प्रवक्ता गौरव वल्लभ के आने के बाद कांग्रेस और ज्यादा बूस्ट अप हो गई. झारखंड से आने वाले कांग्रेस के फायरब्रांड प्रवक्ता गौरव वल्लभ ने उत्तराखंड कांग्रेस में जान फूंक दी. वो तकरीबन हर दिन एक प्रेस कांफ्रेंस कर रहे थे. वो हर दिन भाजपा को लपेटने की पूरी कोशिश कर रहे थे.

कांग्रेस मैनेजमेंट टीम की बात करें तो प्रभारी देवेंद्र यादव, स्ट्रेटजी बनाने में गौरव वल्लभ के अलावा टीम में सह प्रभारी दीपिका पांडे, संगठन महामंत्री मथुरा दत्त जोशी के अलावा मीडिया की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी राजीव महर्षि के हाथ में थी. पार्टी के मीडिया इंचार्ज राजीव महर्षि ने बताया कि उनके सभी बड़े नेता चुनाव लड़ रहे थे. इसमें हरीश रावत, प्रीतम सिंह और गणेश गोदियाल चुनावी मैदान में थे.

लेकिन उनके आंख-कान बनने का काम पार्टी की इस कोर टीम ने किया. इसी वजह से कांग्रेस ने इस बार बेहतरीन तरीके से चुनाव लड़ा. इसका परिणाम कांग्रेस सरकार के रूप में 10 मार्च को देखने को मिल सकता है. 10 मार्च को गौरव बल्लव का वो कथन सच साबित हो सकता है, जिसमें उन्होंने कहा था कि भाजपा के विधायक एक इनोवा कार में समा जाएंगे.

पीएम मोदी ने चुने ये पांच जिले: PM मोदी ने उत्तराखंड के पांच जिलों में रैलियां की थीं. पीएम की देहरादून की रैली ने तो कांग्रेस को वहां राहुल गांधी की रैली करने को मजबूर कर दिया था. पीएम मोदी ने हल्द्वानी में रैली की तो कांग्रेस ने उनके मुकाबले प्रियंका को प्रचार के आखिरी चरण में हल्द्वानी भेजा. पीएम मोदी ने श्रीनगर में चुनाव प्रचार के लिए विशाल जनसभा की तो कांग्रेस को उनके मुकाबले के लिए यहां भी प्रियंका गांधी को मैदान में उतारना पड़ा.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रुद्रपुर में रैली की तो कांग्रेस को राहुल गांधी को काउंटर अटैक के लिए उतारना पड़ा था. पीएम मोदी ने उत्तराखंड की सांस्कृतिक राजधानी अल्मोड़ा में जो रैली की उसने भीड़ के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए थे. पीएम ने खेतों में उनको सुनने आए लोगों को देखकर कहा था कि एक मंजिल वाली रैली तो उन्होंने अनेक देखी लेकिन बहुमंजिला रैली पहली बार देखी. पीएम मोदी के मुकाबले में कांग्रेस ने जिले की जागेश्वर सीट पर राहुल गांधी को चुनाव प्रचार के लिए उतारा था.

राजनाथ सिंह की जनसभाएं: रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह सैन्य बहुल राज्य उत्तराखंड में चुनाव प्रचार में विशेष जोर लगाया. राजनाथ ने गढ़वाल में श्रीनगर के पैठाणी, चमोली के गौचर में सभाएं कीं. कुमाऊं में उन्होंने पिथौरागढ़ में मूनाकोट के झोलखेत मैदान से शहीद सम्मान यात्रा का आगाज किया था. इसके अलावा गंगोलीहाट में चुनावी जनसभा को सम्बोधित किया था. राजनाथ सिंह ने बागेश्वर की कपकोट विधानसभा सीट का दौरा भी किया.

