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सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात HC के ऑर्डर पर लगाई रोक, तीस्ता सीतलवाड़ को दी अंतरिम राहत - 2002 के गोधरा कांड के बाद हुए दंगों का मामला

सुप्रीम कोर्ट ने एक्टिविस्ट तीस्ता सीतलवाड़ मामले में गुजरात हाई कोर्ट के ऑर्डर पर 7 दिनों के लिए रोक लगा दी है.

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Published : Jul 1, 2023, 5:06 PM IST

Updated : Jul 1, 2023, 10:55 PM IST

अहमदाबाद: सुप्रीम कोर्ट ने एक्टिविस्ट तीस्ता सीतलवाड़ को 7 दिनों के लिए अंतरिम राहत प्रदान कर दी है. 2002 के गुजरात दंगों के संबंध में कथित रूप से साक्ष्य गढ़ने के मामले में गुजरात उच्च न्यायालय ने आज तीस्ता की नियमित ज़मानत खारिज कर दी थी. हाई कोर्ट ने उन्हें तुरंत सरेंडर करने को कहा था.

सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा कि किसी व्यक्ति को ज़मानत को चुनौती देने के लिए 7 दिन का समय क्यों नहीं दिया जाना चाहिए, जबकि वह इतने लंबे समय से बाहर है. तुषार मेहता ने कहा, ''इस मामले को जिस सहज तरीके से प्रस्तुत किया गया है, ये उससे कहीं ज्यादा संगीन है.”

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता का कहना है कि एसआईटी (2002 गोधरा दंगा मामले पर) सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित की गई थी और जिसने समय-समय पर रिपोर्ट दाखिल की है. गवाहों ने एसआईटी को बताया कि सीतलवाड़ ने उन्हें बयान दिया था और उनका फोकस एक विशेष पहलू पर था जो ग़लत पाया गया. सॉलिसिटर जनरल का कहना है कि सीतलवाड़ ने झूठे हलफनामे दायर किए.

सीतलवाड़ की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सी.यू. सिंह ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि उन्हें पिछले साल 22 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम ज़मानत दी थी और उन्होंने ज़मानत की किसी भी शर्त का उल्लंघन नहीं किया है.

गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा नियमित जमानत देने से इनकार किए जाने के तुरंत बाद कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ ने शनिवार को उच्चतम न्यायालय का रुख किया लेकिन उन्हें अंतरिम सुरक्षा देने के मुद्दे पर न्यायाधीशों में मतभेद दिखे. पीठ ने कहा, "जमानत देने के सवाल पर हमारे बीच मतभेद हैं। इसलिए हम प्रधान न्यायाधीश से इस मामले को एक बड़ी पीठ को सौंपने का अनुरोध करते हैं." सीतलवाड़ की याचिका पर अब उच्चतम न्यायालय के तीन न्यायाधीशों की पीठ रात सवा नौ बजे विशेष बैठक में सुनवाई करेगी.

सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ 2002 के गुजरात दंगों के संबंध में कथित तौर पर साक्ष्य गढ़ने के मामले में तीस्ता सीतलवाड़ को अंतरिम जमानत देने पर असहमत हैं. पीठ ने मामले को बड़ी पीठ के समक्ष रखने के लिए मामले को भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के पास भेज दिया. गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा 2002 के गुजरात दंगों के संबंध में कथित तौर पर साक्ष्य गढ़ने के एक मामले में सीतलवाड की नियमित जमानत याचिका आज खारिज होने के बाद सीतलवाड़ ने उच्चतम न्यायालय का रुख किया था.

सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि हाई कोर्ट द्वारा सीतलवाड़ को आत्मसमर्पण करने के लिए कुछ समय दिया जाना चाहिए था. गुजरात सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सीतलवाड को आत्मसमर्पण के लिए समय देने पर आपत्ति जताई. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “22 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें अंतरिम जमानत देने का आदेश पारित किया, वह नौ महीने से जमानत पर हैं. हम सोमवार या मंगलवार को इस मामले पर विचार कर सकते हैं, 72 घंटों में क्या होने वाला है?”

आपको बता दें कि गुजरात उच्च न्यायालय ने शनिवार को सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ की नियमित जमानत याचिका खारिज कर दी और उन्हें 2002 के गोधरा कांड के बाद हुए दंगों के मामलों में निर्दोष लोगों को फंसाने के लिए कथित तौर पर सबूत गढ़ने से संबंधित मामले में तुरंत आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया. न्यायमूर्ति निर्जर देसाई की अदालत ने सीतलवाड़ की जमानत याचिका खारिज कर दी और उन्हें तुरंत आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया क्योंकि वह अंतरिम जमानत हासिल करने के बाद पहले ही जेल से बाहर हैं.

