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आप भी जानिए कैसे शुरू हुई काशी में देव दीपावली

देव दीपावली अब सिर्फ काशी में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के लिए एक उत्सव के रूप में पहचान बना चुकी है. इस बार देव दीपावली का पर्व 19 नवंबर को वाराणसी में मनाया जाना है, लेकिन क्या आपको पता है काशी में मनाई जाने वाली देव दीपावली कैसे शुरू हुई. तो आइए हम बताते हैं, आपको काशी के इस महापर्व से जुड़ी कुछ रोचक बातें.

जानिए कैसे शुरू हुई काशी में देव दीपावली
जानिए कैसे शुरू हुई काशी में देव दीपावली
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Published : Nov 19, 2021, 10:13 AM IST

वाराणसी: वैसे तो दीपावली का पर्व खत्म हो चुका है. हर कोई दीपावली के इंतजार में लंबे वक्त तक रहता है और त्यौहार खत्म होने के बाद लोग यह भूल जाते हैं कि प्रकाश उत्सव सिर्फ दीपावली ही नहीं बल्कि काशी के लिए देव दीपावली को भी कहा जाता है. शायद यही वजह है कि देव दीपावली अब सिर्फ काशी में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के लिए एक उत्सव के रूप में पहचान बना चुकी है.

इस बार देव दीपावली का पर्व 19 नवंबर को वाराणसी में मनाया जाना है, लेकिन क्या आपको पता है काशी में मनाई जाने वाली देव दीपावली कैसे शुरू हुई, सबसे पहले वाराणसी में देव दीपावली का उत्सव किस घाट पर मनाया गया और इस पर्व को क्यों काशी में ही मनाया जाता है, तो आइए हम बताते हैं, आपको काशी के इस महापर्व से जुड़ी कुछ रोचक बातें.

1785 में एक स्तंभ से हुई शुरुआत
दरअसल वाराणसी के पंचगंगा घाट से इस देव दीपावली का सदियों पुराना नाता है. पंडित और ज्योतिषियों की मानें तो वाराणसी में देव दीपावली के शुरुआत वैसे तो पुराणों में भगवान शिव की कथा से जुड़ी है लेकिन घाटों पर जलाए जाने वाले दीपक की कहानी पंचगंगा घाट से जुड़ी है. बताया जाता है कि 1785 ईसवी में महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने पंचगंगा घाट पर ही पत्थर से बनाए गए हजारा स्तंभ दीपक की लंबी श्रृंखला को जलाकर काशी में देव दीपावली उत्सव की शुरुआत की थी.

जानिए कैसे शुरू हुई काशी में देव दीपावली

काशी नरेश ने दिया अलग रूप

देवताओं के द्वारा शुरू की गई दीपावली को पुराणों के अनुसार मानव जन तक पहुंचाने का यह प्रयास महारानी अहिल्याबाई होलकर द्वारा पंचगंगा घाट से शुरू हुई जो धीरे-धीरे समय के साथ काशी के 84 घाटों तक पहुंच गई और महाराजा काशी नरेश विभूति नारायण सिंह और उनके सहयोगियों ने मिलकर 1985 से इसे आगे बढ़ाया. 1991 में शुरू हुई गंगा सेवा निधि की गंगा आरती के बाद इस देव दीपावली ने वैश्विक स्वरूप ले लिया और घाटों पर यह महापर्व विश्व स्तर तक पहुंच गया.

काशी नरेश ने दिया अलग रूप
काशी नरेश ने दिया अलग रूप
पंचगंगा घाट पर मिलती है पांच नदियां

बनारस के पंचगंगा घाट का इतिहास भी अपने आप में काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि कार्तिक के महीने में यहां पर आकाश दीप जलाए जाने की शुरुआत भी की गई थी. आज भी यहां सैकड़ों की संख्या में आकाशदीप लंबे-लंबे बांस पर लगी टोकरियों में जगमगाते हैं. इतना ही नहीं पंचगंगा घाट का महत्वपूर्ण स्थान है. जहां पर एक साथ पांच नदियों का समागम होता है. जिसमें गंगा, यमुना, सरस्वती, द्रुतपापा, किरणा शामिल हैं. इसके अलावा पानी पंचगंगा घाट व पवित्र स्थान भी है, जहां पर महान संत कबीर दास को सीढ़ियों पर स्वामी रामानंद जी से गुरु मंत्र मिला था. घाट की सीढ़ियों पर लेट कर अपने गुरु के आने का इंतजार कर रहे हैं कबीर के ऊपर स्वामी रामानंद के पैर इसी घाट पर पड़े थे.

