अहमदाबाद : महिला ने शिकायत में कहा था कि पुलिस ने उसके पति को नए धर्मांतरण रोधी कानून के तहत फंसाया है जबकि मामला घरेलू विवाद से संबंधित था. लोक अभियोजक मितेश अमीन ने कहा कि सरकार ने गुजरात उच्च न्यायालय में एक हलफनामा दायर किया है जिसमें गुजरात धार्मिक स्वतंत्रता (संशोधन) अधिनियम 2021 के तहत दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने का विरोध किया गया है.
सरकार ने हलफनामे में कहा है कि वडोदरा की गोर्ती पुलिस द्वारा दर्ज प्राथमिकी में वही विवरण दर्ज हैं जो याचिकाकर्ता ने जांच के दाैरान चिकित्सक को बताया था.
इसके अलावा, मजिस्ट्रेट के समक्ष याचिकाकर्ता द्वारा दिए गए बयान में वह विवरण भी शामिल है जो उसकी शिकायत के आधार पर दर्ज की गई प्राथमिकी में है.
उन्होंने कहा कि हलफनामा सोमवार को न्यायमूर्ति इलेश जे वोरा के समक्ष पेश किया गया. हाई काेर्ट ने पिछली सुनवाई के दौरान सरकार से एक हलफनामा दायर करने के लिए कहा था, अगर वह उस प्राथमिकी को रद्द करने का विरोध करना चाहती है जिसमें महिला याचिकाकर्ता ने कहा था कि गोर्ती पुलिस के समक्ष उसकी शिकायत एक 'छोटे घरेलू वैवाहिक मुद्दे' से ज्यादा कुछ नहीं है. ' जिसे सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझा लिया गया है. उसने अदालत को बताया था कि इस मुद्दे को 'सांप्रदायिक' बनाने के लिए 'कुछ धार्मिक-राजनीतिक समूहों' द्वारा प्राथमिकी में 'लव जिहाद' के एंगल को जोड़ा गया था.
उन्होंने अदालत के समक्ष याचिका में कहा है कि अंतर-धार्मिक जोड़े का विवाह विशेष विवाह अधिनियम, 1954 (Special Marriage Act, 1954) के अनुसार हुआ था, और उनके परिवार के सदस्य एक-दूसरे को और उनके धर्म और सामाजिक स्थिति को जानते थे, इसके बाद, पति और पत्नी के बीच कुछ छोटे वैवाहिक झगड़े के बाद महिला अपने ससुराल को छोड़कर अपने माता-पिता के घर चली गई.