नई दिल्ली: केंद्रीय गृह मंत्रालय (एमएचए) ने साल 2024 तक भारत को माओवाद मुक्त बनाने के लिए अंतिम रणनीति तैयार की है. गृह मंत्रालय ने केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के साथ-साथ राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को माओवादी खतरे को खत्म करने के लिए पांच तरह के फॉर्मूले पर काम करने को कहा है. घटनाक्रम से जुड़े सूत्रों ने बुधवार को ईटीवी भारत को बताया कि पांच स्तरीय रणनीति के तहत सुरक्षा बलों को माओवादियों के शीर्ष नेतृत्व को निशाना बनाने और उसके बाद माओवादियों के अड्डों को निशाना बनाने के लिए कहा गया है.
सुरक्षा एजेंसियों को फ्रंटल ऑर्गनाइजेशन पर जांच के अलावा फंडिंग और लॉजिस्टिक्स रोकने के लिए भी कहा गया है. सुरक्षा एजेंसियों को अंदरूनी इलाकों में बड़े पैमाने पर जवाबी प्रचार अभियान चलाने को भी कहा गया है. गृह मंत्रालय द्वारा तैयार की गई रणनीति से पता चला, 'माओवादियों (नेतृत्व और निचले कैडर) को एक साथ दबाव में रखना होगा, जो न केवल उन्हें आश्चर्यचकित करता है, बल्कि उन्हें फिर से संगठित होने और दूसरे इलाके में उभरने से भी रोकता है.
गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने खुफिया रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि तेलंगाना में राज्य स्तरीय विशेष खुफिया शाखा वैसे तो हर स्तर पर माओवादियों की गतिविधि की जांच करती है लेकिन इसका मुख्य फोकस हमेशा शीर्ष नेतृत्व और उनकी गतिविधियों पर रहता है. हाल ही में गृह मंत्रालय में माओवादी समस्या पर हुई एक बैठक में इस बात पर जोर दिया गया कि माओवादियों को पूरी तरह से खत्म करने के लिए फ्रंटल संगठनों और उसके सदस्यों की गतिविधियों पर लगभग समान या अधिक प्रयास करने होंगे.
अधिकारी ने कहा कि भले ही हम फ्रंटल संगठन के खिलाफ कार्रवाई करते हैं लेकिन वे कम ताकत के साथ मौजूद रहते हैं. वे न्यायिक जांच से बचने के लिए विभिन्न रणनीति अपनाते हैं और जब भी उनके पूर्ववर्ती संगठन को कड़ी सुरक्षा मिलती है, तो वे पुनर्विचार के लिए समय निकालते हैं. अधिकारी ने इस तथ्य पर चिंता व्यक्त की है कि माओवादियों की पहुंच छात्र संगठन, किसान संगठन, असंगठित क्षेत्र, महिला संघ, आदिवासी समुदाय और अन्य कानूनी लोकतांत्रिक संगठन के रूप में हैय
खुफिया रिपोर्ट से पता चलता है कि भूमकाल मिलिशिया, क्रांतिकारी आदिवासी महिला संगठन, दंडकारण्य आदिवासी किसान मजदूर संगठन, चेतना नाट्य मंडली, बालाला दंडकारण्य चेतना नाट्य मंच कुछ प्रमुख संगठन हैं, जिनके माध्यम से माओवादी अपनी विचारधारा को प्रासंगिक बनाए रखने की कोशिश करते हैं. खुफिया रिपोर्ट से पता चलता है कि सीपीआई माओवादियों की ओर से फ्रंटल संगठन के फ्रैक्शन कमेटी के सदस्य कई ठेकेदारों, निगमों, शैक्षणिक संस्थानों आदि से पार्टी फंड के नाम पर धन इकट्ठा करते हैं.
अधिकारी ने कहा कि मोआवादियों द्वारा वन क्षेत्रों में ठेकेदारों और बीड़ी/तेंदू पत्ता ठेकेदारों से की जाने वाली जबरन वसूली के अलावा यह पैसा उनके वार्षिक राजस्व का एक बड़ा हिस्सा है. माओवादियों के फ्रंटल संगठन की जांच करने में सुरक्षा एजेंसियों के लिए एक बड़ी चुनौती यह तथ्य है कि ऐसे संगठन अपनी रोजमर्रा की गतिविधियों के लिए उन्नत प्रौद्योगिकी और एन्क्रिप्टेड संचार का उपयोग करते हैं. अधिकारी ने कहा कि माओवादी अब अपने कोरियर, एन्क्रिप्टेड ईमेल, रोजमर्रा के संचार के लिए एन्क्रिप्टेड प्लेटफॉर्म के लिए पीजीपी का उपयोग करते हैं. वे अब शहरी इलाकों में फ्रंटल नेताओं के साथ आसानी से संवाद करने में सक्षम हैं.
2024 तक माओवादियों के खतरे को खत्म करने की गृह मंत्रालय की रणनीति पर इस संवाददाता से बात करते हुए सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के पूर्व महानिदेशक प्रकाश सिंह ने कहा कि एक निश्चित समय के भीतर माओवादियों को खत्म करना आसान काम नहीं है. पहले भी कई बार ऐसा हुआ है. पी.चिदंबरम, राजनाथ सिंह जैसे पूर्व गृह मंत्रियों ने भी माओवादियों को खत्म करने की बात कही थी लेकिन, खतरा अभी भी मौजूद है.
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उन्होंने कहा, अगर सरकार वास्तव में माओवादियों का खात्मा करना चाहती है तो प्रशासन को जमीनी स्तर पर पहुंचना चाहिए. सिंह ने कहा कि माओवादी अंदरूनी इलाकों में रहने वाले आदिवासी लोगों के साथ अपने संचार का लाभ उठाते हैं. आदिवासी ग्रामीणों के साथ उनका संचार उन्हें (ग्रामीणों को) यह सोचने पर मजबूर करता है कि माओवादी वास्तव में उनके लिए काम करते हैं. उन्होंने कहा, सरकार को अंदरूनी इलाकों में रहने वाले आदिवासियों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति के उत्थान पर ध्यान देने की जरूरत है.
इस तथ्य को स्वीकार करते हुए कि सुरक्षा बलों के लगातार सफल अभियानों ने कई राज्यों में माओवादियों को कमजोर कर दिया है, सिंह ने कहा कि आदिवासी समुदाय को सावधानी से संभालने की जरूरत है. इससे पहले जनवरी में गृह मंत्री अमित शाह ने घोषणा की थी कि केंद्र 2024 तक देश में माओवादी समस्या को खत्म करने की दिशा में काम कर रहा है. उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि 2009 में केंद्र में कांग्रेस शासन के दौरान माओवादी हिंसा की 2258 घटनाएं दर्ज की गईं, लेकिन 2021 तक घटनाएं धीरे-धीरे कम होकर 509 हो गईं.