पंचगंगा घाट से इस देव दीपावली का सदियों पुराना नाता
पंचगंगा घाट से इस देव दीपावली का सदियों पुराना नाता
हजारा स्तंभ जगमगाने के साथ शुरू होती है देव दीपावली

पुराणों में वर्णित है कि कार्तिक के पूरे महीने यदि पंचगंगा घाट पर स्नान किया जाए तो मोक्ष और पुण्य फल की प्राप्ति होती है और यदि पूरे महीने स्नान न कर पाए तो सिर्फ कार्तिक पूर्णिमा पर लगाई गई एक डुबकी ही पूरे कार्तिक का पुण्य देती है. यही वजह है कि आज भी इस पंचगंगा घाट का महत्व विशेष माना जाता है और यहां पर मौजूद सदियों पुराने हजारा दीपक स्तंभ को आज भी प्रज्ज्वलित कर काशी में देव दीपावली पर्व की शुरुआत की जाती है.

पंचगंगा घाट से इस देव दीपावली का सदियों पुराना नाता
पंचगंगा घाट से इस देव दीपावली का सदियों पुराना नाता

ये भी पढ़ें- देव दीपावली पर आकर्षण का केंद्र बनेगी 108 साल पुरानी मां अन्नपूर्णा की प्रतिमा

प्रयागराज में भी देव दीपावली का भव्य रुप

प्रयागराज में भी देव दीपावली बड़े भव्य रुप में मानाई जाती है. बता दें कि शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को कार्तिक पूर्णिमा कहते हैं. इस साल 19 नवंबर 2021 दिन शुक्रवार को कार्तिक पूर्णिमा दिन गंगा स्नान, दीपदान, यज्ञ और ईश्वर की उपासना का वशेष महत्व माना जाता है. इस दिन किए जाने वाले दान-पुण्य समेत कई धार्मिक कार्य विशेष फलदायी होते हैं. कार्तिक पूर्णिमा को लेकर शुभ मुहुर्त, मान्यताएं और पूजा विधि के बारे में ज्योतिषाचार्य शिप्रा सचदेव ने खास बातें ईटीवी भारत को बताई हैं जिनका लाभ आप भी लें.

पूरे विश्व के लिए एक उत्सव के रूप में पहचान बना चुकी है देव दीपावली
पूरे विश्व के लिए एक उत्सव के रूप में पहचान बना चुकी है देव दीपावली

इन चीजों का करें दान

मान्यता है कि इस दिन अन्न, दूध, फल, चावल, तिल और आवंला दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है. शाम के समय जल में थोड़ा कच्चा दूध, चावल और चीनी मिलाकर चंद्रमा को अर्घ्य देने से चंद्रमा की कृपा बनी रहती है. लक्ष्मी जी की कृपा पाने के लिए इस दिन पीपल के पेड़ पर जल में मीठा दूध मिलाकर चढ़ाना चाहिए.

ज्योतिषाचार्य शिप्रा सचदेव

क्या न करें कार्तिक पूर्णिमा

कार्तिक पूर्णिमा के दिन ध्यान रखें मांस, मदिरा, अंडा, प्याज, लहसुन आदि का सेवन भूलकर भी न करें. इस दिन चंद्रदेव की कृपा पाने के लिए ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करें. इस दिन भूमि पर ही शयन करें.

सूर्योदय से पूर्व स्नान

कार्तिक पूर्णिमा के दिन पवित्र नदी या घाट पर स्नान करने का विशेष महत्व है. इस दिन सभी देवी-देवता कार्तिक पूर्णिमा पर पुष्कर में स्नान करते हैं. इसलिए इस दिन देव दिवाली भी मनाई जाती है. इस दिन स्नान का उत्तम समय सूर्योदय से पूर्व तारों की छांव में माना गया है. कार्तिक पूर्णिमा पर विधिवत स्न्नान करने से भगवान विष्णु की कृपा हमेशा बनी रहती.

पूरे विश्व के लिए एक उत्सव के रूप में पहचान बना चुकी है देव दीपावली
पूरे विश्व के लिए एक उत्सव के रूप में पहचान बना चुकी है देव दीपावली

ये भी पढ़ें- Gurunanak jayanti 2021: गुरुनानक जी के अमूल्य वचन, जो देते हैं लोगों को एकता का संदेश

वृषभ राशि में चंद्र और राहु की युति बन रही है. वृश्चिक राशि में सूर्य केतु की युक्ति बन रही है और तुला राशि में मंगल और बुध की युक्ति बन रही है, जो अति शुभ है. कार्तिक मास में आने वाली पूर्णिमा वर्षभर की पवित्र पूर्णमासियों में से एक है. इस दिन किये जाने वाले दान-पुण्य के कार्य विशेष फलदायी होते हैं. त्रिपुरोत्सव करके दीपदान करने से पुनर्जन्म का कष्ट नहीं होता है.

वाराणसी: वैसे तो दीपावली का पर्व खत्म हो चुका है. हर कोई दीपावली के इंतजार में लंबे वक्त तक रहता है और त्यौहार खत्म होने के बाद लोग यह भूल जाते हैं कि प्रकाश उत्सव सिर्फ दीपावली ही नहीं बल्कि काशी के लिए देव दीपावली को भी कहा जाता है. शायद यही वजह है कि देव दीपावली अब सिर्फ काशी में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के लिए एक उत्सव के रूप में पहचान बना चुकी है.

इस बार देव दीपावली का पर्व 19 नवंबर को वाराणसी में मनाया जाना है, लेकिन क्या आपको पता है काशी में मनाई जाने वाली देव दीपावली कैसे शुरू हुई, सबसे पहले वाराणसी में देव दीपावली का उत्सव किस घाट पर मनाया गया और इस पर्व को क्यों काशी में ही मनाया जाता है, तो आइए हम बताते हैं, आपको काशी के इस महापर्व से जुड़ी कुछ रोचक बातें.

1785 में एक स्तंभ से हुई शुरुआत
दरअसल वाराणसी के पंचगंगा घाट से इस देव दीपावली का सदियों पुराना नाता है. पंडित और ज्योतिषियों की मानें तो वाराणसी में देव दीपावली के शुरुआत वैसे तो पुराणों में भगवान शिव की कथा से जुड़ी है लेकिन घाटों पर जलाए जाने वाले दीपक की कहानी पंचगंगा घाट से जुड़ी है. बताया जाता है कि 1785 ईसवी में महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने पंचगंगा घाट पर ही पत्थर से बनाए गए हजारा स्तंभ दीपक की लंबी श्रृंखला को जलाकर काशी में देव दीपावली उत्सव की शुरुआत की थी.

जानिए कैसे शुरू हुई काशी में देव दीपावली

काशी नरेश ने दिया अलग रूप

देवताओं के द्वारा शुरू की गई दीपावली को पुराणों के अनुसार मानव जन तक पहुंचाने का यह प्रयास महारानी अहिल्याबाई होलकर द्वारा पंचगंगा घाट से शुरू हुई जो धीरे-धीरे समय के साथ काशी के 84 घाटों तक पहुंच गई और महाराजा काशी नरेश विभूति नारायण सिंह और उनके सहयोगियों ने मिलकर 1985 से इसे आगे बढ़ाया. 1991 में शुरू हुई गंगा सेवा निधि की गंगा आरती के बाद इस देव दीपावली ने वैश्विक स्वरूप ले लिया और घाटों पर यह महापर्व विश्व स्तर तक पहुंच गया.

काशी नरेश ने दिया अलग रूप
काशी नरेश ने दिया अलग रूप
पंचगंगा घाट पर मिलती है पांच नदियां

बनारस के पंचगंगा घाट का इतिहास भी अपने आप में काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि कार्तिक के महीने में यहां पर आकाश दीप जलाए जाने की शुरुआत भी की गई थी. आज भी यहां सैकड़ों की संख्या में आकाशदीप लंबे-लंबे बांस पर लगी टोकरियों में जगमगाते हैं. इतना ही नहीं पंचगंगा घाट का महत्वपूर्ण स्थान है. जहां पर एक साथ पांच नदियों का समागम होता है. जिसमें गंगा, यमुना, सरस्वती, द्रुतपापा, किरणा शामिल हैं. इसके अलावा पानी पंचगंगा घाट व पवित्र स्थान भी है, जहां पर महान संत कबीर दास को सीढ़ियों पर स्वामी रामानंद जी से गुरु मंत्र मिला था. घाट की सीढ़ियों पर लेट कर अपने गुरु के आने का इंतजार कर रहे हैं कबीर के ऊपर स्वामी रामानंद के पैर इसी घाट पर पड़े थे.

