नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार और उसके परिवार के सदस्यों की हत्या के दोषियों को सजा में छूट दिए जाने के संबंध में गुजरात सरकार पर तीखे सवालों की झड़ी लगा दी. न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने मौखिक रूप से टिप्पणी की कि जहां तक मामले में 11 दोषियों को सजा में छूट देने का सवाल है, गुजरात सरकार मुश्किल में है.
पीठ ने गुजरात सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू से पूछा, इस मामले में यह मौत की सजा के बाद दूसरी सबसे बड़ी सजा थी, जो आजीवन कारावास (आरोपी को दी गई) थी, छूट कैसे दी गई? पीठ ने आगे सवाल किया कि गोधरा के जिला न्यायाधीश की राय लेने की क्या जरूरत थी, जिसने आरोपियों पर मुकदमा नहीं चलाया? पीठ ने मौखिक रूप से टिप्पणी की कि प्रत्येक योग्य दोषी को सुधार और समाज में फिर से शामिल होने का अवसर दिया जाना चाहिए.
न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि छूट की नीति चयनात्मक रूप से क्यों लागू की जा रही है? पुनः संगठित होने और सुधार का अवसर हर दोषी को दिया जाना चाहिए, कुछ को नहीं... पीठ ने राजू से आगे पूछा कि उन मामलों में छूट नीति कितनी लागू की जा रही है, जहां सभी व्यक्ति 14 वर्ष पूरे कर चुके हैं, क्या नीति ऐसे सभी मामलों में लागू की गई है? राजू ने कहा कि राज्य सरकार मई 2022 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के प्रभावी आदेश से बंधी है.
इस आदेश में कहा गया था कि राज्य की छूट नीति मामले में लागू होगी और राज्य सरकार को अपनी नीति के आधार पर छूट के लिए ऐसे आवेदनों पर विचार करना चाहिए. शीर्ष अदालत ने जेल सलाहकार समिति की संरचना के बारे में भी विवरण मांगा (ऐसी आलोचना थी कि समिति में दो भाजपा विधायक थे). पीठ ने राजू से आगे पूछा कि क्या दोषियों की माफी पर जब उनसे राय मांगी गई थी तो क्या सीबीआई ने भी नकारात्मक राय नहीं दी थी?