हैदराबाद : अंतरराष्ट्रीय दाई डे हर साल 5 मई को मनाया जाता है. इस दिन नर्स और दाइयां स्वास्थ्य सेवा मुहैया कराने में अहम योगदान देती हैं. मिडवाइव्स समुदाय की महिलाए अपनी पूरी जिंदगी मां और बच्चे की देखभाल करने में भी बिता देती हैं. इसके अलावा वे महिलाओं को समय-समय पर स्वास्थ्य से जुड़ी अहम जानकारी और सलाह भी देती रहती हैं. आइए एक नजर डालते हैं मिडवाइव्स डे के इतिहास और इसकी भूमिका पर.
कौन हैं मिडवाइव्स ?
मिडवाइफ को आमतौर पर दाई के नाम से भी जाना जाता है. दाइयों का काम महिला की डिलीवरी करना और शिशु के साथ उसकी देखभाल करने का होता है. पहले हर मोहल्ले में दाइयां आसानी से देखने को मिल जाती थीं, लेकिन अब दूर-दराज के क्षेत्रों में ही दाइयों का चलन हैं. हालांकि, बर्थिंग सेंटर और अस्पतालों में भी कुछ दाइयां अपनी सेवा दे रही हैं. बता दें, आज भी कहीं महिलाएं दाइयों से डिलीवरी कराने को सुरक्षित मानती हैं. लेकिन, गर्भावस्था और डिलीवरी से जुड़ीं कई परेशानियों के चलते डॉक्टर्स दाइयों से डिलीवरी ना कराने की भी सलाह देते हैं.
क्या है इतिहास ?
इन महिलाओं और उनके काम के सम्मान में अंतरराष्ट्रीय मिडवाइव्स दिवस मनाया जाता है, जिस पर आईसीएम यानी मिडावाइव्स का अंतरराष्ट्रीय परिसंघ ने 1987 से नीदरलैंड में काम करना शुरू कर दिया था. चार साल बाद 5 मई, 1991 को यह अस्तित्व में आया, जिसके बाद से आईसीएम हर साल एक थीम और अभियान के साथ लोगों को जागरूक करने का काम करता है. इसकी पहली थीम 'Towards safe birth for all by the year 2000' थी.
मिडवाइव्स की अहमियत ?
गर्भावस्था, लेबर पेन और डिलीवरी के दौरान मिडवाइव्स बहुत ही अहम भूमिका निभाती हैं. इतना ही नहीं शिशु के जन्म के बाद भी ये महिलाएं जच्चा-बच्चा दोनों की दिन रात सेवा करती हैं. इन महिलाओं के योगदान की कोई तुलना नहीं है. एक गर्भवती महिला के लिए मिडवाइफ इसलिए भी जरूरी होती हैं, क्योंकि ये स्वास्थ्य से जुड़ी कई कारगर सलाह भी देती रहती हैं. ये महिलाएं उम्रदराज लोगों की खूब देखभाल करती हैं. WHO के मुताबिक 2030 तक यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज के लिए 90 लाख नर्स और दाइयों की आवश्यकता है.
कोरोना और मिडवाइव्स
बीते एक साल से भी ज्यादा समय से कोरोना महामारी ने पूरी दुनिया को अपने साये में लिया हुआ है. बावजूद इसके नर्स और दाइयां अपने काम में निस्वार्थ डटी हुई हैं. वहीं, कई महिलाएं कोरोना को लेकर इतनी चिंतित हैं कि वे इस बात पर भी पुनर्विचार कर रही हैं कि अस्पताल में डिलीवरी करानी है या नहीं. फ्लेमिश प्रोफेशनल ऑर्गनाइजेशन ऑफ मिडवाइव्स (VLOV) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, कोराना के कारण बेल्जियम में कई महिलाएं घर पर ही डिलीवरी कराने का विकल्प चुन रही हैं. वहीं, जर्मनी में कुछ अस्पतालों में डिलीवरी के कुछ घंटों के बाद ही महिलाओं को डिस्चार्स कर घर भेजा जा रहा है. जबकि, आयरलैंड, यूके और फ्रांस में गर्भवती महिला के साथ एक करीबी को ही ठहरने की इजाजत है. इस बीच मिडवाइव्स गर्भवती महिलाओं को मेंटल और इमोशनल सपोर्ट भी दे रही हैं. बता दें, सभी देशों ने विजिटर्स के आने पर पाबंदी लगाई हुई है.
महामारी में भी बढ़ी पॉपुलेशन
यूनिसेफ के आंकड़ों के अनुसार, मार्च 2020 में कोविड-19 को महामारी घोषित करने के बाद से दुनियाभर में अकेले भारत में सबसे ज्यादा बच्चे पैदा हुए हैं. आंकड़ों के मुताबिक, मार्च 2020 से दिसंबर 2020 तक भारत में 2 करोड़ से ज्यादा बच्चों के पैदा होने का अनुमान है. भारत में बीते साल मार्च में सरकारी और निजी अस्पतालों में 17,17,500 बच्चों ने जन्म लिया था. जबकि, इस साल मार्च में 9,71,872 बच्चों का जन्म हुआ.