भरतपुर. हिमालय के तराई क्षेत्र और पूर्वोत्तर भारत के साथ ही पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, म्यांमार में पाया जाने वाला हॉग हिरण केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान की भी शोभा बढ़ा रहा है. लुप्तप्राय माना जाने वाला हॉग डियर पूरे राजस्थान में सिर्फ घना में ही देखा जा सकता है. उद्यान डीएफओ के अनुसार उद्यान में करीब 7-8 हॉग हिरण की मौजूदगी है.
ये यहां पर प्राकृतिक आवास में सुरक्षित रह रहे हैं. हालांकि पर्यावरणविदों का कहना है कि इनके प्रबंधन के लिए प्राकृतिक आवासों की देखभाल करना जरूरी है. केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान के डीएफओ नाहर सिंह ने बताया कि सामान्य तौर पर हॉग हिरण हिमालय की तराई, उत्तरी भारत और पूर्वोत्तर भारत में देखा जाता है. लेकिन पूरे राजस्थान में केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान के अलावा और कहीं पर भी इसकी साइटिंग नहीं है. उद्यान में करीब 7-8 हॉग हिरण मौजूद हैं.
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जानिए कैसा है हॉग डियरः हॉग हिरण एक छोटे आकार का हिरण है. यह घास के मैदानों में रहता है. इसकी दौड़ने की आदत की वजह से इसे हॉग हिरण नाम से जाना जाता है. इसके शरीर का ऊपरी भाग भूरा पीला रंग का होता है. हॉग हिरण की ऊंचाई करीब 1 मीटर और वजन 35-45 किलोग्राम तक होता है. मादा के सींग नहीं होते लेकिन नर के सींग होते हैं. इस हिरण का औसत जीवनकाल 15 से 18 साल का होता है.
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लुप्तप्राय, संरक्षण की जरूरतः विशेषज्ञों का मानना है कि वर्ष 2008 से पहले हॉग हिरण उत्तरी भारत और पूर्वोत्तर भारत में अच्छी संख्या में पाया जाता था. डीएफओ नाहर सिंह ने बताया कि घना में भी कई साल पहले इसकी अच्छी संख्या थी. यही वजह है कि वर्ष 2008 से पहले इसे संरक्षित प्रजाति के रूप में सूचीबद्ध नहीं किया गया. लेकिन बाद में इसकी संख्या में तेजी से कमी देखी गई. पर्यावरणविद डॉ सत्य प्रकाश मेहरा का कहना है कि वर्तमान में हॉग हिरण लुप्तप्राय श्रेणी में है. फिलहाल हॉग हिरण को वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 द्वारा शेड्यूल 1 स्पेसीज के रूप में वर्गीकृत किया गया है. साथ ही इसे cites appendix l में भी सूचीबद्ध किया गया है. डॉ. सत्य प्रकाश मेहरा का कहना है कि अगर केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में हॉग हिरण के प्रबंधन के लिए प्राकृतिक आवास की देखभाल करना बेहद जरूरी है.