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9/11 : आतंकवाद कैसे बना इस्लामी मुद्दा और किस तरह बदल गई समाचारों की रिपोर्टिंग

अमेरिका में हुए 9/11 हमलों के 20 बरस हो गए. उस घटना की देन और व्यापक तौर पर कहें तो आतंकवाद के खिलाफ युद्ध पर विचार करना महत्त्वपूर्ण हो जाता है जिसने आतंकवाद पर रिपोर्टिंग करने के समाचार मीडिया के तरीकों को बदल दिया.

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Published : Sep 13, 2021, 4:01 PM IST

शेफील्ड : अमेरिकी ट्विन टावर पर हुए हमलों ने मीडिया रिपोर्टिंग को भी पूरी तरह से बदल दिया और आतंकवाद की रिपोर्ट खबरों का मुख्य हिस्सा बन गईं. हालांकि हमें यह स्पष्ट होना चाहिए कि आतंकवाद, जैसा कि हम इसे परिभाषित करते हैं, अब एक सदी से भी अधिक समय से, हमलों से पहले से अस्तित्व में है लेकिन 9/11 हमलों ने आतंकवाद को दैनिक समाचारों का सतत हिस्सा बना दिया.

विद्वान लंबे समय से तर्क देते रहे हैं कि समाचार मीडिया और आतंकवाद के बीच एक सहजीवी संबंध है. पत्रकारों के लिए, आतंकवादी हिंसा समाचार के मुख्य मूल्यों को पूरा करती है जिसे बड़ी संख्या में पाठक पढ़ते हैं. आतंकवादियों के लिए, समाचार कवरेज औचित्य का भाव देता है और उनके उद्देश्य को प्रचारित करने का काम करता है. कोई भी घटना इस संबंध को 9/11 से बेहतर तरीके से नहीं समझा सकती है.

पूरे अमेरिका में सुबह के समाचार कार्यक्रम के साथ मेल खाने के लिए, वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमलों में नाटकीयता को और बढ़ाने के लिए और यह सुनिश्चित करने के लिए कि नेटवर्क कैमरा संचालकों के पास घटनाओं पर ध्यान केंद्रित करने के लिए समय हो, इमारतों से दो विमानों के टकराने में 17 मिनट का अंतर रखा गया था. कुछ मामलों में समाचार नेटवर्कों ने करीब 100 घंटे तक लगातार दुनिया के लाखों लोगों को इसकी खबर दी.

इस समय के दौरान अल-कायदा के खतरे के बारे में बीबीसी की खबरों पर मेरी पुस्तक के साक्षात्कार में एक पत्रकार ने याद किया कि वह दिन कितना महत्वपूर्ण था. जिस तरह से इसने दुनिया को रोक दिया था, उस पर अब जोर देना मुश्किल है.

इसने इस तरह से ऐसा किया कि शायद ही किसी अन्य घटना ने मेरे जीवनकाल में पहले कभी किया हो. यह चौंका देने वाला था. जो हुआ था उसकी भयावहता, मारे गए लोगों की संख्या और फिर उन विशिष्ट टावरों को ढहते हुए देखना.

इसके बाद के वर्षों में अमेरिका और ब्रिटेन दोनों में आतंकवाद या आतंकवादी शब्दों से पटे पड़े समाचार पत्रों के लेखों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है. यह उस तथ्य के बावजूद हुआ कि यूरोप और उत्तर अमेरिका में 1970 और 1980 के दशक में आतंकवादी हमले बहुत आम थे. ये वामपंथी या दक्षिणपंथी संगठनों द्वारा किए जाते थे.

किनके विचारों से बनते हैं समाचार?

9/11 के हमलों की नाटकीयता और समाचार महत्व के अलावा, आतंकवाद के सुर्खियों में आने का एक प्रमुख कारण यह था कि राजनेता और अन्य विशिष्ट वर्ग आतंकवाद के बारे में बहुत ज्यादा बात करने लगे. राजनीतिक संचार विद्वता ने लंबे समय से समाचार एजेंडे पर शक्तिशाली स्रोतों के प्रभाव पर गौर किया है.

