देहरादूनः द्रोणनगरी देहरादून में स्थित दरबार श्री गुरु राम राय महाराज परिसर में आस्था और श्रद्धा का सैलाब उमड़ पड़ा. ऐतिहासिक दरबार साहिब (Darbar Sahib) में आज विधि-विधान के साथ 90 फीट ऊंचे श्री झंडे जी (Shree Jhande Ji) का आरोहण किया गया. ऐतिहासिक झंडे जी मेला का आरोहण दास महाराज की अगुआई में हुआ. श्री झंडे जी के आरोहण के दौरान गुरु महिमा की जयकारे शहरभर में सुनाई दी. इस दौरान सीमित संख्या में देश के विभिन्न राज्यों जैसे पंजाब, उत्तर प्रदेश और हरियाणा से सीमित संख्या में लोग श्री झंडे जी के आरोहण का साक्षी बनने पहुंचे.
सबसे पहले दूध, दही, घी, मक्खन, गंगाजल और पंचगव्यों से नए श्री झंडे जी को स्नान कराया गया. विधिवत वैदिक विधान से पूजा अर्चना के बाद अरदास हुई. सुबह करीब दस बजे से श्री झंडे जी यानी पवित्र ध्वजदंड पर गिलाफ चढ़ाने का कार्य शुरू किया गया. फिर श्री झंडे जी का विधिवत आरोहण किया गया. ऐतिहासिक मेले के लिए 90 फीट ऊंचा ध्वजदंड कंधों पर उठाकर संगत पहुंची थी. इस साल दिल्ली निवासी बलजिंदर सिंह सैनी ने झंडे जी पर दर्शनी गिलाफ चढ़ाया. उनके परिजनों की ओर से कराई गई बुकिंग के आधार पर इस वर्ष 100 साल बाद बलजिंदर सिंह और उनके परिजनों को यह मौका मिला है.
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झंडा मेला आयोजन समिति के व्यवस्थापक केसी जुयाल ने बताया कि दरबार साहिब प्रबंधन की ओर से संगतों की ठहरने की पूरी व्यवस्था की गई है. श्री गुरुराम राय बिंदाल स्कूल, राजा रोड, भंडारीबाग सहित पटेल नगर और देहरादून के विभिन्न धर्मशालाओं में संगतों का रुकने का इंतजाम किया गया है. साथ ही एक दर्जन ज्यादा छोटे-बड़े लंगरों की व्यवस्था है. सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिए मेला थाना और मेला अस्पताल बनाए गए हैं.
इस साल श्री दरबार साहिब में भित्ति चित्र भी विशेष आकर्षण का केंद्र रहेंगी. इन भित्ति चित्रों को पानी, धूल, प्रदूषण धूप से बचाने के विशेष तकनीक का प्रयोग किया गया है. साथ ही बीते कुछ महीनों से भित्ति चित्रों को सरंक्षित करने के लिए एक विशेष टीम श्री दरबार साहिब में काम कर रही है. श्री दरबार साहिब के करीब 346 वर्षों के इतिहास को यह भित्ति चित्र कई उदाहरणों से सजीव करने का काम कर रहे हैं. इसमें इतिहास के साथ ही टिहरी की नथ का भी सजीव चित्रण किया गया है.
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2 साल बाद मेले का भव्य स्वरूपः कोरोना से स्थिति सामान्य होने के करीब दो साल बाद इस साल भव्य स्वरूप में मेले का आयोजन किया गया. मेले में भाग लेने के लिए देश-विदेश से भारी संख्या में संगत और श्रद्धालु देहरादून पहुंचे हैं. सुबह सात बजे से पुराने श्री झंडे जी को उतारने का कार्यक्रम शुरू हो गया था. 24 मार्च को ऐतिहासिक नगर परिक्रमा होगी.
100 साल पहले से होती दर्शनी गिलाफ की बुकिंग: ऐतिहासिक दरबार साहिब से सिख समाज से जुड़े लोगों की आस्था कुछ इस कदर जुड़ी हुई है कि श्री झंडे जी पर चढ़ाए जाने वाले सनील गिलाफ की बुकिंग अभी से आगामी 2044 तक के लिए हो चुकी है. दूसरी तरफ दर्शनी गिलाफ की बुकिंग भी अभी से साल 2122 तक के लिए हो चुकी है. अगर कोई श्रद्धालु इस साल दर्शनी गिलाफ चढ़ाने के लिए बुकिंग करवाता है तो करीब 100 साल बाद 2121 में उनका नंबर आएगा. देश के विभिन्न हिस्सों में रहने वाले सिख समाज के लोगों का मानना है कि ऐतिहासिक दरबार साहिब में एक बार माथा टेकने पर मनोकामनाएं जरूर पूर्ण होती हैं.
क्या होते हैं झंडे जी पर चढ़ने वाले गिलाफ: गिलाफ का अर्थ है कपड़ा या आवरण, जिस तरह मनुष्य खुद को ढकने के लिए आवरण ओढ़ता है, भगवान की मूर्तियों को पोषाक पहनाई जाती हैं उसी तरह सिख समाज से जुड़े लोगों की आस्था से जुड़े झंडे जी को गिलाफ चढ़ाया जाता है. झंडे जी के तीन तरह के आवरण होते हैं
- सादा गिलाफ-इसकी संख्या 41 होती है. झंडे जी को सबसे पहले यही गिलाफ ओढ़ाया जाता है.
- सनील गिलाफ-इसकी संख्या 21 होती हैं. इसके लिए श्रद्धालुओं द्वारा बुकिंग की जाती है.
- दर्शनी गिलाफ-इसकी संख्या केवल 1 होती है. सबसे ऊपर रहने के कारण ही इसका नाम दर्शनी गिलाफ है. इस गिलाफ को चढ़ाने के लिए लकी ड्रा निकाला जाता है. दर्शनी गिलाफ चढ़ाने के लिए 100 साल पहले से बुकिंग होती है.
झंडा जी की मान्यताः सिखों के सातवें गुरु श्री गुरु हर राय के बड़े पुत्र श्री गुरु राम राय जी का जन्म होली के पांचवें दिन हुआ था. वर्ष 1646 को पंजाब के होशियारपुर जिले के कीरतपुर में जन्म लेने वाले श्री गुरु राम राय जी को ही देहरादून का संस्थापक माना जाता है. उनके जन्मदिन के मौके पर हर साल झंडा जी मेले का आयोजन होता है. झंडे जी देहरादून के दरबार साहिब में स्थापित हैं. यहां हर साल आस्था का ऐसा सैलाब उमड़ता है कि देखने वालों को भी आंखों पर यकीन नहीं होता. इस दरबार साहिब की स्थापना श्री गुरु राम राय जी ने की थी. औरंगजेब गुरु राम राय के काफी करीबी माने जाते थे. औरंगजेब ने ही महाराज को हिंदू पीर की उपाधि दी थी. गुरु राम राय जी ने देहरादून में आकर डेरा डाला था. इसी जगह पर यहां दरबार साहिब बनाया गया और यहां झंडे जी की स्थापना की की गई.