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सरकारी अधिकारियों के इलाज के लिए होटलो में कमरे आरक्षित करने के खिलाफ दायर याचिका खारिज - सरकारी अधिकारियों के इलाज के लिए होटलो में कमरे आरक्षित

दिल्ली हाईकोर्ट ने विभिन्न सरकारी अधिकारियों और उनके परिवारों के इलाज के लिए दो अस्पतालों से संबद्ध चार होटलों में कमरे आरक्षित करने संबंधी आप सरकार की अधिसूचना को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी.

होटलो में कमरे आरक्षित
होटलो में कमरे आरक्षित
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Published : Aug 26, 2021, 4:44 PM IST

नई दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय ने विभिन्न सरकारी अधिकारियों और उनके परिवारों के इलाज के लिए दो अस्पतालों से संबद्ध चार होटलों में कमरे आरक्षित करने संबंधी आम आदमी पार्टी (आप) सरकार की अधिसूचना को चुनौती देने वाली याचिका गुरुवार को खारिज कर दी.

न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति जसमीत सिंह की पीठ ने कहा कि उसे याचिकाकर्ता का यह अभ्यावेदन विचारणीय नहीं लगता है कि सरकारी आदेश सक्षम प्राधिकारियों ने पारित नहीं किया.

अदालत ने याचिककर्ता के वकील के इस अभ्यावेदन को स्वीकार करने से इनकार कर दिया कि कोरोना वायरस से संक्रमित सरकारी अधिकारियों एवं उनके परिवारों के उपचार के लिए सुविधाओं को विशेष रूप से आरक्षित करने के कारण राज्य के संसाधनों को पूरा इस्तेमाल नहीं हो पा रहा.

उसने कहा कि याचिकाकर्ता के वकील के अभ्यावेदन में वैश्विक महामारी की दूसरी लहर की जमीनी हकीकत पर ध्यान नहीं दिया गया. पीठ ने कहा, 'इसलिए यह याचिका खारिज की जाती है.' अदालत ने दिल्ली के चिकित्सक कौशल कांत मिश्रा की याचिका पर यह आदेश पारित किया.

दिल्ली सरकार की 27 अप्रैल की अधिसूचना के अनुसार, राजीव गांधी सुपर स्पेशैलिटी हॉस्पिटल से जुड़े विवेक विहार स्थित होटल जिंजर में 70 कमरे, शाहदरा में होटल पार्क प्लाजा में 50 कमरे और कड़कड़डूमा में सीबीडी ग्राउंड में होटल लीला एम्बियंस में 50 कमरे तथा दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल (डीडीयू) से जुड़े हरी नगर स्थित होटल गोल्डन ट्यूलिप में सभी कमरे दिल्ली सरकार, स्वायत्त संस्थाओं, निगमों, स्थानीय निकायों के अधिकारियों और उनके परिवार के इलाज के लिए आरक्षित रखे गए.

मिश्रा ने दिल्ली सरकार की अन्य अधिसूचनाओं को भी चुनौती दी है, जिनमें वकील सत्यकाम पैरवी कर रहे हैं.

पीठ ने आदेश के कुछ हिस्से को बुधवार को पढ़ते हुए कहा कि ऐसा नहीं है कि उसे वास्तविकता का ज्ञान नहीं है और उसने कोविड-19 वैश्विक महामारी की दूसरी लहर के दौरान राष्ट्रीय राजधानी की हालत देखी है.

उसने कहा, 'ऑक्सीजन, दवाओं, अस्पताल में बिस्तरों, ऑक्सीजन की सुविधा से युक्त बिस्तरों, आईसीयू (गहन चिकित्सा इकाइयों), चिकित्सकों और परा चिकित्सा कर्मियों सहित सुविधाओं की इतनी कमी थी कि किसी भी सुविधा का पूरी तरह उपयोग नहीं होने का सवाल ही पैदा नहीं होता.'

अदालत ने कहा कि महामारी की दूसरी लहर के दौरान जब चिकित्सा बुनियादी ढांचे की भारी कमी थी, तब सरकारी अधिकारी स्थिति से निपटने के लिए सड़कों पर निकलकर अपनी जान जोखिम में डाल रहे थे. पीठ ने कहा कि राज्य सरकार प्रशासन चला रहे लोगों सहित सभी नागरिकों को चिकित्सा सुविधाएं प्रदान करने के लिए बाध्य है और जब महामारी अपने चरम पर थी, तब प्रशासन की आवश्यकता पहले से भी अधिक थी.

