नई दिल्ली : सऊदी अरब और रूस दोनों ने इस साल के अंत तक तेल उत्पादन में कटौती जारी रखने का फैसला किया है. यह कटौती पहले से चली आ रही है, इसे इस साल के अंत तक के लिए बढ़ा दिया गया है. ऐसे में भारत जैसे देश के लिए मुश्किल स्थिति हो सकती है. वह भी तब जबकि अगले साल आम चुनाव होने हैं. वैसे, यह उम्मीद की जा रही थी कि सरकार रसोई गैस की कीमत में 200 रुपये प्रति सिलेंडर की कमी के बाद पेट्रोल और डीजल के दाम भी घटा सकती है.
सऊदी प्रेस एजेंसी ने मंगलवार को कहा कि ऑर्गेनाइजेशन ऑफ पेट्रोलियम एक्सपोर्टिंग कंट्रिज (ओपेक) दिसंबर के अंत तक एक मिलियन बैरल प्रतिदिन की कटौती जारी रखेगा. रूसी न्यूज एजेंसी तास ने रूस के उप प्रधानमंत्री का बयान प्रसारित किया है, जिसमें कहा गया है कि रूस इस साल के अंत तक तीन लाख बैरल प्रतिदिन की कटौती जारी रखेगा.
दोनों देशों के एक साथ घोषणा करते ही कच्चे तेल की कीमत 90 डॉलर प्रति बैरल हो गई. पिछले साल अक्टूबर से अब तक तेल की कीमत इतनी नहीं बढ़ी थी. यह पिछले एक साल से 75-85 डॉलर प्रति बैरल के आसपास घूम रही थी. वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट ने 87 डॉलर प्रति बैरल तक के भाव देखे.
रियाद ने जुलाई में एक मिलियन बैरल प्रति दिन कच्चे तेल का उत्पादन घटाने का निर्णय लिया. उसके बाद से एक-एक महीने कर इस कटौती की सीमा को बढ़ा रहा है. रूस के उप प्रधानमंत्री ने कहा कि ओपेक और अन्य तेल उत्पादक देशों ने तेल बाजार में कीमत पर नियंत्रण रखने के लिए यह फैसला किया है.
अब सवाल यह है कि क्या भारत सरकार इस कीमत को बर्दाश्त कर सकती है या नहीं. यह महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि अगले साल आम चुनाव होने हैं. ऐसे में सरकार ने कूकिंग गैस की कीमत तो कम कर दी, लेकिन कच्चे तेल की कीमत पर नियंत्रण नहीं लगा, तो फिर क्या होगा, कहना मुश्किल है.
योजना आयोग के पूर्व आर्थिक सलाहकार प्रणब सेन ने ईटीवी भारत से कहा कि यह एक राजनीतिक कॉल होगा. उन्होंने कहा कि सबकुछ सरकार पर निर्भर करता है, क्योंकि अधिकांश तेल कंपनियां सरकार के अधीन काम करती हैं, लिहाजा कीमत कटौती होती है, तो यह उस बर्डन के सह सकती हैं. सेन ने कहा कि तेल उत्पादन में कटौती की घोषणा पहली बार हो रही है, ऐसा नहीं है. इससे पहले भी ऐसी घोषणाएं हुई हैं और उस समय तेल की कीमत में इजाफा हो गया.
सेन ने कहा कि आमतौर पर रूस द्वारा कच्चे तेल के उत्पादन में कमी करने की वजह से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसका असर पड़ता है. लेकिन इस बार ऐसा नहीं होगा. उसकी वजह- यूक्रेन युद्ध की वजह से रूस पर पहले से लागू इंटरनेशनल इबार्गो है. हां, कीमत बढ़ेगी, लेकिन उतनी नहीं.
रूस पर प्रतिबंध लगे होने की वजह से भारत और अन्य देशों ने ऑयल के दूसरे स्रोतों पर काम करना शुरू कर दिया था. इस साल अगस्त में भारत द्वारा कच्चे तेल के आयात में रूस की भागीदारी 34 फीसदी थी. जुलाई महीने में 42 फीसदी तक भागीदारी थी. अगस्त महीने में रूस ने तेल की आपूर्ति 23 फीसदी तक कम कर दी थी. एनर्जी कार्गो ट्रैकर वरटेक्सा के अनुसार भारत ने पांच फीसदी तेल आयात कम किया था. इस समय यह 4.35 मिलियन बैरल प्रति दिन है. रिपोर्ट बताते हैं कि यह कटौती रूस द्वारा तेल निर्यात में कमी किए जाने की वजह से है, जिसने घरेलू मांग बढ़ने के कारण कम निर्यात करने का फैसला किया.
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