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राहुल गांधी अपनी दादी और पिता के बताए रास्ते से भटके, क्या लोकसभा चुनाव 2024 में लगा पाएंगे नैया पार

Lok Sabha Election 2024 के लिए Rahul Gandhi ने जातिगत राजनीति की राह पकड़ ली है. जबकि कांग्रेस के इतिहास को देखें तो पार्टी के किसी भी नेता ने कभी जातिगत राजनीति को तवज्जो नहीं दी थी. आईए जानते हैं इंदिरा गांधी और राजीव गांधी जातिगत राजनीति को लेकर क्या कहते थे.

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Oct 23, 2023, 7:27 PM IST

लखनऊ: लोकसभा चुनाव 2024 को देखते हुए जहां कांग्रेस ने भाजपा से मुकाबला करने के लिए इंडिया गठबंधन का एक मॉडल तैयार किया है. वहीं इसके अलावा मौजूदा समय में राहुल गांधी बिहार में जाति जनगणना से जुड़े आंकड़े जारी होने के बाद अब पूरे देश में जाति जनगणना करने की मांग कर रहे हैं. उनकी इस मांग को उत्तर प्रदेश और बिहार की लोकसभा सीटों से जोड़कर देखा जा रहा है.

बिहार की जातिगत जनगणना का चुनाव पर क्या होगा असरः राजनीतिक जानकारों का मानना है कि जाति आधारित जनगणना का सबसे ज्यादा असर उत्तर प्रदेश और बिहार के मतदाताओं पर होना है. ऐसे में लोकसभा चुनाव 2024 से पहले कांग्रेस मतदाताओं के बीच में इस मुद्दे को हवा देकर अपने पक्ष में मोड़ना चाहती है. जिससे लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा से सीधा मुकाबला किया जा सके. हालांकि, राहुल गांधी के इस पैंतरे को लेकर कांग्रेस में ही काफी तेज चर्चा शुरू हो गई है. कांग्रेस नेताओं का कहना है कि यह पहला मौका है जब कांग्रेस के बड़े नेता ने आरक्षण के मुद्दे पर पार्टी की विचारधारा से हटकर बात की हो.

राहुल गांधी ने क्या नारा दियाः बीते दिनों राहुल गांधी ने "जितनी आबादी उतना हक" का नारा दिया है. जबकि 1990 में मंडल राजनीति की शुरुआत के बाद कांग्रेस ने कभी भी जातिगत आरक्षण का समर्थन नहीं किया था. यह पहला मौका है, जब कांग्रेस का बड़ा नेता जातिगत आरक्षण को खुलकर समर्थन कर रहा है.

इंदिरा गांधी और राहुल गांधी ने क्या कहा था.
इंदिरा गांधी और राहुल गांधी ने क्या कहा था.

इंदिरा गांधी और राजीव गांधी जातिगत राजनीति पर क्या बोलते थेः लखनऊ विश्वविद्यालय के पॉलिटिकल साइंस विभाग के प्रोफेसर संजय गुप्ता का कहना है कि 1980 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने "ना जात पर न पात पर" का नारा दिया था. फिर जब वीपी सिंह प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने मंडल कमीशन की सिफारिश को लागू किया था. तब राजीव गांधी ने संसद में इसी बात को दोहराते हुए आरक्षण का विरोध किया था. राजीव गांधी की इस मुद्दे पर वीपी सिंह से काफी नोकझोंक भी हुई थी.

राजीव गांधी ने वीपी सिंह को संसद में दिया था करारा जवाबः राजीव गांधी ने तब संसद में कहा था यह बेहद दुखद है कि इस सरकार की सोच जाति के इर्द-गिर्द घूमती है. वीपी सिंह हमारे समाज में दरार पैदा कर रहे हैं. देश का लक्ष्य एक जातिविहीन समाज होना चाहिए और किसी भी ऐसे काम से बचना चाहिए. जिस देश को जाति आधारित समाज की ओर ले जाए. प्रदेश की मौजूदा राजनीति को देखते हुए राहुल गांधी ने अपनी दादी और पिता के बताए रास्ते से हटकर अब जातिगत आधारित राजनीति का रुख किया है.

राहुल गांधी की क्या है रणनीतिः कांग्रेस के लिए राहुल गांधी का ये पैंतरा अपने आप में एक नई चीज है. अब यह देखना होगा कि पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के इस मुद्दे को कितना बल मिलता है. अगर वहां कांग्रेस का प्रदर्शन बेहतर होता है तो यूपी और बिहार में भी कांग्रेस को इसका फायदा मिल सकता है. राहुल गांधी एक सोची समझी रणनीति के तहत जाति जनगणना की बात कर रहे हैं. भाजपा के हिंदुत्व एजेंडे से लड़ने के लिए जाति आधारित राजनीति करने पर विवश होना पड़ा है.

