देहरादून: राजधानी देहरादून में आयोजित होने वाला झंडा मेला ऐतिहासिक है. ये मेला 347 साल से आयोजित किया जा रहा है. हर साल होली के पांचवें दिन झंडे मेले का आयोजन किया जाता है. इसी क्रम में 12 मार्च को झंडे मेले का आयोजन किया जाएगा. ये मेला अगले एक महीने तक चलेगा. झंडा मेले की भव्यता को देखते हुए देहरादून जिला प्रशासन कई दिनों पहले इसकी तैयारियों में जुट जाता है. झंडा जी मेले में देश के तमाम हिस्सों से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी संगतें पहुंचती हैं. यहां हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु मेले में हिस्सा लेने के लिए पहुंचते हैं. देहरादून में झंडे मेले का आयोजन पिछले कुछ सालों से नहीं बल्कि 347 साल से किया जा रहा है. हर साल झंडे मेले की रौनक बढ़ती जा रही है.
साल 1675 में देहरादून पहुंचे थे महाराज: दरअसल, सिखों के सातवें गुरु हरराय महाराज के बड़े बेटे गुरु राम राय महाराज ने वैराग्य धारण किया. जिसके बाद वे संगतों के साथ भ्रमण पर निकले. वे साल 1675 में चैत्र मास कृष्ण पक्ष की पंचमी के दिन देहरादून पहुंचे. गुरु रामराय महाराज के देहरादून आगमन के अगले साल 1676 में उनके जन्मदिन को संगतों ने यादगार बनाए जाने को लेकर उत्सव मनाया. जिससे झंडे जी मेले की शुरुआत हुई. तब से हर साल इस उत्सव को मेले के रूप में मनाया जाने लगा. तब समय देहरादून एक छोटा सा गांव हुआ करता था.
महाराज ने देहरादून को बनाया कर्मस्थली: जब गुरु रामराय महाराज अपनी संगतों के साथ भ्रमण पर थे तो देहरादून के खुड़बुड़ा के पास गुरु रामराय महाराज के घोड़े का पैर जमीन में धंस गये. जिसके चलते गुरु रामराय महाराज ने इसी क्षेत्र में रुकने का फैसला किया. उन्होंने संगतों को भी यही रुकने का आदेश दे दिया. जिसके बाद उन्होंने इस क्षेत्र को अपनी कर्मस्थली बनाया. इसकी सूचना मुगल शासक औरंगजेब को मिली. औरंगजेब ने गढ़वाल क्षेत्र के राजा फतेह शाह को महाराज का खास ख्याल रखने के निर्देश दिए.
औरंगजेब ने गुरु रामराय को दी थी महाराज की उपाधि: पंजाब में जन्मे सिखों के सातवें गुरु हरराय महाराज के बड़े बेटे गुरु राम राय महाराज, बचपन से ही कई अलौकिक शक्तियों के मालिक थे. यही वजह है कि कम उम्र में ही गुरु राम राय महाराज ने असीम ज्ञान अर्जित कर लिया था. मुगल शासक औरंगजेब, गुरु रामराय को अलौकिक शक्तियां से काफी प्रभावित था. जिसके चलते औरंगजेब ने गुरु रामराय को हिंदू पीर यानी महाराज की उपाधि दी थी. यही नहीं, महाराज ने छोटी सी उम्र में असीम ज्ञान अर्जित करने के बाद वैराग्य धारण कर लिया. जिसके बाद वे संगतों के साथ भ्रमण पर निकल पड़े थे.
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डेरादून से देहरादून नाम का सफर: राजा फतेह शाह ने महाराज को देहरादून में ही डेरा बनाने का अनुरोध किया. जिस पर गुरु रामराय महाराज ने संगत को यहां रहने के लिए चारों दिशाओं में तीर चलाए. ऐसे में महाराज के तीर जहां तक गए, उतनी जमीन पर गुरु रामराय महाराज ने अपनी संगत को ठहरने का हुक्म दे दिया. भारी संख्या में महाराज के साथ मौजूद संगत में इस क्षेत्र में अपना डेरा बना लिया. जिसके बाद इस छोटे से गांव का नाम डेरादून पड़ा. अंग्रेजी शासन के दौरान डेरादून का नाम देहरादून हो गया.