राजनाथ ने क्यों की यहां सभाएं: राजनाथ सिंह रक्षा मंत्री हैं. उत्तराखंड सैन्य बहुल राज्य है. इस समय उत्तराखंड में करीब पौने दो लाख पूर्व सैनिक हैं. इसके साथ ही वर्तमान में भारतीय सेनाओं में उत्तराखंड के करीब 75 हजार युवा सेवाएं दे रहे हैं. अकेले पिथौरागढ़ जिले में ही 17 हजार के करीब पूर्व सैनिक हैं. इसीलिए राजनाथ सिंह ने पिथौरागढ़ में रैलियां कीं. इसके साथ ही गढ़वाल और कुमाऊं के जिन हिस्सों में राजनाथ सिंह ने जनसभाएं कीं, वो इलाके चीन तिब्बत बॉर्डर से लगे हैं. यहां के वोटरों को लुभाने के लिए खासतौर पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की सभाएं रखी गईं.

जेपी नड्डा की जनसभाएं: BJP के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा भी उत्तराखंड चुनाव में स्टार प्रचारक रहे. उन्होंने मूनाकोट ब्लॉक के झोलखेत मैदान में चुनावी जनसभा को सम्बोधित किया था. केदारनाथ विधानसभा सीट के अगस्त्यमुनि में भी नड्डा की रैली आयोजित हुई थी. जेपी नड्डा ने एक बार बागेश्वर विधानसभा सीट का दौरा भी किया. हरिद्वार में रोड शो करने के साथ ही नड्डा पौड़ी जिले की चौबट्टाखाल सीट पर सतपाल महाराज के समर्थन में सभा करने भी पहुंचे थे. इसके साथ ही जेपी नड्डा ने गंगोत्री विधानसभा सीट में भी जनता को संबोधित किया था.

जेपी नड्डा ने रुद्रप्रयाग और बागेश्वर में क्यों की रैली: BJP के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने उत्तराखंड के धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण चार जिलों में रैलियां, रोड शो किए. बागेश्वर भगवान बागनाथ की स्थली है. रुद्रप्रयाग जिले में बाबा केदारनाथ का स्थल है. उत्तरकाशी में गंगोत्री धाम है. हरिद्वार का धार्मिक महत्व तो पूरी दुनिया जानती है. दरअसल जब जो भी व्यक्ति जिस पार्टी का अध्यक्ष होता है, उसके फैसलों की छाप पार्टी के क्रिया कलापों में देखी जाती है. जेपी नड्डा ने खुद उत्तराखंड के धार्मिक स्थलों वाले जिलों में सभाएं करके ये संदेश देने की कोशिश की कि वो हिंदु समाज के हित की बात करते हैं.

देहरादून: उत्तराखंड में चुनावी बिगुल बजने के बाद देश का ऐसा कोई बड़ा नेता नहीं बचा जिसने देवभूमि की खाक नहीं छानी हो. देश के प्रधानमंत्री से लेकर गृहमंत्री तक देवभूमि के पहाड़ों पर लोगों के दरवाजे पर वोट मांगते दिखे. विपक्ष की बात करें तो विपक्ष ने भी अपना कोई नेता ऐसा नहीं छोड़ा जिसका इस्तेमाल इस दौरान उत्तराखंड में प्रचार के लिए ना किया हो.

ऐसे में प्रदेश में मौजूद दोनों बड़े दलों की बात करें तो सत्ता में मौजूद भाजपा और विपक्ष में बैठी मुख्य पार्टी कांग्रेस ने अपनी पूरी जान इन चुनावों में माहौल अपनी तरफ करने की कोशिश में झोंक दी थी. आइए हम आपको सिसलिलेवार बताते हैं कि किस पार्टी के किस नेता ने उत्तराखंड में कितना प्रचार किया और पार्टी की कुल कितनी रैलियां हुईं.

बीजेपी-कांग्रेस में प्रचार में कौन रहा आगे? : आंकड़ों की बात करें तो बीजेपी ने उत्तराखंड में वर्चुअल और फिजिकल दोनों मिलाकर कुल 695 चुनावी रैलियां कीं. इनमें भी हमेशा की तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सबसे आगे रहे. प्रधानमंत्री मोदी ने उत्तराखंड में कुल 151 चुनावी रैलियां कीं. इनमें कोरोना काल में 148 रैलियां वर्चुअल कीं. पाबंदी हटने के बात प्रधानमंत्री ने उत्तराखंड में 3 फिजिकल रैलियों से जनता को आमने-सामने संबोधित किया.

