ETV Bharat / bharat

इंजिक्कुझी का कणि ट्राइब, राशन के लिए खेलते हैं खतरों से, चार दिन सफर करने पर मिलता है अनाज

author img

By

Published : Apr 27, 2022, 9:17 PM IST

भले ही डिजिटल युग में इंडिया तरक्की ने नए-नए आयाम गढ़ रहा है, मगर आज भी देश में कई हिस्सों में भूख और पेट भरने के लिए लोग जेद्दोजेहद कर रहे हैं. तमिलनाडु के तिरुनेलवेली इलाके में आज भी लोग राशन लेने के लिए कई-कई दिनों तक सफर करते हैं.

4 days to buy their ration
4 days to buy their ration

तिरुनेलवेली: अनाज के लिए खतरों से खेलने की यह कहानी तमिलनाडु के शहर तिरुनेलवेली के करीब इंजिक्कुझी की है. यहां एक काणि ट्राइबल समूह करैयार डैम से 10 किलोमीटर दूर जंगली इलाके में रहता है. ये सभी राशन लेने के लिए तिरुनेलवेली ही आते हैं, मगर दस किलोमीटर की दूरी तय करने में उनके कई दिन खर्च हो जाते हैं. इन लोगों का कहना है कि उनकी सहायता के लिए सरकार ने वन विभाग को नाव दे रखी है, मगर अफसर डैम को पार कराने के लिए उनसे डीजल का खर्च मांगते हैं. ऐसे हालात में वह लड़की के खंभों से टेंपररी नाव बनाकर डैम को पार करते हैं. इन लोगों के पास एक भी ऐसा गैजेट नहीं है, जो डिजिटल इंडिया में पॉपुलर है.

काणि जनजाति के लोग इंजिक्कुझी में पिछले 100 साल से भी अधिक समय से रह रही है. इस ट्राइब के लोग मूल रूप से केले, मिर्च और अन्य कंदों खेती करते हैं. पिछली जनगणना के मुताबिक, इंजिक्कुझी में काणि जनजाति की आबादी 24 है और यहां इनके कुल 7 परिवार बसे हैं. जब आप इनकी मुश्किल जिंदगी के बारे में जानेंगे तो वह हैरान रह जाएंगे. इनका इलाका करैयार डैम से 10 किलोमीटर दूर जंगल में है, इसलिए जब वह नमक-तेल और राशन के लिए तिरूनेलवेली का जाते है तो सबसे पहले जंगली जानवरों से बचकर घने जंगल में 10 किलोमीटर पैदल चलते हैं. फिर उन्हें करैयार डैम में चार किलोमीटर का सफर करना होता है. इसे पार करने के लिए वह टेंपररी नाव बनाते हैं. नाव ऐसी कि कभी भी पलट जाए. खतरनाक यह है कि करैयार डैम में खतरनाक मगरमच्छ भी हैं, जो डूबने वाले को चट करने में टाइम नहीं लगाते. काणि आदिवासी समुदाय में भी राशन-पानी लाने की जिम्मेदारी पुरुषों की है इसलिए समुदाय के लोग सप्ताह में दो बार राशन लेने जाते हैं. यदि सभी मौसम साथ देता है तो वे दो या तीन दिनों में घर लौट जाते हैं. अगर रात में बारिश हो जाती है तो वह कई-कई दिनों तक करैयार डैम के पास मौसम साफ होने का इंतजार करते हैं.

तमिलनाडु इंजिक्कुझी के कणि ट्राइब.

हद तो यह है कि अगर उनके लिए दिए गए सरकारी नाव से सफर किया जाए तो 4 किलोमीटर की दूरी कुछ मिनटों में तय हो जाए. मगर उनकी नाव से इसे पार करने में कई घंटे लग जाते है. सरकार बोट को एक बार अप-डाउन करने के लिए दो लीटर डीजल की जरूरत होती है. काणि समुदाय के लोग बताते हैं कि वन विभाग के अफसर डैम पार कराने के लिए उनसे डीजल का खर्च मांगते हैं. मगर जब कभी किसी अधिकारी या वीआईपी को इंजिक्कुझी की जंगलों में सैर-सपाटे का मन करता है तो सरकारी बोट दिन में कई चक्कर यूं ही लगा देती है.

ऐसा नहीं है कि ये आदिवासी दुनिया में हो रही तरक्की से अनजान हैं. उनके बच्चे भी पढ़ना चाहते हैं मगर अपने घर के आसपास ही. आप समझ सकते हैं कि जब बड़े आदमी को राशन लाने में तीन-चार दिन लग जाते हैं तो बच्चे स्कूल तक कैसे पहुंचेंगे. स्थानीय लोग बताते हैं कि वह अक्सर शुक्रवार को राशन-पानी लेने निकलते हैं. जब वह सुबह घर से निकलते हैं तो शाम तक 10 किलोमीटर का सफर तय कर करैयार डैम तक पहुंचते हैं, फिर दो घंटे नाव चलाते हैं. इसके बाद वह चिन्ना मेलर में किसी परिचित के घर में रात बिताते हैं. खरीदारी करने के बाद फिर घर लौटने की तैयारी करते है. बाजार जाने में जितनी तकलीफ होती है, उतनी ही परिश्रम घर लौटने में भी दोबारा करना होता है. ऐसा वह न जाने कितने वर्षों से कर रहे हैं. अगर प्रशासन सुविधा नहीं देता है तो कबतक वह ऐसे ही दिक्कतों से जूझते रहेंगे, इसका जवाब फिलहाल किसी के पास नहीं है.

