नई दिल्ली: फाइबर नेटवर्क मामले में अग्रिम जमानत के लिए टीडीपी प्रमुख एवं आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू द्वारा दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई एक बार फिर टल गई है. जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी की बेंच के समक्ष आंध्र प्रदेश सरकार के वकील ने मामले का उल्लेख किया. इस पर जस्टिस अनिरुद्ध बोस ने कहा कि बेंच आज नहीं बैठ रही है. इसके बाद पीठ ने मामले को स्थगित कर दिया. अब इस पर दूसरी तिथि में सुनवाई होगी.
बता दें कि पीठ ने इससे पहले की तारीख पर मामले की सुनवाई को स्थगित कर दिया था क्योंकि इसकी सामग्री धारा 17-ए से जुड़ी थी. अदालत ने चंद्रबाबू के खिलाफ मामले की सुनवाई तक कोई कार्रवाई नहीं करने का मौखिक आदेश जारी किया है. हालांकि, मंगलवार को धारा 17 पर पीठ के अलग-अलग फैसलों को देखते हुए, इस मुद्दे पर दिलचस्पी है कि फाइबरनेट मामले में अग्रिम जमानत पर किस तरह के आदेश पारित किए जाएंगे.
पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू के वकीलों का कहना है कि वाईएसआरसीपी सरकार ने टीडीपी प्रमुख चंद्रबाबू बाबू के खिलाफ मामला दर्ज करने के नियम को पलटा है. किसी भी अपराध के मामले में प्रारंभिक जांच करने, सबूत इकट्ठा करने, आरोपी की भूमिका पाए जाने पर नोटिस देने, स्पष्टीकरण मांगने, कानूनी रूप से सक्षम प्राधिकारी से अनुमति लेने, फिर मामला दर्ज करने और गिरफ्तार करने की प्रथा है. चंद्रबाबू के मामले में राज्य सरकार/सीआईडी ने अलग तरह से काम किया.
सीआईडी की ओर से एजी श्रीराम ने हाई कोर्ट में दलील दी है कि चंद्रबाबू के खिलाफ दर्ज मामलों में सबूत जुटाए जाएं और उनकी भूमिका तय की जाए. चंद्रबाबू की ओर से पेश वरिष्ठ वकीलों ने तर्क दिया कि बगैर प्रारंभिक जांच किए, बिना नोटिस दिए, बिना स्पष्टीकरण मांगे और सक्षम प्राधिकारी से अनुमति लिए बिना सीधे एफआईआर दर्ज की गईं. हाई कोर्ट भी इससे सहमत था.
वकीलों ने आरोप लगाया कि वाईएसआरसीपी सरकार ने बदले की राजनीति और व्यक्तिगत द्वेष के तहत टीडीपी प्रमुख चंद्रबाबू के खिलाफ सीआईडी नामक हथियार का इस्तेमाल किया. उनका नाम छह मामलों में शामिल किया गया. इसके अलावा अन्नामैया जिला मुदिवेदु पुलिस ने अंगल्लू घटना में चंद्रबाबू के खिलाफ एक और मामला दर्ज किया है. इन सात मामलों में चंद्रबाबू आरोपी हैं.
भ्रष्टाचार निरोधक संशोधन अधिनियम की धारा 17ए के अनुसार, चंद्रबाबू ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है. इसमें कहा गया है कि राज्यपाल से पूर्व अनुमति प्राप्त किए बिना उनके खिलाफ मामला दायर किया गया. हाई कोर्ट द्वारा हस्तक्षेप से इनकार करने के बाद चंद्रबाबू ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर की. इसकी जांच करने वाली सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने मंगलवार को 17A पर अलग फैसला सुनाया. उचित पीठ गठित करने के लिए मामले की सूचना मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) को दी गई.