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कर्नाटक: डिग्री कोर्सेज में कन्नड़ अनिवार्य नहीं, आदेश पर HC की रोक

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Published : Apr 6, 2022, 3:14 PM IST

Updated : Apr 6, 2022, 6:17 PM IST

कर्नाटक उच्च न्यायालय (Karnataka High Court) ने बुधवार को 2021 में जारी दो सरकारी आदेशों पर, अगले आदेश तक रोक लगा दी. उन आदेशों के तहत कर्नाटक सरकार ने राज्य में डिग्री कोर्सेज में कन्नड़ भाषा को अनिवार्य बना दिया था. जिसके खिलाफ दायर याचिका की सुनवाई कर्नाटक हाईकोर्ट में की जा रही है.

High Court
डिग्री कोर्सेज

बेंगलुरू: कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High Court) ने राज्य सरकार के उस आदेश पर रोक लगा दी है, जिसमें राज्य में डिग्री कोर्सज में कन्नड़ भाषा (Degree Courses in Kannada Language) को अनिवार्य बनाय गया था. न्यायाधीश रितु राज अवस्थी और न्यायमूर्ति एसआर कृष्ण कुमार की खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा कि केंद्र सरकार के इस रुख के मद्देनजर कि, राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू करने के उद्देश्य से कन्नड़ भाषा को उच्च अध्ययन में अनिवार्य विषय नहीं बनाया जा सकता है. हम प्रथम दृष्टया पाते हैं कि राज्य द्वारा लागू शासनादेश को अगले आदेश तक लागू नहीं किया जा सकता.

केंद्र का हलफनामा: अदालत ने भारत सरकार से इस मुद्दे पर अपना रुख स्पष्ट करने को कहा था. जिसके बाद एक हलफनामा दायर किया गया, जिसमें कहा गया है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भाषा की किसी बाध्यता का कोई उल्लेख नहीं है. नीति को संविधान में निहित व्यापक उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए व्याख्यायित और लागू किया जाना है. इसके अलावा कहा गया कि एनईपी 2020 को स्थानीय, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर की आकांक्षाओं को ध्यान में रखते हुए डिजाइन किया गया है. ताकि नागरिकों तक व्यापक शिक्षा प्रणाली की आसान पहुंच सुनिश्चित हो सके.

अदालत ने क्या कहा: 16 दिसंबर 2021 को अदालत ने अंतरिम आदेश से राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि वह अगले आदेश तक उन छात्रों को मजबूर न करे, जो डिग्री कोर्स करते समय कन्नड़ भाषा को अनिवार्य विषय के रूप में नहीं लेना चाहते हैं. पीठ ने कहा था कि हमने सबमिशन पर विचार किया है. हमारा प्रथम दृष्टया विचार है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के आधार पर कन्नड़ भाषा को उच्च अध्ययन में अनिवार्य भाषा बनाने के संबंध में एक सवाल है, जिस पर विचार करने की आवश्यकता है. राज्य सरकार इस स्तर पर भाषा को अनिवार्य बनाने पर जोर नहीं दे सकती. जिन छात्रों ने अपनी पसंद के आधार पर कन्नड़ भाषा ली है, वे ऐसा कर सकते हैं. साथ ही ऐसे सभी छात्र जो कन्नड़ भाषा नहीं लेना चाहते हैं, उन्हें कन्नड़ भाषा पढ़ने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा.

यह भी पढ़ें- कन्नड़ को स्कूलों और कॉलेजों में अनिवार्य करने के लिए अपनी लड़ाई जारी रखेंगे: सीएम बोम्मई

याचिका में 7 अगस्त 2021 और 15 सितंबर 2021 के दो शासनादेश (Government Order) को मनमाना, संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के विपरीत मानकर चुनौती दी गई है. इसमें कहा गया है कि विवादित शासनादेश अध्ययन के लिए भाषा चुनने की स्वतंत्रता छीन लेता है. इसके माध्यम से कर्नाटक के सभी छात्रों के लिए विज्ञान, वाणिज्य और कला के सभी वर्गों में डिग्री पाठ्यक्रमों में कन्नड़ को एक भाषा के रूप में लेना अनिवार्य किया गया है. इस प्रकार संविधान के तहत निहित भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को रोकने का प्रयास है. अदालत, जुलाई के अंतिम सप्ताह में मामले की सुनवाई करेगी.