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पीएम मोदी की रैली.

बीजेपी के केंद्रीय नेताओं की रैलियों की बात करें तो विभिन्न नेताओं ने कुल 367 रैलियां कीं. इनमें 87 रैलियां वर्चुअल की गईं. 280 फिजिकल रैलियां थीं. इन रैलियों में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से लेकर अनुराग ठाकुर, अजय भट्ट, जेपी नड्डा और प्रह्लाद जोशी शामिल रहे.

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राहुल गांधी की रैली.

कांग्रेस के चुनाव प्रचार के आंकड़े: कांग्रेस की बात करें तो उन्होंने 30 स्टार प्रचारकों को उत्तराखंड के चुनावी मैदान में उतारा था. इनमें से 21 स्टार प्रचारकों ने उत्तराखंड में रैलियां कीं. इन स्टार प्रचारकों की रैलियों की संख्या 200 से ज्यादा रही. अकेले हरीश रावत ने पूरे 70 विधानसभा क्षेत्रों में वर्चुअल रैलियां कीं. राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने भी उत्तराखंड में वर्चुअल और फिजिकल रैलियां कीं.

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प्रियंका गांधी की रैली.

राहुल गांधी और प्रियंका ने की चार-चार रैलियां: कांग्रेस के सबसे बड़े प्रचारक राहुल गांधी की बात करें तो वो दो बार उत्तराखंड दौरे पर आए. इस दौरान उन्होंने किच्छा, हरिद्वार, मंगलौर और जागेश्वर में 4 जनसभाओं को संबोधित किया. राहुल गांधी की इन जनसभाओं को सभी 70 विधानसभा सीटों में वर्चुअली प्रसारित किया गया था. प्रियंका गांधी भी दो बार उत्तराखंड के दौरे पर आयीं. प्रियंका ने 4 जनसभाएं कीं. इसमें देहरादून, खटीमा, हल्द्वानी और श्रीनगर शामिल हैं. कांग्रेस ने इन सभी 4 रैलियों को वर्चुअल माध्यम से प्रदेश की सभी 70 सीटों पर प्रसारित किया था.

क्या था बड़े नेताओं की रैलियों का समीकरण ?: उत्तराखंड में चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा ने अपने ब्रह्मास्त्र के रूप में आखिरी चरण में पीएम मोदी, अमित शाह और योगी आदित्यनाथ को मैदान में उतारा. वहीं कांग्रेस की तरफ से राहुल गांधी और प्रियंका ने मोर्चा संभाला. पीएम मोदी की रैलियों पर नजर डालें तो प्रचार के आखिरी तीन दिन उन्होंने 10 फरवरी को टिहरी और पौड़ी को जोड़ने वाले श्रीनगर में रैली की. श्रीनगर जहां एक तरफ गढ़वाल की पुरानी राजधानी मानी जाती है तो वहीं दूसरी तरफ श्रीनगर से भाजपा के बड़े नेता धन सिंह रावत चुनाव लड़े हैं.

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राजनाथ सिंह की रैली.

धन सिंह रावत के हालात शुरू से ही चिंतानजक बताए जा रहे थे. पार्टी की मंशा थी की पीएम मोदी की श्रीनगर में रैली कर एक साथ कई निशाने लगाये जाएं. वहीं 11 फरवरी को पीएम मोदी ने कुमाऊं की सांस्कृतिक राजधानी अल्मोड़ा में रैली की. अल्मोड़ा कुमाऊं के लिहाज से एक बेहद महत्वपूर्ण जगह है. यहां से पीएम मोदी ने पूरे कुमाऊं को एक मैसेज देने का काम किया. वहीं चुनाव प्रचार के आखिरी दिन यानी 12 फरवरी को पीएम मोदी ने तराई में मौजूद उधमसिंह नगर के जिला मुख्यालय रुद्रपुर में रैली की. रुद्रपुर की रैली के माध्यम से पीएम मोदी ने तराई में मौजूद उधमसिंह नगर की सभी 9 विधानसभा सीटों को साधने का प्रयास किया.