पीठ ने कहा कि लॉकडाउन के दौरान, जब आम नागरिक अपने घरों में थे, तब सरकारी अधिकारी स्थिति का प्रबंधन करने के लिए सड़कों पर थे और यदि ऐसे अधिकारी बीमार पड़ जाते और उन्हें इलाज नहीं मिल पाता, तो इससे न केवल उनके बल्कि दिल्ली के सभी नागरिकों के लिए मुश्किल पैदा होती.

पीठ ने कहा, 'यदि अधिकारियों को उपचार की सुविधा का आश्वासन नहीं मिलता, तो वे बिना भय के अपने कर्तव्य का निर्वहन नहीं कर पाते, जिससे दिल्ली के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में प्रशासन का पहिया थम जाता. यदि वे अपने उपचार को लेकर आश्वस्त नहीं होते, तो वे अपने कर्तव्य के निर्वहन पर अपेक्षित ध्यान नहीं दे पाते.'

पीठ ने कहा, 'ऐसा नहीं है कि हम वास्तविक स्थिति से अनभिज्ञ हैं. हम देख रहे थे कि शहर में दूसरी लहर के दौरान हर दिन क्या हो रहा था. हजारों लोग राहत के लिए सरकार की ओर देख रहे थे.'

मिश्रा की ओर से पेश हुए वकील रोहन थवानी ने तर्क दिया कि अधिकारियों को इस तरह की विशेष सुविधाएं देने से दिल्ली के उन अन्य नागरिकों के जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार सहित मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा, जिन्हें कोरोना वायरस संक्रमण के बाद उपचार की आवश्यकता है, क्योंकि सीमित संसाधनों को अधिकारियों के लिए आरक्षित किए जाने के कारण उन्हें ये सुविधाएं नहीं मिल पाएंगी.

याचिका में दलील दी गयी कि खास वर्ग के लोगों में वर्गीकरण 'मनमाना' और 'अकल्पनीय' है और वह भी ऐसे वक्त में, जब आम आदमी ऑक्सीजन बिस्तरों की तलाश में दर-दर भटक रहा था.

याचिका में दिल्ली सरकार की 27 अप्रैल की अधिसूचना के साथ ही पिछले साल के उसके तीन आदेशों को भी निरस्त करने का अनुरोध किया गया है. इन आदेशों के अनुसान शुरू में ऐसे अधिकारियों और उनके परिजनों के उपचार के लिये दो अस्पताल और एक प्रयोगशाला चिह्नित की गयी थीं. बाद में दो सरकारी अस्पतालों के साथ चार अस्पतालों को संबद्ध कर दिया गया था.

(पीटीआई भाषा)

नई दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय ने विभिन्न सरकारी अधिकारियों और उनके परिवारों के इलाज के लिए दो अस्पतालों से संबद्ध चार होटलों में कमरे आरक्षित करने संबंधी आम आदमी पार्टी (आप) सरकार की अधिसूचना को चुनौती देने वाली याचिका गुरुवार को खारिज कर दी.

न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति जसमीत सिंह की पीठ ने कहा कि उसे याचिकाकर्ता का यह अभ्यावेदन विचारणीय नहीं लगता है कि सरकारी आदेश सक्षम प्राधिकारियों ने पारित नहीं किया.

अदालत ने याचिककर्ता के वकील के इस अभ्यावेदन को स्वीकार करने से इनकार कर दिया कि कोरोना वायरस से संक्रमित सरकारी अधिकारियों एवं उनके परिवारों के उपचार के लिए सुविधाओं को विशेष रूप से आरक्षित करने के कारण राज्य के संसाधनों को पूरा इस्तेमाल नहीं हो पा रहा.

उसने कहा कि याचिकाकर्ता के वकील के अभ्यावेदन में वैश्विक महामारी की दूसरी लहर की जमीनी हकीकत पर ध्यान नहीं दिया गया. पीठ ने कहा, 'इसलिए यह याचिका खारिज की जाती है.' अदालत ने दिल्ली के चिकित्सक कौशल कांत मिश्रा की याचिका पर यह आदेश पारित किया.

दिल्ली सरकार की 27 अप्रैल की अधिसूचना के अनुसार, राजीव गांधी सुपर स्पेशैलिटी हॉस्पिटल से जुड़े विवेक विहार स्थित होटल जिंजर में 70 कमरे, शाहदरा में होटल पार्क प्लाजा में 50 कमरे और कड़कड़डूमा में सीबीडी ग्राउंड में होटल लीला एम्बियंस में 50 कमरे तथा दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल (डीडीयू) से जुड़े हरी नगर स्थित होटल गोल्डन ट्यूलिप में सभी कमरे दिल्ली सरकार, स्वायत्त संस्थाओं, निगमों, स्थानीय निकायों के अधिकारियों और उनके परिवार के इलाज के लिए आरक्षित रखे गए.

