कुल्लू: एक से बढ़कर एक सांस्कृतिक आकर्षण, दिव्य देव परम्पराएं, जैव विविधता, पारम्परिक शैली के घर और पर्यटकों के लिए अनुपम सौंदर्य से सजी घाटियां, ये हिमाचल प्रदेश के कुल्लू घाटी की पहचान हैं. अब इस पहचान को और विस्तार मिलने वाला है. कुल्लू का अद्भुत दशहरा तो विश्व प्रसिद्ध है ही, यहां बिजली महादेव मंदिर, हिडिम्बा मंदिर, मनु ऋषि की तपस्थली जैसे आध्यात्मिक आकर्षण हैं तो वहीं, कुल्लू घाटी में शांघड़ जैसे खूबसूरत पर्यटन स्थल भी उपहार के रूप में हैं. इसी को विश्व स्तर पर पहुंचाने के लिए हिमाचल सरकार कुल्लू घाटी को यूनेस्को की धरोहर सूची में शामिल कराने में जुट गई है. बड़ी बात ये है कि कुल्लू का ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क पहले से ही इस सूची में शामिल है.
कुल्लू का अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव हो या फिर पर्यटन नगरी मनाली में देवी हिडिंबा का सैकड़ों साल पुराना मंदिर. सभी अपनी विविधताओं के चलते कुल्लू घाटी को एक ही धागे में पिरोये हुए हैं. अब प्रदेश सरकार ने भी कुल्लू घाटी के रहन-सहन, काष्ठकुणी शैली, पारंपरिक परंपराओं, देव संस्कृति व खान-पान को देखते हुए इसे यूनेस्को में शामिल करने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी है. इससे पहले भी कुल्लू जिले के ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क को साल 2014 में विश्व धरोहर का दर्जा दिया गया है.
यूनाइटेड नेशन एजुकेशनल साइंटिफिक एंड कल्चरल आर्गेनाइजेशन (यूनेस्को) ने दोहा में आयोजित 38वें सत्र में नेशनल पार्क को यह दर्जा दिया है. जापान, जर्मनी सहित अन्य कई देशों के सदस्यों ने भारत के दावे समर्थन किया और इसके बाद 21 सदस्यीय वर्ल्ड हेरिटेज कमेटी ने ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क को यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज लिस्ट में शामिल कर लिया था.
कुल्लू के जिला मुख्यालय ढालपुर में अक्टूबर माह में अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव का आयोजन किया जाता है. इस उत्सव में 350 से अधिक देवी-देवताओं के रथ भाग लेते हैं और देवी-देवताओं की संस्कृति को जानने के लिए विदेशों से भी शोधार्थी कुल्लू घाटी का रुख करते हैं. इतनी संख्या में देवी देवताओं के रथ प्रदेश में किसी भी स्थान पर इतने दिनों के लिए एकत्र नहीं होते है. यहां देव संस्कृति की आम जनमानस में इतनी गहरी जड़े हैं कि 7 दिनों तक लोग सिर्फ अपने आराध्य देवों के साथ ही ढालपुर मैदान में रहते हैं और देव परंपराओं का विधि विधान के साथ पालन भी किया जाता है.
कुल्लू घाटी में जहां सदियों पुराने देवी देवताओं के मंदिर हैं तो वहीं, यहां कई ऐसे प्राकृतिक स्थल भी हैं. जो देश विदेश के पर्यटकों का मन मोह लेते हैं. कुल्लू में पांडव काल से ही मनाली में देवी हिडिम्बा का मंदिर है और बिजली महादेव में आसमानी बिजली गिरने का चमत्कार होता है. इसके अलावा मणिकर्ण में ऐतिहासिक राम मंदिर है और यहां हर समय धरती है गर्म पानी उबलता रहता है. वहीं, जिले के अधिकतर मन्दिर पांडव काल के है. इनमें करीब 10 मंदिरों का सरंक्षण भारतीय पुरातत्व विभाग के द्वारा किया जाता है. उपमंडल बंजार में श्रृंगा ऋषि का मंदिर श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है. इतना ही नहीं, शांघड़ में फैला मैदान भी पांडवों की धान की खेती की याद दिलाता है.
जिला कुल्लू में अधिकतर सर्दियों का मौसम रहता है तो ऐसे में लोगो का रहन सहन भी काफी बेहतर है. लोग ग्रामीण क्षेत्रो में काष्ठकुणी शैली से बने मकानों में रहते हैं, जो सर्दियों में गर्म और गर्मियों में ठंडे रहते हैं. वहीं, यह मकान भूकंपरोधी भी होते हैं. जिसका प्रमाण यहां स्थित नग्गर कैसल व चेहनी कोठी है. यहां के खान-पान की बात की जाए तो सिड्डू ने विदेशों तक अपनी पहचान बनाई है. इसके अलावा चिलड़ू, बटुरु, फेमड़ा, भल्ले सहित कई अन्य पकवान घाटी की रसोइयों में महकते रहते हैं.