श्रद्धालुओं के लिए सांझा चूल्हा की हुई स्थापना: देहरादून में झंडा जी मेले की शुरुआत होने के बाद से ही देश भर से संगत के आने का सिलसिला शुरू हो गया. भारी संख्या में श्रद्धालुओं के पहुंचने के चलते भोजन व्यवस्था करना महाराज के लिए एक बड़ी चुनौती बन गई. जिसके चलते उस दौरान गुरु राम राय महाराज ने दरबार में सांझा चूल्हा की स्थापना की. इससे देशभर से आने वाले सभी श्रद्धालुओं के साथ ही महाराज के साथ रहने वाले संगत के लिए भी यहीं भोजन की व्यवस्था होती थी. साथ ही दरबार साहिब में आने वाला कोई भी शख्स भूखा नहीं जाता था. तब से सांझा चूल्हा की व्यवस्था जारी है. यहां हर दिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु एक छत के नीचे भोजन करते हैं.
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झंडे जी पर गिलाफ चढ़ाने के साथ शुरू होगा मेला: झंडे जी मेले की शुरुआत झंडे जी पर गिलाफ चढ़ाने के साथ ही शुरू हो जाती है. चैत्र में कृष्ण पक्ष की पंचमी के दिन पूजा-अर्चना के बाद झंडे जी को उतारा जाता है. ध्वज दंड में बंधे गिलाफ और अन्य चीजों को हटाया जाता है. फिर सेवक ध्वज दंड को घी, दही और गंगाजल से स्नान कराते हैं. जिसके बाद फिर गिलाफ को झंडे जी पर चढ़ाने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है. यह परंपरा सदियों से चली आ रही है. ध्वज दंड में गिलाफ चढ़ाने से पहले सादे और फिर सनील के गिलाफ चढ़ाए जाते हैं. फिर सबसे ऊपर दर्शनी गिलाफ चढ़ाया जाता है.
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झंडे जी के आरोहण के दौरान बाज करता है परिक्रमा: मान्यता है कि जब झंडे जी पर गिलाफ चढ़ाए जाने के बाद झंडे जी का आरोहण किया जाता है तो उस दौरान झंडे जी के ऊपर बाज परिक्रमा करता दिखाई देता है. इसे गुरु राम राय महाराज की सूक्ष्म उपस्थिति और आशीर्वाद के रूप में माना जाता है. यह नजारा हर साल झंडारोहण के बाद दिखाई देता है. इस बार 12 मार्च को झंडे जी का आरोहण होना है. जिसकी तैयारियां जोरों शोरों पर चल रही हैं. इस बार भी संगतें उम्मीद कर रही हैं कि इस बार भी गुरु राम राय महाराज आशीर्वाद देने आएंगे.
दरबार साहिब के अब तक के महंत
- 1687 से 1741 तक महंत औददास ने दरबार साहिब की गद्दी संभाली.
- 1741 से 1766 तक महंत हरप्रसाद ने दरबार साहिब की गद्दी संभाली.
- 1766 से 1818 तक महंत हरसेवक ने दरबार साहिब की गद्दी संभाली.
- 1818 से 1842 तक महंत स्वरूप दास ने दरबार साहिब की गद्दी संभाली.
- 1842 से 1854 तक महंत प्रीतम दास ने दरबार साहिब की गद्दी संभाली.
- 1854 से 1885 तक महंत नारायण दास ने दरबार साहिब की गद्दी संभाली.
- 1885 से 1896 तक महंत प्रयाग दास ने दरबार साहिब की गद्दी संभाली.
- 1896 से 1945 तक महंत लक्ष्मण दास ने दरबार साहिब की गद्दी संभाली.
- 1945 से 2000 तक महंत इंद्रेश चरन दास ने दरबार साहिब की गद्दी संभाली.
- 2000 से वर्तमान समय में महंत देवेंद्र दास दरबार साहिब की गद्दी संभाल रहे हैं.