बेंगलुरू: कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High Court) ने राज्य सरकार के उस आदेश पर रोक लगा दी है, जिसमें राज्य में डिग्री कोर्सज में कन्नड़ भाषा (Degree Courses in Kannada Language) को अनिवार्य बनाय गया था. न्यायाधीश रितु राज अवस्थी और न्यायमूर्ति एसआर कृष्ण कुमार की खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा कि केंद्र सरकार के इस रुख के मद्देनजर कि, राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू करने के उद्देश्य से कन्नड़ भाषा को उच्च अध्ययन में अनिवार्य विषय नहीं बनाया जा सकता है. हम प्रथम दृष्टया पाते हैं कि राज्य द्वारा लागू शासनादेश को अगले आदेश तक लागू नहीं किया जा सकता.

केंद्र का हलफनामा: अदालत ने भारत सरकार से इस मुद्दे पर अपना रुख स्पष्ट करने को कहा था. जिसके बाद एक हलफनामा दायर किया गया, जिसमें कहा गया है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भाषा की किसी बाध्यता का कोई उल्लेख नहीं है. नीति को संविधान में निहित व्यापक उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए व्याख्यायित और लागू किया जाना है. इसके अलावा कहा गया कि एनईपी 2020 को स्थानीय, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर की आकांक्षाओं को ध्यान में रखते हुए डिजाइन किया गया है. ताकि नागरिकों तक व्यापक शिक्षा प्रणाली की आसान पहुंच सुनिश्चित हो सके.

अदालत ने क्या कहा: 16 दिसंबर 2021 को अदालत ने अंतरिम आदेश से राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि वह अगले आदेश तक उन छात्रों को मजबूर न करे, जो डिग्री कोर्स करते समय कन्नड़ भाषा को अनिवार्य विषय के रूप में नहीं लेना चाहते हैं. पीठ ने कहा था कि हमने सबमिशन पर विचार किया है. हमारा प्रथम दृष्टया विचार है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के आधार पर कन्नड़ भाषा को उच्च अध्ययन में अनिवार्य भाषा बनाने के संबंध में एक सवाल है, जिस पर विचार करने की आवश्यकता है. राज्य सरकार इस स्तर पर भाषा को अनिवार्य बनाने पर जोर नहीं दे सकती. जिन छात्रों ने अपनी पसंद के आधार पर कन्नड़ भाषा ली है, वे ऐसा कर सकते हैं. साथ ही ऐसे सभी छात्र जो कन्नड़ भाषा नहीं लेना चाहते हैं, उन्हें कन्नड़ भाषा पढ़ने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा.

यह भी पढ़ें- कन्नड़ को स्कूलों और कॉलेजों में अनिवार्य करने के लिए अपनी लड़ाई जारी रखेंगे: सीएम बोम्मई

याचिका में 7 अगस्त 2021 और 15 सितंबर 2021 के दो शासनादेश (Government Order) को मनमाना, संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के विपरीत मानकर चुनौती दी गई है. इसमें कहा गया है कि विवादित शासनादेश अध्ययन के लिए भाषा चुनने की स्वतंत्रता छीन लेता है. इसके माध्यम से कर्नाटक के सभी छात्रों के लिए विज्ञान, वाणिज्य और कला के सभी वर्गों में डिग्री पाठ्यक्रमों में कन्नड़ को एक भाषा के रूप में लेना अनिवार्य किया गया है. इस प्रकार संविधान के तहत निहित भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को रोकने का प्रयास है. अदालत, जुलाई के अंतिम सप्ताह में मामले की सुनवाई करेगी.

Last Updated : Apr 6, 2022, 6:17 PM IST
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