नई दिल्ली : 1826 में आज के दिन यानी 30 मई को पहला समाचार पत्र उदन्त मार्तण्ड निकाला गया था. यह एक साप्ताहिक समाचार पत्र था. इसके संपादक पंडित जुगल किशोर शुक्ल थे. वही इसके प्रकाशक भी थे. वैसे, आर्थिक तंगी की वजह से इस अखबार को बंद करना पड़ गया. डेढ़ साल बाद इसका प्रकाशन रोक दिया गया. अंतिम अंक में संपादक ने लिखा, 'आज दिवस लौं उग चुक्यौ मार्तण्ड उदन्त, अस्ताचल को जात है दिनकर दिन अब अंत.'
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आज हिंदी पत्रकारिता दिवस है. आज ही के दिन (30 मई, 1826) पहले हिंदी समाचार पत्र ‘उदन्त मार्तण्ड’ का प्रकाशन हुआ था. पंडित जुगल किशोर शुक्ल इसके संपादक थे. 'उदन्त मार्तण्ड' को एक साहसिक प्रयोग के रूप जाना जाता है.
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सभी पत्रकार साथियों को #हिंदी_पत्रकारिता_दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!
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सभी पत्रकार साथियों को #हिंदी_पत्रकारिता_दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!आज हिंदी पत्रकारिता दिवस है. आज ही के दिन (30 मई, 1826) पहले हिंदी समाचार पत्र ‘उदन्त मार्तण्ड’ का प्रकाशन हुआ था. पंडित जुगल किशोर शुक्ल इसके संपादक थे. 'उदन्त मार्तण्ड' को एक साहसिक प्रयोग के रूप जाना जाता है.
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सभी पत्रकार साथियों को #हिंदी_पत्रकारिता_दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!
वैसे, यह अखबार भले ही ज्यादा दिनों तक नहीं चला हो लेकिन इसने हिंदी पत्रकारिता को नया सूरज जरूर दिखा दिया. तब से एक ऐसी रोशनी निकली, जो आने वाले समयों में प्रखर से प्रखरतर ही होती चली गई. शुरुआती दिनों में हिंदी समाचार पत्रों को स्थापित करने में गणेश शंकर विद्यार्थी की बहुत बड़ी भूमिका थी. उन्होंने 1913 में प्रताप नाम से एक समाचार पत्र की शुरुआत की थी. गणेश शंकर को शिवनारायण मिश्र, नारायण प्रसाद अरोड़ा और यशोदा नंदन का सहयोग मिला था. नंदन इसके प्रकाशक थे.
- 30 मई 1826 को देश का पहला हिंदी अखबार प्रकाशित हुआ था.
- उदन्त मार्तण्ड की शुरुआत एक साप्ताहिक समाचार पत्र के तौर पर हुई थी.
- इसके प्रकाशक और संपादक पंडित जुगल किशोर शुक्ल थे.
- उदन्त मार्तण्ड प्रत्येक मंगलवार को प्रकाशित होता था.
- 19 महीने बाद आर्थिक तंगी की वजह से इसे बंद करना पड़ा.
उदन्त मार्तण्ड जब प्रकाशित हुआ था, तो उससे करीब 46 साल पहले अंग्रेजी अखबर छपा था. जेम्स अगस्टस हिक्की ने इसे प्रकाशित किया था और इसका नाम था कलकत्ता जनरल एडवर्टाइजर. वैसे, आजादी के आंदोलन में जब महात्मा गांधी पदार्पण हुआ, तब उन्होंने हिंदी पत्रकारिता पर अपनी गहरी छाप छोड़ी. 1920-47 तक जितने भी समाचार पत्र निकले, सब कहीं न कहीं गांधी से प्रभावित थे या फिर आप कह सकते हैं कि वे आजादी के आंदोलन के रंग में रंगे हुए थे. 1920 से ही मशूहर हिंदी अखबर आज का प्रकाशन शुरू हुआ था. बाद में यह अखबार हिंदुस्तान का लीडिंग न्यूजपेपर भी बना. इसके पहले प्रकाशक शिवप्रसाद गुप्त थे. इसी कालखंड में माखनलाल चतुर्वेदी ने 1920 में ही कर्मवीर का प्रकाशन किया था. उन्होंने इसे जबलपुर से निकाला था.
नवभरात 1947 में और हिंदुस्तान 1950 में शुरू हुआ था. ये दोनों अखबार आज हिंदी क्षेत्र में शिखर पर हैं. 1947 में ही जागरण की शुरुआत हुई थी. अमर उजाला की शुरुआत 1948 में हुई थी. लाला जगतनारायण ने 1964 में पंजाब केसरी का प्रकाशन किया था. 1951 में युगधर्म आया था. 1950 में धर्मयुग का पदार्पण हुआ था. इसका प्रकाशन मुंबई से हुआ था. इसके पहले संपादक इलाचंद्र जोशी थे. धर्मयुग अपने समय की बहुत ही क्रांतिकारी और विचारोत्तेजक मैगजीन थी. 1956 में राजस्थान पत्रिका, 1985 में दिनमान, 1964 में कादंबिनी, 1964 में माधुरी की शुरुआत हुई थी.
हिंदी पत्रकारिता दिवस पर सिर्फ इतिहास को याद कर इससे इतिश्री करने वाली बात नहीं है. आज के दिन उन पत्रकारों को भी याद करने का दिन है, जिन्होंने अपने ज्ञान, विवेक, साहस, धैर्य, लगन और निष्पक्षता से इसे नईं ऊंचाइयां प्रदान कीं. उन पत्रकारों को भी याद करने का दिन है, जिन्होंने किसी भी सूरत में सच्चाई और ईमानदारी से समझौता नहीं किया और सरकार को घुटने टेकने पर भी मजबूर किया. उनके आदर्श की बदौलत ही हिंदी पत्रकारिता आज पल्लवित और पुष्पित हो रही है.
अंग्रेजी मीडियम की चकाचौंध के बीच भी हिंदी पत्रकारिता बुलंदी के साथ खड़ा है. यह न सिर्फ खड़ा है, बल्कि जनभावनाओं को भी प्रकट कर रहा है. यह उन 60 करोड़ लोगों की भावनाओं को संजोए हुए है, जो मुख्य रूप से हिंदी भाषी हैं. आज का दौर डिजिटल मीडिया का है. इंटरनेट का समय है. हिंदी पत्रकारिता के सामने इसको लेकर भी कई चुनौतियां हैं. लेकिन इसके बावजूद हिंदी पत्रकारिता इस दौर में भी अपना दायरा बढ़ता ही जा रहा है.
हिंदी पत्रकारिता दिवस पर कुछ बात भाषा पर भी की जानी चाहिए. वैसे कहा जाता है कि भाषा एक प्रवाह है और उसे जहां से शब्द मिले, उसे समाहित कर लेनी चाहिए. भाषा लंबे समय तक वही कायम रहती है, तो बदलते हुए परिवेश, यथार्थ और आकांक्षाओं को अपने में समाहित कर सके. यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि हिंदी इस पैमाने पर पूरी तरह से खरी उतरी है और इसका दायरा भी संभवतः इसी वजह से बढ़ रहा है. वैसे, डिजिटल युग में हिंदी अगर नए-नए शब्दों को जगह नहीं देगी, तो यह युवा पीढ़ी से दूर भी हो सकती है. हिंदी पत्रकारिता भाषा के लिहाज से डिजिटल युग में भी सटीक काम कर रही है.
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