कोलकाता : इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ( ICMR )-नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हैजा एंड एंटरिक डिजीज (NICED) द्वारा हाल ही में किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, पूरे देश में एडेनोवायरस-पॉजिटिव परीक्षण किए गए स्वैब नमूनों में से 38 प्रतिशत पश्चिम बंगाल के हैं. NICED के सूत्रों ने कहा कि 1 जनवरी से 9 मार्च तक देश भर में विभिन्न वायरल अनुसंधान निदान प्रयोगशालाओं में 1708 नमूनों पर किए गए सर्वेक्षण में 650 नमूनों का परीक्षण Adenovirus positive पाया गया.
सर्वे के अनुसार, पश्चिम बंगाल में 650 नमूनों में से 38 प्रतिशत का परीक्षण सकारात्मक रहा है, जो सभी भारतीय राज्यों में सबसे अधिक है. तमिलनाडु 19 प्रतिशत के साथ दूसरे स्थान पर आता है, केरल 13 प्रतिशत के साथ तीसरे, दिल्ली 11 प्रतिशत के साथ चौथे और महाराष्ट्र पांच प्रतिशत के साथ पांचवें स्थान पर है. चार दिन पहले, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा था कि 19 मौतों की सूचना मिली थी, जिनमें से 6 Adenovirus cases की पुष्टि हुई है, जबकि शेष सह-रुग्णता के मामले थे.
उनके बयान के विपरीत, अस्पतालों के सूत्रों ने कहा कि मौत का आंकड़ा कहीं अधिक था. अनौपचारिक अनुमानों के अनुसार, पिछले 12 दिनों के दौरान संबंधित लक्षणों के कारण होने वाली बच्चों की मौत 48 तक पहुंच गई है, पिछले 24 में तीन मौत की खबर है. मुख्यमंत्री ने यह भी दावा किया कि कुछ लोग जानबूझकर वायरस को लेकर दहशत पैदा कर रहे हैं. मुख्यमंत्री ने कहा, लोग घबरा गए और इस घबराहट ने कुछ निजी अस्पतालों के लिए अपने कारोबार को फलने-फूलने के रास्ते खोल दिए.
एडेनोवायरस के सामान्य लक्षण फ्लू जैसे, सर्दी, बुखार, सांस लेने में समस्या, गले में खराश, निमोनिया और तीव्र ब्रोंकाइटिस हैं. दो साल और उससे कम उम्र के बच्चे इस वायरस से सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं. वायरस त्वचा के संपर्क से, हवा से खांसने और छींकने से और संक्रमित व्यक्ति के मल के माध्यम से फैल सकता है. अब तक, वायरस के इलाज के लिए कोई अनुमोदित दवा या कोई विशिष्ट उपचार नहीं है.
राज्य के स्वास्थ्य विभाग ने पहले ही डॉक्टरों, विशेष रूप से बाल रोग विशेषज्ञों के लिए, फ्लू जैसे लक्षणों के साथ भर्ती होने वाले बच्चों, विशेष रूप से दो साल या उससे कम उम्र के बच्चों की विशेष देखभाल करने के लिए एडवाइजरी जारी की है. खतरनाक स्थिति को देखते हुए स्वास्थ्य विभाग ने सभी कर्मचारियों की छुट्टियां अनिश्चित काल के लिए रद्द कर दी हैं. राज्य के अस्पतालों में विशेष बाल चिकित्सा इकाइयों के साथ विशेष आउटडोर इकाइयां खोली गई हैं, ताकि ऐसे मामलों को सामान्य आउटडोर इकाइयों में इंतजार न करना पड़े.
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