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सेब उत्पादन में चीन-अमेरिका को पछाड़ेगा हिमाचल, प्रति हेक्टेयर 50 मीट्रिक टन उत्पादन का लक्ष्य

हिमाचल प्रदेश में सेब उत्पादन का सफर 100 साल से अधिक का हो गया है. वर्तमान में प्रदेश में औसतन प्रति हेक्टेयर 18 से 25 मीट्रिक टन सेब पैदा हो रहा है. ऐसे में अब यह उम्मीद जताई जा रही है कि हिमाचल प्रदेश के बागवान जल्द ही प्रति हेक्टेयर उत्पादन में चीन और अमेरिका को पछाड़ने की स्थिति में आ जाएंगे.

सेब उत्पादन
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Published : Oct 29, 2021, 9:51 PM IST

शिमला : हिमाचल भारत का 'एप्पल बाउल' कहलाता है. यहां सालाना तीन से पांच करोड़ पेटी सेब का उत्पादन होता है. हिमाचल में इस समय औसतन प्रति हेक्टेयर 18 से 25 मीट्रिक टन सेब पैदा हो रहा है. चीन और अमेरिका में यह आंकड़ा प्रति हेक्टेयर 45 से 55 मीट्रिक टन है. हिमाचल प्रदेश के बागवान जल्द ही प्रति हेक्टेयर उत्पादन में चीन और अमेरिका को पछाड़ने की स्थिति में आ जाएंगे. इसका अंदाजा यूं लगाया जा सकता है कि कुछ प्रगतिशील बागवानों ने इस दिशा में सफलता भी हासिल कर ली है. सेब उत्पादन के यूथ आइकॉन संजीव चौहान तो सात साल पहले ही निजी तौर पर रिकॉर्ड सेट कर चुके हैं. उन्होंने प्रति हेक्टेयर 55 से 60 मीट्रिक टन सेब पैदा किए हैं.

हिमाचल प्रदेश में कुल सेब उत्पादन का 80 फीसदी शिमला जिला में होता है. हिमाचल में सेब उत्पादन का सफर 100 साल से अधिक का हो गया है. इस दौरान युवाओं ने अपने परिश्रम से सेब उत्पादन में कई रिकॉर्ड बनाए हैं. आलम यह है कि अरुणाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर के बागवान भी सीख लेने के लिए हिमाचल के बागवानों के पास आते हैं. हिमाचल के युवा बागवान इन राज्यों में निशुल्क कैंप लगाकर सेब उत्पादन की बारीकियां सिखाते हैं इनमें संजीव चौहान, कुनाल चौहान, पंकज डोगरा, डिंपल पांजटा का नाम प्रमुख है. यदि संजीव चौहान की बात की जाए तो वर्ष 2014 में उन्होंने अपने बागीचे में 60 मीट्रिक टन तक सेब उगाए.

यहां उस सफलता की संक्षिप्त जानकारी दर्ज करना जरूरी है. तब संजीव चौहान की सफलता को फ्रूट वर्ल्ड पत्रिका ने भी सलाम किया था. विख्यात बागवानी वैज्ञानिक और फ्रूट वर्ल्ड पत्रिका के सूत्रधार डॉ. चिरंजीत परमार ने इस ऑनलाइन पत्रिका के 2014 के अंक में संजीव चौहान की सफलता पर खास लेख लिखा था.

बता दें कि वर्ष 2014 में संजीव चौहान के बागीचे में प्रति हेक्टेयर सेब की पैदावार करीब 60 मीट्रिक टन हुई थी. यह विश्व में रिकॉर्ड उत्पादन करने वाले देशों चीन व अमेरिका से कहीं ज्यादा है. चीन व अमेरिका में प्रति हेक्टेयर सेब उत्पादन का रिकॉर्ड 35 से 40 मीट्रिक टन है. तब संजीव चौहान के इस रिकॉर्ड उत्पादन की पुष्टि हिमाचल के बागवानी विभाग के तत्कालीन निदेशक डॉ. गुरदेव सिंह व बागवानी तथा औद्यानिकी यूनिवर्सिटी नौणी के कुलपति डॉ. विजय ठाकुर ने भी की थी.

