नई दिल्ली : यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद भारत लौटे मेडिकल के स्टूडेंटस के लिए राहत भरी खबर है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की अगले सप्ताह एक बैठक होने वाली है, जिसमें इन छात्रों को भारत के मेडिकल कॉलेज में समायोजित करने पर चर्चा होगी. उम्मीद जताई जा रही है कि यूक्रेन से लौटे मेडिकल स्टूडेंट को कुछ शर्तों के साथ देश के कॉलेजों में पढ़ाई कंप्लीट करने का मौका मिल सकता है.
पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) से पूछा था कि उसके पास युद्ध प्रभावित यूक्रेन से लौटे मेडिकल स्टूडेंट को क्या राहत दे सकता है? सुप्रीम अदालत ने राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग को दो महीने के भीतर एक योजना बनाने के निर्देश दिया था. इसके मद्देनजर आयोग ने स्वास्थ्य मंत्रालय को पत्र लिखकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश की जानकारी दी थी और इस संबंध में सुझाव मांगे थे. इसके अलावा आयोग ने कोविड के दौरान विदेशी यूनिवर्सिटीज में एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी नहीं करने वालों छात्रों को भारतीय मेडिकल कॉलेजों में क्लिनिकल ट्रेनिंग देने के प्रस्ताव पर राय मांगी है. इस मुद्दे पर विचार के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय बैठक करने जा रहा है. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) के अध्यक्ष डॉ सहजानंद पी सिंह का कहना है कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिया गया निर्देश स्वागत योग्य है. हमने सरकार से उन मेडिकल छात्रों को समायोजित करने की भी अपील की है, जिन्हें यूक्रेन के कारण अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी है. उन्होंने कहा कि अगर सरकार कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाती है, तो उनका (मेडिकल छात्रों का) भविष्य अनिश्चित रहेगा.
गौरतलब है कि शीर्ष अदालत ने पिछले महीने, मद्रास उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ एनएमसी की अपील पर सुनवाई की थी. मद्रास हाई कोर्ट ने चीन के विश्वविद्यालय से एमबीबीएस करने वाले एक छात्र को अस्थायी रूप से पंजीकृत करने के लिए कहा था. अदालत का विचार था कि प्रैक्टिकल ट्रेनिंग के बिना प्रोविजनल रजिस्ट्रेशन से इनकार करने में कुछ भी गलत नहीं था. क्योंकि बिना ट्रेनिंग कोई भी ऐसा डॉक्टर नहीं हो सकता है, जिससे नागरिकों की देखभाल की उम्मीद की जा सके.
गौरतलब है कि एनएमसी ने मार्च में जारी एक सर्कुलर में कहा है कि कोविड-19 या युद्ध जैसी स्थितियों के चलते अधूरी इंटर्नशिप करने वाले विदेशी मेडिकल ग्रेजुएट भारत में अपनी इंटर्नशिप खत्म कर सकते हैं.
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