शिमला: हिमाचल सरकार ने इस साल किलो के हिसाब से सेब बेचने की व्यवस्था की है. इस तरह हिमाचल की मंडियों में सेब किलो के हिसाब से बिकने लगा है, इसका सकारात्मक असर बागवानों पर देखने को मिला है. इस सिस्टम के चलते बागवान बाहरी मंडियों में सेब बेचने की बजाए हिमाचल की मंडियों ही सेब बेच रहे हैं. यही वजह है कि इस बार 55 फीसदी बागवानों ने हिमाचल की मंडियों में ही सेब बेचा. जबकि पिछली बार तक 40 फीसदी तक बागवान ही यहां पर सेब बेचते थे. बाकी बागवान बाहरी मंडियों का रुख करते थे, लेकिन इस बार बाहरी मंडियों को कम लोगों ने रूख किया और हिमाचल में ही सेब बेचे.
हिमाचल के मंडियों को तवज्जों दे रहे सेब बागवान: सरकार ने प्रदेश में लोकल फल मंडियां इसलिए खोली है, ताकि बागवानों को उनके घर द्वार पर सेब और अन्य फलों के अच्छे दाम मिले. लोकल मंडियों तक सेब पहुंचाने में बागवानों को लागत भी कम वहन करनी पड़ती है, लेकिन इसके बावजूद बागवान हिमाचल की बजाए बाहरी राज्यों में सेब बेचने को तवज्जो दे रहे थे. इसका कारण यह था कि यहां की मंडियों में बागवानों को उनके सेब के सही दाम नहीं मिलते थे. क्योंकि सेब के दाम पेटियों के हिसाब से तय होते थे, लेकिन इसके अनुपात में सेब के दाम नहीं मिलते थे. यही वजह कि वे प्रदेश के बाहर की मंडियों का रूख करते थे. करीब 60 फीसदी बागवान बाहरी राज्यों की मंडियों में अपना सेब बेचते थे, लेकिन इस बार बाहर जाने वाले सेब की मात्रा में भारी कमी आई है.
55 फीसदी सेब हिमाचल में ही बिका: हिमाचल प्रदेश एग्रीकल्चर मार्केटिंग बोर्ड के आंकड़ों के मुताबिक इस साल करीब 55 फीसदी सेब हिमाचल की मंंडियों में ही बिका है. प्रदेश में अब तक करीब 1.08 करोड़ सेब की पेटियां बेची जा चुकी हैं. जिनमें से करीब 60 लाख पेटियां हिमाचल की मंडियों में ही बिकी है. यानी करीब 55 फीसदी सेब प्रदेश की मंडियों में ही बिका है. वहीं केवल 48 लाख सेब की पेटियां ही बाहर गई हैं, जो करीब 45 फीसदी ही है. इसके विपरीत पिछले साल तक हिमाचल में पैदा होने वाला 60 फीसदी सेब सीधा बाहरी मंडियों को जाता था. केवल 40 फीसदी सेब ही हिमाचल की मंडियों में बिकता था. अधिकतर छोटे बागवान ही हिमाचल में सेब बेचा करते थे. जबकि बड़े बागवान बाहर का रूख करते थे. पिछले साल की बात करें तो प्रदेश में करीब 3.36 करोड़ पेटियों का कुल उत्पादन हुआ, जिसमें से करीब 1.40 करोड़ सेब की पेेटियां ही हिमाचल में बिकी. जबकि पेटियां हिमाचल से बाहर ही गईं.
नई व्यवस्था से सेब बागवानों को हुआ फायदा: हिमाचल प्रदेश में सरकार ने इस साल किलो के हिसाब से सेब बेचने व्यवस्था शुरू की है. यह पहली दफा है, जबकि मंडियों में सेब किलो के हिसाब से बिका है. इससे पहले पेटियों के हिसाब से ही सेब बेचा जा रहा था. यानी की पेटियों के हिसाब से सेब के दाम तय होते थे, जबकि एक पेटी में करीब 35 किलो तक सेब भरा जाता था. इस तरह एक स्टेंडर्ड 20-22 किलो सेब की पेटी के रेट में 32-35 किलो की सेब की पेटी बिकती थी, लेकिन अबकी बार इस पर अंकुश लगा है. हालांकि कई जगह कुछ आढ़तियों ने मनमानी करने की कोशिश की, लेकिन खुलेआम वे इस व्यवस्था का विरोध नहीं कर पाए. ऐसे में बागवानों ने भी हिमाचल में की मंडियों में ही सेब बेचने को प्राथमिकता दी.
बाहरी मंडियों में पेटियों के हिसाब से बिका सेब: हालांकि प्रदेश सरकार ने हिमाचल की मंडियों में किलो के हिसाब से सेब बेचने की व्यवस्था लागू की थी, लेकिन राज्य के बाहर की मंडियों में पेटियों के हिसाब से ही सेब बिका. बागवानों को पेटियों के हिसाब से ही रेट मिले. ऐसे में पहले जो किसान बाहर का रूख करते थे, उन्होंने भी बाहर की मंडियों में ज्यादा रुचि नहीं दिखाई.
कम फसल से भी लोकल स्तर पर मिले बेहतर दाम: हिमाचल में इस बार सेब की पैदावार कम है. इससे हिमाचल की मंडियों में ही बागवानों को सेब के अच्छे रेट मिले. प्रदेश में सबसे ज्यादा तैयार होने वाले रॉयल किस्म के बेहतर क्वालिटी के के दाम 120 से 130 रुपए प्रति किलो के दाम मिले. यानी की बागवानों को 2800 से 3000 रुपए की पेटी के दाम यहीं प्रदेश की मंडियों में मिले. यहां तक कि 150 रुपए किलो तक भी कुछ बागवानों का रॉयल सेब यहां बिका है. अगर बाहरी मंडियों के रेट को देखा जाए तो बाहर वहां पर पेटियों के हिसाब सेब बिका, जबकि इन पेटियों का वजन 27 से 28 किलो तक था. इस बार किसानों को बाहर जाने की जरूरत इसलिए भी नहीं पड़ी, क्योंकि हिमाचल की मंडियों में सेब का फ्लो कम रहा. फसल कम होने से मंडियों में ज्यादा सेब नहीं गया. इससे पहले भारी फसल होने पर लोकल मंडियो में सेब की भरमार रहती थी और उसके सेब के दाम गिरते थे. लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ.
आढ़ती सेब बाहर जाने का करते रहे प्रोपेगेंडा: संयुक्त किसान मंच के संयोजक हरीश चौहान का कहा सरकार का किलो के हिसाब से सेब बेचने के फैसले का सकारात्मक परिणाम देखने को मिला है. यह आंकड़ों से बिल्कुल साफ हो गया है. हालांकि पिछले साल तक 60 फीसदी से ज्यादा सेब बाहरी मंडियों को जा रहा था, लेकिन इस बार कम सेब बाहर गया है. हालांकि कई आढ़ती लगातार यह कहते रहे कि सेब किलो के हिसाब से बेचने से बागवान बाहरी मंडियों का रूख कर रहे हैं, लेकिन यह केवल प्रोपेगेंडा ही साबित हुआ. उन्होंने कहा सरकार के किलो के हिसाब से सेब बेचने से लोकल मंडियों में ही बागवानों को अच्छे दाम मिले हैं और उनको बाहर जाने की जरूरत ही नहीं पड़ी. इसके विपरीत बाहरी मंडियों में पेटियों के हिसाब से सेब बिका. इसलिए कम बागवान अबकी बार बाहर गए हैं.
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