देहरादून : उत्तराखंड में मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत और पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी की कुर्सी खतरे में है. इन दोनों को मुख्यमंत्री बने रहने के लिए जल्द ही विधानसभा चुनाव लड़ना होगा. क्योंकि मुख्यमंत्री बनने के बाद दोनों को छह महीने के अंदर विधानसभा का सदस्य बनना होगा नहीं तो इनकी कुर्सी जा सकती है, लेकिन दोनों के सामने मुश्किल ये है कि कोरोना की हालात को देखते हुए भारत निर्वाचन आयोग फिलहाल उपचुनाव के पक्ष में नजर नहीं आ रहा है. ऐसे में तीरथ सिंह रावत और ममता बनर्जी को मुख्यमंत्री पद से हाथ धोना पड़ सकता है.
उत्तराखंड की पौड़ी गढ़वाल सीट से सांसद तीरथ सिंह रावत को बीती नौ मार्च को मुख्यमंत्री बनाया गया था. तब तय किया गया था कि छह महीने के अंदर मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को उप चुनाव लड़ाकर विधानसभा का सदस्य बनाया जाएगा. हालांकि, अभी इसमें समय है. मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को 10 सितंबर तक विधानसभा की सदस्यता ग्रहण करनी है, लेकिन वर्तमान परिस्थितियों में ये थोड़ा मुश्किल लग रहा है.
प्रदेश में विधानसभा की दो सीटें खाली
उत्तराखंड में इस समय विधानसभा की दो सीटें खाली पड़ी हैं. पहली गंगोत्री विधानसभा सीट जो 23 अप्रैल को भाजपा विधायक गोपाल रावत के निधन के बाद खाली हुई थी, दूसरी हल्द्वानी विधानसभा सीट जो 13 जून का नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश के निधन खाली हुई है. लेकिन मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत के सामने चुनौती ये है कि उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में एक साल से भी कम समय बचा है, ऐसे में जो दो सीटें खाली हैं, उन पर भी उपचुनान होना कठिन है. ऐसे में मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत का भविष्य अधर में लटका हुआ है.
खतरे में मुख्यमंत्री तीरथ की कुर्सी
नियमानुसार मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को 10 सितंबर तक विधानसभा की सदस्यता लेनी है. यदि ऐसा नहीं होता है तो राज्य में मात्र दो विकल्प ही बचेंगे. पहला या तो राज्य में एक बार फिर नेतृत्व परिवर्तन कर दिया जाए या फिर राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाए.
उपचुनाव को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं
पांच मई को भारत निर्वाचन आयोग की ओर से जारी की गई प्रेस विज्ञप्ति में इस बात का जिक्र किया गया कि कोरोना महामारी के चलते अभी उपचुनाव नहीं कराया जा सकते हैं. ऐसे में उपचुनावों के ऊपर संकट के बादल मंडरा रहे हैं. ऐसे में उत्तराखंड व पश्चिम बंगाल दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों के माथे पर चिंता की लकीर साफ देखी जा सकती है. हालांकि पहले मुख्य निर्वाचन आयुक्त सुशील चन्द्रा ने दावा किया था कि आयोग का कोरोना महामारी के दौरान चुनाव कराने का अनुभव है. ऐसे में उसे साल 2022 में देश के कई राज्यों (पंजाब, उत्तराखंड, गोवा, उत्तर प्रदेश, हिमाचल और मणिपुर) में विधानसभा चुनाव कराने में कोई दिक्क्त नहीं होगी. लेकिन प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार उपचुनाव कराने में अब इस संकट काल का जिक्र किया जा रहा है, जिसके कई मायने निकाले जा रहे हैं.
क्या कहते हैं जानकार?
उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत की मानें तो उत्तराखंड में जो हालात बन रहे हैं उनके लिहाज से नेतृत्व परिवर्तन ही विकल्प है. लेकिन यदि राज्य में नेतृत्व परिवर्तन नहीं होता है तो आने वाले समय में राजनीतिक अस्थिरता खड़ी हो सकती है. हालांकि बंगाल में थोड़ी स्थिति अलग है. वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत ने बताया कि ममता के लिए आगामी चार नवम्बर तक उपचुनाव जीतना अत्यन्त आवश्यक है. उपचुनाव भी तभी होंगे जब निर्वाचन आयोग चाहेगा.