संजीव चौहान वर्ष 2013 से ही लगातार उत्पादन बढ़ाने की तकनीकों को लेकर प्रयोग कर रहे थे. अब भी संजीव चौहान पर केंद्रित वह लेख वेबसाइट पर फोटो सहित देखा जा सकता है. वेबसाइट डबल्यूडबल्यूडबल्यू डॉट एफआरयूआईपीईडीए डॉट कॉम (www.fruipeda.com) के नाम से है. संजीव चौहान कोटखाई के बखोल गांव के रहने वाले हैं. वर्ष 2014 में उनके बागीचे में 60 मीट्रिक टन प्रति हेक्टेयर सेब पैदा हुआ था.

विश्व के नंबर एक सेब उत्पादक देश चीन की प्रति हेक्टेयर अधिकतम उत्पादन 35 से 40 मीट्रिक टन है. अमेरिका में यह आंकड़ा भी 35 मीट्रिक टन है. चीन व अमेरिका बागवानी में आधुनिक तकनीक व नई खोज से लैस रहते हैं, लेकिन हिमाचल के दूरस्थ गांव में युवा बागवान ने अपनी मेहनत व सोच के बूते यह सफलता हासिल की.

गौर हो कि संजीव चौहान को वर्ष 2013 में बेंगलुरु में आयोजित समारोह में उत्कृष्ट बागवानी के लिए राष्ट्रीय सम्मान भी मिला था. इसके अलावा उनके खाते में राज्य स्तरीय सम्मान सहित अन्य कई सम्मान भी दर्ज हैं.

संजीव ने प्रति हेक्टेयर उत्पादन का रिकॉर्ड नई तकनीक व मिट्टी की न्यूट्रिशन वैल्यू को बरकरार रखते हुए हासिल किया है. उन्होंने पौधों की प्रूनिंग की तकनीक को अपने ही तरीके से बदला और उसका परिणाम भी मिला. सेब उत्पादन में पौधों की प्रूनिंग का अहम रोल है. संजीव ने इसे पहचान कर अपने बगीचे के वातावरण व मिट्टी के अनुसार काम किया. संजीव चौहान इस समय सेब की सुपर चीफ, स्कारलेट स्पर, गेल गाला, ग्रैनी स्मिथ, आर्गेन स्पर, वॉशिंगटन रेड डिलिशियस (Washington Red Delicious Apples), ऐस व जोना गोल्ड जैसी अमेरिकी किस्में उगा रहे हैं. इसके अलावा उनके बागीचे में सेब की चीन की रेड फ्यूजी व कोरेड फ्यूजी किस्मों सहित इटली की रेड विलॉक्स, जेरोमाइन, रेडलम गाला, बुकाई गाला, एजटेक फ्यूजी किस्में मौजूद हैं. फ्रांस की कुछ किस्मों के पौधे भी उन्होंने लगाए हैं.

हिमाचल में बगीचे में प्रयोग करते रहते हैं बागवान
हिमाचल में कई बागवान निजी तौर पर अपने बागीचे में प्रयोग करते रहते हैं. ऐसे बागवानों में रामलाल चौहान का नाम भी अग्रणी है. वे कई देशों की यात्रा कर चुके हैं और सेब उत्पादन की नई-नई तकनीकों से लैस रहते हैं. इसी तरह हाल ही में दिवंगत हुए हिमाचल मैन ऑफ एप्पल लक्ष्मण सिंह भी दुनिया के सेब उत्पादक देशों में अपनी सृजनशीलता के लिए जाने जाते थे. ये सब शिमला जिला से संबंध रखने वाले हैं. शिमला जिला के क्यारी और मडावग गांव को एशिया के सबसे अमीर गांव होने का गौरव भी सेब उत्पादन ने ही दिलाया है.

हिमाचल प्रदेश बागवानी मिशन के तहत भी प्रति हेक्टेयर सेब उत्पादन का आंकड़ा छूने के लिए काम कर रहा है. राज्य सरकार के बागवानी मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर (Mahender Singh Thakur) के अनुसार राज्य सरकार न केवल सेब बल्कि स्टोन फ्रूट और अन्य फलों के उत्पादन को भी बढ़ाने का प्रयास कर रही है.

रॉयल किस्म के सेब को प्राथमिकता दे रहे हैं बागवान
संजीव चौहान का कहना है कि इंटरनेट के इस जमाने में बेशक सेब उत्पादन की बारिकियां हर जगह उपलब्ध हैं, लेकिन व्यावहारिक ज्ञान और बगीचों में मेहनत करने से ही ज्ञान मिलता है. वे खुद अपने बगीचे में काम करते हैं और जगह-जगह निशुल्क कैंप लगाकर युवाओं को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर रहे हैं. हिमाचल में बहुत से बागवान परंपरागत रॉयल किस्म के सेब की जगह अधिक उत्पादन देने वाली वैरायटी को प्राथमिकता दे रहे हैं. इससे प्रति हेक्टेयर सेब उत्पादन का लक्ष्य चीन और अमेरिका से आगे हासिल करने का अवसर जल्द आएगा.

