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कामयाबी : आईआईटी इंदौर ने कम खर्च में ईजाद की ब्लड कैंसर की नई दवा

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Published : Mar 27, 2021, 10:43 PM IST

मध्य प्रदेश के इंदौर में स्थित आईआईटी ने एक नया ड्रग एस्पराजिनेस एम एस्पार तैयार किया है. यह दवा मौजूदा दवा के मुकाबले कम खर्च में बिना साइड इफेक्ट के रक्त कैंसर से लड़ने में मदद करेगी.

IIT Indore
IIT Indore

इंदौर : भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) इंदौर ने एक्यूट लिंफोब्लास्टिक ल्यूकेमिया (एएलएल) के उपचार के लिए प्रोटीन इंजीनियरिंग दृष्टिकोण का उपयोग करते हुए एक नया ड्रग एस्पराजिनेस एम एस्पार तैयार किया है. यह दवा मौजूदा दवा के मुकाबले कम खर्च में बिना साइड इफेक्ट के रक्त कैंसर से लड़ने में मदद करेगी.

आईआईटी इंदौर द्वारा 12 वर्षों से लगातार रिसर्च कर ल्यूकेमिया ब्लड कैंसर के लिए दवा तैयार करने का प्रयास किया जा रहा था. ल्यूकेमिया एक तरह का ब्लड कैंसर है, जिसके पीड़ितों में बच्चों की संख्या एक चौथाई होती है. भारत में हर साल लगभग 25,000 नए मामले पाए जाते हैं. सभी रोगियों को उपचार के लिए वर्तमान में एस्परजाइनेस का बार-बार उपयोग करना गंभीर दुष्प्रभाव का कारण बनता है. जैसे एलर्जी न्यूरोटाक्सीसिटी इसके प्रभाव होते हैं, लेकिन इस दवा के माध्यम से किसी भी तरह के साइड इफेक्ट नहीं होंगे.

दोबारा बीमारी की चपेट में आने वालों के लिए कारगर
आईआईटी द्वारा तैयार किए गए ड्रग के माध्यम से ज्यादा बीमारी को ठीक करने में फायदा होगा. वहीं सबसे अधिक इसका फायदा बीमारी से ठीक होकर पुनः बीमारी की चपेट में आने वाले लोगों को भी होगा. वर्तमान में जिन ड्रग का प्रयोग किया जाता है, उनसे मानव अंग पर काफी प्रभाव पड़ता है और पुनः बीमारी की चपेट में आने पर वर्तमान ड्रग का अत्यंत बुरा प्रभाव पड़ता है. ऐसे में इस दवा से काफी हद तक फायदा होगा.

जल्द होगा दवा का ट्रायल
आईआईटी इंदौर ने मुंबई स्थित टाटा मेमोरियल सेंटर एडवांस्ड सेंटर फॉर ट्रीटमेंट रिसर्च एंड एजुकेशन इन कैंसर और एक बायोटेक कंपनी के साथ अनुबंध किया है. ड्रग का क्लीनिकल ट्रायल यहीं पर होगा. जल्द ही पहले दौर में करीब 25 लोगों पर इस ड्रग का ट्रायल किया जाएगा. जिसके माध्यम से दवाई की सुरक्षा सहनशीलता आदि की जांच की जाएगी.

आईआईटी इंदौर के कार्यवाहक निदेशक प्रोफेसर निलेश कुमार जैन ने कहा कि अनुसंधान हमेशा से आईआईटी जैसे संस्थानों का मुख्य काम रहा है. मानव स्वास्थ्य के क्षेत्र में इस तरह का विकास महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह दुष्प्रभाव में महत्वपूर्ण कमी लाएगा और उपचार की लागत को कम करेगा. जब तक हम तार्किक निष्कर्ष पर नहीं पहुंचते, संस्थान चरण एक और चरण दो परीक्षणों पर काम करता रहेगा.

इंदौर : भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) इंदौर ने एक्यूट लिंफोब्लास्टिक ल्यूकेमिया (एएलएल) के उपचार के लिए प्रोटीन इंजीनियरिंग दृष्टिकोण का उपयोग करते हुए एक नया ड्रग एस्पराजिनेस एम एस्पार तैयार किया है. यह दवा मौजूदा दवा के मुकाबले कम खर्च में बिना साइड इफेक्ट के रक्त कैंसर से लड़ने में मदद करेगी.

आईआईटी इंदौर द्वारा 12 वर्षों से लगातार रिसर्च कर ल्यूकेमिया ब्लड कैंसर के लिए दवा तैयार करने का प्रयास किया जा रहा था. ल्यूकेमिया एक तरह का ब्लड कैंसर है, जिसके पीड़ितों में बच्चों की संख्या एक चौथाई होती है. भारत में हर साल लगभग 25,000 नए मामले पाए जाते हैं. सभी रोगियों को उपचार के लिए वर्तमान में एस्परजाइनेस का बार-बार उपयोग करना गंभीर दुष्प्रभाव का कारण बनता है. जैसे एलर्जी न्यूरोटाक्सीसिटी इसके प्रभाव होते हैं, लेकिन इस दवा के माध्यम से किसी भी तरह के साइड इफेक्ट नहीं होंगे.

दोबारा बीमारी की चपेट में आने वालों के लिए कारगर
आईआईटी द्वारा तैयार किए गए ड्रग के माध्यम से ज्यादा बीमारी को ठीक करने में फायदा होगा. वहीं सबसे अधिक इसका फायदा बीमारी से ठीक होकर पुनः बीमारी की चपेट में आने वाले लोगों को भी होगा. वर्तमान में जिन ड्रग का प्रयोग किया जाता है, उनसे मानव अंग पर काफी प्रभाव पड़ता है और पुनः बीमारी की चपेट में आने पर वर्तमान ड्रग का अत्यंत बुरा प्रभाव पड़ता है. ऐसे में इस दवा से काफी हद तक फायदा होगा.

जल्द होगा दवा का ट्रायल
आईआईटी इंदौर ने मुंबई स्थित टाटा मेमोरियल सेंटर एडवांस्ड सेंटर फॉर ट्रीटमेंट रिसर्च एंड एजुकेशन इन कैंसर और एक बायोटेक कंपनी के साथ अनुबंध किया है. ड्रग का क्लीनिकल ट्रायल यहीं पर होगा. जल्द ही पहले दौर में करीब 25 लोगों पर इस ड्रग का ट्रायल किया जाएगा. जिसके माध्यम से दवाई की सुरक्षा सहनशीलता आदि की जांच की जाएगी.

आईआईटी इंदौर के कार्यवाहक निदेशक प्रोफेसर निलेश कुमार जैन ने कहा कि अनुसंधान हमेशा से आईआईटी जैसे संस्थानों का मुख्य काम रहा है. मानव स्वास्थ्य के क्षेत्र में इस तरह का विकास महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह दुष्प्रभाव में महत्वपूर्ण कमी लाएगा और उपचार की लागत को कम करेगा. जब तक हम तार्किक निष्कर्ष पर नहीं पहुंचते, संस्थान चरण एक और चरण दो परीक्षणों पर काम करता रहेगा.

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