तीन दशक से उत्तर प्रदेश और बिहार में सत्ता से बाहर है कांग्रेसः प्रोफेसर संजय गुप्ता ने बताया कि जब पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने मंडल कमीशन के तहत ओबीसी को 27% आरक्षण देने की सिफारिश की. इसका सबसे अधिक खामियाजा कांग्रेस को उत्तर प्रदेश और बिहार में ही उठाना पड़ा. 1989 में नारायण दत्त तिवारी की सरकार जाने के बाद से कांग्रेस अभी तक उत्तर प्रदेश की सत्ता में वापस नहीं आ पाई है. बिहार में भी कांग्रेस का कुछ ऐसा ही हाल है. वह बिहार में लालू प्रसाद की राष्ट्रीय जनता दल की सहयोगी पार्टी बनकर रह गई है.

हिंदी बेल्ट में क्या है कांग्रेस की स्थितिः पार्टी की स्थिति यह हो गई है कि एक समय उत्तर प्रदेश में सबसे बड़ी पार्टी मौजूदा समय में दो विधानसभा और एक लोकसभा सीट तक सीमित रह गई है. मंडल कमीशन के लागू होने के बाद उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी सहित कई क्षेत्रीय दलों का उनकी जाति के आधार पर उदय हुआ. यही हाल कमोबेश बिहार में लालू प्रसाद यादव की राजद, रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी का उदय हुआ.

मंडल कमीशन लागू होने से पहले मजबूत थी कांग्रेसः प्रोफेसर गुप्ता ने बताया कि जब मंडल कमीशन लागू हुआ था, तब उत्तर प्रदेश और बिहार का बंटवारा नहीं हुआ था. तब यहां पर कुल 139 लोकसभा की सीटें हुआ करती थी. उत्तर प्रदेश में 85 लोकसभा की सीट और बिहार में 54 सीट थीं. जो लोकसभा की कुल सीटों का एक बटा छह था. कांग्रेस इन सीटों पर मजबूती से जीती थी और केंद्र की सत्ता पर दखल रखती थी.

मंडल कमीशन के बाद क्यों कमजोर हुई कांग्रेसः मंडल कमीशन के बाद से उसकी पकड़ लगातार ढीली होती चली गई. मंडल कमीशन के बाद कांग्रेस को दोबारा से हिंदी पट्टी के राज्यों में उभर कर आने में दिक्कत हुई. उसका वोट बैंक जाति आधारित पार्टीयों में बंट गया. प्रोफेसर गुप्ता ने बताया कि भाजपा भले ही उत्तर प्रदेश में कोर हिंदुत्व का एजेंडा चलाती हो पर उसका सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला उत्तर प्रदेश की क्षेत्रीय पार्टियों व कांग्रेस से काफी बेहतर है. ऐसे में राहुल गांधी द्वारा जाति जनगणना की बात करना भाजपा के इसी सोशल इंजीनियरिंग को भी भेदने की एक रणनीति है.

ये भी पढ़ेंः पूर्व कैबिनेट मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी बोले- कांग्रेस की जमीन बंजर, हाथ में है बेवफाई का खंजर

लखनऊ: लोकसभा चुनाव 2024 को देखते हुए जहां कांग्रेस ने भाजपा से मुकाबला करने के लिए इंडिया गठबंधन का एक मॉडल तैयार किया है. वहीं इसके अलावा मौजूदा समय में राहुल गांधी बिहार में जाति जनगणना से जुड़े आंकड़े जारी होने के बाद अब पूरे देश में जाति जनगणना करने की मांग कर रहे हैं. उनकी इस मांग को उत्तर प्रदेश और बिहार की लोकसभा सीटों से जोड़कर देखा जा रहा है.

बिहार की जातिगत जनगणना का चुनाव पर क्या होगा असरः राजनीतिक जानकारों का मानना है कि जाति आधारित जनगणना का सबसे ज्यादा असर उत्तर प्रदेश और बिहार के मतदाताओं पर होना है. ऐसे में लोकसभा चुनाव 2024 से पहले कांग्रेस मतदाताओं के बीच में इस मुद्दे को हवा देकर अपने पक्ष में मोड़ना चाहती है. जिससे लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा से सीधा मुकाबला किया जा सके. हालांकि, राहुल गांधी के इस पैंतरे को लेकर कांग्रेस में ही काफी तेज चर्चा शुरू हो गई है. कांग्रेस नेताओं का कहना है कि यह पहला मौका है जब कांग्रेस के बड़े नेता ने आरक्षण के मुद्दे पर पार्टी की विचारधारा से हटकर बात की हो.

राहुल गांधी ने क्या नारा दियाः बीते दिनों राहुल गांधी ने "जितनी आबादी उतना हक" का नारा दिया है. जबकि 1990 में मंडल राजनीति की शुरुआत के बाद कांग्रेस ने कभी भी जातिगत आरक्षण का समर्थन नहीं किया था. यह पहला मौका है, जब कांग्रेस का बड़ा नेता जातिगत आरक्षण को खुलकर समर्थन कर रहा है.

इंदिरा गांधी और राहुल गांधी ने क्या कहा था.
इंदिरा गांधी और राहुल गांधी ने क्या कहा था.

