जयपुर. समरकंद के शिलालेख में जयपुर के राजा सवाई जयसिंह द्वितीय को मुगलों का सर्वेंट बताया गया है. शिलालेख और उस पर लिखी सामग्री के सामने आने के बाद एक बार फिर जयपुर के राजा को लेकर चर्चाएं तेज हो चली हैं.
इन चर्चाओं के बीच ईटीवी भारत से खास बातचीत में जयपुर के इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत ने मुगल दरबार के फारसी में लिखे डॉक्यूमेंट के आधार पर बताया कि सवाई जयसिंह मुगलों के सर्वेंट नहीं बल्कि सेनापति, सलाहकार और मनसबदार थे. जहां तक बात वेधशालाओं के निर्माण की है तो इसमें सवाई जयसिंह की खुद की रुचि थी. यही वजह है कि उन्होंने एक नहीं दो नहीं बल्कि 5 वेधशाला का निर्माण करवाया. उज़्बेकिस्तान से वेधशाला बनाते वक्त स्टडी के लिए मंगवाई गई उलूक बेग की सारणी तक को शुद्ध करने का काम सवाई राजा जयसिंह ने किया था.
उज्बेकिस्तान के शहर समरकंद की वेधशाला (Uzbekistan Samarkand Observatory) के बाहर लिखे गए शिलालेख में जयपुर के राजा सवाई जयसिंह पर आपत्तिजनक टिप्पणी की (Offensive remarks on Sawai Raja Jai Singh) गई है. वेधशाला के शिलालेख में सवाई जयसिंह को बाबर के वंशज मुहम्मद शाह का नौकर लिखा गया है. साथ ही वेधशाला के अंदर साईटेशन में भी ये बात लिखी हुई है. सरकारी वेधशाला के बोर्ड पर इस तरह के शब्द लिखने पर तेलंगाना के मुख्यमंत्री की बेटी और पूर्व टीआरएस सासंद के कलवाकुन्तल कविता (Telangana cm daughter wrote letter to S Jayshankar) ने कड़ी आपत्ति जताते हुए विदेश मंत्री एस जयशंकर को चिट्ठी लिखी है. जयपुर के पूर्व राजघराने ने भी इस पर विरोध जताया है. वहीं इतिहासकारों ने भी पुराने साक्ष्यों के आधार पर स्थितियां स्पष्ट की हैं.
सवाई जयसिंह मुगलों के सर्वेंट नहीं, सेनापति थे: आमेर और जयपुर राजाओं के मुगलों के साथ राजनीतिक संबंध थे. इसके अलावा बड़े-बड़े सेनापति पदों पर आमेर और जयपुर के राजा रहे हैं. यहां तक कि मुगल बादशाह के उत्तराधिकार का प्रश्न भी जयपुर के महाराजाओं के द्वारा ही निश्चित किया जाता था. उसी वजह से ये कहना कि वो सर्वेंट है ये सर्वथा गलत है. मुगल और फारसी डाक्यूमेंट्स में भी ये स्पष्ट है कि जयपुर के महाराजा मुगल दरबार के सेवक ना होकर परामर्शदाता, सेनापति, बड़े मनसबदार थे. यही नहीं अंग्रेजों के जमाने में मुगल अंग्रेजों से पेंशन पाते थे. जबकि जयपुर अंग्रेजों की निगाह के अंदर सबसे समृद्ध शाली शहर माना जाता था.
बहादुर शाह को संधि के लिए किया था मजबूर: इतिहासकार आनंद शर्मा ने बताया कि औरंगजेब की मौत के बाद बहादुर शाह प्रथम मुगल सम्राट बने. उसने आमेर पर आधिपत्य स्थापित कर इसका नाम बदलकर मोमीनाबाद कर दिया. बाद में सवाई जयसिंह ने जोधपुर, उदयपुर और आमेर का मिलाजुला संगठन बनाकर मुगल सेनाओं को आमेर से उखाड़ फेंका और जयपुर की स्थापना की. इस दौरान उनके बीच संधि हुई. बाद में मुगल बादशाह को बड़ा अफसोस हुआ और उसने जयपुर से मित्रता पूर्ण व्यवहार किया. सवाई जयसिंह ने अपनी शर्तों में ये स्पष्ट किया कि जयपुर की कोई भी बेटी अब मुगल हरम में नहीं जाएगी.
