अहमदाबाद : गुजरात सरकार ने मंगलवार को उच्च न्यायालय के समक्ष अपने नये धर्मांतरण विरोधी कानून का जोरदार बचाव किया और दावा किया कि कानून केवल विवाह के माध्यम से गैरकानूनी धर्मांतरण से संबंधित है और यह लोगों को अंतर-धार्मिक विवाह करने से नहीं रोकता.
नये कानून के बारे में एक याचिकाकर्ता के साथ-साथ गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा उठाई गई आशंकाओं को दूर करने के लिए राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता कमल त्रिवेदी ने कहा कि कानून में कई सुरक्षा वाल्व हैं, जैसे कि अभियोजन शुरू करने के लिए एक जिला मजिस्ट्रेट या एक एसडीएम स्तर के अधिकारी की पूर्व स्वीकृति लेना.
सरकार की दलीलें सुनने के बाद मुख्य न्यायाधीश विक्रमनाथ और न्यायमूर्ति बीरेन वैष्णव की खंडपीठ ने अंतरिम आदेश सुनाने के लिए अगली सुनवाई की तिथि 19 अगस्त तय की.
पीठ उस कानून के प्रावधानों को चुनौती देने वाली एक याचिका पर सुनवाई कर रही है जो विवाह के माध्यम से जबरन या धोखाधड़ी से करवाए गए धर्मांतरण के लिए दंड का प्रावधान करता है.
गुजरात धार्मिक स्वतंत्रता (संशोधन) कानून, 2021 के खिलाफ याचिका पिछले महीने जमीयत उलेमा-ए-हिंद के गुजरात चैप्टर द्वारा दायर की गई थी. अधिनियम 15 जून को अधिसूचित किया गया था.
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पिछली सुनवायी के दौरान जमीयत उलेमा-ए-हिंद की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मिहिर जोशी ने कहा था कि संशोधित कानून में अस्पष्ट शर्तें हैं जो विवाह के मूल सिद्धांतों के खिलाफ हैं और संविधान के अनुच्छेद 25 में निहित धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण और प्रचार के अधिकार के खिलाफ हैं.