इंदिरा गांधी और राजीव गांधी जातिगत राजनीति पर क्या बोलते थेः लखनऊ विश्वविद्यालय के पॉलिटिकल साइंस विभाग के प्रोफेसर संजय गुप्ता का कहना है कि 1980 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने "ना जात पर न पात पर" का नारा दिया था. फिर जब वीपी सिंह प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने मंडल कमीशन की सिफारिश को लागू किया था. तब राजीव गांधी ने संसद में इसी बात को दोहराते हुए आरक्षण का विरोध किया था. राजीव गांधी की इस मुद्दे पर वीपी सिंह से काफी नोकझोंक भी हुई थी.

राजीव गांधी ने वीपी सिंह को संसद में दिया था करारा जवाबः राजीव गांधी ने तब संसद में कहा था यह बेहद दुखद है कि इस सरकार की सोच जाति के इर्द-गिर्द घूमती है. वीपी सिंह हमारे समाज में दरार पैदा कर रहे हैं. देश का लक्ष्य एक जातिविहीन समाज होना चाहिए और किसी भी ऐसे काम से बचना चाहिए. जिस देश को जाति आधारित समाज की ओर ले जाए. प्रदेश की मौजूदा राजनीति को देखते हुए राहुल गांधी ने अपनी दादी और पिता के बताए रास्ते से हटकर अब जातिगत आधारित राजनीति का रुख किया है.

राहुल गांधी की क्या है रणनीतिः कांग्रेस के लिए राहुल गांधी का ये पैंतरा अपने आप में एक नई चीज है. अब यह देखना होगा कि पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के इस मुद्दे को कितना बल मिलता है. अगर वहां कांग्रेस का प्रदर्शन बेहतर होता है तो यूपी और बिहार में भी कांग्रेस को इसका फायदा मिल सकता है. राहुल गांधी एक सोची समझी रणनीति के तहत जाति जनगणना की बात कर रहे हैं. भाजपा के हिंदुत्व एजेंडे से लड़ने के लिए जाति आधारित राजनीति करने पर विवश होना पड़ा है.

तीन दशक से उत्तर प्रदेश और बिहार में सत्ता से बाहर है कांग्रेसः प्रोफेसर संजय गुप्ता ने बताया कि जब पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने मंडल कमीशन के तहत ओबीसी को 27% आरक्षण देने की सिफारिश की. इसका सबसे अधिक खामियाजा कांग्रेस को उत्तर प्रदेश और बिहार में ही उठाना पड़ा. 1989 में नारायण दत्त तिवारी की सरकार जाने के बाद से कांग्रेस अभी तक उत्तर प्रदेश की सत्ता में वापस नहीं आ पाई है. बिहार में भी कांग्रेस का कुछ ऐसा ही हाल है. वह बिहार में लालू प्रसाद की राष्ट्रीय जनता दल की सहयोगी पार्टी बनकर रह गई है.

हिंदी बेल्ट में क्या है कांग्रेस की स्थितिः पार्टी की स्थिति यह हो गई है कि एक समय उत्तर प्रदेश में सबसे बड़ी पार्टी मौजूदा समय में दो विधानसभा और एक लोकसभा सीट तक सीमित रह गई है. मंडल कमीशन के लागू होने के बाद उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी सहित कई क्षेत्रीय दलों का उनकी जाति के आधार पर उदय हुआ. यही हाल कमोबेश बिहार में लालू प्रसाद यादव की राजद, रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी का उदय हुआ.

मंडल कमीशन लागू होने से पहले मजबूत थी कांग्रेसः प्रोफेसर गुप्ता ने बताया कि जब मंडल कमीशन लागू हुआ था, तब उत्तर प्रदेश और बिहार का बंटवारा नहीं हुआ था. तब यहां पर कुल 139 लोकसभा की सीटें हुआ करती थी. उत्तर प्रदेश में 85 लोकसभा की सीट और बिहार में 54 सीट थीं. जो लोकसभा की कुल सीटों का एक बटा छह था. कांग्रेस इन सीटों पर मजबूती से जीती थी और केंद्र की सत्ता पर दखल रखती थी.

मंडल कमीशन के बाद क्यों कमजोर हुई कांग्रेसः मंडल कमीशन के बाद से उसकी पकड़ लगातार ढीली होती चली गई. मंडल कमीशन के बाद कांग्रेस को दोबारा से हिंदी पट्टी के राज्यों में उभर कर आने में दिक्कत हुई. उसका वोट बैंक जाति आधारित पार्टीयों में बंट गया. प्रोफेसर गुप्ता ने बताया कि भाजपा भले ही उत्तर प्रदेश में कोर हिंदुत्व का एजेंडा चलाती हो पर उसका सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला उत्तर प्रदेश की क्षेत्रीय पार्टियों व कांग्रेस से काफी बेहतर है. ऐसे में राहुल गांधी द्वारा जाति जनगणना की बात करना भाजपा के इसी सोशल इंजीनियरिंग को भी भेदने की एक रणनीति है.

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