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जेपी नड्डा की रैली.

प्रचार में दूसरे नंबर पर रहे अमित शाह: भाजपा के दूसरे नंबर पर मौजूद प्रभावशाली नेताओं की बात करें तो अमित शाह पहले ही रुद्रप्रयाग में एक बम्पर डोर टू डोर कैंपेन 28 जनवरी को कर चुके थे. प्रचार के आखिरी दिन 12 फरवरी को उन्होंने धनौल्टी, सहसपुर और रायपुर का दौरा किया. यहां पर पार्टी को मजबूत करने का काम किया. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी प्रचार के आखिरी दिन 12 फरवरी को टिहरी और कोटद्वार में ताबड़तोड़ रैलियां कीं. दिलचस्प बात ये रही कि उत्तराखंड योगी आदित्यनाथ की जन्मस्थली है. कोटद्वार का पौड़ी जिला उनका गृह जिला है.

कांग्रेस ने भी झोंकी थी पूरी ताकत: कांग्रेस की बात करें तो कांग्रेस के दोनों फायरब्रांड नेता राहुल गांधी और प्रियंका ने भी उत्तराखंड में अपनी पूरी ताकत झोंकी. राहुल गांधी चुनावों की अधिसूचना लगने से पहले ही 16 दिसंबर को देहरादून के परेड ग्राउंड में एक विशाल रैली करके जा चुके थे.

वहीं प्रचार के आखिरी समय में उन्होंने 10 फरवरी को किच्छा और हरिद्वार जिले में रैली की. प्रियंका गांधी वाड्रा की बात करें तो प्रियंका ने पहले 4 फरवरी को देहरादून में कांग्रेस के मुख्य कैंपेन 'चार धाम चार काम' के तहत घोषणा पत्र जारी किया. वहीं प्रचार के आखिरी दिन 12 फरवरी को उन्होंने सुबह 11 बजे खटीमा और उसके बाद दोपहर 1 बजे हल्द्वानी और 3 बजे श्रीनगर में ताबड़तोड़ रैलियां कीं.

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रैलियों में बीजेपी ने मारी बाजी.

इस चुनाव में किसका कैसा था मैनेजमेंट ? : भाजपा के मुख्यालय में था रिमोट कंट्रोल: भाजपा चुनाव प्रबंधन समिति के सहसंयोजक ज्योति प्रसाद गैरोला ने बताया कि प्रदेश में केवल चुनावी रैलियां ही नहीं बल्कि इसके अलावा 43 ऑडियो ब्रिज जनसभाएं और 70 विधानसभा सीटों में 109 स्थानों पर चुनाव अभियान की एक साथ शुरुआत की गई. सामाजिक संवाद मोर्चों द्वारा 131 सभाएं प्रदेश में अलग अलग मोर्चों द्वारा प्लेकार्ड कैंपेन चलाए गये.

पहली बार कोविड की बदली हुई परिस्थितियों के चलते ऐतिहासिक 81,578 कमरा बैठकें की गईं तो वहीं कोविड की बंदिशों के चलते डोर टू डोर कैंपेन पर ज्यादा फोकस करते हुए इस बार 14,245 डोर टू डोर कैंपेन चलाये गये. इसमें खुद देश के गृहमंत्री अमित शाह ने भी रुद्रप्रयाग में डोर टू डोर कैंपेन में भाग लिया था. इसके अलावा 4,480 नुक्कड़ सभाएं और 8 हजार से ज्यादा एलईडी प्रचार रथ के जरिए सभाएं की गईं.

भाजपा की रणनीतिकार समिति में अहम भूमिका निभाने वाले ज्योति प्रसाद गैरोला का कहना है कि भले ही चुनाव लड़ा पूरे प्रदेश में जा रहा था, लेकिन मैनेजमेंट प्रदेश कार्यालय से किया जा रहा था. कौन कहां आएगा कौन मंच पर बैठेगा और कौन सा नेता कितने मिनट और कितने सेकंड तक मंच पर बोलेगा, इस सब पर प्रदेश कार्यालय से ऑनलाइन लाइव स्ट्रीमिंग के जरिए कंट्रोल किया जा रहा था.