शिमला : हिमाचल भारत का 'एप्पल बाउल' कहलाता है. यहां सालाना तीन से पांच करोड़ पेटी सेब का उत्पादन होता है. हिमाचल में इस समय औसतन प्रति हेक्टेयर 18 से 25 मीट्रिक टन सेब पैदा हो रहा है. चीन और अमेरिका में यह आंकड़ा प्रति हेक्टेयर 45 से 55 मीट्रिक टन है. हिमाचल प्रदेश के बागवान जल्द ही प्रति हेक्टेयर उत्पादन में चीन और अमेरिका को पछाड़ने की स्थिति में आ जाएंगे. इसका अंदाजा यूं लगाया जा सकता है कि कुछ प्रगतिशील बागवानों ने इस दिशा में सफलता भी हासिल कर ली है. सेब उत्पादन के यूथ आइकॉन संजीव चौहान तो सात साल पहले ही निजी तौर पर रिकॉर्ड सेट कर चुके हैं. उन्होंने प्रति हेक्टेयर 55 से 60 मीट्रिक टन सेब पैदा किए हैं.

हिमाचल प्रदेश में कुल सेब उत्पादन का 80 फीसदी शिमला जिला में होता है. हिमाचल में सेब उत्पादन का सफर 100 साल से अधिक का हो गया है. इस दौरान युवाओं ने अपने परिश्रम से सेब उत्पादन में कई रिकॉर्ड बनाए हैं. आलम यह है कि अरुणाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर के बागवान भी सीख लेने के लिए हिमाचल के बागवानों के पास आते हैं. हिमाचल के युवा बागवान इन राज्यों में निशुल्क कैंप लगाकर सेब उत्पादन की बारीकियां सिखाते हैं इनमें संजीव चौहान, कुनाल चौहान, पंकज डोगरा, डिंपल पांजटा का नाम प्रमुख है. यदि संजीव चौहान की बात की जाए तो वर्ष 2014 में उन्होंने अपने बागीचे में 60 मीट्रिक टन तक सेब उगाए.

यहां उस सफलता की संक्षिप्त जानकारी दर्ज करना जरूरी है. तब संजीव चौहान की सफलता को फ्रूट वर्ल्ड पत्रिका ने भी सलाम किया था. विख्यात बागवानी वैज्ञानिक और फ्रूट वर्ल्ड पत्रिका के सूत्रधार डॉ. चिरंजीत परमार ने इस ऑनलाइन पत्रिका के 2014 के अंक में संजीव चौहान की सफलता पर खास लेख लिखा था.

बता दें कि वर्ष 2014 में संजीव चौहान के बागीचे में प्रति हेक्टेयर सेब की पैदावार करीब 60 मीट्रिक टन हुई थी. यह विश्व में रिकॉर्ड उत्पादन करने वाले देशों चीन व अमेरिका से कहीं ज्यादा है. चीन व अमेरिका में प्रति हेक्टेयर सेब उत्पादन का रिकॉर्ड 35 से 40 मीट्रिक टन है. तब संजीव चौहान के इस रिकॉर्ड उत्पादन की पुष्टि हिमाचल के बागवानी विभाग के तत्कालीन निदेशक डॉ. गुरदेव सिंह व बागवानी तथा औद्यानिकी यूनिवर्सिटी नौणी के कुलपति डॉ. विजय ठाकुर ने भी की थी.

संजीव चौहान वर्ष 2013 से ही लगातार उत्पादन बढ़ाने की तकनीकों को लेकर प्रयोग कर रहे थे. अब भी संजीव चौहान पर केंद्रित वह लेख वेबसाइट पर फोटो सहित देखा जा सकता है. वेबसाइट डबल्यूडबल्यूडबल्यू डॉट एफआरयूआईपीईडीए डॉट कॉम (www.fruipeda.com) के नाम से है. संजीव चौहान कोटखाई के बखोल गांव के रहने वाले हैं. वर्ष 2014 में उनके बागीचे में 60 मीट्रिक टन प्रति हेक्टेयर सेब पैदा हुआ था.