फिर भी अध्ययनों से पता चलता है कि कैसे 9/11 के बाद के दिनों, हफ्तों और महीनों में, राजनेता और सुरक्षा स्रोत (अक्सर गुमनाम और अनाम) आतंकवादी खतरे की खबरों पर हावी रहे और देशभक्ति के उत्साह के माहौल को प्रोत्साहित करने में मदद करते रहे हैं. यह भी दावा किया गया कि आतंकवादी खतरों के बारे में बात करते समय राजनेता अधिक भावनात्मक हो जाते हैं.

आतंकवाद का इस्लामीकरण

हालांकि 9/11 की शायद सबसे हानिकारक विरासत आतंकवादी खतरे का इस्लामीकरण रहा. इसके परिणाम स्वरूप समाचार कवरेज में इस्लाम और मुसलमानों को आतंकवाद के साथ जोड़ दिया गया. उदाहरण के लिए यूके में शोध से पता चलता है कि समाचार दर्शकों ने 9/11 के हमलों के बाद के वर्षों में इस्लाम और मुसलमानों के बारे में समाचारों में नाटकीय वृद्धि देखी. यह 2001 और 2006 में चरम पर रहा.

आतंकवाद, हिंसक उग्रवाद और मुसलमानों के सांस्कृतिक अंतर पर विषयगत फोकस किया गया. इसके अलावा, अमेरिका में विद्वानों ने दिखाया है कि कैसे मुस्लिम अपराधियों से जुड़े आतंकवादी हमलों में अपराधी के गैर-मुस्लिम होने की तुलना में लगभग 375% अधिक ध्यान आकर्षित किया जाता है.

लेकिन इस्लामी आतंकवाद के प्रति आकर्षण के बावजूद, वैश्विक आतंकवाद सूचकांक हमें याद दिलाता है कि केवल 2.6 प्रतिशत हमले और 0.51 प्रतिशत आतंकवाद से होने वाली मौतें पश्चिमी देशों में होती हैं. इस तरह के अधिकांश हमले इस्लामवादी के बजाय जातीय-राष्ट्रवादी कारणों से प्रेरित होते हैं. आतंकवादी हिंसा से सबसे अधिक प्रभावित पांच देश (अफगानिस्तान, इराक, नाइजीरिया, सीरिया और सोमालिया) ऐसे देश हैं जो मुख्य रूप से ऐसे लोगों से बने हैं जिनकी पहचान मुस्लिम के रूप में है.

इससे क्या सीख मिली

9/11 के हमलों ने आतंकवाद के एक नए युग की शुरुआत की. उन घटनाओं और इसके परिणामस्वरूप आतंक के खिलाफ युद्ध ने एक नए विषय के रूप में आतंकवाद का मूल्य बढ़ा दिया. हमलों ने यह भी सुनिश्चित किया कि राजनीतिक या सुरक्षा सेवाओं के सदस्यों जैसे आतंकवादी खतरे के स्तर को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने में निहित स्वार्थ वाले समूह समाचार कवरेज को आकार देने वाले प्रमुख स्वर बने रहें.

उन समूहों के लिए केवल एक प्रकार के आतंकवाद को महत्वपूर्ण समझा गया. ब्रिटेन के पूर्व प्रधान मंत्री टोनी ब्लेयर द्वारा पश्चिमी देशों के लिए इस्लामवाद के रूप में संदर्भित अस्तित्व के खतरे के बारे में हाल की टिप्पणियों से पता चलता है कि अच्छे और बुरे मुसलमानों के बारे में अपमानजनक बयानबाजी अभी भी समाचार मीडिया का ध्यान आकर्षित करती है.

अगर मीडिया को आतंकवाद के खिलाफ दो दशकों की जंग से कुछ सीखना है. तो उस सबक को बेहतर ढंग से समझना होगा, जहां 9/11 को इतनी ताकत से प्रदर्शित किया गया. इसका मतलब है कि आतंकवादी घटनाओं की रिपोर्ट करने के तरीके खोजना जो आतंकवादी हिंसा को सनसनीखेज या अतिरंजित नहीं करते हैं.

यह भी पढ़ें-9/11 : आतंकवाद के हमले से अमेरिका का सीना हुआ छलनी

इसका मतलब है कि राजनेताओं द्वारा इस मुद्दे को फ्रेम करने के सरल तरीके को चुनौती देना और घटनाओं को प्रासंगिक बनाना जैसे वे होते हैं. और अंत में इसमें उन गहरी रूढ़ियों को पहचानना और उनका मुकाबला करना शामिल है जो हमें उनसे अलग करती हैं. यदि नहीं तो समाचार मीडिया को आतंकवाद द्वारा अपहृत किया जाता रहेगा.

