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युवाओं पर भारी पड़ रहा डिजिटल मीडिया

सोशल मीडिया का उपयोग तेजी से बढ़ रहा है. लोग सूचनाओं का आदान-प्रदान करने के लिए सोशल मीडिया पर निर्भर हो रहे हैं. दूसरी तरफ इन साइटों का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग होता है. विशेष रूप से किशोर और छोटे बच्चे इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स से जुड़ गए हैं. जिससे पढ़ने की आदत तेजी से गायब हो रही है.

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डिजिटल मीडिया
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Published : Dec 11, 2020, 10:29 AM IST

हैदराबाद: आज की दुनिया में सोशल मीडिया सूचनाओं के आदान-प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. इंस्टाग्राम और ट्विटर भावनाओं को साझा करने और आभासी दोस्तों के साथ रोजमर्रा की अद्यतन जानकारी साझा करने के लिए पसंदीदा साइट हो गई हैं. और तो और राजनीतिक दल और नागरिक संगठन लोगों को अपने पक्ष में करने के लिए ऑनलाइन अभियान चला रहे हैं.

सरकारों की ओर से सोशल मीडिया का उपयोग नागरिकों की शिकायतों को दूर करने और कल्याणकारी योजनाओं का कितना काम हुआ इस पर नजर रखने के लिए भी किया जा रहा है. दूसरी तरफ इन साइटों का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग होता है, जो अपने आप में इसका नकारात्मक पक्ष है. विशेष रूप से किशोर और छोटे बच्चे तो इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स से जुड़ गए हैं. कुछ साल पहले तक शैक्षणिक संस्थान अपने पाठ्यक्रम में पढ़ाई के अलावा अन्य गतिविधियों को शामिल करते थे. स्मार्टफोन के आने के बाद पढ़ने की आदत तेजी से गायब हो रही है. लोग बिना काम के ब्राउजिंग करने में समय बर्बाद करके खुश हैं. वॉट्सएप, यूट्यूब और फेसबुक ने हमारे जीवन को काबू में करना शुरू कर दिया है.

महामारी और लॉकडाउन सुनिश्चित करने के दौरान सोशल मीडिया के उपयोग में बढ़ोतरी हुई थी. ऑनलाइन कक्षाओं के लिए स्मार्टफोन अनिवार्य होने के बाद छात्रों में डिजिटल लत भी तेजी से बढ़ गई. अध्ययनों से पता चला है कि अश्लील (पोर्नोग्राफी) साइट्स देखने वालों की तादात चिंताजनक रूप से बढ़ गई.

विशेषज्ञों की चेतावनी है कि सोशल मीडिया के तेजी से फैलाव में जोखिम भी है. बहुत अधिक डिजिटल मौजूदगी से बच्चों की शारीरिक गतिविधियां प्रभावित हो रही हैं, जिसके परिणामस्वरूप पढ़ाई में खराब ग्रेड आ रहे हैं और बच्चे मोटापा के शिकार हो रहे हैं.

राजनीतिक दल और धार्मिक संगठन अपने ऑनलाइन अभियानों के माध्यम से युवाओं को प्रभावित कर रहे हैं. डिजिटल उपकरणों के आदी बच्चों में असहिष्णुता, अज्ञानता और अपमानजनक व्यवहार आम बात है. बहुत सारे लोगों के खिलाफ अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर आपत्तिजनक संदेश पोस्ट करने के लिए आईटी एक्ट 2000 की धारा 66 के तहत मामला दर्ज किया गया है. इन डिजिटल मंचों का बढ़ता उपयोग देश की आंतरिक सुरक्षा को चुनौती दे रहा है. इससे सामाजिक विवाद बढ़ रहा है.