पढ़ें : Maharashtra: बेटी आने की खुशी में झूमा परिवार, हेलीकॉप्टर से 'लाडली' घर पहुंची, देखें वीडियो

तिरुनेलवेली: अनाज के लिए खतरों से खेलने की यह कहानी तमिलनाडु के शहर तिरुनेलवेली के करीब इंजिक्कुझी की है. यहां एक काणि ट्राइबल समूह करैयार डैम से 10 किलोमीटर दूर जंगली इलाके में रहता है. ये सभी राशन लेने के लिए तिरुनेलवेली ही आते हैं, मगर दस किलोमीटर की दूरी तय करने में उनके कई दिन खर्च हो जाते हैं. इन लोगों का कहना है कि उनकी सहायता के लिए सरकार ने वन विभाग को नाव दे रखी है, मगर अफसर डैम को पार कराने के लिए उनसे डीजल का खर्च मांगते हैं. ऐसे हालात में वह लड़की के खंभों से टेंपररी नाव बनाकर डैम को पार करते हैं. इन लोगों के पास एक भी ऐसा गैजेट नहीं है, जो डिजिटल इंडिया में पॉपुलर है.

काणि जनजाति के लोग इंजिक्कुझी में पिछले 100 साल से भी अधिक समय से रह रही है. इस ट्राइब के लोग मूल रूप से केले, मिर्च और अन्य कंदों खेती करते हैं. पिछली जनगणना के मुताबिक, इंजिक्कुझी में काणि जनजाति की आबादी 24 है और यहां इनके कुल 7 परिवार बसे हैं. जब आप इनकी मुश्किल जिंदगी के बारे में जानेंगे तो वह हैरान रह जाएंगे. इनका इलाका करैयार डैम से 10 किलोमीटर दूर जंगल में है, इसलिए जब वह नमक-तेल और राशन के लिए तिरूनेलवेली का जाते है तो सबसे पहले जंगली जानवरों से बचकर घने जंगल में 10 किलोमीटर पैदल चलते हैं. फिर उन्हें करैयार डैम में चार किलोमीटर का सफर करना होता है. इसे पार करने के लिए वह टेंपररी नाव बनाते हैं. नाव ऐसी कि कभी भी पलट जाए. खतरनाक यह है कि करैयार डैम में खतरनाक मगरमच्छ भी हैं, जो डूबने वाले को चट करने में टाइम नहीं लगाते. काणि आदिवासी समुदाय में भी राशन-पानी लाने की जिम्मेदारी पुरुषों की है इसलिए समुदाय के लोग सप्ताह में दो बार राशन लेने जाते हैं. यदि सभी मौसम साथ देता है तो वे दो या तीन दिनों में घर लौट जाते हैं. अगर रात में बारिश हो जाती है तो वह कई-कई दिनों तक करैयार डैम के पास मौसम साफ होने का इंतजार करते हैं.

तमिलनाडु इंजिक्कुझी के कणि ट्राइब.

हद तो यह है कि अगर उनके लिए दिए गए सरकारी नाव से सफर किया जाए तो 4 किलोमीटर की दूरी कुछ मिनटों में तय हो जाए. मगर उनकी नाव से इसे पार करने में कई घंटे लग जाते है. सरकार बोट को एक बार अप-डाउन करने के लिए दो लीटर डीजल की जरूरत होती है. काणि समुदाय के लोग बताते हैं कि वन विभाग के अफसर डैम पार कराने के लिए उनसे डीजल का खर्च मांगते हैं. मगर जब कभी किसी अधिकारी या वीआईपी को इंजिक्कुझी की जंगलों में सैर-सपाटे का मन करता है तो सरकारी बोट दिन में कई चक्कर यूं ही लगा देती है.

ऐसा नहीं है कि ये आदिवासी दुनिया में हो रही तरक्की से अनजान हैं. उनके बच्चे भी पढ़ना चाहते हैं मगर अपने घर के आसपास ही. आप समझ सकते हैं कि जब बड़े आदमी को राशन लाने में तीन-चार दिन लग जाते हैं तो बच्चे स्कूल तक कैसे पहुंचेंगे. स्थानीय लोग बताते हैं कि वह अक्सर शुक्रवार को राशन-पानी लेने निकलते हैं. जब वह सुबह घर से निकलते हैं तो शाम तक 10 किलोमीटर का सफर तय कर करैयार डैम तक पहुंचते हैं, फिर दो घंटे नाव चलाते हैं. इसके बाद वह चिन्ना मेलर में किसी परिचित के घर में रात बिताते हैं. खरीदारी करने के बाद फिर घर लौटने की तैयारी करते है. बाजार जाने में जितनी तकलीफ होती है, उतनी ही परिश्रम घर लौटने में भी दोबारा करना होता है. ऐसा वह न जाने कितने वर्षों से कर रहे हैं. अगर प्रशासन सुविधा नहीं देता है तो कबतक वह ऐसे ही दिक्कतों से जूझते रहेंगे, इसका जवाब फिलहाल किसी के पास नहीं है.

पढ़ें : Maharashtra: बेटी आने की खुशी में झूमा परिवार, हेलीकॉप्टर से 'लाडली' घर पहुंची, देखें वीडियो

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.