नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने शिवसेना के उद्धव ठाकरे गुट की उस याचिका पर बुधवार को सुनवाई शुरू हुई, जिसमें संवैधानिक प्रावधान के तहत उनके खिलाफ शुरू की गई अयोग्यता कार्यवाही को चुनौती दी गई है. अदालत ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद हलफनामा दाखिल करने को कहा और एक अगस्त को अगली सुनवाई करने का निश्चित किया. इससे पहले उद्धव ठाकरे गुट की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने प्रधान न्यायाधीश एन. वी. रमण की अध्यक्षता वाली पीठ से कहा कि जब यह मामला उच्चतम न्यायालय में था तो महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को नयी सरकार को शपथ नहीं दिलानी चाहिए थी. पीठ में जस्टिस कृष्ण मुरारी और न्यायमूर्ति हिमा कोहली भी शामिल हैं.
सिब्बल ने पीठ से कहा, "पार्टी द्वारा नामित आधिकारिक सचेतक के अलावा किसी अन्य सचेतक को विधानसभाध्यक्ष द्वारा मान्यता दिया जाना दुर्भावनापूर्ण है. लोगों के फैसले (जनादेश) का क्या होगा. 10वीं अनुसूची को उलट-पुलट कर दिया गया है और इसका इस्तेमाल दलबदल को बढ़ावा देने के लिए किया गया है." प्रधान न्यायाधीश की अगुवाई वाली पीठ ने 11 जुलाई को उद्धव ठाकरे गुट के विधायकों को अंतरिम राहत प्रदान करते हुए महाराष्ट्र के विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर से कहा था कि वे उनकी अयोग्यता के अनुरोध वाली याचिका पर आगे कार्रवाई नहीं करें.
मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की ओर से पेश वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहा कि लोकतंत्र में लोग एकजुट हो सकते हैं और प्रधानमंत्री से कह सकते हैं कि माफ करें, आप पद पर नहीं रह सकते. उन्होंने कहा कि अगर कोई नेता पार्टी के भीतर ही समर्थन (बहुमत) जुटाता है और बिना पार्टी छोड़े (नेतृत्व से) सवाल करता है तो यह यह दलबदल नहीं है. उन्होंने कहा कि अगर पार्टी में बड़ी संख्या में लोगों को लगता है कि किसी अन्य नेता को नेतृत्व करना चाहिए, तो इसमें क्या गलत है. इसके बाद अदालत ने मामले के विभिन्न पक्षों को बड़ी पीठ द्वारा विचार के लिए 27 जुलाई तक मुद्दों को तैयार करने के लिए कहा. मामले की सुनवाई एक अगस्त को होगी.
न्यायालय ने 11 जुलाई को उद्धव ठाकरे गुट के विधायकों को अंतरिम राहत देते हुए महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष राहुल नारवेकर को इन विधायकों को अयोग्य ठहराये जाने की शिंदे गुट की मांग पर फिलहाल कोई कदम न उठाने का निर्देश दिया था. इन पांच याचिकाओं में सबसे पहली याचिका शिंदे गुट ने ग्रीष्मावकाश के दौरान दायर की थी और तत्कालीन उपाध्यक्ष द्वारा अयोग्यता की कार्यवाही शुरू करने को चुनौती दी थी.
बता दें कि इस संकट के कारण महाराष्ट्र की महा विकास आघाड़ी (एमवीए) सरकार गिर गई थी. शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में पार्टी के कई विधायकों ने बगावत कर दी थी और तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने 29 जून को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था. एक दिन बाद बागी गुट ने भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई थी और शिंदे ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी.