हुगली: कहते हैं कि पूत के पांव, पालने में ही में दिखाई दे जाते हैं. इसी कहावत की नजीर पेश करते नजर आता है पश्चिम बंगाल के हुगली जिले का व्रजिश्नु भट्टाचार्या, जिसने मात्र 20 महीने की आयु में अपने कारनामों के बल पर इंडिया बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स के साथ एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में भी नाम दर्ज कराकर अपने माता पिता को गौरवान्वित किया है.
ईटीवी भारत से खास बातचीत में व्रजिश्नु के अभिभावकों ने बताया कि जब वह मात्र डेढ़ महीने का था, तब हमने गौर किया कि नाम लेने पर वह देवी-देवताओं की तस्वीरें पहचानने लगा था. जिस उम्र में बच्चों को किसी भी चीज का बोध नहीं होता, उस उम्र में ऐसा कर दिखाना मामूली बात नहीं थी. उन्होंने बताया कि वर्तमान में व्रजिश्नु नाम लेने पर सौ से भी अधिक देशों के झंडे को पहचान लेता है. इसके साथ ही वह मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम सुनकर उन्हें भी पहचान लेता है. उसके इस हुनर की जानकारी हमने वीडियो के साथ इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स के अधिकारियों को दी, जिसके बाद उसका नाम मात्र 18 महीने की आयु में इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज हुआ.
हालांकि व्रजिश्नु के हुनर की फेहरिस्त यहीं खत्म नहीं हुई. दरअसल, व्रजिश्नु के माता-पिता ने देखा कि चलना सीखने की शुरुआत से ही वह अकेले ही बिना किसी सहायता के लंबी दूरी तय कर लेता था. इसी क्रम में उसने डेढ़ किलोमीटर की दूरी चलकर पूरी कर ली. जब एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स के अधिकारियों ने यह देखा, उन्होंने भी दांतों तले उंगलियां दबा लीं. इतना ही नहीं, व्रजिश्नु ने अपनी इस असाधारण क्षमता से एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स के रिकॉर्ड धारकों की फेहरिस्त में अपना नाम शुमार कराया, जिसका सर्टिफिकेट उसे बीते 28 जुलाई को ही मिला है.
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व्रजिश्नु के माता-पिता काकली और दिलीप ने बताया कि अभी वह मां और बाबा के अलावा और कुछ बोल नहीं पाता. उन्होंने कहा कि अब देखना यह है कि बड़ा होकर वह अपने हुनर और क्षमताओं का कैसे उपयोग कर पाता है. व्रजिश्नु के पिता पतंग का व्यापार करते हैं जबकि उसकी मां गृहिणी हैं. अपने बेटे की इन उपलब्धियों से दोनों फूले नहीं समा रहे.