कुल्लू घाटी के ग्रामीण इलाकों में आयोजित मेले में यहां के पारंपरिक परिधानों की भी खूब चमक देखने को मिलती है. पुरुष पारम्परिक परिधान के नाम पर चोला टोपा तो महिलाएं पट्टू और धाटू पहनती हैं. वही, कुल्लू की लोकल नाटी भी साल साल 2014 में गिनीज बुक ऑफ रिकार्ड में दर्ज हो चुकी है.
प्राकृतिक विश्व धरोहर के लिहाज से ग्रेट हिमालयन पार्क देश की 11वीं साइट बनी है. कुल्लू जिले में स्थित ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क 1171 वर्ग किलो मीटर में फैला है. पहले पार्क क्षेत्र 754 वर्ग किलोमीटर था. बाद में इसमें 90 वर्ग किलोमीटर की सैंज सेंचुरी, 61 वर्ग किलोमीटर की तीर्थन सेंचुरी और 265 वर्ग किलोमीटर का इको जोन क्षेत्र शामिल किया गया है. पार्क के दायरे में तीन गांव शाकटी, मरोड़ और शवाड़ हैं. इन गांवों की आबादी सौ से भी कम है. पार्क में देवता आदि ब्रह्मा का मंदिर भी है.
बीते दिनों शिमला में भाषा, कला एवं संस्कृति मंत्री गोविन्द सिंह ठाकुर ने कुल्लू घाटी को यूनेस्को विश्व धरोहर के रूप में मनोनीत करवाने के लिए एचबीटैक टीम के साथ बैठक की अध्यक्षता की थी. बैठक में शिक्षा मंत्री ने कहा था कि कुल्लू घाटी की काष्ठकुणी भवन शैली, ग्राम देवताओं की विशिष्ट परम्परा तथा इसका अद्भुत प्राकृतिक सौन्दर्य कुछ ऐसी विशिष्टताएं हैं. जिनके आधार पर कुल्लू घाटी को विश्व धरोहर के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है. कुल्लू घाटी को यूनेस्को में शामिल करवाने के लिए सरकार प्रयासरत है.
किसी भी जगह को विश्व धरोहर घोषित करने के लिए यूनेस्को द्वारा एक टीम का गठन कर क्षेत्र की खासियत को परखने के लिए विशेषज्ञों की तैनाती की जाती है. टीम उस इलाके का दौरा करती है और इस बात को सुनिश्चित करती है कि क्या उस जगह पर वो सब चीजें अपने स्वरूप में हैं. जिसके लिए उसे विश्व धरोहर घोषित किया जा रहा हो. टीम अपनी रिपोर्ट यूनेस्को को सौंपती है. यूनेस्को की अपनी बैठक में इस बात पर चर्चा की जाती है कि क्या वो जगह विश्व धरोहर के लायक है या नहीं. यूनेस्को की टीम में शामिल अन्य देशों के द्वारा भी इसका समर्थन किया जाता है और उसके बाद उसे विश्व धरोहर में शामिल कर लिया जाता है.
यूनेस्को मुख्यतः शिक्षा, प्राकृतिक विज्ञान, सामाजिक एवं मानव विज्ञान, संस्कृति एवं सूचना व संचार के जरिये अपनी गतिविधियां संचालित करता है. वह साक्षरता बढ़ाने वाले कार्यक्रमों को प्रायोजित करता है और वैश्विक धरोहर की इमारतों और पार्कों के संरक्षण में भी सहयोग करता है. यूनेस्को की विरासत सूची में हमारे देश के कई ऐतिहासिक इमारत और पार्क शामिल हैं. दुनिया भर के 332 अंतरराष्ट्रीय स्वयंसेवी संगठनों के साथ यूनेस्को के संबंध हैं.
भारत साल 1946 से यूनेस्को का सदस्य देश है. यूनेस्को में दुनिया के 193 सदस्य देश हैं और 11 सहयोगी सदस्य देश और दो पर्यवेक्षक सदस्य देश हैं. इसके कुछ सदस्य स्वतंत्र देश भी हैं. इसका मुख्यालय पेरिस (फ्रांस) में है. इसके ज्यादातर क्षेत्रीय कार्यालय क्लस्टर के रूप में हैं, जिसके अंतर्गत तीन-चार देश आते हैं. इसके अलावा इसके राष्ट्रीय और क्षेत्रीय कार्यालय भी हैं. यूनेस्को के 27 क्लस्टर कार्यालय और 21 राष्ट्रीय कार्यालय हैं.