नई दिल्ली: गृह मंत्री ने जम्मू में अपने संबोधन में कहा कि 'मैं कहता हूं, पहाड़ी भी आएंगे और गुज्जर-बक्करवाल का हिस्सा कम नहीं होगा.' पहाड़ी समुदाय के लिए आरक्षण का वादा कर शाह ने जम्मू से भाजपा को क्लीन स्वीप दिलवाने की राह दिखा दी है. क्या ये जम्मू कश्मीर में चुनाव का माहौल तैयार किया जा रहा है. मामला चाहे कुछ भी हो गृहमंत्री अमित शाह की तरफ से किए गए इस ऐलान ने जम्मू-कश्मीर की राजनीतिक पार्टियों के बीच खलबली मचा दी है.
शाह की इस रणनीति से जहां एक ओर नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी और कांग्रेस पार्टी को तगड़ा झटका लगा है और वो लगातार गुज्जर, बक्करवाल समुदाय के नाम पर बयानबाजी कर रहीं हैं, वहीं शाह ने ये बात साफ करते हुए की पहाड़ियों के आरक्षण से गुज्जर बक्करवाल के प्रतिशत में कमी नहीं आयेगी, तीनों ही समुदायों के वोट बैंक को भाजपा के खाते में लाने की कोशिश की है और जानकारों का कहना है कि भाजपा की सीटों का ग्राफ इस ऐलान से काफी बढ़ सकता है.
सवाल यहां ये भी उठ रहा है की क्या केंद्र सरकार गुजरात के साथ जम्मू-कश्मीर और नई दिल्ली नगर निगम के चुनाव भी करवाने की सोच रही है या फिर तुरंत उसके बाद जम्मू कश्मीर में चुनाव करवाए जा सकते हैं. सूत्रों की माने तो अमित शाह के तीन दिवसीय दौरे में सरकार कश्मीर के नब्ज को टटोलने की कोशिश कर रही है और घोषणाओं के माध्यम से कश्मीरियों के दिल में विश्वास पैदा करने की कोशिश कर रही है, जिससे चुनाव के लिए बीजेपी अपने पक्ष में माहौल तैयार कर सके.
शाह ने साफ कह दिया है की जीडी शर्मा कमीशन ने पहाड़ी, गुज्जर और बक्करवाल समुदाय को आरक्षण देने की सिफारिश की है और प्रधानमंत्री मोदी का मन है कि प्रशासनिक कार्य पूरा कर इस सिफारिश को जल्द से जल्द लागू किया जाए. जब गुज्जर और बक्करवाल को एसटी का दर्जा दिया गया था, उस समय पहाड़ियों को उसमें शामिल नहीं किए जाने पर पहाड़ियों में काफ़ी रोष था. सालों से ये पहाड़ी समुदाय अपनी मांग उठा रहे थे, मगर किसी भी सरकार ने इनपर ध्यान नहीं दिया.
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इसकी एक बड़ी वजह राजनीति में इनका प्रतिनिधित्व काम होना भी बताया जा रहा है. पिछले साल जब अमित शाह नवंबर में जम्मू कश्मीर गए थे तब पहाड़ियों के एक प्रतिनिधिमंडल ने शाह से मुलाकात कर ये मांग उठाई थी. तभी से इस पर सरकार गंभीर हो चुकी थी. अगर शाह के ऐलान को देखें तो ऐसा लगता है की सरकार पहाड़ी समुदाय के लोगों को जल्दी ही आरक्षण देकर उनका दिल जीतने की कोशिश में हैं.
जब से धारा 370 और 35ए कश्मीर से हटाई गई, तभी से केंद्र सरकार एक के बाद एक घोषणा कर लगातार कश्मीर की जनता के दिल में जगह बनाने की कोशिश कर रही है. चाहे वो अनेक विभागों में भर्ती को लेकर हो या फिर वहां नए स्कूल कॉलेजों के निर्माण या खेल कूद को राष्ट्रीय स्तर पर प्रोत्शाहन देने का मामला हो. केंद्र सरकार की तरफ से ये कोशिश की जा रही है कि कश्मीर की जनता के दिल में जगह बनाई जा सके. आइए सबसे पहले जानते हैं की क्या है पहाड़ी समुदाय की मांग.
पहाड़ी बोलने वाली करीब 4 लाख से ज्यादा की आबादी 1965 से इस बात की मांग कर रही है कि उन्हें एसटी स्टेटस दिया जाए. सूत्रों की मानें तो 1965 में जम्मू-कश्मीर सरकार की तरफ से एसटी स्टेटस दिए जाने के लिए कई जातियों की लिस्ट तैयार कर भारत सरकार को भेजी थी, जिसमें गुज्जर, बक्करवाल व अन्य जातियां शामिल थी. उस समय कांग्रेस की सरकार थी. सरकार ने गुज्जर व बक्करवाल समेत अन्य जातियों को स्टेटस दे दिया, लेकिन पहाड़ी बोली बोलने वाले एक बड़े समाज को इससे अलग रखा गया.
तब से लगातार एसटी स्टेटस दिए जाने की मांग की जा रही है. धारा 370 हटाने के बाद पहाड़ी समाज को लेकर ओबीसी कमीशन गठित किया गया. सूत्रों की मानें तो कमीशन ने सरकार को अपनी रिपोर्ट सौप दी है, जिसमें उन्हें एसटी स्टेटस दिए जाने की सिफारिश भी की गई है. इस मुद्दे पर भारतीय जनता पार्टी के जम्मू कश्मीर अध्यक्ष रविंद्र राणा ने ईटीवी भारत से बात करते हुए कहा कि पहाड़ी समुदाय सालों से सभी सरकार से ये मांग करता आ रहा था, लेकिन किसी ने इसपर ध्यान नहीं दिया.
अब जब हमारी सरकार ने उन्हें आरक्षण देने की बात कही तो कुछ राजनीतिक पार्टियों को पेट में दर्द होने लगा और वो अफवाहें फैला कर गुज्जर और बक्करवाल समुदाय को भड़का रहीं हैं, जबकि गृहमंत्री ने ये साफ कह दिया है कि किसी भी समुदाय का एक प्रतिशत भी आरक्षण काम नहीं किया जाएगा. रैना ने चुनाव के सवाल पर कहा कि चुनाव तो आखिर एक दिन होना ही है, मगर बीजेपी पूरे साल घोषणाएं और विकास कार्य करती रहती है, इसलिए इसे चुनावी घोषणा कहना गलत है.