खुद की रुचि से बनाई वेधशाला : वेधशाला का प्राचीन रूप राजा भोज के जमाने से चला आ रहा है. जिनकी भोजशाला उज्जैन में आज भी मौजूद है. उसी परंपरा को आगे सवाई जयसिंह ने बढ़ाने का काम किया. खगोल शास्त्र सवाई जय सिंह का खुद की रुचि का विषय था. उन्होंने खुद की एक किताब भी लिखी, जिसका नाम था यंत्र राज रचना. वेधशाला का निर्माण करते समय सवाई जयसिंह ने दुनिया भर के ज्योतिष गणना करने वाले लोगों से राय मंगवाई. समरकंद के उलूक बेग की ज्योतिष सारणियों में भी संशोधन करने का काम सवाई जयसिंह ने किया था.
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यंत्रों की बनावट धातु के अलावा पत्थरों पर बनाने की शुरुआत सवाई जयसिंह ने की. इसी आधार पर उन्होंने 5 वेधशाला बनाई. उन्होंने इन वेधशाला में पंच देव का कन्सेप्ट रखा. जिसमें सबसे बड़ी उनके निजी शहर जयपुर में है. इसके बाद दिल्ली, मथुरा, उज्जैन और बनारस में वेधशाला बनाई गई. इनमें से मथुरा और बनारस की वेधशालाएं रखरखाव नहीं होने के चलते खत्म हो चुकी हैं. सवाई जयसिंह की जयपुर में बनाई गई वेधशाला के आधार पर आज भी पंचांग निकलता है. जिसे जय विनोदी पंचांग बोला जाता है.
मुगल किताबों में नहीं मिलता वर्णन: मुगल दरबारियों की किताबें सवाई जयसिंह द्वितीय के समय से पहले तक लिखी जाती रही हैं. औरंगजेब के बाद कोई भी राजा लंबे समय तक शासन नहीं कर पाया. यही वजह रही कि उनकी ख्याति में किसी भी दरबारी की ओर से कोई किताब नहीं लिखी गई. हालांकि इसके बाद वीर विनोद मेवाड़ का इतिहास कहते हैं, वंश भास्कर जिसे बूंदी का इतिहास कहते हैं. गौरीशंकर हीराचंद ओझा और कई आधुनिक इतिहासकारों- लेखकों की किताबों में इसका वर्णन मिलता है कि सवाई जय सिंह बहु प्रतिभाशाली राजा रहे, ना कि कोई सेवक.
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राजदरबार रनिवास का लेख: जयसिंह को जिन मुस्लिम ज्योतिषियों ने सबसे अधिक प्रभावित किया उनमें मिर्जा उलग वेग (1339-1419) का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है. उलग बेग भी जयसिंह की तरह राजा और ज्योतिषी था. उन दिनों तैमूर का ये पौत्र अपने ज्योतिषीय ज्ञान के संदर्भ में संसार में प्रसिद्ध हो रहा था. इतिहासकारों के मुताबिक 1425 में उलग बेग ने समरकंद में एक वेधशाला स्थापित की थी. इसके 300 वर्ष बाद राजा जयसिंह ने दिल्ली तथा चार अन्य स्थलों पर वेधशालाओं की शृंखला स्थापित की.
उलग बेग ने समरकंद की वेधशाला में किए गए अध्ययनों के आधार पर गणना करके सारिणियां तैयार की थीं. इन्हीं सारिणियों को जयसिंह ने अपने अध्ययन का मुख्य आधार बनाया. बाद में जयसिंह ने इन सारिणियों को अधिक शुद्ध रूप दिया उसने 'जिज मुहम्मदशाही के नाम से एक नई सारिणी का निर्माण किया था. इसके साथ ही जयसिंह ने ज्योतिषीय गणनाओं को धातु-यंत्रों की संदिग्धता से हटाकर पत्थर की स्थिरता और असंदिग्धता प्रदान की. ज्योतिष अध्ययन की परंपरा में उलग वेग तथा जयसिंह दो महत्वपूर्ण चरण हो गए हैं.
समरकंद की वेधशाला के बोर्ड पर शिलालेख में ये लिखा है: भारत में 17वीं शताब्दी में राज करने वाले मिर्जा बाबर के पूर्वज मिर्जा उलूग बेग की साइंटिफिक हेरिटेज पर उन्होंने खास ध्यान दिया. बाबर के वंशज युलतान मुहम्मद शाह ने 18वीं शताब्दी में महल के नौकर और खगोलविद सवाई जयसिंह को जयपुर, बनारस में वेधशालाएं बनाने का आदेश दिया. उनमें समरकंद की वेधशाला के उपकरणों की नकल की गई है.