नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि किसी पद के लिए अपनी पात्रता पर प्रभाव डालने वाले मामलों में सूचनाएं छिपाने या गलत सूचनाएं देने पर कर्मचारी को नौकरी से बर्खास्त किया जा सकता है. शीर्ष अदालत ने खासकर पुलिस अधिकारियों की भर्ती के मामले में कानून के व्यापक सिद्धांत तय किये. अदालत ने कहा कि जनविश्वास जगा पाने की उनकी क्षमता ही समाज की सुरक्षा के लिए अहम है.
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शीर्ष अदालत ने कहा कि यदि किसी मामले में कर्मी ने समाप्त हो गये आपराधिक मामले में सत्यनिष्ठा या सही घोषणा की है, उसके बाद भी नियोक्ता को उसकी पृष्ठभूमि पर विचार करने का हक है. उसे उस उम्मीदवार को नियुक्त करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है. उसने कहा कि सत्यापन प्रपत्र में अभियोजन/दोषसिद्धि आदि के बारे में कर्मी द्वारा सूचना देने की जरूरत का उद्देश्य रोजगार तथा सेवा में उसकी निरंतरता के मकसद के लिए उसके चरित्र एवं पृष्ठभूमि का मूल्यांकन करना है.
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शीर्ष अदालत ने कहा कि अभियोजन और दोषसिद्धि से जुड़े प्रश्नों के उत्तर में सूचनाएं छिपाने या गलत जानकारी देने का कर्मी के चरित्र, आचरण एवं पृष्ठभूमि पर स्पष्ट असर होता है. न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला की पीठ ने कहा कि यदि यह पाया जाता है कि कर्मचारी ने पद के लिए अपने फिटनेस या पात्रता पर प्रभाव डालने वाले मामलों में सूचनाएं छिपायी हैं या गलत सूचनाएं दी हैं तो उसे सेवा से बर्खास्त किया जा सकता है.
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पीठ ने कहा कि परिवीक्षा काल में भी कर्मचारी को बिना जांच सेवा से बर्खास्त करने में यही दिशानिर्देश लागू होगा. शीर्ष अदालत ने इसी के साथ सीआरपीएफ के दो कर्मियों की अपील खारिज कर दी जिसने सूचना छिपायी थी और अभियोजन के बारे में पूछे गये प्रश्नों का गलत उत्तर दिया था.