पटना: नीतीश कुमार पिछले 17-18 सालों से जदयू को राष्ट्रीय पार्टी बनाने का सपना देख रहे हैं. इस बार मध्य प्रदेश में भी अपने उम्मीदवारों को चुनाव लड़ाया था लेकिन यहां भी उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई. राष्ट्रीय पार्टी बनाने का जदयू का सपना एक बार फिर से चकनाचूर हो गया है.
MP में JDU उम्मीदवारों की जमानत जब्त: राजनीति के जानकार बताते हैं कि जदयू बिहार के अलावा कहीं भी मजबूत स्थिति में नहीं है और इस हार से उसकी स्थिति और कमजोर हुई है. वहीं बीजेपी कह रही है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह को तुरंत इस्तीफा दे देना चाहिए. लेकिन जदयू का कहना है कि हम तो संगठन विस्तार के लिए चुनाव लड़ रहे हैं. जीत हार तो चुनाव में लगा रहता है. राजनीतिक जानकार तो यह भी कहते हैं मध्य प्रदेश में प्रदर्शन से इंडिया गठबंधन में भी नीतीश कुमार की दावेदारी कमजोर हुई है.
नहीं चला नीतीश कुमार के चेहरे का जादू: नीतीश कुमार पिछले कई सालों से जदयू को राष्ट्रीय पार्टी बनाने का सपना देख रहे हैं और इस बार इसकी जिम्मेदारी ललन सिंह को दी थी. ललन सिंह पिछले 2 साल से पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. आरपी सिंह के केंद्रीय मंत्री बनने के बाद ही उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया था, लेकिन अभी मध्य प्रदेश चुनाव में जदयू ने जो उम्मीदवार उतारे थे सभी की जमानत जब्त हो गई और शर्मनाक हार हुई है.
सभी प्रत्याशियों की हार: जदयू ने 10 उम्मीदवारों की घोषणा की थी. पांच-पांच उम्मीदवारों की दो बार सूची जारी की थी. हालांकि एक उम्मीदवार ने अपना नामांकन वापस ले लिया लेकिन बचे 9 उम्मीदवारों में से किसी की जमानत नहीं बची और कई उम्मीदवारों को तो 100 से भी कम वोट मिले.
उम्मीदवारों को मिले 21, 25, 26, 45, 71 वोट: राजनगर से रामकुंवर रायकावर ने चुनाव लड़ा और 472 वोट मिले. विजय राघवगढ़ से शिवरीनारायण सोनी ने चुनाव लड़ा. इन्हें 21 वोट मिले. थांदला से तोल सिंह भूरिया ने चुनाव लड़ा और 1445 वोट मिले. पटियालाबाद से रामेश्वर सिंह ने चुनाव लड़ा और इन्हें 472 वोट मिले. गोटेगांव से प्रमोद कुमार मेहरा ने चुनाव लड़ा यहां इन्हें 242 वोट पड़े और बहोरीबंद से पंकज मौर्या ने चुनाव लड़ा और इन्हें केवल 71 वोट मिले. जबलपुर उत्तर से संजय जैन ने चुनाव लड़ा यहां इन्हें 161 वोट मिला.
नेशनल पार्टी बनने का सपना चकनाचूर: बालाघाट से विजय कुमार पटेल ने चुनाव लड़ा और इन्हें 26 वोट मिले.जदयू के उम्मीदवारों से अधिक लोगों ने नोटा का बटन दबाया है. जदयू के कुल वोटो की बात करें 0. 02% वोट मिला है जबकि इन सीटों पर नोटा 1% डाला गया है. ऐसे तो जदयू ने दिल्ली, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, गुजरात, झारखंड, मध्य प्रदेश और नॉर्थ ईस्ट के राज्यों में चुनाव लड़ा है और अधिकांश जगह इसी उम्मीद से चुनाव लड़ती है कि पार्टी को इतनी सीट और वोट आ जाएगा कि राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिल जाएगा लेकिन ऐसा अभी तक हुआ नहीं है.
नोटा से भी कम वोट मिले: एमपी में इससे पहले 2003 में भी जदयू ने अपना उम्मीदवार उतारा था. 2003 में 36 उम्मीदवार को चुनाव लगाया था. इसमें से 33 की जमानत जब्त हो गई थी. केवल बरवाड़ा से सरोज बच्चन नायक चुनाव जीते थे. इसके बाद 2008 में भी जदयू के तरफ से 49 उम्मीदवार मध्य प्रदेश में लड़ाए गए और किसी की जमानत नहीं बची. फिर 2013 में जदयू ने 22 उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतरे थे और केवल एक की जमानत बची थी. इस बार किसी को भी नोटा से भी अधिक वोट नहीं आया.
'ललन सिंह को इस्तीफा देना चाहिए'- बीजेपी: बिहार में जदयू प्रमुख सत्ताधारी दल है और इसलिए विपक्षी दल भाजपा की तरफ से जदयू के प्रदर्शन पर निशाना साधा जा रहा है. जदयू प्रवक्ता ऐसे कह रहे हैं कि हम लोग तो संगठन विस्तार के लिए चुनाव लड़े थे. जीत हार तो लगी रहती है लेकिन भाजपा प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल का कहना है कि ललन सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से तुरंत इस्तीफा देना चाहिए. वहीं जदयू का कहना है रि नीतीश कुमार इंडिया गठबंधन के सूत्रधार हैं और बीजेपी के खिलाफ 2024 में विपक्ष को एकजुट करने की लगातार कोशिश करते रहे हैं. संगठन का विस्तार करना मकसद है.
"बीजेपी को हराने मध्य प्रदेश गए थे. कांग्रेस के साथ सरकार बनाने का सपना देख रहे थे लेकिन किसी की जमानत तक नहीं बचा सके. जो पार्टी बिहार में तीसरे नंबर की है और यहीं पार्टी को बचाना चुनौती बना हुआ है तो दूसरे राज्यों में क्या करेगी."- प्रेम रंजन पटेल, प्रवक्ता भाजपा
"आरसीपी सिंह को केंद्रीय मंत्री बनाने के बाद नीतीश कुमार ने ललन सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने का प्रयोग किया था. उस समय तो बहुत लंबा चौड़ा दावा किया गया था लेकिन 100 से भी कई उम्मीदवारों को कम वोट मिला है. इनको समीक्षा करनी चाहिए और बिहार से बाहर चुनाव लड़ते हैं तो सामंजस्य से लड़ना चाहिए."- अरुण पांडे, राजनीतिक विशेषज्ञ
राष्ट्रीय पार्टी बनने की अहर्ता: राष्ट्रीय पार्टी बनाने के लिए भारत निर्वाचन आयोग ने तीन अहर्ता रखी हैं और तीनों में से यदि कोई पार्टी एक भी अहर्ता को पूरा करती है तो उसे राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा आयोग देता है. अहर्ता के मुताबिक 3 राज्यों के लोकसभा चुनाव में 2 फ़ीसदी सीटें जीतना होगा. 4 लोकसभा सीटों के अलावे किसी लोकसभा या विधानसभा चुनाव में 6 फ़ीसदी वोट प्राप्त करना होगा. 4 या अधिक राज्यों में क्षेत्रीय पार्टी का दर्जा प्राप्त करना होगा.
फिलहाल जदयू इन तीनों अहर्ता में से किसी भी अहर्ता को कंप्लीट नहीं कर सकी है. जदयू का अभी केवल 2 राज्यों एक बिहार और दूसरा अरुणाचल प्रदेश में में ही राज्य स्तरीय पार्टी का दर्जा मिला हुआ है. ऐसे में पार्टी को कम से कम दो और राज्यों में राज्य स्तरीय पार्टी का दर्जा प्राप्त करना होगा.
अधिकांश जगह जमानत नहीं बची: ऐसा नहीं है कि जदयू की तरफ से किसी राज्य में पहली बार चुनाव लड़ा गया हो मध्य प्रदेश से पहले कर्नाटक उत्तर प्रदेश नागालैंड झारखंड दिल्ली पश्चिम बंगाल मणिपुर अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्यों में भी जदयू ने चुनाव लड़ी है. कुछ राज्यों को छोड़ दें खासकर मणिपुर अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्यों को तो नीतीश कुमार की पार्टी के उम्मीदवार की अधिकांश जगह जमानत नहीं बची है. इस बार जिम्मेदारी ललन सिंह को मिली थी. पहले नागालैंड में ललन सिंह फ्लॉप हुए और अब मध्य प्रदेश में तो शर्मनाक हार उम्मीदवारों की हुई है.
ये भी पढ़ें:
'विधानसभा चुनाव परिणामों का लोकसभा चुनाव 2024 में कोई असर नहीं, गलतफहमी ना पालें' : जेडीयू
क्या चार राज्यों के चुनाव परिणाम का I.N.D.I.A गठबंधन पर पड़ेगा असर ?
तीन राज्यों में बीजेपी की प्रचंड जीत, 'तेजस्वी को आया बुखार', अपने ही कार्यक्रम में नहीं पहुंचे