मनोवैज्ञानिक इस बात से चिंतित हैं कि कम उम्र में डिजिटल मंचों के संपर्क बच्चों की मानसिक स्थिति को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकते हैं. बच्चों को बहुत अधिक मोबाइल फोन या टीवी के स्क्रीन पर नजर गड़ाए रखने को लेकर माता-पिता के डांटने पर कुछ बच्चों की ओर से हिंसक प्रतिक्रिया व्यक्त करना असामान्य नहीं है. वास्तव में ऐसे उदाहरण सामने आए हैं, जिनमें बच्चों ने स्मार्टफोन से जुड़े विवादों पर परिवार के सदस्यों को मार डाला और खुद आत्महत्या कर ली.

डिजिटल के अधिकांश शिकार बच्चे और नवयुवक हैं. इससे निकट भविष्य में पारिवारिक संबंधों और नैतिक मूल्यों में बिखराव का खतरा है. इसलिए सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं पर नजर रखने के लिए सरकारों को तत्काल कार्रवाई करने की जरूरत है. आज की प्रतिस्पर्धात्मक दुनिया में आवश्यकता के बावजूद डिजिटल उपकरणों का उपयोग बहुत संयम के साथ जाना चाहिए.

पढ़ें- जानें फर्जी समाचारों से निपटने के लिए किस देश ने क्या उपाय अपनाए

मद्रास उच्च न्यायालय ने पहले केंद्र और राज्य सरकारों को सोशल मीडिया पर पोस्ट किए गए वीडियो को सेंसर करने के लिए एक विशेष बोर्ड स्थापित करने का निर्देश दिया था. अपने बच्चों को कम उम्र से ही अच्छा व्यवहार सिखाना माता-पिता की प्राथमिक जिम्मेदारी है. आत्म संयम बरते और मानसिक रूप से स्वस्थ बने रहना हर व्यक्ति पर निर्भर है.

शिक्षकों और समाज को हर हाल में बच्चों को सही दिशा में मार्गदर्शन करने में अहम भूमिका निभानी चाहिए. स्कूलों को छात्रों में पढ़ने की आदत को प्रोत्साहन देना चाहिए. युवाओं को भावनात्मक संतुलन रखना सिखाया जाना चाहिए और सोशल मीडिया के अलावा उन्हें सामुदायिक सेवा और जन जागरूकता अभियानों में भाग लेना चाहिए. आसन्न डिजिटल खतरों को रोकने के लिए सभी स्कूलों और कॉलेजों में इस तरह की पहल की जानी चाहिए.

हैदराबाद: आज की दुनिया में सोशल मीडिया सूचनाओं के आदान-प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. इंस्टाग्राम और ट्विटर भावनाओं को साझा करने और आभासी दोस्तों के साथ रोजमर्रा की अद्यतन जानकारी साझा करने के लिए पसंदीदा साइट हो गई हैं. और तो और राजनीतिक दल और नागरिक संगठन लोगों को अपने पक्ष में करने के लिए ऑनलाइन अभियान चला रहे हैं.

सरकारों की ओर से सोशल मीडिया का उपयोग नागरिकों की शिकायतों को दूर करने और कल्याणकारी योजनाओं का कितना काम हुआ इस पर नजर रखने के लिए भी किया जा रहा है. दूसरी तरफ इन साइटों का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग होता है, जो अपने आप में इसका नकारात्मक पक्ष है. विशेष रूप से किशोर और छोटे बच्चे तो इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स से जुड़ गए हैं. कुछ साल पहले तक शैक्षणिक संस्थान अपने पाठ्यक्रम में पढ़ाई के अलावा अन्य गतिविधियों को शामिल करते थे. स्मार्टफोन के आने के बाद पढ़ने की आदत तेजी से गायब हो रही है. लोग बिना काम के ब्राउजिंग करने में समय बर्बाद करके खुश हैं. वॉट्सएप, यूट्यूब और फेसबुक ने हमारे जीवन को काबू में करना शुरू कर दिया है.