मिश्रा ने दिल्ली सरकार की अन्य अधिसूचनाओं को भी चुनौती दी है, जिनमें वकील सत्यकाम पैरवी कर रहे हैं.

पीठ ने आदेश के कुछ हिस्से को बुधवार को पढ़ते हुए कहा कि ऐसा नहीं है कि उसे वास्तविकता का ज्ञान नहीं है और उसने कोविड-19 वैश्विक महामारी की दूसरी लहर के दौरान राष्ट्रीय राजधानी की हालत देखी है.

उसने कहा, 'ऑक्सीजन, दवाओं, अस्पताल में बिस्तरों, ऑक्सीजन की सुविधा से युक्त बिस्तरों, आईसीयू (गहन चिकित्सा इकाइयों), चिकित्सकों और परा चिकित्सा कर्मियों सहित सुविधाओं की इतनी कमी थी कि किसी भी सुविधा का पूरी तरह उपयोग नहीं होने का सवाल ही पैदा नहीं होता.'

अदालत ने कहा कि महामारी की दूसरी लहर के दौरान जब चिकित्सा बुनियादी ढांचे की भारी कमी थी, तब सरकारी अधिकारी स्थिति से निपटने के लिए सड़कों पर निकलकर अपनी जान जोखिम में डाल रहे थे. पीठ ने कहा कि राज्य सरकार प्रशासन चला रहे लोगों सहित सभी नागरिकों को चिकित्सा सुविधाएं प्रदान करने के लिए बाध्य है और जब महामारी अपने चरम पर थी, तब प्रशासन की आवश्यकता पहले से भी अधिक थी.

पीठ ने कहा कि लॉकडाउन के दौरान, जब आम नागरिक अपने घरों में थे, तब सरकारी अधिकारी स्थिति का प्रबंधन करने के लिए सड़कों पर थे और यदि ऐसे अधिकारी बीमार पड़ जाते और उन्हें इलाज नहीं मिल पाता, तो इससे न केवल उनके बल्कि दिल्ली के सभी नागरिकों के लिए मुश्किल पैदा होती.

पीठ ने कहा, 'यदि अधिकारियों को उपचार की सुविधा का आश्वासन नहीं मिलता, तो वे बिना भय के अपने कर्तव्य का निर्वहन नहीं कर पाते, जिससे दिल्ली के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में प्रशासन का पहिया थम जाता. यदि वे अपने उपचार को लेकर आश्वस्त नहीं होते, तो वे अपने कर्तव्य के निर्वहन पर अपेक्षित ध्यान नहीं दे पाते.'

पीठ ने कहा, 'ऐसा नहीं है कि हम वास्तविक स्थिति से अनभिज्ञ हैं. हम देख रहे थे कि शहर में दूसरी लहर के दौरान हर दिन क्या हो रहा था. हजारों लोग राहत के लिए सरकार की ओर देख रहे थे.'

मिश्रा की ओर से पेश हुए वकील रोहन थवानी ने तर्क दिया कि अधिकारियों को इस तरह की विशेष सुविधाएं देने से दिल्ली के उन अन्य नागरिकों के जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार सहित मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा, जिन्हें कोरोना वायरस संक्रमण के बाद उपचार की आवश्यकता है, क्योंकि सीमित संसाधनों को अधिकारियों के लिए आरक्षित किए जाने के कारण उन्हें ये सुविधाएं नहीं मिल पाएंगी.

याचिका में दलील दी गयी कि खास वर्ग के लोगों में वर्गीकरण 'मनमाना' और 'अकल्पनीय' है और वह भी ऐसे वक्त में, जब आम आदमी ऑक्सीजन बिस्तरों की तलाश में दर-दर भटक रहा था.

याचिका में दिल्ली सरकार की 27 अप्रैल की अधिसूचना के साथ ही पिछले साल के उसके तीन आदेशों को भी निरस्त करने का अनुरोध किया गया है. इन आदेशों के अनुसान शुरू में ऐसे अधिकारियों और उनके परिजनों के उपचार के लिये दो अस्पताल और एक प्रयोगशाला चिह्नित की गयी थीं. बाद में दो सरकारी अस्पतालों के साथ चार अस्पतालों को संबद्ध कर दिया गया था.

(पीटीआई भाषा)

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