नई दिल्ली: ड्रोन तकनीक दुर्लभ तस्वीरें लेने के अलावा अन्य क्षेत्रों में भी कारगर साबित होने लगी है. इसका इस्तेमाल स्वास्थ्य के क्षेत्र में करके दुर्गम क्षेत्रों में चिकित्सा सेवाएं उपलब्ध कराने पर भी सरकार जोर दे रही है. इसी कड़ी में बुधवार को ग्रेटर नोएडा स्थित जेआईआईटी से ड्रोन को ब्लड बैग के साथ उड़ाया गया. ड्रोन करीब 35 किलोमीटर की दूरी तय करके दिल्ली तक आया. फिर वापस ग्रेटर नोएडा पहुंचा. इस दौरान ब्लड बैग के साथ उड़ते हुए ड्रोन का एक 30 सेकंड का वीडियो भी सामने आया है.
पिछले साल से रिसर्च कर रहा ICMR: बताया जा रहा है कि अब विकल्प तलाशा जा रहा है कि क्या ड्रोन का इस्तेमाल ब्लड पहुंचाने में भी किया जा सकता है. इसके लिए आईसीएमआर यह शोध करा रहा है. पिछले साल इस शोध परियोजना की परिकल्पना की गई थी. आइसीएमआर ने आइआइटी दिल्ली से एक ड्रोन तैयार कराया है. बीते 15 अप्रैल को इसका ट्रायल शुरू किया गया.
आईसीएमआर, लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज और जिम्स नोएडा मिलकर यह अध्ययन कर रहे हैं. ब्लड में अलग-अलग चार कंपोनेंट होते हैं, जिसमें प्लाज्मा, प्लेट्लेट्स, व्हाइट ब्लड सेल व रेड ब्लड सेल शामिल हैं. इन चारों कंपोनेंट को माइनस चार डिग्री से लेकर माइनस 40 डिग्री पर अलग-अलग तापमान पर रखा जाता है. इसलिए यह शोध किया जा रहा है कि क्या ड्रोन से दूसरी जगह ब्लड भेजने पर उसकी गुणवत्ता में कोई बदलाव होता है या नहीं?
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#WATCH | Delhi: In a first in India, validation of blood bags delivered by drones compared to the conventional method of transportation was done today. pic.twitter.com/0oBVlEyhhW
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नोएडा से उड़ता है ड्रोनः लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज नो फ्लाईंग जोन में है. जिम्स के पास भी ड्रोन उड़ाने की स्वीकृति नहीं है. इसलिए ड्रोन उड़ाने के लिए नोएडा के जेआईआईटी की साइट और लाजिस्टिक का इस्तेमाल किया जा रहा है. लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज से वैन के जरिए ब्लड जेआईआईटी भेजा जाता है. वहां उसके 400 मीटर के दायरे में आधे घंटे तक ड्रोन को ब्लड के साथ उड़ाया जाता है. उसी दौरान निर्धारित दूरी तक वैन से भी ब्लड भेजा जाता है.
120 यूनिट ब्लड कंपोनेंट पर होगा परीक्षणः जानकारी के अनुसार, ब्लड को ड्रोन व वैन से भेजने से पहले और पहुंचने के बाद उसकी गुणवत्ता जांच की जाती है. ब्लड के हर कंपोनेंट के 30-30 यूनिट का गुणवत्ता परीक्षण किया जाएगा. इस तरह कुल 120 यूनिट ब्लड कंपोनेंट पर यह परीक्षण किया जाएगा. अब तक ब्लड के अलग-अलग 15 यूनिट कंपोनेंट का परीक्षण किया जा चुका है. इस शोध परियोजना की प्रमुख जांचकर्ता लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज के पैथोलाजी विभाग की निदेशक प्रोफेसर डॉ. अनिता नांगिया हैं.