वहीं इसी टीम के एक अन्य सदस्य पुनीत मित्तल जिन्हें खास तौर से मॉनिटरिंग की जिम्मेदारी दी गई थी उनका कहना है कि चुनाव के दौरान उनके दिन-रात सभी एक जैसे थे. हर दिन रात 1 बजे के बाद तक अलग-अलग विभागों की बैठक होती थी. प्रोग्रेस रिपोर्ट पर बात होती थी और अगले दिन की रणनीति तैयार होती थी. भाजपा की इस कोर टीम में पार्टी के संगठन महामंत्री अजय, महामंत्री कुलदीप कुमार और राजू भंडारी, उपाध्यक्ष ज्योति गैरोला, कोषाध्यक्ष पुनीत मित्तल और कार्यालय प्रमुख कौस्तुभानंद जोशी की अहम भूमिका थी.

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कांग्रेस की रैलियों का आंकड़ा.

कांग्रेस में प्रभारी देवेंद्र यादव और गौरव वल्लभ ने भरी जान: कांग्रेस के चुनाव मैनेजमेंट की बात करें तो कांग्रेस में मैनेजमेंट की पूरी कमान प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव के हाथों में थी. जो कांग्रेस पिछले लंबे समय से प्रचार में पिछड़ रही थी, प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव के आने के बाद कांग्रेस के मैनेजमेंट में जान आ गई. वहीं राष्ट्रीय प्रवक्ता गौरव वल्लभ के आने के बाद कांग्रेस और ज्यादा बूस्ट अप हो गई. झारखंड से आने वाले कांग्रेस के फायरब्रांड प्रवक्ता गौरव वल्लभ ने उत्तराखंड कांग्रेस में जान फूंक दी. वो तकरीबन हर दिन एक प्रेस कांफ्रेंस कर रहे थे. वो हर दिन भाजपा को लपेटने की पूरी कोशिश कर रहे थे.

कांग्रेस मैनेजमेंट टीम की बात करें तो प्रभारी देवेंद्र यादव, स्ट्रेटजी बनाने में गौरव वल्लभ के अलावा टीम में सह प्रभारी दीपिका पांडे, संगठन महामंत्री मथुरा दत्त जोशी के अलावा मीडिया की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी राजीव महर्षि के हाथ में थी. पार्टी के मीडिया इंचार्ज राजीव महर्षि ने बताया कि उनके सभी बड़े नेता चुनाव लड़ रहे थे. इसमें हरीश रावत, प्रीतम सिंह और गणेश गोदियाल चुनावी मैदान में थे.

लेकिन उनके आंख-कान बनने का काम पार्टी की इस कोर टीम ने किया. इसी वजह से कांग्रेस ने इस बार बेहतरीन तरीके से चुनाव लड़ा. इसका परिणाम कांग्रेस सरकार के रूप में 10 मार्च को देखने को मिल सकता है. 10 मार्च को गौरव बल्लव का वो कथन सच साबित हो सकता है, जिसमें उन्होंने कहा था कि भाजपा के विधायक एक इनोवा कार में समा जाएंगे.

पीएम मोदी ने चुने ये पांच जिले: PM मोदी ने उत्तराखंड के पांच जिलों में रैलियां की थीं. पीएम की देहरादून की रैली ने तो कांग्रेस को वहां राहुल गांधी की रैली करने को मजबूर कर दिया था. पीएम मोदी ने हल्द्वानी में रैली की तो कांग्रेस ने उनके मुकाबले प्रियंका को प्रचार के आखिरी चरण में हल्द्वानी भेजा. पीएम मोदी ने श्रीनगर में चुनाव प्रचार के लिए विशाल जनसभा की तो कांग्रेस को उनके मुकाबले के लिए यहां भी प्रियंका गांधी को मैदान में उतारना पड़ा.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रुद्रपुर में रैली की तो कांग्रेस को राहुल गांधी को काउंटर अटैक के लिए उतारना पड़ा था. पीएम मोदी ने उत्तराखंड की सांस्कृतिक राजधानी अल्मोड़ा में जो रैली की उसने भीड़ के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए थे. पीएम ने खेतों में उनको सुनने आए लोगों को देखकर कहा था कि एक मंजिल वाली रैली तो उन्होंने अनेक देखी लेकिन बहुमंजिला रैली पहली बार देखी. पीएम मोदी के मुकाबले में कांग्रेस ने जिले की जागेश्वर सीट पर राहुल गांधी को चुनाव प्रचार के लिए उतारा था.