शेफील्ड : अमेरिकी ट्विन टावर पर हुए हमलों ने मीडिया रिपोर्टिंग को भी पूरी तरह से बदल दिया और आतंकवाद की रिपोर्ट खबरों का मुख्य हिस्सा बन गईं. हालांकि हमें यह स्पष्ट होना चाहिए कि आतंकवाद, जैसा कि हम इसे परिभाषित करते हैं, अब एक सदी से भी अधिक समय से, हमलों से पहले से अस्तित्व में है लेकिन 9/11 हमलों ने आतंकवाद को दैनिक समाचारों का सतत हिस्सा बना दिया.

विद्वान लंबे समय से तर्क देते रहे हैं कि समाचार मीडिया और आतंकवाद के बीच एक सहजीवी संबंध है. पत्रकारों के लिए, आतंकवादी हिंसा समाचार के मुख्य मूल्यों को पूरा करती है जिसे बड़ी संख्या में पाठक पढ़ते हैं. आतंकवादियों के लिए, समाचार कवरेज औचित्य का भाव देता है और उनके उद्देश्य को प्रचारित करने का काम करता है. कोई भी घटना इस संबंध को 9/11 से बेहतर तरीके से नहीं समझा सकती है.

पूरे अमेरिका में सुबह के समाचार कार्यक्रम के साथ मेल खाने के लिए, वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमलों में नाटकीयता को और बढ़ाने के लिए और यह सुनिश्चित करने के लिए कि नेटवर्क कैमरा संचालकों के पास घटनाओं पर ध्यान केंद्रित करने के लिए समय हो, इमारतों से दो विमानों के टकराने में 17 मिनट का अंतर रखा गया था. कुछ मामलों में समाचार नेटवर्कों ने करीब 100 घंटे तक लगातार दुनिया के लाखों लोगों को इसकी खबर दी.

इस समय के दौरान अल-कायदा के खतरे के बारे में बीबीसी की खबरों पर मेरी पुस्तक के साक्षात्कार में एक पत्रकार ने याद किया कि वह दिन कितना महत्वपूर्ण था. जिस तरह से इसने दुनिया को रोक दिया था, उस पर अब जोर देना मुश्किल है.

इसने इस तरह से ऐसा किया कि शायद ही किसी अन्य घटना ने मेरे जीवनकाल में पहले कभी किया हो. यह चौंका देने वाला था. जो हुआ था उसकी भयावहता, मारे गए लोगों की संख्या और फिर उन विशिष्ट टावरों को ढहते हुए देखना.

इसके बाद के वर्षों में अमेरिका और ब्रिटेन दोनों में आतंकवाद या आतंकवादी शब्दों से पटे पड़े समाचार पत्रों के लेखों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है. यह उस तथ्य के बावजूद हुआ कि यूरोप और उत्तर अमेरिका में 1970 और 1980 के दशक में आतंकवादी हमले बहुत आम थे. ये वामपंथी या दक्षिणपंथी संगठनों द्वारा किए जाते थे.

किनके विचारों से बनते हैं समाचार?

9/11 के हमलों की नाटकीयता और समाचार महत्व के अलावा, आतंकवाद के सुर्खियों में आने का एक प्रमुख कारण यह था कि राजनेता और अन्य विशिष्ट वर्ग आतंकवाद के बारे में बहुत ज्यादा बात करने लगे. राजनीतिक संचार विद्वता ने लंबे समय से समाचार एजेंडे पर शक्तिशाली स्रोतों के प्रभाव पर गौर किया है.

फिर भी अध्ययनों से पता चलता है कि कैसे 9/11 के बाद के दिनों, हफ्तों और महीनों में, राजनेता और सुरक्षा स्रोत (अक्सर गुमनाम और अनाम) आतंकवादी खतरे की खबरों पर हावी रहे और देशभक्ति के उत्साह के माहौल को प्रोत्साहित करने में मदद करते रहे हैं. यह भी दावा किया गया कि आतंकवादी खतरों के बारे में बात करते समय राजनेता अधिक भावनात्मक हो जाते हैं.