अदालत ने अपने आदेश में कहा, चूंकि आवेदक सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई अंतरिम जमानत पर बाहर है, इसलिए उसे तुरंत आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया जाता है. अदालत ने आदेश की घोषणा के बाद सीतलवाड़ के वकील द्वारा मांगी गई 30 दिनों की अवधि के लिए आदेश पर रोक लगाने से भी इनकार कर दिया। विस्तृत आदेश की प्रतीक्षा है.

सीतलवाड़ को पिछले साल 25 जून को गुजरात के पूर्व पुलिस महानिदेशक आर बी श्रीकुमार और पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट के साथ गोधरा दंगों के बाद के मामलों में निर्दोष लोगों को फंसाने के लिए कथित तौर पर सबूत गढ़ने के आरोप में अहमदाबाद अपराध शाखा पुलिस द्वारा दर्ज एक अपराध में हिरासत में लिया गया था.

अहमदाबाद की एक सत्र अदालत ने 30 जुलाई, 2022 को मामले में सीतलवाड़ और श्रीकुमार की जमानत याचिकाओं को खारिज कर दिया था और कहा था कि उनकी रिहाई से गलत काम करने वालों को यह संदेश जाएगा कि कोई व्यक्ति बिना किसी दंड के आरोप लगा सकता है और बच सकता है.

हाई कोर्ट ने 3 अगस्त 2022 को सीतलवाड़ की जमानत याचिका पर राज्य सरकार को नोटिस जारी किया था और मामले की सुनवाई 19 सितंबर को तय की थी. इस बीच, उच्च न्यायालय द्वारा उनकी याचिका पर विचार करने से इनकार करने के बाद उन्होंने अंतरिम जमानत के लिए सुप्रीम कोर्ट (एससी) का रुख किया.

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 2 सितंबर को उन्हें अंतरिम जमानत दे दी थी और उनसे तब तक ट्रायल कोर्ट में अपना पासपोर्ट जमा करने को कहा था, जब तक गुजरात हाई कोर्ट उनकी नियमित जमानत याचिका पर फैसला नहीं कर देता.

सीतलवाड़ और अन्य दो पर भारतीय दंड संहिता की धारा 468, 471 (जालसाजी), 194 (मौत के अपराध की सजा पाने के इरादे से झूठे सबूत देना या गढ़ना), 211 (चोट पहुंचाने के लिए आपराधिक कार्यवाही शुरू करना), 218 (लोक सेवक द्वारा किसी व्यक्ति को सजा से बचाने या संपत्ति को जब्त होने से बचाने के इरादे से गलत रिकॉर्ड या लेखन तैयार करना), और 120 (बी) (आपराधिक साजिश) के तहत मामला दर्ज किया गया है.

(पीटीआई-ईंग्लिश)

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सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा कि किसी व्यक्ति को ज़मानत को चुनौती देने के लिए 7 दिन का समय क्यों नहीं दिया जाना चाहिए, जबकि वह इतने लंबे समय से बाहर है. तुषार मेहता ने कहा, ''इस मामले को जिस सहज तरीके से प्रस्तुत किया गया है, ये उससे कहीं ज्यादा संगीन है.”

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता का कहना है कि एसआईटी (2002 गोधरा दंगा मामले पर) सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित की गई थी और जिसने समय-समय पर रिपोर्ट दाखिल की है. गवाहों ने एसआईटी को बताया कि सीतलवाड़ ने उन्हें बयान दिया था और उनका फोकस एक विशेष पहलू पर था जो ग़लत पाया गया. सॉलिसिटर जनरल का कहना है कि सीतलवाड़ ने झूठे हलफनामे दायर किए.

सीतलवाड़ की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सी.यू. सिंह ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि उन्हें पिछले साल 22 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम ज़मानत दी थी और उन्होंने ज़मानत की किसी भी शर्त का उल्लंघन नहीं किया है.

गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा नियमित जमानत देने से इनकार किए जाने के तुरंत बाद कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ ने शनिवार को उच्चतम न्यायालय का रुख किया लेकिन उन्हें अंतरिम सुरक्षा देने के मुद्दे पर न्यायाधीशों में मतभेद दिखे. पीठ ने कहा, "जमानत देने के सवाल पर हमारे बीच मतभेद हैं। इसलिए हम प्रधान न्यायाधीश से इस मामले को एक बड़ी पीठ को सौंपने का अनुरोध करते हैं." सीतलवाड़ की याचिका पर अब उच्चतम न्यायालय के तीन न्यायाधीशों की पीठ रात सवा नौ बजे विशेष बैठक में सुनवाई करेगी.

सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ 2002 के गुजरात दंगों के संबंध में कथित तौर पर साक्ष्य गढ़ने के मामले में तीस्ता सीतलवाड़ को अंतरिम जमानत देने पर असहमत हैं. पीठ ने मामले को बड़ी पीठ के समक्ष रखने के लिए मामले को भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के पास भेज दिया. गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा 2002 के गुजरात दंगों के संबंध में कथित तौर पर साक्ष्य गढ़ने के एक मामले में सीतलवाड की नियमित जमानत याचिका आज खारिज होने के बाद सीतलवाड़ ने उच्चतम न्यायालय का रुख किया था.

सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि हाई कोर्ट द्वारा सीतलवाड़ को आत्मसमर्पण करने के लिए कुछ समय दिया जाना चाहिए था. गुजरात सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सीतलवाड को आत्मसमर्पण के लिए समय देने पर आपत्ति जताई. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “22 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें अंतरिम जमानत देने का आदेश पारित किया, वह नौ महीने से जमानत पर हैं. हम सोमवार या मंगलवार को इस मामले पर विचार कर सकते हैं, 72 घंटों में क्या होने वाला है?”

आपको बता दें कि गुजरात उच्च न्यायालय ने शनिवार को सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ की नियमित जमानत याचिका खारिज कर दी और उन्हें 2002 के गोधरा कांड के बाद हुए दंगों के मामलों में निर्दोष लोगों को फंसाने के लिए कथित तौर पर सबूत गढ़ने से संबंधित मामले में तुरंत आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया. न्यायमूर्ति निर्जर देसाई की अदालत ने सीतलवाड़ की जमानत याचिका खारिज कर दी और उन्हें तुरंत आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया क्योंकि वह अंतरिम जमानत हासिल करने के बाद पहले ही जेल से बाहर हैं.

अदालत ने अपने आदेश में कहा, चूंकि आवेदक सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई अंतरिम जमानत पर बाहर है, इसलिए उसे तुरंत आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया जाता है. अदालत ने आदेश की घोषणा के बाद सीतलवाड़ के वकील द्वारा मांगी गई 30 दिनों की अवधि के लिए आदेश पर रोक लगाने से भी इनकार कर दिया। विस्तृत आदेश की प्रतीक्षा है.

सीतलवाड़ को पिछले साल 25 जून को गुजरात के पूर्व पुलिस महानिदेशक आर बी श्रीकुमार और पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट के साथ गोधरा दंगों के बाद के मामलों में निर्दोष लोगों को फंसाने के लिए कथित तौर पर सबूत गढ़ने के आरोप में अहमदाबाद अपराध शाखा पुलिस द्वारा दर्ज एक अपराध में हिरासत में लिया गया था.

अहमदाबाद की एक सत्र अदालत ने 30 जुलाई, 2022 को मामले में सीतलवाड़ और श्रीकुमार की जमानत याचिकाओं को खारिज कर दिया था और कहा था कि उनकी रिहाई से गलत काम करने वालों को यह संदेश जाएगा कि कोई व्यक्ति बिना किसी दंड के आरोप लगा सकता है और बच सकता है.

हाई कोर्ट ने 3 अगस्त 2022 को सीतलवाड़ की जमानत याचिका पर राज्य सरकार को नोटिस जारी किया था और मामले की सुनवाई 19 सितंबर को तय की थी. इस बीच, उच्च न्यायालय द्वारा उनकी याचिका पर विचार करने से इनकार करने के बाद उन्होंने अंतरिम जमानत के लिए सुप्रीम कोर्ट (एससी) का रुख किया.

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 2 सितंबर को उन्हें अंतरिम जमानत दे दी थी और उनसे तब तक ट्रायल कोर्ट में अपना पासपोर्ट जमा करने को कहा था, जब तक गुजरात हाई कोर्ट उनकी नियमित जमानत याचिका पर फैसला नहीं कर देता.

सीतलवाड़ और अन्य दो पर भारतीय दंड संहिता की धारा 468, 471 (जालसाजी), 194 (मौत के अपराध की सजा पाने के इरादे से झूठे सबूत देना या गढ़ना), 211 (चोट पहुंचाने के लिए आपराधिक कार्यवाही शुरू करना), 218 (लोक सेवक द्वारा किसी व्यक्ति को सजा से बचाने या संपत्ति को जब्त होने से बचाने के इरादे से गलत रिकॉर्ड या लेखन तैयार करना), और 120 (बी) (आपराधिक साजिश) के तहत मामला दर्ज किया गया है.

(पीटीआई-ईंग्लिश)

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Last Updated : Jul 1, 2023, 10:55 PM IST
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