राजनाथ सिंह की जनसभाएं: रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह सैन्य बहुल राज्य उत्तराखंड में चुनाव प्रचार में विशेष जोर लगाया. राजनाथ ने गढ़वाल में श्रीनगर के पैठाणी, चमोली के गौचर में सभाएं कीं. कुमाऊं में उन्होंने पिथौरागढ़ में मूनाकोट के झोलखेत मैदान से शहीद सम्मान यात्रा का आगाज किया था. इसके अलावा गंगोलीहाट में चुनावी जनसभा को सम्बोधित किया था. राजनाथ सिंह ने बागेश्वर की कपकोट विधानसभा सीट का दौरा भी किया.

राजनाथ ने क्यों की यहां सभाएं: राजनाथ सिंह रक्षा मंत्री हैं. उत्तराखंड सैन्य बहुल राज्य है. इस समय उत्तराखंड में करीब पौने दो लाख पूर्व सैनिक हैं. इसके साथ ही वर्तमान में भारतीय सेनाओं में उत्तराखंड के करीब 75 हजार युवा सेवाएं दे रहे हैं. अकेले पिथौरागढ़ जिले में ही 17 हजार के करीब पूर्व सैनिक हैं. इसीलिए राजनाथ सिंह ने पिथौरागढ़ में रैलियां कीं. इसके साथ ही गढ़वाल और कुमाऊं के जिन हिस्सों में राजनाथ सिंह ने जनसभाएं कीं, वो इलाके चीन तिब्बत बॉर्डर से लगे हैं. यहां के वोटरों को लुभाने के लिए खासतौर पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की सभाएं रखी गईं.

जेपी नड्डा की जनसभाएं: BJP के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा भी उत्तराखंड चुनाव में स्टार प्रचारक रहे. उन्होंने मूनाकोट ब्लॉक के झोलखेत मैदान में चुनावी जनसभा को सम्बोधित किया था. केदारनाथ विधानसभा सीट के अगस्त्यमुनि में भी नड्डा की रैली आयोजित हुई थी. जेपी नड्डा ने एक बार बागेश्वर विधानसभा सीट का दौरा भी किया. हरिद्वार में रोड शो करने के साथ ही नड्डा पौड़ी जिले की चौबट्टाखाल सीट पर सतपाल महाराज के समर्थन में सभा करने भी पहुंचे थे. इसके साथ ही जेपी नड्डा ने गंगोत्री विधानसभा सीट में भी जनता को संबोधित किया था.

जेपी नड्डा ने रुद्रप्रयाग और बागेश्वर में क्यों की रैली: BJP के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने उत्तराखंड के धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण चार जिलों में रैलियां, रोड शो किए. बागेश्वर भगवान बागनाथ की स्थली है. रुद्रप्रयाग जिले में बाबा केदारनाथ का स्थल है. उत्तरकाशी में गंगोत्री धाम है. हरिद्वार का धार्मिक महत्व तो पूरी दुनिया जानती है. दरअसल जब जो भी व्यक्ति जिस पार्टी का अध्यक्ष होता है, उसके फैसलों की छाप पार्टी के क्रिया कलापों में देखी जाती है. जेपी नड्डा ने खुद उत्तराखंड के धार्मिक स्थलों वाले जिलों में सभाएं करके ये संदेश देने की कोशिश की कि वो हिंदु समाज के हित की बात करते हैं.

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