पंचगंगा घाट से इस देव दीपावली का सदियों पुराना नाता
पंचगंगा घाट से इस देव दीपावली का सदियों पुराना नाता
हजारा स्तंभ जगमगाने के साथ शुरू होती है देव दीपावली

पुराणों में वर्णित है कि कार्तिक के पूरे महीने यदि पंचगंगा घाट पर स्नान किया जाए तो मोक्ष और पुण्य फल की प्राप्ति होती है और यदि पूरे महीने स्नान न कर पाए तो सिर्फ कार्तिक पूर्णिमा पर लगाई गई एक डुबकी ही पूरे कार्तिक का पुण्य देती है. यही वजह है कि आज भी इस पंचगंगा घाट का महत्व विशेष माना जाता है और यहां पर मौजूद सदियों पुराने हजारा दीपक स्तंभ को आज भी प्रज्ज्वलित कर काशी में देव दीपावली पर्व की शुरुआत की जाती है.

पंचगंगा घाट से इस देव दीपावली का सदियों पुराना नाता
पंचगंगा घाट से इस देव दीपावली का सदियों पुराना नाता

ये भी पढ़ें- देव दीपावली पर आकर्षण का केंद्र बनेगी 108 साल पुरानी मां अन्नपूर्णा की प्रतिमा

प्रयागराज में भी देव दीपावली का भव्य रुप

प्रयागराज में भी देव दीपावली बड़े भव्य रुप में मानाई जाती है. बता दें कि शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को कार्तिक पूर्णिमा कहते हैं. इस साल 19 नवंबर 2021 दिन शुक्रवार को कार्तिक पूर्णिमा दिन गंगा स्नान, दीपदान, यज्ञ और ईश्वर की उपासना का वशेष महत्व माना जाता है. इस दिन किए जाने वाले दान-पुण्य समेत कई धार्मिक कार्य विशेष फलदायी होते हैं. कार्तिक पूर्णिमा को लेकर शुभ मुहुर्त, मान्यताएं और पूजा विधि के बारे में ज्योतिषाचार्य शिप्रा सचदेव ने खास बातें ईटीवी भारत को बताई हैं जिनका लाभ आप भी लें.

पूरे विश्व के लिए एक उत्सव के रूप में पहचान बना चुकी है देव दीपावली
पूरे विश्व के लिए एक उत्सव के रूप में पहचान बना चुकी है देव दीपावली

इन चीजों का करें दान

मान्यता है कि इस दिन अन्न, दूध, फल, चावल, तिल और आवंला दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है. शाम के समय जल में थोड़ा कच्चा दूध, चावल और चीनी मिलाकर चंद्रमा को अर्घ्य देने से चंद्रमा की कृपा बनी रहती है. लक्ष्मी जी की कृपा पाने के लिए इस दिन पीपल के पेड़ पर जल में मीठा दूध मिलाकर चढ़ाना चाहिए.

ज्योतिषाचार्य शिप्रा सचदेव

क्या न करें कार्तिक पूर्णिमा

कार्तिक पूर्णिमा के दिन ध्यान रखें मांस, मदिरा, अंडा, प्याज, लहसुन आदि का सेवन भूलकर भी न करें. इस दिन चंद्रदेव की कृपा पाने के लिए ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करें. इस दिन भूमि पर ही शयन करें.

सूर्योदय से पूर्व स्नान

कार्तिक पूर्णिमा के दिन पवित्र नदी या घाट पर स्नान करने का विशेष महत्व है. इस दिन सभी देवी-देवता कार्तिक पूर्णिमा पर पुष्कर में स्नान करते हैं. इसलिए इस दिन देव दिवाली भी मनाई जाती है. इस दिन स्नान का उत्तम समय सूर्योदय से पूर्व तारों की छांव में माना गया है. कार्तिक पूर्णिमा पर विधिवत स्न्नान करने से भगवान विष्णु की कृपा हमेशा बनी रहती.

पूरे विश्व के लिए एक उत्सव के रूप में पहचान बना चुकी है देव दीपावली
पूरे विश्व के लिए एक उत्सव के रूप में पहचान बना चुकी है देव दीपावली

ये भी पढ़ें- Gurunanak jayanti 2021: गुरुनानक जी के अमूल्य वचन, जो देते हैं लोगों को एकता का संदेश

वृषभ राशि में चंद्र और राहु की युति बन रही है. वृश्चिक राशि में सूर्य केतु की युक्ति बन रही है और तुला राशि में मंगल और बुध की युक्ति बन रही है, जो अति शुभ है. कार्तिक मास में आने वाली पूर्णिमा वर्षभर की पवित्र पूर्णमासियों में से एक है. इस दिन किये जाने वाले दान-पुण्य के कार्य विशेष फलदायी होते हैं. त्रिपुरोत्सव करके दीपदान करने से पुनर्जन्म का कष्ट नहीं होता है.

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