आतंकवाद का इस्लामीकरण

हालांकि 9/11 की शायद सबसे हानिकारक विरासत आतंकवादी खतरे का इस्लामीकरण रहा. इसके परिणाम स्वरूप समाचार कवरेज में इस्लाम और मुसलमानों को आतंकवाद के साथ जोड़ दिया गया. उदाहरण के लिए यूके में शोध से पता चलता है कि समाचार दर्शकों ने 9/11 के हमलों के बाद के वर्षों में इस्लाम और मुसलमानों के बारे में समाचारों में नाटकीय वृद्धि देखी. यह 2001 और 2006 में चरम पर रहा.

आतंकवाद, हिंसक उग्रवाद और मुसलमानों के सांस्कृतिक अंतर पर विषयगत फोकस किया गया. इसके अलावा, अमेरिका में विद्वानों ने दिखाया है कि कैसे मुस्लिम अपराधियों से जुड़े आतंकवादी हमलों में अपराधी के गैर-मुस्लिम होने की तुलना में लगभग 375% अधिक ध्यान आकर्षित किया जाता है.

लेकिन इस्लामी आतंकवाद के प्रति आकर्षण के बावजूद, वैश्विक आतंकवाद सूचकांक हमें याद दिलाता है कि केवल 2.6 प्रतिशत हमले और 0.51 प्रतिशत आतंकवाद से होने वाली मौतें पश्चिमी देशों में होती हैं. इस तरह के अधिकांश हमले इस्लामवादी के बजाय जातीय-राष्ट्रवादी कारणों से प्रेरित होते हैं. आतंकवादी हिंसा से सबसे अधिक प्रभावित पांच देश (अफगानिस्तान, इराक, नाइजीरिया, सीरिया और सोमालिया) ऐसे देश हैं जो मुख्य रूप से ऐसे लोगों से बने हैं जिनकी पहचान मुस्लिम के रूप में है.

इससे क्या सीख मिली

9/11 के हमलों ने आतंकवाद के एक नए युग की शुरुआत की. उन घटनाओं और इसके परिणामस्वरूप आतंक के खिलाफ युद्ध ने एक नए विषय के रूप में आतंकवाद का मूल्य बढ़ा दिया. हमलों ने यह भी सुनिश्चित किया कि राजनीतिक या सुरक्षा सेवाओं के सदस्यों जैसे आतंकवादी खतरे के स्तर को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने में निहित स्वार्थ वाले समूह समाचार कवरेज को आकार देने वाले प्रमुख स्वर बने रहें.

उन समूहों के लिए केवल एक प्रकार के आतंकवाद को महत्वपूर्ण समझा गया. ब्रिटेन के पूर्व प्रधान मंत्री टोनी ब्लेयर द्वारा पश्चिमी देशों के लिए इस्लामवाद के रूप में संदर्भित अस्तित्व के खतरे के बारे में हाल की टिप्पणियों से पता चलता है कि अच्छे और बुरे मुसलमानों के बारे में अपमानजनक बयानबाजी अभी भी समाचार मीडिया का ध्यान आकर्षित करती है.

अगर मीडिया को आतंकवाद के खिलाफ दो दशकों की जंग से कुछ सीखना है. तो उस सबक को बेहतर ढंग से समझना होगा, जहां 9/11 को इतनी ताकत से प्रदर्शित किया गया. इसका मतलब है कि आतंकवादी घटनाओं की रिपोर्ट करने के तरीके खोजना जो आतंकवादी हिंसा को सनसनीखेज या अतिरंजित नहीं करते हैं.

यह भी पढ़ें-9/11 : आतंकवाद के हमले से अमेरिका का सीना हुआ छलनी

इसका मतलब है कि राजनेताओं द्वारा इस मुद्दे को फ्रेम करने के सरल तरीके को चुनौती देना और घटनाओं को प्रासंगिक बनाना जैसे वे होते हैं. और अंत में इसमें उन गहरी रूढ़ियों को पहचानना और उनका मुकाबला करना शामिल है जो हमें उनसे अलग करती हैं. यदि नहीं तो समाचार मीडिया को आतंकवाद द्वारा अपहृत किया जाता रहेगा.

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