नई दिल्ली: ऐसे समय में जब भारत कोविड-19 महामारी की तीसरी संभावित लहर (third wave of Covid19 pandemic) की आशंका जता रहा है. इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी (Institute of Genomics and Integrative Biology ) ने गुरुवार को आगाह किया कि अधिक घातक वायरस वेरिएंट वैक्सीन की प्रभावशीलता से बच सकते हैं. इसलिए घातक वायरस से बचने के लिए गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य उपाय की जरूरत है.
सीएसआईआर-इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी (IGIB) के निदेशक डॉ. अनुराग अग्रवाल (Dr Anurag Agarwal) ने 'ईटीवी भारत' से एक विशेष साक्षात्कार में कहा कि हो सकता है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य उपायों (public health measures) और टीकाकरण (vaccination) के साथ तीसरी लहर गंभीर होने की संभावना नहीं है. हालांकि तैयारी करते समय हमें सभी संभावनाओं को ध्यान में रखना होगा. ज्यादा घातक वेरिएंट भी सामने आ सकते हैं, जो टीकों से बच सकते हैं. यदि इस तरह का कोई संस्करण उत्पन्न होता है तो लहर घातक हो सकती है.
भारतीय SARS-Cov-2 जीनोमिक कंसोर्टियम (INSACOG) का जिक्र करते हुए, डॉ. अग्रवाल ने कहा कि कंसोर्टियम का उद्देश्य ऐसे वेरिएंट की जल्द से जल्द पहचान करना है, ताकि यह स्थिति उत्पन्न न हो.
उन्होंने कहा कि चल रही योजना और जन जागरूकता के साथ- अगली लहर उतनी घातक नहीं होनी चाहिए. अगर हमने ऐसा नहीं किया, तो यह खतरनाक हो सकती है.
'वेरिएंट के खिलाफ काम कर रहे टीके'
IGIB के वरिष्ठ वैज्ञानिक को विश्वास है कि मौजूदा भारतीय टीके SARS-CoV-2 वायरस के पहले से ही पाए गए विभिन्न रूपों के खिलाफ काम कर रहे हैं और यह आने वाले दिनों में भी काम करते रहेंगें.
डॉ. अग्रवाल ने कहा टीके मौजूदा वेरिएंट, विशेष रूप से डेल्टा वेरिएंट (Delta variant) के खिलाफ काम करते हैं. अगली लहर को विभिन्न कारकों के लिए तीसरी लहर कहा जाएगा और हमें किसी भी संभावित लहर से लड़ने के लिए और अधिक सार्वजनिक स्वास्थ्य उपायों को अपनाने की जरूरत है.
उन्होंने कहा कि कोवैक्सीन और कोविशील्ड के टीके गंभीर बीमारी से बचाते हैं. डॉ. अग्रवाल ने कहा कि कोरोना के नए वेरिएंट के मद्देनजर मौजूदा टीकों पर शोध जारी रहना चाहिए.
अग्रवाल का बयान इसलिए बहुत ज्यादा मायने रखता है क्योंकि भारत में ये आशंका और डर है कि कोरोना की संभावित तीसरी लहर में ये टीके अच्छी तरह से प्रभावी नहीं होंगे.
प्रयोगशालाओं की संख्या बढ़ाई
कोरोना की संभावित तीसरी लहर में SARS-CoV-2 वायरस के विभिन्न स्वरूपों से लड़ने में जीनोमिक अनुक्रमण प्रयोगशालाओं की भूमिका के योगदान को भांपते हुए स्वास्थ्य मंत्रालय ने इनकी संख्या 10 से बढ़ाकर 28 कर दी है.
स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि प्रयोगशालाएं वैज्ञानिकों को वायरस के वेरियंट (various variants), विशेष रूप से चिंता के प्रकार (वीओसी) का पता लगाने में मदद करेंगी. यहां यह उल्लेखनीय है कि भारतीय Sars-Cov-2 जीनोमिक कंसोर्टियम (INSACOG) लैब की संख्या 28 हो चुकी है जनवरी में जिनकी संख्या 10 थी.
30 हजार सैंपल की जांच
INSACOG प्रयोगशालाएं देश में प्रचलित Sars-Cov-2 वेरिएंट के म्यूटेशन के प्रसार को समझने के लिए राज्यों और अंतरराष्ट्रीय यात्रियों के नमूनों की जांच करती हैं. अब तक INSACOG के तहत 10 राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं ने 30,000 नमूनों की जांच की है.
कोरोना के विभिन्न प्रकारों की पहचान को आसान बनाने के प्रयास में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने हाल ही में वेरिएंट को उनके नामों से मान्यता दी है. नई रणनीति के तहत ब्रिटेन में पहले पहचाने गए संस्करण B.1.1.7 को अब अल्फा के रूप में जाना जाता है और दक्षिण अफ्रीका में मिला संस्करण बी 1.351 अब बीटा के रूप में जाना जाता है.
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ब्राजील में पहली बार पाए गए संस्करण P.1 को गामा और B.1.617.2 के रूप में जाना जाता है. भारत में पहली बार पाए गए संस्करण को डेल्टा के रूप में जाना जाता है, जबकि देश में हाल ही में पाए गए संस्करण को कप्पा के नाम से जाना जाता है. वास्तव में दूसरी लहर में Covid19 मामलों में भारत के स्पाइक के पीछे डेल्टा संस्करण प्रमुख कारण था.