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स्वामी प्रसाद के समर्थन में नारेबाजी, रामचरित मानस की प्रतियां जलाई थीं; नहीं हटेगा रासुका - हाईकोर्ट की खबर

रामचरित मानस की प्रतियां जलाने वालों पर से रासुका हटाने पर हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने इनकार कर दिया है.

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jan 6, 2024, 10:30 AM IST

Updated : Jan 6, 2024, 11:00 AM IST

लखनऊ: स्वामी प्रसाद मौर्य के समर्थन में नारे लगाते हुए, रामचरित मानस की प्रतियां जलाने के आरोप के मामले में दो अभियुक्तों पर से रासुका (राष्ट्रीय सुरक्षा कानून) हटाने से हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने इंकार कर दिया है. न्यायालय ने अभियुक्तों की निरुद्धि के विरुद्ध दायर याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा कि दैहिक स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार भी विधि के प्रावधानों के तहत है, यह भी आत्यान्तिक (एब्सोल्यूट) नहीं है.

यह निर्णय न्यायमूर्ति संगीता चंद्रा व न्यायमूर्ति एनके जौहरी की खंडपीठ ने देवेन्द्र प्रताप यादव व सुरेश सिंह यादव की ओर से उनके परिजनों द्वारा दाखिल बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को निर्णित करते हुए पारित किया. मामला जनवरी 2023 का है. मामले में पीजीआई थाने में एफआईआर दर्ज कराते हुए, वादी सतनाम सिंह ने आरोप लगाया था कि सुनियोजित योजना के तहत स्वामी प्रसाद मौर्य के द्वारा रामचरित मानस के प्रति किए गए, अपमानजनक टिप्पणी के समर्थन में व उनकी शह पर याचियों व अन्य अभियुक्तों ने आवास विकास ऑफिस के पास रामचरित मानस की प्रतियां फाड़कर सार्वजनिक स्थान पर पैरों से कुचलते हुए जला दिया व स्वामी प्रसाद मौर्या के समर्थन में नारेबाजी की तथा रामचरित मानस व इसके अनुयायियों पर अभद्र टिप्पणियां भी की.

उक्त प्रकरण के पश्चात कार्यवाही करते हुए, याचियों पर 8 फरवरी 2023 व 16 फरवरी 2023 को रासुका लगा दी गई जिसे वर्तमान याचिकाओं में चुनौती दी गई थी. न्यायालय ने याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा कि याचियों ने अपने सहयोगियों के साथ सार्वजनिक स्थल पर समाज के बहुसंख्यक वर्ग की धार्मिक मान्यताओं व आस्था से सम्बंधित रामचरित मानस का जिस प्रकार से अपमान किया है, उससे समाज में आक्रोश व गुस्से का उत्पन्न होना स्वाभाविक है. अतः ऐसी स्थिति में आसन्न खतरे को देखते हुए, याचियों की रासुका के तहत निरुद्धि व्यक्तिगत स्वतंत्रता का विधि विरुद्ध प्रतिबंध नहीं माना जा सकता है.

लखनऊ: स्वामी प्रसाद मौर्य के समर्थन में नारे लगाते हुए, रामचरित मानस की प्रतियां जलाने के आरोप के मामले में दो अभियुक्तों पर से रासुका (राष्ट्रीय सुरक्षा कानून) हटाने से हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने इंकार कर दिया है. न्यायालय ने अभियुक्तों की निरुद्धि के विरुद्ध दायर याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा कि दैहिक स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार भी विधि के प्रावधानों के तहत है, यह भी आत्यान्तिक (एब्सोल्यूट) नहीं है.

यह निर्णय न्यायमूर्ति संगीता चंद्रा व न्यायमूर्ति एनके जौहरी की खंडपीठ ने देवेन्द्र प्रताप यादव व सुरेश सिंह यादव की ओर से उनके परिजनों द्वारा दाखिल बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को निर्णित करते हुए पारित किया. मामला जनवरी 2023 का है. मामले में पीजीआई थाने में एफआईआर दर्ज कराते हुए, वादी सतनाम सिंह ने आरोप लगाया था कि सुनियोजित योजना के तहत स्वामी प्रसाद मौर्य के द्वारा रामचरित मानस के प्रति किए गए, अपमानजनक टिप्पणी के समर्थन में व उनकी शह पर याचियों व अन्य अभियुक्तों ने आवास विकास ऑफिस के पास रामचरित मानस की प्रतियां फाड़कर सार्वजनिक स्थान पर पैरों से कुचलते हुए जला दिया व स्वामी प्रसाद मौर्या के समर्थन में नारेबाजी की तथा रामचरित मानस व इसके अनुयायियों पर अभद्र टिप्पणियां भी की.

उक्त प्रकरण के पश्चात कार्यवाही करते हुए, याचियों पर 8 फरवरी 2023 व 16 फरवरी 2023 को रासुका लगा दी गई जिसे वर्तमान याचिकाओं में चुनौती दी गई थी. न्यायालय ने याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा कि याचियों ने अपने सहयोगियों के साथ सार्वजनिक स्थल पर समाज के बहुसंख्यक वर्ग की धार्मिक मान्यताओं व आस्था से सम्बंधित रामचरित मानस का जिस प्रकार से अपमान किया है, उससे समाज में आक्रोश व गुस्से का उत्पन्न होना स्वाभाविक है. अतः ऐसी स्थिति में आसन्न खतरे को देखते हुए, याचियों की रासुका के तहत निरुद्धि व्यक्तिगत स्वतंत्रता का विधि विरुद्ध प्रतिबंध नहीं माना जा सकता है.

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Last Updated : Jan 6, 2024, 11:00 AM IST
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