महामारी और लॉकडाउन सुनिश्चित करने के दौरान सोशल मीडिया के उपयोग में बढ़ोतरी हुई थी. ऑनलाइन कक्षाओं के लिए स्मार्टफोन अनिवार्य होने के बाद छात्रों में डिजिटल लत भी तेजी से बढ़ गई. अध्ययनों से पता चला है कि अश्लील (पोर्नोग्राफी) साइट्स देखने वालों की तादात चिंताजनक रूप से बढ़ गई.

विशेषज्ञों की चेतावनी है कि सोशल मीडिया के तेजी से फैलाव में जोखिम भी है. बहुत अधिक डिजिटल मौजूदगी से बच्चों की शारीरिक गतिविधियां प्रभावित हो रही हैं, जिसके परिणामस्वरूप पढ़ाई में खराब ग्रेड आ रहे हैं और बच्चे मोटापा के शिकार हो रहे हैं.

राजनीतिक दल और धार्मिक संगठन अपने ऑनलाइन अभियानों के माध्यम से युवाओं को प्रभावित कर रहे हैं. डिजिटल उपकरणों के आदी बच्चों में असहिष्णुता, अज्ञानता और अपमानजनक व्यवहार आम बात है. बहुत सारे लोगों के खिलाफ अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर आपत्तिजनक संदेश पोस्ट करने के लिए आईटी एक्ट 2000 की धारा 66 के तहत मामला दर्ज किया गया है. इन डिजिटल मंचों का बढ़ता उपयोग देश की आंतरिक सुरक्षा को चुनौती दे रहा है. इससे सामाजिक विवाद बढ़ रहा है.

मनोवैज्ञानिक इस बात से चिंतित हैं कि कम उम्र में डिजिटल मंचों के संपर्क बच्चों की मानसिक स्थिति को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकते हैं. बच्चों को बहुत अधिक मोबाइल फोन या टीवी के स्क्रीन पर नजर गड़ाए रखने को लेकर माता-पिता के डांटने पर कुछ बच्चों की ओर से हिंसक प्रतिक्रिया व्यक्त करना असामान्य नहीं है. वास्तव में ऐसे उदाहरण सामने आए हैं, जिनमें बच्चों ने स्मार्टफोन से जुड़े विवादों पर परिवार के सदस्यों को मार डाला और खुद आत्महत्या कर ली.

डिजिटल के अधिकांश शिकार बच्चे और नवयुवक हैं. इससे निकट भविष्य में पारिवारिक संबंधों और नैतिक मूल्यों में बिखराव का खतरा है. इसलिए सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं पर नजर रखने के लिए सरकारों को तत्काल कार्रवाई करने की जरूरत है. आज की प्रतिस्पर्धात्मक दुनिया में आवश्यकता के बावजूद डिजिटल उपकरणों का उपयोग बहुत संयम के साथ जाना चाहिए.

पढ़ें- जानें फर्जी समाचारों से निपटने के लिए किस देश ने क्या उपाय अपनाए

मद्रास उच्च न्यायालय ने पहले केंद्र और राज्य सरकारों को सोशल मीडिया पर पोस्ट किए गए वीडियो को सेंसर करने के लिए एक विशेष बोर्ड स्थापित करने का निर्देश दिया था. अपने बच्चों को कम उम्र से ही अच्छा व्यवहार सिखाना माता-पिता की प्राथमिक जिम्मेदारी है. आत्म संयम बरते और मानसिक रूप से स्वस्थ बने रहना हर व्यक्ति पर निर्भर है.

शिक्षकों और समाज को हर हाल में बच्चों को सही दिशा में मार्गदर्शन करने में अहम भूमिका निभानी चाहिए. स्कूलों को छात्रों में पढ़ने की आदत को प्रोत्साहन देना चाहिए. युवाओं को भावनात्मक संतुलन रखना सिखाया जाना चाहिए और सोशल मीडिया के अलावा उन्हें सामुदायिक सेवा और जन जागरूकता अभियानों में भाग लेना चाहिए. आसन्न डिजिटल खतरों को रोकने के लिए सभी स्कूलों और कॉलेजों में इस तरह की पहल की जानी चाहिए.

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