उन्होंने बताया कि लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 151(क) के अन्तर्गत भारत निर्वाचन आयोग को राज्य सभा, लोक सभा और राज्यों की विधानसभाओं की किसी भी सीट के खाली होने पर 6 माह की अवधि के अंदर उपचुनाव कराने होते हैं. लेकिन इसी धारा की उपधारा में यह भी स्पष्ट किया गया है कि, परन्तु इस धारा की कोई बात उस दशा में लागू नहीं होगी, जिसमें (अ) किसी रिक्ति से सम्बंधित सदस्य की पदावधि का शेष भाग एक वर्ष से कम है या (ब) निर्वाचन आयोग केन्द्रीय सरकार से परामर्श करके, यह प्रमाणित करता है कि उक्त अवधि के भीतर ऐसा उप निर्वाचन करना कठिन है. यह प्रमाणित करता है कि उक्त अवधि के भीतर ऐसा उप निर्वाचन करना कठिन है.
ममता के पास विकल्प, तीरथ के पास नहीं
इन प्रावधानों पर गौर करें तो ममता बनर्जी और तीरथ सिंह रावत के लिए कुर्सी पर टिके रहना आसान नजर नहीं आ रहा है. हालांकि, ममता के पास अपने विधिवत निर्वाचन तक अपने किसी विश्वस्त को मुख्यमंत्री बनाने का विकल्प खुला है और जब प्रदेश में उपचुनाव होंगे तो चुनाव जीतकर विधानसभा की सदस्य बन सकती हैं, लेकिन उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत के पास ऐसा फिलहाल कोई विकल्प नहीं है. क्योंकि राज्य में यदि उपचुनाव नहीं होंगे तो बीजेपी को एक बार फिर से नेतृत्व परिवर्तन करना होगा या राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाए.
गैर विधानसभा सदस्य दो बार नहीं बन सकता है मंत्री
वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत ने बताया कि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के पास अब बिना चुनाव जीते दोबारा मुख्यमंत्री बनने का विकल्प नहीं है. क्योंकि एसआर चौधरी बनाम पंजाब राज्य समेत अन्य मामलों में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एएस आनन्द की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ ने 17 अगस्त 2001 को दिए फैसले में स्पष्ट किया कि विधानसभा के एक ही कार्यकाल में किसी गैर विधायक को दूसरी बार 6 माह तक के लिए मंत्री नियुक्त नहीं किया जा सकता.
साथ ही जय सिंह रावत ने बताया कि उस समय तेज प्रकाश सिंह को राजिन्दर कौर भट्ठल ने बिना चुनाव जीते मंत्री बना दिया था. इससे पहले जगन्नाथ मिश्र बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के मामले में भी लगभग ऐसा ही फैसला आया था. यही नहीं कपूर बनाम तमिलनाडु राज्य मामले में स्पष्ट हुआ था कि अगर कोई व्यक्ति चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित हो चुका हो तो उसे भी मंत्री या मुख्यमंत्री नियुक्त नहीं किया जा सकता. इसीलिए जयललिता पुनः मुख्यमंत्री नहीं बन सकी थीं.
6 महीन के अंदर लेनी होगी विधानसभा की सदस्यता
संविधान के अनुच्छेद 164 (4) के प्रावधानों का लाभ उठाते हुए ममता बनर्जी और तीरथ सिंह रावत बिना विधानसभा सदस्यता के ही मुख्यमंत्री तो बन गए, लेकिन संविधान के अनुच्छेद 164 (4) की उपधारा में यह प्रावधान है कि मुख्यमंत्री बनने के 6 महीने के भीतर विधानसभा की सदस्यता लेनी होगी. यानी 6 महीने के भीतर उपचुनाव जीतना होगा तभी वह मुख्यमंत्री पद पर बने रहेंगे. अगर वह 6 महीने के भीतर विधायिका की सदस्यता ग्रहण नहीं कर पाते हैं तो उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना होगा. हालांकि, इसी तरह का प्रावधान केंद्रीय मंत्रिमंडल के लिए भी है जिसके लिए संविधान के अनुच्छेद 75 (5) में इसका प्रावधान किया गया है.
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