विश्व के नंबर एक सेब उत्पादक देश चीन की प्रति हेक्टेयर अधिकतम उत्पादन 35 से 40 मीट्रिक टन है. अमेरिका में यह आंकड़ा भी 35 मीट्रिक टन है. चीन व अमेरिका बागवानी में आधुनिक तकनीक व नई खोज से लैस रहते हैं, लेकिन हिमाचल के दूरस्थ गांव में युवा बागवान ने अपनी मेहनत व सोच के बूते यह सफलता हासिल की.

गौर हो कि संजीव चौहान को वर्ष 2013 में बेंगलुरु में आयोजित समारोह में उत्कृष्ट बागवानी के लिए राष्ट्रीय सम्मान भी मिला था. इसके अलावा उनके खाते में राज्य स्तरीय सम्मान सहित अन्य कई सम्मान भी दर्ज हैं.

संजीव ने प्रति हेक्टेयर उत्पादन का रिकॉर्ड नई तकनीक व मिट्टी की न्यूट्रिशन वैल्यू को बरकरार रखते हुए हासिल किया है. उन्होंने पौधों की प्रूनिंग की तकनीक को अपने ही तरीके से बदला और उसका परिणाम भी मिला. सेब उत्पादन में पौधों की प्रूनिंग का अहम रोल है. संजीव ने इसे पहचान कर अपने बगीचे के वातावरण व मिट्टी के अनुसार काम किया. संजीव चौहान इस समय सेब की सुपर चीफ, स्कारलेट स्पर, गेल गाला, ग्रैनी स्मिथ, आर्गेन स्पर, वॉशिंगटन रेड डिलिशियस (Washington Red Delicious Apples), ऐस व जोना गोल्ड जैसी अमेरिकी किस्में उगा रहे हैं. इसके अलावा उनके बागीचे में सेब की चीन की रेड फ्यूजी व कोरेड फ्यूजी किस्मों सहित इटली की रेड विलॉक्स, जेरोमाइन, रेडलम गाला, बुकाई गाला, एजटेक फ्यूजी किस्में मौजूद हैं. फ्रांस की कुछ किस्मों के पौधे भी उन्होंने लगाए हैं.

हिमाचल में बगीचे में प्रयोग करते रहते हैं बागवान
हिमाचल में कई बागवान निजी तौर पर अपने बागीचे में प्रयोग करते रहते हैं. ऐसे बागवानों में रामलाल चौहान का नाम भी अग्रणी है. वे कई देशों की यात्रा कर चुके हैं और सेब उत्पादन की नई-नई तकनीकों से लैस रहते हैं. इसी तरह हाल ही में दिवंगत हुए हिमाचल मैन ऑफ एप्पल लक्ष्मण सिंह भी दुनिया के सेब उत्पादक देशों में अपनी सृजनशीलता के लिए जाने जाते थे. ये सब शिमला जिला से संबंध रखने वाले हैं. शिमला जिला के क्यारी और मडावग गांव को एशिया के सबसे अमीर गांव होने का गौरव भी सेब उत्पादन ने ही दिलाया है.

हिमाचल प्रदेश बागवानी मिशन के तहत भी प्रति हेक्टेयर सेब उत्पादन का आंकड़ा छूने के लिए काम कर रहा है. राज्य सरकार के बागवानी मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर (Mahender Singh Thakur) के अनुसार राज्य सरकार न केवल सेब बल्कि स्टोन फ्रूट और अन्य फलों के उत्पादन को भी बढ़ाने का प्रयास कर रही है.

रॉयल किस्म के सेब को प्राथमिकता दे रहे हैं बागवान
संजीव चौहान का कहना है कि इंटरनेट के इस जमाने में बेशक सेब उत्पादन की बारिकियां हर जगह उपलब्ध हैं, लेकिन व्यावहारिक ज्ञान और बगीचों में मेहनत करने से ही ज्ञान मिलता है. वे खुद अपने बगीचे में काम करते हैं और जगह-जगह निशुल्क कैंप लगाकर युवाओं को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर रहे हैं. हिमाचल में बहुत से बागवान परंपरागत रॉयल किस्म के सेब की जगह अधिक उत्पादन देने वाली वैरायटी को प्राथमिकता दे रहे हैं. इससे प्रति हेक्टेयर सेब उत्पादन का लक्ष्य चीन और अमेरिका से आगे हासिल करने का अवसर जल्द आएगा.

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